रविवार, 2 फ़रवरी 2020

नद्दिन में नद्द- शोणभद्र का पौरमाणिक माहात्म्य-1 त्रिलोकीनाथ


नद्दिन में  नद्द

- शोणभद्र
(भाग-1)
नमामि देवी नर्मदे...... ,
 किंतु गंगा ,सोन और नर्मदा यह अजीबोगरीब प्राकृतिक संयोग के साथ पवित्रतम संयोग भी है। 
 गंगा के अपने पुजारी हैं, और अब तो प्रधानमंत्री बने मोदी ने उन्हें मां का भी दर्जा दे दिया है....,और एक मंत्रालय भी खोल दिया है ताकि गंगा प्रदूषण मुक्त हो सके.... जो 5 साल में तो नहीं हुआ.....।कहते हैं गंगा के लिए कुछ अपना धन भी दान किया है उन्होंने, "बड़े लोग हैं ,बड़ी-बड़ी बातें "तो दूसरी तरफ नर्मदा के पानी को गुजरात ले जाकर, वहां पर विश्व की सबसे बड़ी सरदार पटेल की स्टेच्यू..., आदि भी बनाया है। अच्छी बात है ,एक बार वह अमरकंटक भी आए जरूर, उन्होंने देखा होगा किस सोन नद भी यहीं से निकलता हैं..... और वह भी मध्य प्रदेश बिहार और उत्तर प्रदेश के लिए वरदान है .....नर्मदा और गंगा के बीच में सोन ही है जो सेतु का काम करता है ....। बावजूद इसके ,सोन नद को कोई महोत्सव इसलिए नहीं मनाया जाता क्योंकि उसका अपना वोट बैंक "टुकड़े-टुकड़े गैंग "में बटा है। या फिर कम है ....और इसलिए भी उसकी चर्चा नहीं होती ।क्योंकि वह 55 वर्षों से चलता फिरता प्रदूषण का प्रमाण पत्र है। माफियाओं के लिए शिवराज सरकार में वरदान जो बना,अब भी माफिया राज कायम है ।
किंतु "आग्नेय-पुराण "ने इसका माहात्म्य जो बताया है वह शहडोल क्षेत्र के लिए कम से कम वरदान है..... और लोकतंत्र आने के बाद पांचवी अनुसूची मैं  शामिल होने के बाद भी  सोन नद  की दुर्दशा दुखद यह है कि, जो आध्यात्मिक ऊर्जा का तीर्थ शहडोल बन सकता है..., पर्यटन का व्यापक भंडार जहां भरा पूरा है.... उसकी चर्चा भी नहीं होती ।आखिर किन कारणों  सोन नद के पौराणिक  माहात्म्य, उसकी वैभवता, और उसके इतिहास, उसकी प्राकृतिक संसाधन की परिपूर्णता से उसे सार्वजनिक क्यों न किया गया......? आज सोन के माहात्म्य को हम इसलिए प्रदर्शित करना चाहते हैं कि कम से कम शहडोल क्षेत्र की जीवन रेखा के बारे में यहां के निवासी जान सकें कि वह किस पवित्र धरा पर सांस ले रहे हैं..... और पवित्रता का केंद्र "सोन नद" की लगातार हत्या के प्रयास हो रहे हैं..... क्या हमें अपने विरासत के अधिकार सुरक्षित नहीं रखनी चाहिए.....? क्या यह योजनाबद्ध तरीके से हमसे किसी मनुवाद की नफरत की भूमि पैदा करके प्राकृतिक संसाधनों से हमारी दूरी बना दी गई....? कौन है वह अपराधी...?, क्या आप पहचानेंगे...?
 लेकिन पहले आप पहचानिए कि हमारी विरासत में "शोण-नद" का याने "सोन-नदी" का जो गंगा, नर्मदा का मध्य मार्ग है.. उसे किस प्रकार से हम सब  आराधना करते थे..... और जब आराधना की आध्यात्मिक कड़ी हमसे छूट गई ...,तो प्रदूषण के लुटेरों ने, खनिज माफिया के लुटेरों ने..... हम सब को लूटना चालू कर दिया......
 दोहन, अलग बात है.... ,शोषण ,अलग.... इस पर चर्चा फिर करेंगे, पहले जानिए क्या है सोन नदी, इसे दो हिस्सों में बताएंगे। 
कि, कौन है और कितनी आध्यात्मिक परमाणु ऊर्जा,  तथा वैज्ञानिक लाभ का केंद्र सोन नदी हम से कैसे दूर करके रख दी गई.............

( भूमिका; त्रिलोकीनाथ)


।।श्री गणेशाय नमः।।
 ब्रह्मा के पुत्र शोणभद्र, तेरे लिए नमस्कार हो, नमस्कार हो। मेकल (पर्वत या घाटी ?) से उत्पन्न महान शोणभद्र को नमस्कार। सब पाप हरने वाले शोणभद्र को नमस्कार।
 विनय से नम्र सत्यवती-पुत्र व्यास ने( नारद) से पूछा।
 व्यास बोले- हे भगवन् हे व्रतनिष्ठ !(मैं ) माहात्म्यशाली, ब्रह्मा के पुत्र स्वरूप शोण
 की कहानी सुनना चाहता हूं। आप मुझसे कहे।
 नारद बोले - गूलर के बनो से आवेष्ठित शोण नाम का महानद है। उसके पूर्व में कीकट नाम का देश है, जो सभी (पुण्य) कर्मों के लिए बहिष्कृत है। कीकट देश में गयापुरी पवित्र है, पुनपुन नदी पवित्र है। च्यवनाश्रम पवित्र है; और राजगृह का वन पवित्र है।
व्यास बोले- हे श्रेष्ठ वक्ता, शोण नद की उत्पत्ति सुनकर कौन सा पुण्य होता है, शोण क्षेत्र में जाने वालों को कौन-सी गति (फल) प्राप्त होती है; (वहां) स्नान, दान तथा श्राद्ध करने का क्या फल होता है, हे महामुने। यह सब मुझसे विस्तारपूर्वक कहिए ।मैं ठीक से सुनना चाहता हूं।
 नारद बोले- शोण क्षेत्र अवश्य ही पुण्य देने वाला और मंगल कारक कहा गया है।शोण क्षेत्र में या फिर सोन नद के तट के निकट (ध्यान के लिए) जो ध्यान-कर्म करता है, वह निसंदेह अवश्य ही ब्रह्म लोक प्राप्त करता है।(शोण तट पर)  श्राद्ध करने से मनुष्य इच्छित  पुत्र-पौत्र आदि प्राप्त करता है और स्नान करने वाले को बराबर ब्रह्म में लीन ही जानना चाहिए । 
शोण तट पर जो संध्या-वंदन करता है, वह यदि ब्रह्मघाती भी होता है तो पाप से मुक्त हो जाता है। शोण के तट पर वेदज्ञ ब्राह्मण के लिए सोना दान करनेवाला संपूर्ण भोगों को भोग कर निश्चय ही ब्रह्म लोक हो जाता है। वहां(शोण तट पर) जो व्यक्ति शंखोदक से देव (महादेव) को नहला कर उनकी पूजा करता है, उसके पुण्य-फल को, हे व्रतनिष्ठ, कोई बदला नहीं सकता। हे सम्मान्य शोण के तीर पर जिसकी मृत्यु होती है वह निश्चय ही मोक्ष प्राप्त करता है, इस संबंध में कोई विचार करने की जरूरत नहीं है। शोण के तट पर शिव को शंख से विधिवत स्नान कराने वाला मनुष्य, निसंदेह, सारी धरती दान करने का फल पाता है। 
शोण तट पर जल, अक्षत और चंदन से जो शंख की पूजा करता है और उसी जल से स्नान कराता है उसे अत्यंत पुण्य होता है। शोण तट पर जो सूर्य को अर्घ्य देता है उसके प्रति सूर्य 12 वर्षों तक प्रसन्न हो जाते हैं ।स
शोण तट पर तिल, घी और चावल से जो होम करता है वह दसहजार युगों तक स्वर्ग में अमृत मान करता है। देवनदी के संगम पर पहले मैंने यज्ञ किया था; इसलिए इसे यज्ञतीर्थ कहा गया है और इसलिए यहां होम करना चाहिए। होम करने से जो फल प्राप्त होता है उसे कमल से उत्पन्न, ब्रह्मा जानते हैं

(जारी 2)




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