गुरुवार, 2 जनवरी 2020

नौटंकी का नगर शहडोल (trilokinath)

प्रत्यक्षम् 
किम्
प्रमाणम्  


 नौटंकी का नगर
 शहडोल
 वर्ष 2019


(त्रिलोकीनाथ)
 वर्ष 2019 बीते कल की बात हो गई लेकिन इससे भी ज्यादा शहडोल के लिए, लोकल शहडोल के लिए यह नौटंकी का वर्ष भी रहा। शहडोल नगरपालिका परिषद में काम-धाम तो कुछ हुआ नहीं राजनीतिक दृष्टिकोण से बस नौटंकी नौटंकी और नौटंकी, यानी ड्रामा, ड्रामा और ड्रामा चलता रहा और उसका उपसंहार इस बात पर हुआ  नगरपालिका मे राजनीति नूरा-कुश्ती पर जाकर समाप्त हो गई।

 नागरिकों के लिए टाइमपास  चना जोर गरम की तरह राजनीत शहडोल के नगर वासियों को बेवकूफ बनाती रही। भाजपा की श्रीमती उर्मिला कटारे डराने धमकाने के बाद भाजपा की राजनीति को गर्म करने के काम में आए।  व विधायक राजेंद्र शुक्ला के राजनीतिक कलाकौशल से उर्मिला कटारे की कुर्सी बचाने के काम में आया और फिर धोबी पछाड़ की तरह राजनीति जो रीवा के सरदार जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने उर्मिलाकटारे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर पटका था, वह ठंड पड़े कि रीवा के ही राजेंद्र शुक्ला ने आकर उल्टा पटक दिया और फिर अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेसी उपाध्यक्ष कुलदीप निगम के खिलाफ आ गया और अंत जबकि 30 तारीख को अविश्वास प्रस्ताव में वोटिंग होनी थी 2019 के विदाई समारोह पर एक होटल में नूराकुश्ती पर खत्म हो गया।  इसे कोई चुनाव नहीं, कोई दुराव नहीं, बस मनोरंजन ही मनोरंजन ।



भाजपा की अध्यक्षी भाजपा के पास और कांग्रेस की उपाध्यक्षी कांग्रेस के पास बड़ा हिल मिलकर फिर से एक संकल्प प्रस्ताव "अविश्वास के भ्रामक वातावरण" से निकल कर आया कि मिलजुलकर नगर का विकास करना है.....। इस प्रकार एक नौटंकी 2 महीने से ज्यादा चली लेकिन नुकसान किसका हुआ.....? शहडोल नगर के लोगों का।
 वह कैसे हुआ उसकी व्याख्या अपने अपने हिसाब से आप करते रहिए....
 किंतु पीछे की राजनीति का कौन सा दबाव रहा जिसकी वजह से यह नौटंकी जमकर शहडोल पालिकापरिषद में मंचन की....., तो भूमिका कहां से आई ?
जरा इस पर भी विचार करें।
 दरअसल भारतीय जनता पार्टी ने गत 15-20 साल से नगरपालिका  पर कब्जा करके नगरपालिका परिषद में करोड़ों की लूट का जो सिलसिला चालू हुआ, वह एकाएक कांग्रेस के उपाध्यक्ष के कारण स्पीड ब्रेकर के रूप में खड़ा हो गया।
 तब जब उर्मिला कटारे अध्यक्ष नहीं थी पूर्व के अध्यक्षों में मनमाने तरीके से नगर के विकास के नाम पर करोड़ों अरबों रुपए अपने-अपने ठेकेदारों के माध्यम से पालिका परिषद से लूटे.... जहां पाया वहां निर्माण के नाम पर, पालिका के विकास के नाम पर बड़ी-बड़ी कमीशन बाजी और जहां जहां विकास, अपने घर, अपने रिश्तेदारों के आसपास, अपने मोहल्ले में ,जहां चाहा वहां पालिका परिषद का फंड उपयोग किया.... अब उतनी स्वतंत्रता नहीं रही, तो फंड का लूट भी स्वभाविक है उस तरह का नहीं होगा और यही एकमात्र कारण था कि अविश्वास प्रस्ताव खुलकर आया....
 भाजपा के लोगों ने शपथ पत्र देकर, कोई संकल्प करके नहीं, शपथ पत्र देकर....जिसमें छह माह की सजा का प्रावधान भी है...., यदि कोई चैलेंज करे तो। बिना इस कानूनी संकल्प के एक पाखंड की तरह उपयोग कर, ओपन लूट का बाजार खड़ा करना चाहा... जो ना हो सका है ।और पार्टी संगठन के नाम पर सब के मुंह में ताले लगा दिए गए।
 यह तो सही है उसकी जब तक भारतीय जनता पार्टी के जो भी पदाधिकारी रहे करोड़ों में खेले हैं मोहनराम तालाब में कमिश्नर शहडोल का आदेश एक उदाहरण है कि वे तमाम सीमाओं मर्यादाओं को पार करके भी लूटने के लिए भरसक प्रयास किए, उनके घर जाकर कोई देखे तो अंदाज लगेगा कि किस बेशर्मी से लूट हुई है?
 उनके ठेकेदार विकास के नाम पर कैसा लूट किए हैं ?और यही लूटखुली लूट नगरपालिका परिषद के पार्षदों और नेताओं के लिए आकर्षण का कारण था। क्योंकि "वे"  भाजपा मे भ्रष्टाचार के
रोल मॉडल थे ।
भाजपा के तत्कालीन पदाधिकारियों ने जो आदर्श विकसित किए, लूट का आदर्श। वह वर्तमान परिषद में नौटंकी का कारण था। जबकि सत्ता परिवर्तन हुआ, कांग्रेस के नेता चाहते तो बीते 15 साल की "खुली लूट पर श्वेतपत्र" जारी करवाते और बताते कि किस प्रकार भाजपा का नकाब पहनकर शहडोल में बाहर से आकर बसने वाले, शहडोल से प्यार न करने वाले लोगों ने कैसे शहडोल को लूटा है। और आम नागरिकों का विश्वास जीतने का काम करते हैं ।जो नही हुआ।

किंतु वह प्रस्ताव जो अविश्वास के रूप में भाजपा की उर्मिला कटारे के खिलाफ आया वे उनकी मजबूती का कारण बन गया और बाद में जो उपाध्यक्ष के खिलाफ आया, वह दोनों की मजबूरी का कारण बन गया। की यथा-स्थित बनाकर रखी जाए ।और ऐसे चलता जाए.... "चलती का नाम गाड़ी" के रूप में।
 अब शायद इससे उबरने का समय आ गया है यह देखने का समय आ गया है कि अगर शहडोल नगर पालिका क्षेत्र में जो संभागीय मुख्यालय है, मे
 ट्रांसपोर्ट नगर नहीं है..., यह पालिकापरिषद का असफल होने का प्रमाण है..., 
यदि जयस्तंभ चौक में जो प्रशासनिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण चौराहा है कुछ मीटर की सड़क नहीं बन पा रही है तो यह नगर पालिका परिषद की असफलता है 
यह ठीक है कि प्रशासनिक हल्का भी इसका ठीकरा नगरपालिका पर फोड़ता है किंतु क्या इसी प्रकार की राजनीतिक झगड़ों और नौटंकीयों से नगर के विकास के सभी पहलुओं का बलिदान होता रहेगा...?
 यह बात 2019 की इतिहास में दर्ज रहेगा, ठीक उसी प्रकार से जैसे मोहनराम तालाब में 3 करोड़ रुपये भी ज्यादा खर्च हो जाने के बाद तालाब और मंदिर परिसर बर्बादी और अराजकता का प्रमाण है ।क्योंकि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही न
 नेतृत्व ले रहे हैं न  प्रशासन पर दबाव नहीं बना पा रहे हैं कि मंदिर हमारी विरासत है..., किसी को मोहताज नहीं है इसे तत्काल ठीक किया जाए। यह तो भला हो कलेक्टर ललित दाहिमा का कि उन्होंने किसी भी कंडीशन पर फोन नाम तालाब को भरने का संकल्प लिया हालांकि संकल्प स्वच्छता का भी है किंतु पानी ही भर गया यह बहुत है और उनके रहते तक उम्मीद रखना चाहिए कि भरा रहेगा।
 क्योंकि नेता  अपने विरासत के आदर्श यानी "लूट के आदर्श" पर चिंतित हैं और उस लक्ष्य को पाने के लिए अपना समय नष्ट कर रहे हैं।

 इसलिए जहां एक पैसा नहीं लगना है सिर्फ इमानदारी और इमानदार पूर्ण कार्यप्रणाली की मंशा लगनी है वहां भी मंदिर परिसर क्षेत्र को भी स्वस्थ और सुंदर   बनाकर रख पाने में प्रशासन बुरी तरह से असफल है।
 क्योंकि परिषद नौटंकी में व्यस्त है.., तो जिले के बाहर खनिज माफिया की नाटक नौटंकी चल रही है..., अलग-अलग माफिया अलग-अलग नौटंकी मे गाडियाॅ नाममात्र की पकडी, फिर छोड़ देना जैसे प्यार मोहब्बत में होता है कुछ इस प्रकार पर शहडोल की प्रशासनिक प्रणाली नौटंकी की प्रणाली बनकर रह गई है। 2019 कुछ इसी प्रकार का इतिहास दर्ज करा कर चला गया है।



 कोई पूछने वाला नहीं है कि जब करोड़ों रुपए खर्च हो गए मोहनराम तालाब में तो सिर्फ पालिका परिषद के 2 कर्मचारी की बलि क्यों चढ़ाई गई... जबकि स्मारक भाजपा के दो नेताओं के पिता के नाम पर पीपल के पेड़ के नीचे शर्मा और जगवानी के नाम के सेड आज भी उन्हें जीवित रखे हुए हैं। उस पर प्रश्नचिन्ह कमिश्नर ने भी नहीं लगाया ....?
तो क्या यह भी नूराकुश्ती है कि आप भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ इस प्रकार से काम कर रहे हैं जैसे "अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह चीन्ह कर देय..." तो क्या यह भी नौटंकी है...? प्रशासनिक कार्रवाई भी नौटंकी है।
 अगर यह सब सच है तो बहुत दुखद, बहुत निंदनीय और बुरी तरह से लोकतंत्र की असफलता का प्रमाणपत्र है किंतु अगर यह झूठ है तो इस झूठ को प्रशासन और स्थानीय राजनीतिज्ञ चाहे वे भाजपा के हूं या किसी भी पार्टी के सब ने स्वीकार कर लिया है

 अक्सर मै शहडोल को भारत का "छोटा सा मॉडल" मानता हूं इसलिए जब शहडोल में कुछ घट रहा होता है तो लगता है, यह भारत में घट रहा है क्योंकि मैं कूप मंडूक हूं और मुझे इसी में संतोष होता है।
 क्योंकि संतोषम् परम् सुखम्..
 इसी के आगे एक स्लोगन आता है, 
 प्रत्यक्षम् किम प्रमाणम.....
 तो अलविदा 2019............

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