शनिवार, 4 जनवरी 2020

विन्ध्य के विप्लव की कहानी जगदीशचन्द्र जोशी की जुबानी


विन्ध्य के विप्लव की कहानी
 जगदीशचन्द्र जोशी की जुबानी

   
  (आज हमारे मित्र अनिल मोर ने यह आलेख मुझे भेजें। तब बिंध्य की धरा में समाजवादी विचार के आंदोलन कारी किस प्रकार के समावेशी क्रांति के साक्षी रहे, दर्शाता है। मेरे पिताजी  भोलाराम जी गर्ग समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे इस कारण नीव की ईंट के रूप में सक्रिय रहे स्वर्गीय श्री जगदीशचंद जी जोशी इस कारण अक्सर हमारे घर मेंं आना-जाना रहा। तब ना मोबाइल था और ना ही कैमरेे का इतना प्रचलन था, ब्लैक एंड व्हाइट फोटोग्राफी का समय भी था इस कारण फोटोग्राफी ज्यादा होती ही नहीं थी। कुुुछ फोटो उनकी है लेकिन खोज का विषय है, मैंने गूगल मेंं उनके फोटो को सर्च किया किंतु सामान्य रूप से वह नहीं दिखा इसलिए चाह के भी फोटो नहीं लगाया।
 तब के आंदोलन सामाजिक सरोकारों देशहित आंदोलन को समर्पित थे। आज जब कोई लोकतांत्रिक आंदोलन होता है तो आश्चर्यजनक ढंग से हमारे प्रधानमंत्री जी   आंदोलनों की दिशा में अपनी राय देते हैं कि वे याने आंदोलनकारी यह आंदोलन किसके लिए करें....? एनआरसी सी ए ए या एन पी आर पर भारतीय जनता पार्टी 5 जनवरी से डोर टू डोर समझानेे का काम की शुरुआत कर रही है शायद मानव ऊर्जा बस अब इन्हीं कार्यों के लिए बची है।
 "देशभक्ति", "हिंदुत्व" ही मुद्दे रह गए अब इन्हीं को हम खाएंगे इन्हींं को इन्हीं को जिएंगे जब कि हाल में राष्ट्रीय नेता डीपी त्रिपाठी जिनका निधन हुआ उन्होंने संसद मेंं कहा "देशभक्ति मक्कारो की अंतिम शरण स्थली है" क्योंकि वे इस प्रकार की तथाकथित देशभक्ति के ब्रांड से आहत थे । वास्तविक देशभक्ति और राष्ट्रीयता का उल्लेख जमीनी धरातल में तब जब आजादी का दौर चल रहा था किस प्रकार से हुआ था श्री जोशी ने उसेेे कलमबद्ध किया था ।
तो क्या  आज भी 1947 की लड़ाई के इर्द-गिर्द घूूम रहे है.... शायद एनआरसी,सीएए,एपीआर से शासन यह डोर टू डोर समझाने जा रही है ।
  -त्रिलोकीनाथ)
विन्ध्य का इलाका जो पहाड़ों जंगलों और दबे वर्ग का आश्रम स्थल रहा है हमेशा से उपेक्षा का शिकार रहा है। सारी मानसिक यातनाओं क बावजूद यह इलाका राम शरणस्थली और पाँडवों से गुप्तवास का साक्षी रहा। यहीं भाराशिवनागों, कलचुरियों और चंदेलों ने साम्राज्य बनाये और स्थापत्य के कीर्तिमान स्थापित किये।

अबुल रहीम खाना को भी विपत्ति में यहीं शरण मिली और अकबर द्वितीय का भी जन्म यहीं हुआ। शिल्पियों साहित्यकारों, योद्धाओं और प्रतिष्ठित संगीतज्ञों तथा कुस्ती के अग्रणी व्यक्ति भी यहीं की उपज रहे हैं।

प्राकृतिक संसाधनों से भरा पूरा इलाका निरन्तर शोषण और उपेक्षा का शिकार रहा । यहां क्रुर सामन्तों और अभिमानी धनबंकुरों के दोहन का यंत्र ही बन गया। केन्द्र की सरकारों ने इसके अस्तित्व और अस्मिता को मिटाने की लगातार कोशिश की है, इसे कुछ मिला नहीं यह सदैव दूसरों को ही देता रहा है।

 आज भी भारत के विद्युत संकट में उसकी मदद विन्ध्यांचल ही विद्युत उत्पादन से कर रहा है। फौलाद के कारखानों के लिये अनिवार्य चूने का पत्थर भी यहीं से जाता है और अल्मूनियम कारखानों के लिये खनिज भी। फिर भी उपेक्षा की ही विरासत इसके गले मढ़ी गई है।

सन्1948 में विन्ध्यांचल की समस्त देशी रियासतों को मिलाकर एक सशक्त स्वांबलम्बी विन्ध्यप्रदेश का निर्माण किया गया लेकिन इसकी नेसर्गिक सम्पत्ति पर तत्कालीन सी.पी. एण्ड वरार की कुदृष्टि पड़ी और सरगुजा की तरह इसे आत्मसात करने के कुचक्र रचे शुरू हो गये।

 रिश्वत के आरोप के कारण उस समय स्थापित जन प्रतिनिधियों की सरकार भंग कर दी गई और एक चीफ कमिश्नर बैठा दिया गया। जिसका एक मात्र कारण था कि केन वेन प्रकारेण इसे तत्कालीन सी.पी. एण्ड वरार राज्य मे विलीन कर दिया जावे।

रीवा के भू.पू. नरेश स्वर्गीय श्री गुलाब सिंह को इसकी भनक लग गई और इस कुचक्र की बात दावानल के तरह फैल गई। तत्कालीन युवा पीढ़ी बडी उत्तेजित हुई। उस समय स्थानीय सोशलिस्ट पार्टी उभार पर थी। और इस इलाके के किसान संघर्ष और अन्यायों का मुकाबला करने में अग्रणी थी।

 स्व. श्री गुलाब सिंह महल सन् 1818 के कानून के तहत देहरादून में नजरबंद थे किन्तु सन् 1949 में उन्हें विन्ध्यप्रदेश को वर्जित कर मुक्त कर दिया गया था। दिसम्बर में वे नई दिल्ली बीकानेर हाउस में ठहरे थे।

दिसम्बर के तीसरे सप्ताह में मैं नई दिल्ली उनसे भेट करने बीकानेर हाउस गया और सारा विवरण जान कर शीघ्र रीवा लौटा ताकि भविष्य के संघर्ष का विन्ध्य की अस्तित्व रक्षा का संघर्ष धारदार बनाया जावे।

लौटने पर तत्कालीन युवा नेता एवं सोशलिस्टपार्टी के आरोपियों से परामर्श हुआ। सर्वश्री श्री निवास तिवारी, अच्युतानन्द मिश्र, स्व. बैजनाथ दुबे, स्व. शिवकुमार शर्मा, स्व. कृष्णपाल  सिंह, स्व. सिद्ध विनायक द्विवेदी, स्व. प्रेम जी निगम, हरि शंकर सक्सेना आदि के साथ बैठकर हम सभी ने तय किया कि स्व. श्री यमुना प्रसाद  शास्त्री को देश प्राण डॉ. राममनोहर लोहिया का शीघ्र कार्यक्रम लेने भेजा जावे और इस दौरान हम लोगों ने पद्मधर पार्क की चहार दिवारी को मंच बनाकर पगरा मीटिंगों के जरिये जन जागृति और गर्मी पैदा करनी शुरू कर दी।

तब अखबार और संचार साधन नहीं थे किन्तु यह खबर दावानल सी पूरे प्रदेश में फैली और समाजवादी तथा अन्य समर्थक जन चेतना जागृत करने में जुट गये।

29 दिसम्बर का दिन डॉ. राममनोहर लोहिया के आने का तय हुआ वे सुबह की गाड़ी से आ रहे थे। सोशलिस्ट पार्टी गरीब पार्टी थी। न वाहन था और न पैसा लेकिन उस समय स्व. रावराजा शिव बहादुर सिंह अपनी नई कार देकर बड़ी सहायता की। यद्यिपि सोशलिस्ट पार्टी निरन्तर उनकी जागीर में किसान आन्दोलन चलाती थी लेकिन तत्कालीन सामन्त भी बड़े कामों में अनुदार नहीं थे।

 सुबह इलाहाबाद में डॉ. राममनोहर लोहिया बे्रडन में चाय पीते हुये मिले उनके साथ योरप की समाजवादी नेत्री भी थीं जिन्हें कलकत्ते की गाड़ी में चढ़ाना था। उन्हें ट्रेन में चढ़ाकर हम लोग रीवा के लिये रवाना हुये।

चाकघाट से लेकर रीवा तक एक ऑधी सी उठी थी और अनेक स्थानों पर ग्रामीणों और युवाओं को भीड़ स्वागत के लिये खड़ी थी। लेकिन रायपुर कर्चुलियान में तो गजब ही हो गया जहां रीवा के नगर पालिका अध्यक्ष खुली गाड़ी लाये थे भीड़ रायपुर कर्चुलियान से रीवा तक इतनी प्रचण्ड थी कि वह गाड़ी वहीं छोडऩी पड़ी डॉ. लोहिया खुली गाड़ी में खड़े-खड़े आये आये और हम पैदल ही रीवा पहुॅचे।

 रीवा नगर का उमड़ा आलम अद्वितीय था जहां पूरे संभाग के लोग आ गये थे।
डॉ. लोहिया ने नगर पालिका अध्यक्ष के यहां भोजन किया और शाम की सभा वर्णनातीत थी पूरे शहर और संभाग उमड़ कर आ गया था और बमुश्किल जवान श्रीनिवास तिवारी उन्हें किसी कदर मंच में पहुंचाने में सफल हुये।

उसी विशाल जन सभा में डॉ. लोहिया
 2 जनवरी विन्ध्य बंद कराने का आवाहन किया और सभी लोग यथा स्थान इस कार्यक्रम को सफल बनाने में जुट गये। रीवा नगर और अन्य शहरों कस्बों में सभायें और रैलियाँ आयोजित की गई ताकि 2 जनवरी का अभियान सफल हो।

पहली जनवरी सन् 1950 को एक विशाल मशाल जुलूस निकाला जिसमें पढ़ा जाने वाला गीत मैने लिख कर दिया जिसकी शुरू की पंक्तियाँ इस प्रकार थी-
''हम नया तराना गाते हैं हमा नया जमाना लाते हैं। हम नई मशालें ले लेकर मुर्दों का दिल दहलाते हैं।''

तांगे में जुलूस का नेतृत्व स्व. श्री यमुना प्रसाद कर रहे थे और वही नारे लगा रहे थे। रात बैठकर 2 जनवरी प्रभात से कार्यक्रम शरू करना था। जिसमें मेरी, भाई स्व.कृष्ण पाल सिंह और संस्कृत कॉलेज के श्री कृष्ण दत्त और उनके साथियों की ड्यूटी बस स्टैण्ड में सुबह 5 की बस रोकने, श्री यमुना प्रसाद की ऐलान हेतु बड़े जत्थे के साथ श्री श्रीनिवास तिवारी की ड्यूटी सचिवालय बंद कराने की थी।

सुबह साढ़े तीन बजे श्री कृष्णदत्त एवं संस्कृत कॉलेज के युवकों का जत्था हमें जगाने आया और हम लोग जैतपुर हाउस में श्री कृष्णपाल सिंह आदि को जगाते हुये बसस्टैण्ड पहुँचे । बसस्टैण्ड उस समय वर्तमान जयस्तंभ के समीप था और पहली बस हरपालपुर जाने वाली थी पुलिस मय हथियार जुटी थी।

 जैसे ही वह गाड़ी से उतर गये और हम लोग सामने खड़े हो गये ड्रायवर गाड़ी से उतर गये और हम लोगों साथ वे भी गिरफ्तार हो गये। स्व. श्री यमुना प्रसाद ऐलान कर रहे थे उन्हें मय तांगे के गिरफ्तार कर लिया गया और माइक्रो फोन वगैरह जप्त कर लिये गये।

 सचिवालय के सामने श्री श्रीनिवास तिवारी अपने साथियों के साथ गिरफ्तार हुये। इधर गिरफ्तारी शुरू हुई कि स्व. शिव कुमार शर्मा, पं. बैजनाथ दुबे कुछ कार्यकर्ताओं के साथ पेट्रोल पम्प पर धरना देते हुये गिरफ्तार हुये।
यह समाचार शहर में तेजी से फैला और बीड़ी मजदूर ट्रान्सपोर्ट मजदूर और शहरी युवा पीढ़ी भागती बस स्टैण्ड पहुँची। इसके पुर्व की यह भीड़ कुछ करती पुलिस ने गोलियां चला दी और गंगा, अजीज दोनों तो वहीं शहीद हो गये किन्तु एक धोबी के बेटे चिन्ताली ने अस्पताल में दम तोड़ा। अधिकारियों ने तत्काल कर्फ्यू लगाया किन्तु लोग निरन्तर उसे तोड़ कर प्रदर्शन करते हुये गिरफ्तार हुये।

तत्कालीन विन्ध्यप्रदेश कॉग्रेस कमेटी के महामंत्री स्व. प्र्रकाश नारायण खरे ने भी गिरफ्तारी दी। पुलिस वर्कशाप अस्थाई बेल बजा दिया गया। हजारों लोग उस दिन पकड़े गये। कुछ को तो शाम तक छोड़ दिय गया किन्तु हमें सैकड़ों साथियों के साथ केन्दीय कारगार लाया गया।

तदुपरान्त 2 बजे रात हमारे साथ प्रमुख लोगों को मैहर जेल ले जाया गया। हमारे साथ स्व. श्री सिद्धि विनायाक द्विवेदी, स्व. बैजनाथ दुबे, स्व. कृष्णपाल सिंह, स्व. शिव कुमार शर्मा, श्री श्रीनिवास तिवारी, श्री हरिशंकर सक्सेना, स्व. श्री प्रकाश नारायण खरे, आदि कई कार्यकर्ता थे। अधिकांश बंदियों को 15-20 दिन के बाद रिहा कर दिया किन्तु मेरे साथ स्व. बैजनाथ दुबे, स्व.श्री सिद्धि विनायक द्विवेदी, स्व. यमुना प्रसाद, श्री श्रीनिवास तिवारी और श्री हरिशंकर सक्सेना नहीं छुटे।

इधर रीवा में अखिल भारतीय हिन्द किसान पंचायत का राष्ट्रीय सम्मेलन होना था साथ ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी। उसकी सारी व्यवस्था के लिये श्री रामानन्द मिश्र बिहार से आये यहां के कार्यकर्ताओं ने झोले फैलाकर भोजन सामग्री और धन एकत्र कर उन्हें दिया।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने एक सख्त वक्तव्य दिय और परिणामत: हम लोग सम्मेलन के अतिंम दिन रिहा हुये। ज्यों ही बड़ी पुजल के समीप सम्मेलन के स्थल के पास हम लोग बस से उतरे कि स्व. लोक नायक श्री जयप्रकाश नारायण ने नारा दिया ''जोशी, यमुना, श्रीनिवास, इन्क्लाब जिन्दाबाद।

उसी रीवा के बलिदान की कथा पर एक कवि ने संघर्ष साप्ताहिक में लिखा-
''आज रावी के किनारे की कसम रीवा कहेगा'' इस घटना का जिक्र राष्ट्रपति स्व. कैनेडी के सर्वश्रेष्ठ सलाहकार हैरिस वोफोर्ड ने अपनी अपनी पुस्तक 'इंडिया ए फार' में भी किया है।

इन घटनाओं का प्रसारण बी.बी.सी.वायस ऑफ अमेरिका के रेडियो से भी हुआ। इस घटना ने विन्ध्य के विलयन को रोका किन्तु विन्ध्य के प्रति दिल्ली  की क्रूर नजर तो थी ही। बहरहाल राज्य पुनर्गठन आयोग ने विशाल राज्यों की भूमिका रची जिसमें बरार तो मराठी भाषी होने से महाराष्ट्र में गया शेष पुराना मध्यप्रदेश मध्य भारत, विन्ध्यप्रदेश और भोपाल को मिलाकर विशाल राज्य मध्यप्रदेश बनाना प्रस्तावित था।

इस नये राज्य में न तो माकूल आवागमन के साधन थे न सास्ंकृतिक एकता बस्तर और मालवा एक दूसरे के विपरीत लेकिन केन्द्र उसी प्रकार रीवा और बैतूल एक-दूसरे के प्रतिकूल की मनमौजी से विलीनीकरण का अध्याय रचा गया।
लेकिन समाजवादी चुप ठहरने वाले नहीं थे।

एक सर्वदलीय बैठक कर संघर्ष विलीनीकरण पर बहस विधान सभा में होनी थी यह तय किया गया कि अभियान की पूर्व रात्रि को सौ ट्रक सुदूर भेजे जावें। यहां कार्यकर्ता कम से कम 100-100 लोगों को ले आवें इस माध्यम से पूरा सचिवालय और विधानसभा घेर काम बंद करा दिया जावे लेकिन उस बैठक में शरीक एक मूर्धन्य व्यक्ति ने यह अत्यंत गोपनीय योजना थी।

 इसकी जानकारी कॉग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक ने हमें दी वे मन से हमारे साथ थे लेकिन अनुशासन से बंधे थे विद्रोह नहीं कर सकते थे। हम लोगों ने तत्काल उस योजना को बंद कर कॉलेज और स्कूलों के छात्र प्रतिनिधियों से सम्पर्क कर आयोजन सफल करने का निर्णय लिया।

विधानसभा के सामने हम लोग थोड़ी संख्या में थे। शहर में एलान हो रहा था इसी दौरान भीड़ को तितर-बितर करने के लिये पुलिस घुड़सवारों की टुकड़ी वहंा भेजी गई जो तेजी से गश्त करने लगी। उसी दौरान स्व. श्री बैजनाथ और स्व. हरिहर प्रसाद ने एक घुड़सवार की लगाम खीच कर जान जोखिम में डालकर सिपाही को मय घोड़े के गिरा दिया। परिणामत: सभी घुड़सवार रफू चक्कर हो गये ।

उधर छात्रों का विशाल जुलूस श्री महावीर सिंह सोलंकी के नेतृत्व में पहुॅचा। विधानसभा गेट के उसपार विधानसभा परिसर में श्रीनिवास तिवारी और और मुख्य सचिव खड़े थे। जैसे ही जुलूस गेट तोड़कर विधानसभा में घुस गया। कार्यवाही में भगदड़ मच गई कहते हैं कुछ ने मंत्रियों को पीटा भी जब कि जो निष्पक्ष और मन से हमारे साथ कॉग्रेस विधायक थे उन्होंने बीच बचाव किया।

 तदुपरान्त हम सभी स्वागत भवन अपने कार्यालय में आ गये और बाहर मैदान में हजारों की भीड़ हमें गिरफ्तारी से बचाने खड़ी थी। जब शाम हुई तो साहू कोतवाल सिविल कपड़ों में हम लोगों के पास आये और कहा कि हमारी नौकरी खतरे में है और पुन: गोलीकाण्ड हो सकता है। आप लोग गिरफ्तार हो जाइये।

 यह मानवीय प्रश्न था और हम लोगों ने गिरफ्तार होना स्वीकार कर भीड़ को शांत किया जो लोग गिरफ्तार हुये उनमें मेरे अलावा श्रीनिवास तिवारी, श्री शिव कुमार शर्मा, श्री पंचमलाल जैन, श्री बल्देव प्रसाद अवस्थी, श्री कामता प्रसाद अग्रवाल, श्री सेठ लुकमान एवं अन्य कई प्रतिष्ठित नागरिक और कार्यकर्ता थे।

 बहरहाल समाजवादियों ने अपना कर्तव्य निबाहा विधानसभा में कांग्रेस का बहुमत था अस्तु प्रस्ताव पास हो गया ओर विन्ध्य में आवसान की शुरूआत भी। दिल्ली की मौजूदा सरकार कुछ राज्य बनाने जा रही है और अगर राज्य पुनर्गठन राज्य तोड़े जा रहे हैं तो विन्ध्य का पुनरोदय क्यों न हो जबकि उसके अस्तित्व के लिये एक लम्बे संघर्षो की श्रृंखला है।

सौभाग्य से मध्यप्रदेश के पुनरोदय का प्रस्ताव भी पास कर दिया है विधानसभा  अध्यक्ष एवं अनेक जन संघर्षो का नेतृत्व करने वाले श्री श्रीनिवास तिवारी ने कमान ली है। और पूनरोदय आन्दोलन को सशक्त नेतृत्व सभी विचार धाराओं को जोड़ कर दिया है अस्तु विन्ध्य का पुर्ननिर्माण एक अविलंबनीय प्रश्र बन गया है।

इस प्रदेश के जन प्रतिनिधियों को यही आवाज है इसके पहले कि एक बड़ा जन संघर्ष दस्तक दे केन्द्र सरकार, झारखण्ड , उत्तराखण्ड और छत्तीसगढ़ राज्य के साथ ही विन्ध्य प्रदेश के अस्तित्व को स्वीकार कर ले। यहां की युवा पीढ़ी मूक दर्शक अब रहने को तैयार नहीं है।

- ( 'पुनरोदय का संघर्ष' से साभार)

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