सोमवार, 6 जनवरी 2020

"जिंदा कौमें 5 साल इंतजार नहीं करती" के अंदाज पर कांग्रेस की पत्रकार वार्ता 2020 (त्रिलोकीनाथ)

मामला राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त
जिला पंचायत अध्यक्ष नरेंद्र मरावी
 के साथ खनिज माफिया झड़प का

 शहडोल संभाग में
"टुकड़े-टुकड़े गैंग  की माफियागिरी" 
से बगावत  का संदेश...
 2020 में  कांग्रेस की पत्रकार वार्ता
 15 साल  जो हुआ अब नहीं होगा :कांग्रेस अध्यक्ष

(त्रिलोकीनाथ)

 शहडोल ।विदेश मंत्री एस जयशंकर से सोमवार को जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्थिति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैं निश्चित रूप से आपको बता सकता हूं कि जब मैं जेएनयू में पढ़ता था, हमनें वहां कोई ‘टुकड़े-टुकड़े' गैंग नहीं देखा. जेएनयू परिसर में रविवार को हुई हिंसा के बाद संस्थान के पूर्व छात्र जयशंकर ने फौरन इस घटना की निंदा करते हुए कहा था कि यह पूरी तरह से विश्वविद्यालय की परंपरा और संस्कृति के खिलाफ है. दक्षिणपंथी दलों द्वारा विपक्ष, खास तौर पर वाम और वाम समर्थित संगठनों के साथ ही उनका समर्थन करने वालों के लिये टुकड़े-टुकड़े शब्द का इस्तेमाल किया जाता है.





टुकड़े-टुकड़े गैंग एक संस्कृति है, "माफिया की संस्कृति" वही इसे बनाता है इसमें ऊर्जा भरता है और इसे संचालित करता है ।भारतीय जनता पार्टी के राज में यह "टुकड़े टुकड़े गैंग" नामक "उत्पाद" बात अगर दिल्ली के जेएनयू में विकसित हुआ और पनपा, तो पूरे देश में यही संस्कृति पनपाने की कोशिश की गई।
  मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी 15 साल सत्ता पर रही "टुकड़े टुकड़े गैंग" का असर शहडोल में भी देखने को मिला ।खनिज माफिया, शहडोल संभाग में टुकड़े-टुकड़े गैंग में विकसित हुआ, फला-फूला, अपात्र हाथों टुकड़े टुकड़े गैंग फल फूल गए। और इतने फले-फूले कि वे शासन और प्रशासन को चुनौती देने में जरा भी नहीं हिचके।


 वह चाहे किसी भी क्षेत्र का मामला हो.... शिक्षा क्षेत्र का मामला हो, प्रशासनिक क्षेत्र का मामला हो, खनिज क्षेत्र का मामला हो या वन क्षेत्र का , उद्योग क्षेत्र में भी यही हुआ।
  अक्सर कहता हूं कि शहडोल एक "मिनी इंडिया"  की तरह भारत का मॉडल डिस्ट्रिक है। जहां पर पांचवी अनुसूची की समस्त समस्त संवैधानिक सुरक्षा है। यह एक लैब है। जो यहां घटता है, वह पूरे देश में दिखता है । रूप छोटा हो या बड़ा, यह अलग बात है।
 इसके बावजूद भी जितनी असुरक्षा, अराजकता का विकास बीते 15 सालों में हुआ, उसका अद्यतन स्वरूप कांग्रेस सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है ।भारतीय जनता पार्टी के कभी नेता रहे शहडोल जिला पंचायत अध्यक्ष नरेंद्र मरावी, जिन्हें राज्यमंत्री का दर्जा भी हासिल रहा।
 उन्होंने अपनी पार्टी को इस बात के लिए छोड़ा क्योंकि पार्टी तब सर्वशिक्षा अभियान के टुकड़े-टुकड़े गैंग में माफिया के रूप में विकसित हो चुकी व्यवस्था के खिलाफ जब नरेंद्र मरावी ने धरना आंदोलन , राज्यमंत्री स्तर के जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर रहते हुए, जयस्तंभ चौक पर करीब एक हफ्ता किया तो भी भाजपा के शासन ने तब के शिक्षामाफिया के खिलाफ कोई कार्य करने की हिमाकत इसलिए नहीं जुटाई क्योंकि कहीं ना कहीं उसके नेता और शहडोल की राजनीति ही नहीं प्रदेश की राजनीति को वह ब्लैक मनी संचालित कर रही थी।

 तब नरेंद्र मरावी ने सर्व शिक्षा अभियान के भ्रष्टाचार 1998 के शिक्षाकर्मी भर्ती में भ्रष्टाचार और जिला खनिज न्यास वा मनमानी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह उठाए थे.....? जिसका जांच प्रतिवेदन प्रशासन के ठंडे बस्ते में पड़ा दम तोड़ रहा है तब शहडोल संभाग के जिलापंचायत अध्यक्ष के समर्थन में उमरिया जिलापंचायत अध्यक्ष और अनूपपुर जिलापंचायत अध्यक्ष सहित पांचवी अनुसूचित क्षेत्र के सभी नेता और शहडोल जिला पंचायत के सभी सदस्य एक साथ होकर नरेंद्र मरावी का ताकत बन रहे थे और उन्हें समर्थन दिया था।
 तब भ्रष्टाचार की लड़ाई में आज के तथाकथित भाजपा विधायक तथा तब कांग्रेस के दिग्गज जिला पंचायत सदस्य शरद कोल भी अपने जिला पंचायत अध्यक्ष आदिवासी नेता के लगातार हो रहे अपमान के पक्ष में खड़े होकर तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ धरना आंदोलन कर भ्रष्टाचार की जांच की मांग की थी।
 यह अलग बात है कि पूरा प्रशासन तब एकमत होकर जांच न करवाने पर जुटा हुआ था और भाजपा के नेता गुलामों की तरह है तत्कालीन कलेक्टर के दरबार में जी हुजूरी करते दिख रहे थे ।

बहराल वक्त बदला जिलापंचायत अध्यक्ष नरेंद्र मरावी भी बगावत कर भाजपा से, कांग्रेस का दामन पकड़ लिए क्योंकि वह स्वच्छ व साफ प्रशासन के समर्थन में आंदोलन कर रहे थे और तब भाजपा ऐसा नहीं चाहती थी।
 उनके अनुसार भारतीय जनता पार्टी और उनके गवर्नर  याने संगठन मंत्री उंगली के इशारे पर नचाना चाहती थी। जो उन्हें यानी स्थानीय आदिवासी नेता को मंजूर नहीं था। किंतु शायद अब कुछ नहीं बदला है,
 कल कांग्रेस अध्यक्ष के नेतृत्व में एक होटल में जिला पंचायत अध्यक्ष नरेंद्र मरावी की प्रेस कांफ्रेंस हुई। आज वे कांग्रेस के नेता हैं,  तब भाजपा के जिला पंचायत अध्यक्ष थे। पत्रकार वार्ता में एकमात्र मुद्दा  छाया रहा,  कि जिला पंचायत अध्यक्ष खनिज माफिया के संभाग में फैले टुकड़े-टुकड़े गैंग के एक हिस्से में अपनी टीम सहित सोन टोला में जब जा पहुंचे तो उन्होंने राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त पद के हिसाब से 20 गाड़ियां जप्त की जैसा कि उन्होंने बताया।
 और टुकड़े-टुकड़े गैंग का यह छोटा सा टुकड़ा जो हर्रा टोला में अवैध खनिज कारोबार में गत 15 सालों से काम कर रहा था अपने अवैध काम को रोकने पर आए नरेंद्र मरावी से न सिर्फ बरामद की गई 20 अवैध वाहनों को गुंडागर्दी करके छुड़वा लिया बल्कि वह अभद्रता के साथ जिला पंचायत अध्यक्ष राज्य मंत्री को गाली गलौज भी किया। 


नरेंद्र मरावी जी की माने तो उन्होंने स्थानीय प्रशासन को फोन करके इस घटना की जानकारी दी किंतु जैसा कि फिल्मी दुनिया में होता है जब घटनाएं घट जाती हैं तब पुलिस आती है उसी अंदाज में प्रशासन और पुलिस भी वहां पहुंची। तब तक एक राज्य मंत्री का जितना छीछालेदर हो सकता था, शहडोल पुलिस प्रशासन के संरक्षण में  हुआ ।
जैसा कि कांग्रेस के अध्यक्ष आजाद बहादुर ने कहा कि गत 15 सालों मैं यह सब होता रहा अब नहीं होगा......? तो क्या जिला पंचायत अध्यक्ष अपने कांग्रेस जिला अध्यक्ष के नेतृत्व में फिर से सत्ता के खिलाफ बगावत पर उतर आए हैं.... या उन्हें यहां भी माफियाओं के टुकड़े-टुकड़े गैंग से कोई बचाता हुआ नहीं दिख पा रहा है....
 शहडोल कांग्रेस की 2020 की पहली पत्रकार वार्ता का शुभारंभ कुछ इसी अंदाज पर हुआ...।
 कहने के लिए जिला कांग्रेस अध्यक्ष आजाद बहादुर इस माफिया गिरी के खिलाफ मन बना चुके हैं कि वह शहडोल में यह सब नहीं चलने देंगे ।किंतु इससे ज्यादा आगे बढ़कर शहडोल संभाग में माफियाराज या माफियाओं का जो बाजार विकसित है उसके लिए जिस सोच की और संकल्प की आवश्यकता है क्या वह कांग्रेस संगठन के अंदर लड़ने की क्षमता भी है.....? यह पत्रकार वार्ता कुछ यही सिद्ध करता है, क्योंकि कांग्रेस के अंदर खुद के कुछ "टुकड़े टुकड़े गैंग" हैं ....?
इसलिए जिला कांग्रेस अध्यक्ष के नेतृत्व में अपने आप को अन्य टुकड़े-टुकड़े गैंग को अलग दिखाने का प्रयास किया... ताकि शहडोल संभाग में पल रहे माफियाओं के टुकड़े-टुकड़े गैंग जो शिक्षा क्षेत्र में हैं, जो खनिज क्षेत्र में हैं, जो सट्टा ,शराब अवैध नशा के कारोबारियों, अवैध निर्माण अतिक्रमण अथवा उद्योगपतियों को संरक्षण देने वाले माफियाओं के रूप में राजनीति का नकाब पहनकर उन्हें बढ़ावा दे रहे हैं, उनसे किस रणनीति के हिसाब से शहडोल जिला कांग्रेस संघर्ष करेगी..... इस पत्रकार वार्ता में ऐसा कुछ साफ होता नहीं दिखा।


 अन्यथा जिस प्रकार जिला पंचायत अध्यक्ष आदिवासी नेता होने के बावजूद भाजपा में रहते हुए सत्ता के खिलाफ तत्कालीन अपने ही नेताओं के खिलाफ बगावत कर स्वच्छ प्रशासन के लिए धरना प्रदर्शन किया था और उससे जो परिणाम आए... उसकी असफलता उसके अनुभव से उसे आगे बढ़ाते हुए क्या शहडोल संभाग के तीन कांग्रेस के विधायक और 5 भाजपा विधायक इन माफियाओं के टुकड़े-टुकड़े गैंग से निपटने के लिए एकमत नहीं हो सकते....?
 किंतु ऐसा कोई संकल्प, फिलहाल तो होता नहीं दिख रहा है.....
 इससे ज्यादा बेहतर तो तब था, जब नरेंद्र मरावी के साथ धरना प्रदर्शन करते हुए तीनों जिला पंचायत अध्यक्ष शहडोल अनूपपुर और उमरिया एकमत होकर जय स्तंभ चौक पर पत्रकार वार्ता करके  अपनी भावनाओं को मीडिया के माध्यम से जनता तक पहुंचाने का काम किया था ।
याने शहडोल की राजनीति और नेता अपने-अपने माफियाओं के इशारे पर या तो गुलामी कर रहे हैं.... अथवा शहडोल जिला पंचायत अध्यक्ष के साथ घटी घटना को सिर्फ एक  खनिज माफिया के एक विकसित बाजार में कब्जा का पाने के प्रयास के रूप में देखकर अपने-अपने बाजार और दुकान को संभालते दिख रहे हैं....?
 क्या यही शहडोल की राजनीति का भविष्य रह गया है...? ऊपर उठकर कोई सोच विकसित होती फिलहाल तो नहीं दिख रही है.... क्योंकि किसी भी विधायक या सांसद का कोई बयान शहडोल के जिला पंचायत अध्यक्ष नरेंद्र मरावी के पक्ष में या उनके अधिकारों के और कर्तव्य के पालन में समर्थन में खड़ा हुआ दिखाई नहीं देता....
 तो क्या यह माना जाए  संभाग में विकसित "टुकड़े-टुकड़े" अलग-अलग क्षेत्र के "माफिया गैंग" की गुलामी और उसकी सरपरस्ती शहडोल की राजनीति ने स्वीकार कर लिया है...? शायद शहडोल में जिला कांग्रेस अध्यक्ष 2020 की पहली पत्रकार वार्ता में बगावत के अंदाज पर नजर आती है....?
 फिलहाल पत्रकार वार्ता का यही एक संदेश है, नए संदेश को खबर के रूप में हम पाएंगे जब कोई संभाग का विधायक चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा का अथवा शहडोल सांसद माफियाओं के खिलाफ अपने नेतृत्व के गुलाम विचारधारा से बागी होकर स्वस्थ व शुचिता पूर्ण प्रशासन के हित में समर्पित होता प्रदर्शित होगा। और वही राजनीति का दिखने वाला सच होगा।
 फिलहाल तो नरेंद्र मरावी के साहस और बागी अंदाज में हम यही कह सकते हैं,
 जो डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि "जिंदा कौमें 5 साल इंतजार नहीं करती"..........।

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