सोमवार, 26 अगस्त 2019


मोदी का मंत्र  "थ्री-एम" 3-मंडे------1

×-दमन की प्रयोगशाला बन रहा जम्मू-कश्मीर...?



×-370 पर लोकसहमति की मोहर कब तक...?


×- मुखर हो रहा है कश्मीर से कन्याकुमारी तक अभिव्यक्त

 ×-केरल के आईएएस कन्नान बने संवेदना के सूत्र... 
×-अभिव्यक्ति की दमन पर छोड़ी कलेक्टर की नौकरी!
×-...कहा ; जमीर गवारा नहीं करता.......


(  त्रिलोकीनाथ  )

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाषा में थ्रीएम यानी 3monday( सोमवार) को क्रियान्वित चंद्रयान, तीन तलाक और 370 पर की गई कार्यवाही क्या आंतरिक विचार विमर्श के लोकतांत्रिक मायने रखने का हक नहीं रखते....?
 निश्चित तौर पर अगर भारत आजाद है तो उसकी आजादी इस बात पर नियत है कि प्रत्येक अच्छे और खराब सभी पहलुओं पर खुली चर्चा हो..... यदि वह ज्यादा संवेदनशील है  तो बंद कमरे में, सभी लोकतांत्रिक तत्वों के साथ मंथन हो...। ताकि उसके अच्छे और अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकें ।
सिर्फ उसका श्रेय लेने, उसके कूटनीतिक परिणामों की लालच में ,भारत की आजादी को गुलाम बना देना किसी गुलाम परख सोच की ही प्रस्तुति हो सकती है....... और हमारे पुरखों ने कम से कम यह तो सिद्ध किया ही है, कि वे गुलाम रहे जरूर.... लेकिन उनके अंदर आजादी की आग भी रही। जिसके परिणाम स्वरूप भारत अंततः स्वतंत्र देश का और उससे ज्यादा लोकतांत्रिक देश का स्वरूप ले सका ।हां, कुछ कमियां थी... तो निर्माण की प्रक्रिया में यह सब स्वभाविक हिस्सा है ।यह कुछ वैसा ही है जैसा कि जब मैं लेख लिख रहा हूं तो मच्छर बार-बार मुझे काट रहे हैं, और डिस्टर्ब कर रहे हैं....
किंतु इस सबसे निर्माण की प्रक्रिया रुक नहीं जाती और रुकनी भी नहीं चाहिए।
 "स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा" यह नारा यूं ही नहीं बना था एक स्वाभाविक स्वस्थ मनोवृति इसे संचालित कर रही थी। हर नागरिक के दिल और दिमाग में यह नारा बसा ही है और इसी नारे ने संपूर्ण भारत में आजादी का समन्वय सूत्र स्थापित किया था। ऐसे ही किसी नारे में लोगों में संपूर्ण भारत भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश-अफगानिस्तान आदि मैं यह मानवीय धारणा स्थापित हुई थी। यह अलग बात है कि जब 1947 में देश आजादी की प्रसव पीड़ा से गुजर रहा था तब पाकिस्तान ने प्रदूषण का मार्ग चुना, भारत ने स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था को महसूस किया। बीते 70 साल में यह हमारी प्रगति का प्रमाण पत्र है इसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। जब भी हमारी मनोवृति प्रदूषित होती है तो वह प्रदूषण को अपनाने के लिए मार्ग तय करती है.. तब लक्ष्य मिलता है।
 लोकतांत्रिक राष्ट्र के निर्माण के बाद भारत में भी पाकिस्तान की आजादी के कारक जन्म ले रहे थे, उन्हें झिझक बहुत थी प्रदूषण से घुलमिल जाने के लिए क्योंकि वे स्वस्थ स्वतंत्र राष्ट्र के अनुयाई रहे.... वे जम्मू-कश्मीर जो भारत का नहीं दुनिया का स्वर्ग कहलाता है, उसके निवासी थे।
 अंततः आजादी के हित में प्रगति के मार्ग को अपनाया और यह है मार्ग चंद्रयान से कमजोर नहीं था, यह पहला सोमवार था।  फिर आया "तीन-तलाक बिल" खुद मुस्लिम पक्षधर धार्मिक राष्ट्रों ने चाहे वह पाकिस्तान ही क्यों ना हो इस तीन तलाक की परंपरा को अस्वीकार कर दिया था, कि यह प्रदूषण है,इस्लामी परक मानवीय मूल्यों के विकास में। और इस्लामी राष्ट्रों की सच्चाई सिद्धांतों को ठीक करने में हमें 7 दशक लग गए हैं।
 अब ठीक है कि राजनीति का स्वार्थ अपने तरीके से कूटनीति करता है ।तीन तलाक को भारतीय मुसलमानों को स्वयं ठीक कर लेना चाहिए था क्योंकि यह इनकी आंतरिक समस्या है किंतु कतिपय अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी या हमारी गुलामी मानसिकता इस्लामी समाज में इसे ठीक करने में बहुत देर कर दी, जिससे कूटनीतिक कट्टरपंथियों को इस पर खेल करने का अवसर मिल गया और यह देरी 70 साल के फासले को पार कर गई...., यह देरी उसी प्रकार की है जैसे जम्मू कश्मीर के निवासियों ने जो स्वयं को 370 की या 35a की सीमाओं में स्वयं को बांधे रखा, इसपर मंथन और चिंतन कर इससे मुक्त होने के रास्ते उनकी विधानसभा में तय नहीं हो पाए.....,, जिससे इसका भी लाभ कट्टरपंथी राजनीति करने वालों के लिए एक अवसर बन गया......। इसे भी संशोधित करके स्वाभाविक परिवेश में पूर्ण स्वायत्तता को बनाए रखते हुए निराकृत कर लेना चाहिए था । क्योंकि यह हमारी राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाधक बनने का बड़ा प्रचार तंत्र या हौआ बना दिया गया था।
 कुछ वैसे ही जैसे अयोध्या का राम मंदिर सिर्फ एक हौआ है... सब जानते हैं कि अयोध्या में हजारों की संख्या में मंदिर है, जिसे इतना खूबसूरत वहां की सत्ता जब चाहे तो बना दे, जो अयोध्या को सनातन धर्म का तक्षशिला विश्वविद्यालय दुनिया में घोषित कर दे।
 किंतु यह भी जम्मू कश्मीर की 70 साल या तीन तलाक की 70 साल पुरानी देरी से ज्यादा देरी के रूप में और घिनौना रूप में उभर कर आई। "अहम् ब्रह्मास्मि" अथवा "वसुधैव कुटुंबकम" की अवधारणा वाला हिंदू सनातन धर्म इतनी छोटी और संकीर्ण मानसिकता का प्रतीक नहीं हो सकता कि  राम अगर कहीं जन्मे थे तो उसी कण्  , उसी मकान पर, उसी पत्थर पर जन्मे थे ..., यह सोच हमारे अंधविश्वास का हिस्सा है, इसके अलावा कुछ भी नहीं हो सकता है। इस सोच के कारण मुझे हिंदुत्व-ब्रांड राष्ट्रद्रोह  या फिर धर्म द्रोही मान ले ।किंतु एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में जहां मेरा राम पूरी कायनात के मालिक हैं, वे लीला करते हैं.., जहां मेरे कृष्ण का तर्क जीवन के उल्लास के साथ आनंद पूर्ण जीवन बिताने का मार्ग देता है जहां मेरे शंकर जब नर्मदा के पास आते हैं कण-कण में स्थापित हो जाते हैं ...., उन्हें किसी कमरे के अंदर बंद करके रखकर सोचने का काम... "बहुत देर हो चुकी" से ज्यादा कुछ प्रमाणित नहीं होता। और "यह देरी" गुलाम परक मानसिकता को बल देती है.... कि हां अभी भी हम अपने प्रदूषणकारी सोच के गुलाम हैं । पूर्ण स्वतंत्रता, पूर्ण मोक्ष  के लिए सभी धर्मों को एकाकार होना पड़ेगा.... मानवी मूल्यों का धर्म, विविधताओं की अनिवार्यता एक बेहद शोध संस्थान के रूप में स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करता है। इस हेतु हिंदू सनातन धर्म कभी प्रदूषण कारी मार्गों को चुना,  नहीं कह सकते हैं.... शासन प्रशासन व्यवस्था चलाने में हिंदुत्वब्रांड का दुकान बहुत जरूरी है... किंतु यह दुकान चलाने की आवश्यकता हो सकती है... देश और राष्ट्र चलाने की कतिपय आवश्यकता नहीं है..... इसलिए स्वस्थ और स्वतंत्र लक्ष्य के लिए संकीर्ण व प्रदूषित रास्ते और भी देरी करेंगे या फिर उसमें बाजारवाद पैदा करेंगे.........
 जो बाजारईयों के हित में होगा... जैसे भारत के 33 करोड़ देवी देवताओं के अगर चित्र मिल सकते तो चाइना से इनकी मूर्तियां और चित्र भारत ने बड़ा बाजार बना देते हैं... तो क्या 3 एम बाजारवाद का बाजार खोलता है ...,यह शंका प्रबल होती है,
 जब कोई आईएएस अधिकारी इस शंका के आधार पर जम्मू कश्मीर के लोगों की स्वतंत्रता को कुचलने के लिए अपनाए गए रास्ते पर यह तय करता है कि जब कोई मेरे से पूछेगा कि तुमने क्या किया तो मैं कहूंगा मैंने नौकरी छोड़ दी थी ..... (जारी भाग 2)










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