गुरुवार, 29 अगस्त 2019



 


जम्मू-कश्मीर.-2
छोड़ी कलेक्टर की नौकरी!
 
केरल के कन्नान नेअभिव्यक्ति की दमन पर
कहा; जमीर गवारा नहीं करता....


 (  त्रिलोकीनाथ  )

कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है...., की एकता को मजबूती से प्रदर्शित करने वाले कोट्टायम केरल  निवासी 2012 के आईएएस कन्नान गोपीनाथन ने कश्मीर के आजादी और अभिव्यक्ति की दमन को लेकर  अंततः आईएएस सर्विस से इस्तीफा दे दिया..... । 
युवा अधिकारी गोपीनाथन की मान्यता है के "जम्मू कश्मीर में 370 निरसन चुनी ही सरकार का अधिकार है, लेकिन लोकतंत्र में लोगों को ऐसे फैसलों पर प्रतिक्रिया देने का अधिकार है।
 यह पहला अवसर है कि किसी आईएएस अधिकारी और युवा सोच ने अपनी नौकरी छोड़ते हुए सुदूर कश्मीर की एकता से अपने सूत्र को जोड़ते हुए भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद की है.....
 इस आवाज को जो "कश्मीर से कन्याकुमारी की आवाज है" और यह सत्ता धारियों को सुननी   ही चाहिए अन्यथा भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतिबंध, चुने ही सरकारों का यह दमन ही होगा ...। हला कि अभिव्यक्ति की आजादी का पहला आंदोलन जब साहित्य अकादमी अवार्ड जीतने वालों में सबसे पहले शहडोल क्षेत्र के सीतापुर निवासी उदयप्रकास सिंह ने अवार्ड वापसी कर शासन की नीतियों का विरोध प्रदर्शन किया था ,तब अवार्ड वापसी की झड़ी लग गई थी शायद इससे कोई सीख नहीं लेने का अनुभव कश्मीर से कन्याकुमारी तक की एकता के क्षतिग्रस्त होने के दर्द को शायद ही देख पाये....? और इसीलिए गोपीनाथन  ने आईएस सर्विस को त्याग कर कश्मीर की अभिव्यक्ति की बंदिश पर नाखुशी जाहिर की है। उसके दर्द को साझा करने का प्रदर्शन भी किया है। निश्चित तौर पर उनका प्रदर्शन बौद्धिक समाज में स्वयं के होने का और लोकतांत्रिक देश में आजादी की सतत स्वतंत्रता बनाए रखने की जागरूकता का संदेश है। और यह संदेश गुलाम भारत में अक्सर आजादी के दीवाने करते रहे हैं।
 इसमें कोई शक नहीं की स्वायत्तता का विशेष प्रावधान अलग-अलग राज्यों में अलग अलग तरीके से स्थापित है अपनी अपनी भौगोलिक परिस्थितियों के कारण उसका रूप अलग-अलग है उसे लागू करने बनाए रखने और उसका निराकरण या निरसन करने का काम भी सतत स्वतंत्रता के संघर्ष का हिस्सा है .....।
और जब तक इसमें स्थानीय नागरिकों की जवाबदेही और भागीदारी तय नहीं होती है तो यह किस प्रकार से अपने लक्ष्य को प्राप्त करेगी...? इसमें कई प्रकार की शंकाएं होना स्वाभाविक है किंतु किसी भी स्थिति में स्थानीय नागरिकों  की आजादी और उनका अधिकार के प्रति संवेदनहीनता नहीं करना चाहिए ।
कश्मीरी पंडितों का मामला,पलायन का मामला है उससे ज्यादा कानून-व्यवस्था का मामला है जिसमें सरकारें असफल होती रही हैं...। अपनी असफलता को छुपाने के लिए किसी की आजादी को कुचला जा सकता है....?
 यह समझने में हम जैसे पांचवी अनुसूची में अनुसूचित आदिवासी विशेष क्षेत्र के प्रावधानों मैं शामिल शहडोल जिले के निवासियों को अनुभव  है की भलाई पांचवी अनुसूची की संवैधानिक व्यवस्था शहडोल में लागू हो किंतु यह व्यवस्था स्थानीय आम आदमी, मिडिल क्लास लाइफ के लिए ही दिखती है....?, उद्योगपति और उनके पीछे छिपे हुए  मल्टीनैशनल्स के लिए लागू होती नहीं दिखती.....?

 यही कारण है कि पूंजीवादी बाजार का खतरनाक स्वरूप युगों से बहती आई हुई अमरकंटक की नर्मदा नदी में 2019 की गर्मी में नर्मदा की धारा को कई दिनों तक विलुप्त हो गई  यानी काली और खदानों ने  बिगाड़ी ही पर्यावरण संरचना  के कारण नर्मदा सूख गई  और कमजोर हो गई ..... । यह तो हमारी आदिवासी धारणा की दिखने वाली सोच  है।सरकारी और प्रशासनिक अमला अभी तक इसकी पुष्टि नहीं किया है यानी प्रमाणित नहीं किया, क्योंकि वह उसके नकारे पन को भी प्रमाणित करती है।
 2020 का साल और कितने खतरनाक परिणाम लाएगा यह नर्मदा मां ही जाने.....? इस अनुभव से हम स्वतंत्रता के दमन को प्रमाणित कर सकते हैं, की स्वायत्तता के कमजोर होने से क्या नुकसान होता है..... यह ठीक है आदिवासी अंचलों में विद्रोह के स्वर स्वाभाविक रूप से नहीं उठते.... किंतु जिस वक्त आदिवासी समाज को महसूस हुआ कि नर्मदा को नष्ट करने में विकास ने कितनी बड़ी भूमिका खड़ी की है वह भी मुखर हो चलेंगे .....? इस मायने में कश्मीर की स्वायत्तता अग्र सोची प्रतीत होती है ......? 
यह ठीक है, की वहा पीछे आतंक का उद्योग फलता फूलता रहा है किंतु इसमें स्थानीय नागरिकों की या वहां से पलायन करके अथवा भगा दिए गए कश्मीरी पंडितों का संघर्ष एक सतत प्रक्रिया है...... जिसे सरकारों ने सुनने में बहुत देर कर दी और एक सही निर्णय 370 या 35a को हटाने का काम बेहद गलत तरीके से किया गया... लोकतंत्र में होने वाला सच से ज्यादा दिखाने वाला सच ज्यादा प्रभावशाली होता है।
 बावजूद इसके इसमें एक राष्ट्रीय मौनसहमति को बल मिला किंतु इसके आड़ में पिछले 25 दिनों से स्थानीय नागरिकों का अभिव्यक्ति का दमन देश में गुलामी अथवा दमन का शासन का एक प्रयोगशाला बन सकता है .....।
जिस के खतरे का अनुभव नर्मदा के विलुप्त हो जाने और विकास की परिभाषा के गढने के बीच में छुपा है.... जिसे समझने की आवश्यकता है। अन्यथा "कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है, इसे धक्का लगेगा और शायद इसी की संवेदनशीलता ने केरल के आईएएस अधिकारी को हिला कर रख दिया ।
जो प्रतीकात्मक रूप से उन सभी भारतीय नागरिकों के भावनाओं का संदेश है, जो जल्द ही नहीं सुलझाया गया तो इसके परिणाम लोकतांत्रिक हितों के लिए खतरनाक साबित होंगे । इस तरह भारत का स्वर्ग तीनतलाक बिल से होकर कैसे चंद्रयान तक का सफर कर पाएगा.....? 
तो तैयार रहें, यह सब भी अयोध्या के विवादित मुद्दे की तरह गंगा के प्रदूषण का हिस्सा बन जाएंगे और हम भारतीय नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्य के दमन को तथाकथित राष्ट्रवाद की आग में झोंक चुके होंगे.... ईश्वर ना करें जम्मू कश्मीर की प्रयोगशाला से निकले वायरस भारत की स्वतंत्रता के लिए दुखदाई साबित हो...
 इस नारे के साथ कि, "सबका साथ-सबका विकास".....?

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