मंगलवार, 20 अगस्त 2019

दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर; ग्लोबल वार्मिंग अमरकंटक में भी गायब हुआ पर्यावरण- परिस्थितिकी

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दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर, किया गया 'अंतिम संस्कार'

aajtak.in
20 August 2019
दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर, किया गया 'अंतिम संस्कार'
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क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) की वजह से आइसलैंड में पहली बार एक ग्लेशियर गायब हो गया. इसका नाम (ओकजोकुल) था. इस घटना के साथ ही कई अन्य ग्लेशियरों के भी खत्म होने की आशंका बढ़ गई है. इसे धरती के लिए खतरनाक संकेत माना जा रहा है. (ग्लेशियर की 1986 और 2019 की फोटो, Credit- AP)
दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर, किया गया 'अंतिम संस्कार'
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पश्चिमी आइलैंड में ओकजोकुल ग्लेशियर के खत्म होने पर स्थानीय लोगों ने 'अंतिम संस्कार' जैसी रस्म अदा की. आइसलैंड के प्रधानमंत्री कैटरीन जकोबस्डोटिर, यूएन ह्यूमन राइट्स कमिश्नर मैरी रॉबिनसन, रिसर्चर्स, छात्र और अन्य लोग अंतिम संस्कार सेरेमनी में शामिल हुए. (फोटो- AP)
दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर, किया गया 'अंतिम संस्कार'
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इस मौके पर प्रधानमंत्री कैटरीन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि आखिरी सेरेमनी न सिर्फ आइसलैंड के लोगों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरक होगी. क्योंकि हम यहां जो देख रहे हैं वह क्लाइमेट चेंज का सिर्फ एक चेहरा है. (फोटो- AP)
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वैज्ञानिकों का कहना है कि आइसलैंड के दर्जनों ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा दिखाई दे रहा है. बर्लिन यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर जुलियन वीस ने कहा कि किसी ग्लेशियर को गायब होते देखना ऐसी घटना है जिसे आप सीधे महसूस कर सकते हैं और समझ सकते हैं. (फोटो- AP)


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प्रोफेसर जुलियन ने कहा कि आप क्लाइमेट चेंज को रोज महसूस नहीं करते, एक इंसान के तौर पर देखें तो यह बहुत धीरे हो रहा है. लेकिन भौगोलिक पैमाने पर यह काफी तेज है. (फोटो- AP)

आओ अमरकंटक संरक्षण के लिए स्वार्थी हो जाएं

-(----त्रिलोकीनाथ-------)

यह तो  दुनिया की बातहै....
अब जरा हम स्वार्थी हो जाएं..... भारत की ओर देखें ,फिर मध्य प्रदेश की ओर और ज्यादा स्वार्थी हो जाएं तो शहडोल क्षेत्र की ओर देखें...., जो भौगोलिक रूप से बेहद संवेदनशील है बिंंन्ध्य-मैंकल पर्वत श्रेणी का संगम है ,अमरकंटक पर्वत की श्रृंखलाओं को जिस के संरक्षण में 1960 के दशक में जो पर्यावरण और पारिस्थितिकी रही ,जल संसाधन का जो विशाल भंडार था, वनों का और उन वनों के संरक्षण में जड़ी बूटियों का, लघु वनोपज का, जो विशाल भंडार रहा.... उसके साथ ही आंकड़े निश्चित तौर पर वन संरक्षक के पास शहडोल में संरक्षित हैं...?

 जिनकी तुलना आज के सांख्यिकी आंकड़ों से अगर देखा जाए तो इस स्पष्ट तौर पर दिखेगा कि कई जैव विविधता पूर्ण जड़ी बूटियों का उत्पादन या तो घट गया है या फिर खत्म हो गया है....! एक तो मैं ही गिना सकता हूं हर्रा ......जी हां त्रिफला का एक भाग  " हर्रा-बहेड़ा  "राह चलते नहीं दिखते हमको ......यह यह वृक्ष गायब हो चुके हैं या विलुप्त होने वाले वृक्षों में इन्हें शायद वन विभाग ने रखा हो .....?

तो यह विकास की या विनाश की एक श्रृंखला है.... जब हम दुनिया को देखते हैं तो आसपास भी देखना चाहिए और उतनी ही संवेदनशीलता के साथ ,यह देखना चाहिए अमरकंटक की जल धाराओं खासतौर से सोन नदी और इसके आसपास 100 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र को हमने खनिज उत्पादन के आड़ में या औद्योगीकरण के नाम पर सिर्फ विनाश करने का काम किया है.......?
 यही विकास किया है..., वृक्षारोपण के नाम पर एक उद्योग के लिए कच्चा माल यानी यूकेलिप्टस लगाकर अमरकंटक पर्यावरण को सिर्फ नष्ट करने का काम किया है ...... एनजीटी  यूकेलिप्टस हटाने के लिए कहा  तो शायद नानी मर रही है ......? , 
अभी यदि जागरूकता अनपढ़ आदिवासियों या आदिवासी क्षेत्रों के लिए नहीं, जिनके पास ठेका है... मेरिट की योग्यता है... आईएएस ..,आईपीएस .. आई एफ एस या आई ई एस  होने का दावा है ...उनके लिए है .....
कि क्या वे योग्य हैं ......भारत की आजादी के बाद अमरकंटक पर्वत श्रेणी को और उसकी जैव विविधता को पर्यावरण संरक्षण को बचा पाने के लिए ....?
रही नेताओं की बात ...तो आजादी के बाद शायद ही कोई नेता सभी दल के आपस में बैठकर निष्पक्ष भाव से अमरकंटक क्षेत्र यानी शहडोल संभाग और बिलासपुर कोरबा के आसपास के लोग आपस में बैठकर क्षरित होते अमरकंटक को बचाने के लिए शायद ही बैठे हो......?
 जब भी चिंता करते दिखे तो सिर्फ क्षेत्र की लूट के लिए ......?
जिसे दोहन का नाम दिया गया ....उसके लिए बैठे हैं ....अब भी वक्त है की कि ग्लेशियर के विनाश से और अमरकंटक के विनाश से कुछ सीखें....
 अगर जरूरत पड़ती है तो वन संसाधन हो या खनिज संसाधन को चाहे वह कोयला हो बॉक्साइट हो रेत हो या फिर सीबीएम गैस हो इन सब के दोहन की प्रक्रिया में आवश्यक अंग बने .....सिर्फ भ्रष्टाचार और लूट के लिए.... नहीं बल्कि स्वस्थ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी........
 यही हमारे होने का मतलब है ...
हां पत्रकारों की जरूर ..वे अब अपना पेसा बदल चुके हैं ...जिस कार्य के लिए प्रकृति ने उन्हें निहित किया है उससे दूर जा चुके हैं..., या भटक चुके हैं ...उन्हें भी यूनियन बाजी और अपनी छोटी सोच से ऊपर उठकर अमरकंटक भौगोलिक परिक्षेत्र पर चिंतन करना चाहिए.... जो शायद वे नहीं कर रहे हैं ...?
क्योंकि विकास की धारा अमरकंटक की शीर्ष चोटी पर उन दिगंबर जैन मुनियों के लिए फाइव स्टार स्तर तक की मंदिर और धर्मशाला का हेड क्वार्टर बनाने का काम कर रहे हैं जिस में कभी भी महान संत विद्यासागर जी महाराज जैसे अथवा अन्य साधु-संतों जैसे लोगों के लिए रहने का आवास चिंतन का आवास या फिर मंथन का आवाज नहीं बनेगा.....

 तो भैया शीर्ष स्तर पर धर्म के नाम पर और मैदानी क्षेत्रों में कर्म के नाम पर हो रहे विकास के विनाश से सतर्क हो जाइए नहीं तो जैसे ग्लेशियर गायब हो गया है ....वैसे अमरकंटक भी गायब हो जाएगा ....तो नर्मदा सोन महानदी जोहिला यह तो अमरकंटक के कारण ही हैं.... तो जरा सोचिए समझिए और बुद्धि हो तो कुछ करिए भी क्योंकि मेरे जैसे बुद्धिहीन लोग सिर्फ बता ही सकते हैं ....करना तो उन्हें हैं जिनके पास अधिकार हैं... जो अधिकारी हैं ,और जिम्मेदार हैं जिनके पास जिम्मेदारी है....?

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