बैगा परियोजना बना दिखाने का दांत ...
शहर मे करोड़ों की जमीन, कौड़ियों में खरीद रहे भूमाफिया..
कानूनी मार्गदर्शन के आभाव में लुट रहा बैगा
-----------------------( त्रिलोकीनाथ )-----------------------------
जबकि नियम बताते हैं कि आदिवासी क्षेत्र में आदिवासियों की भूमि यदि 5 एकड़ से भी कम है तो उस पर कलेक्टर को भी यह अधिकार नहीं है कि वह अनुमति दें ......?और आदिवासी अपनी भूमि को विक्रय कर किन्ही परिस्थितियों में जीवन जी सकें। बावजूद इसके सबसतिया बैगा की मुख्य मार्ग पर लगी करीब साढे 3 एकड़ जमीन, यदि अनुमानित सूत्रों की माने 438 /2 में रखवा 1.6 19 एक्टर याने 3:50 एकड़ करीब जमीन मात्र ₹500000 में अभिषेक सोनी ने राहुल बैगा के नाम पर रजिस्ट्री करा ली और इसमें भी इस पूरी जमीन पर सिर्फ सवा लाख रुपए बताऔर अग्रिम दिए। करीब 13 माह पूर्व कराई गई कथित रजिस्ट्री में सिर्फ यह राशि देकर जमीन अपने नाम याने राहुल बैगा के नाम बेनामी तौर पर खरीद लिया गया और उसके हिसाब से नए ग्राहकों की तलाश करके जमीन को रफा-दफा करने का काम की योजना रखी गई ।
बात उजागर तब हुई, जब सबसतिया बैगा को ₹400000 की शेष रकम भी नहीं दी गई और उसकी जरूरत की चीजें ना मिलने पर बुजुर्ग आदिवासी महिला इस आशय की शिकायत कलेक्टर शहडोल से की । जिस पर कलेक्टर ने एसडीएम सुहागपुर को निर्देशित किया है। आवेदन में स्पष्ट रूप से शिकायत की गई कि उसकी भूमि 3:30 एकड़ करीब 13 माह पूर्व भूमि का विक्रय पत्र अभिषेक सोनी निवासी देवगांव तहसील सोहागपुर द्वारा अनुबंध कर के अपने आदमी के नाम से करा लिया गया तथा वह अपने आदमी राहुल बैगा निवासी धनपुरी के नाम पर भूमि का पंजीयन भी करा लिया है । बुजुर्ग आदिवासी बैगा के अनुसार कुल 5लाख रुपए में लिखा पढ़ी की गई, किंतु सवा लाख रुपए देने के बाद शेष 4लाख रुपए आज तक उसे नहीं दिए गए और जमीन पर कब्जा कर लिया गया ।अब पैसा देने से इनकार किया जा रहा है प्रार्थी शेष दिलाए जाने धोखाधड़ी करने का प्रकरण तथा अपनी जमीन का किसी भी प्रकार का नामांतरण किए जाने पर रोक लगाने की मांग की है ।
वास्तव में शहडोल जिले के आदिवासी बेहद भोले भाले और जरूरतमंद व्यक्ति हैं ।गहरी चाल-ढाल बेईमानी पूर्ण हरकत समान रूप से नहीं समझ पाते और ना ही प्रशासनिक अधिकारी उन्हें यह बता पाने में कोई रास्ता तय कर पाए हैं कि उनकी कीमती जमीन जो शहरी क्षेत्र से लगी हुई है वह करोड़ों रुपए की है.....? जिसका मूल्यांकन के हिसाब से आदिवासी को उसका हक मिलना चाहिए। जागरूकता के अभाव में बुजुर्ग आदिवासी ने अपनी करोड़ों रुपए की जमीन जैन जयसवाल और सोनी नामक दलालों /भू-माफियाओं को सौंप दी ।अब वह इनके चक्कर काटती रहती है, और अंततः परेशान होकर मामले की शिकायत कर राहत पाने का प्रयास कर रही है ।बताया जाता है इसमें भू माफियाओं ने आदिवासियों की भूमि को मनमाने तौर पर ओने पौने दाम पर खरीद कर करोड़ों अरबों रुपए बना रखे हैं और इसी से प्रशासनिक अमले को अपने पक्ष में कर लेते हैं ।जिससे इन दलालों के खिलाफ जानबूझकर कोई ठोस कार्यवाही नहीं होती....?
वास्तव में चिन्हित दलालों को प्रशासन अपने रडार पर रखना चाहिए ,हालांकि ऐसा नहीं है की प्रशासनिक अधिकारी अपने कर्तव्य का निर्वहन अपने अंदाज में कभी नहीं करते, पूर्व में शहडोल मैं एसडीएम रहे लोकेश कुमार जांगिड़ ने वकायदे बड़े-बड़े साइन बोर्ड से सुहागपुर तहसील में अलग-अलग कई चेतावनी या व सुरक्षा की जानकारी सूचना पटल से लगवाई थी ताकि कोई भूमाफिया के बारे में संदेश देना चाहे तो वह एसडीएम को दे सकता था उनके जाने के बाद शायद यह व्यवस्था दिखाने का दांत रह गई है....? यदि प्रशासन चाहे तो अभी भी नहीं हटाए हुए बोर्डों पर मोबाइल नंबर चेंज करके तत्कालीन एसडीएम के मोबाइल नंबर दर्ज करा सकती है... आदि आदि प्रकार से भूमि दलालों की समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। किंतु यह बात अधिकारी की मंशा पर निर्भर करता है ।
सूत्र तो यह भी बताते हैं की करोड़ों की भूमि पर जिस जैन माफिया ने पृष्ठभूमि बनाने का काम किया वह गांधी चौक में खुलेआम सरकारी जमीन पर तहसीलदार की स्थगन आदेश के बाद भी निर्माण कर दुकान खोलने के फिराक में है किंतु प्रशासन की चुप्पी हैरान करने वाली है.... या फिर वह खुद जैन माफिया को संरक्षित करने का काम कर रहा है....? बहराल देखना होगा बैगा आदिवासियों के संरक्षण का दावा करने तथा अलग से बैगा परियोजना चलाने वाला प्रशासनिक अमला क्या संपतिया बैगा को उसकी करोड़ों रुपए की जमीन वापस दिला पाता है अथवा उसका कानूनी मार्गदर्शन कर भू माफियाओं से उसे मुक्त करा पाता है......?
अति सुन्दर आर्टिकल आपका समसतिया बैगा को दिया गया सहयोग अतिसराहनीय है ईश्वर आपको आपके प्रयास मे सफलता और पीड़ितों का स्नेह आशीर्वाद प्रदान करें शुभकामनायें
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