शहडोल आयुक्त बैठक ;एक यादगार बैठक
प्रशासनिक कसावट और सतत निगरानी में
छत्तीसगढ़, बुंदेलखंड और बघेलखंड का संगम ;
शहडोल पर्यावरण संरक्षण
--------( trilokinath )------------
पता नहीं कमिश्नर शोभित जैन की खनिज विभाग के अधिकारियों के साथ हुई बैठक का क्या परिणाम निकलता है ....? कितना सफल होता है, या कितना असफल...?. यह तो प्रशासनिक कसावट और उसकी सतत निगरानी का विषय होगा। किंतु इतना तो तय है कि कमिश्नर श्री जैन ने जो भी बातें कहीं हैं वह गैरकानूनी नहीं है...., तो कानून में व्यवस्था में जो लिखी हैं, जो सुनिश्चित हैं, जिन्हें खनिज विभाग ने पहले से व्यवस्थित कर रखा है, उसका अनुपालन नहीं हो पा रहा था ......और यह सब कुछ कमिश्नर ने अपने संज्ञान में लिया। यह इसलिए बहुत जरूरी है क्योंकि खनिज विभाग के लाभ-हानि ,प्रशासनिक-प्रबंधन, कानून-व्यवस्था की नजर में तो जरूरी है किंतु इन सबसे ज्यादा जरूरी है भारत की महत्वपूर्ण भौगोलिक-संगम यानी कि छत्तीसगढ़, बुंदेलखंड और बघेलखंड के संगम में स्थित शहडोल क्षेत्र में जहां की विपरीत धाराओं की ओर जाने वाली बड़ी नदियां सोन और नर्मदा नदी का प्रवाह हो.. जो कभी दुनिया की सर्वोच्च पर्वत, बिंंन्ध्य पर्वत कहलाता था, कथानकको और पुराणों में ही सही, उसकी गोद पर बसा शहडोल संभागी क्षेत्र की प्रकृति दत्त अनुपम उपहार नदियां, जंगल इनका संरक्षण प्राकृतिक तरीके से होना बहुत जरूरी था...।
ek laghu katha
प्रशासनिक कसावट और सतत निगरानी में
छत्तीसगढ़, बुंदेलखंड और बघेलखंड का संगम ;
शहडोल पर्यावरण संरक्षण
--------( trilokinath )------------
पता नहीं कमिश्नर शोभित जैन की खनिज विभाग के अधिकारियों के साथ हुई बैठक का क्या परिणाम निकलता है ....? कितना सफल होता है, या कितना असफल...?. यह तो प्रशासनिक कसावट और उसकी सतत निगरानी का विषय होगा। किंतु इतना तो तय है कि कमिश्नर श्री जैन ने जो भी बातें कहीं हैं वह गैरकानूनी नहीं है...., तो कानून में व्यवस्था में जो लिखी हैं, जो सुनिश्चित हैं, जिन्हें खनिज विभाग ने पहले से व्यवस्थित कर रखा है, उसका अनुपालन नहीं हो पा रहा था ......और यह सब कुछ कमिश्नर ने अपने संज्ञान में लिया। यह इसलिए बहुत जरूरी है क्योंकि खनिज विभाग के लाभ-हानि ,प्रशासनिक-प्रबंधन, कानून-व्यवस्था की नजर में तो जरूरी है किंतु इन सबसे ज्यादा जरूरी है भारत की महत्वपूर्ण भौगोलिक-संगम यानी कि छत्तीसगढ़, बुंदेलखंड और बघेलखंड के संगम में स्थित शहडोल क्षेत्र में जहां की विपरीत धाराओं की ओर जाने वाली बड़ी नदियां सोन और नर्मदा नदी का प्रवाह हो.. जो कभी दुनिया की सर्वोच्च पर्वत, बिंंन्ध्य पर्वत कहलाता था, कथानकको और पुराणों में ही सही, उसकी गोद पर बसा शहडोल संभागी क्षेत्र की प्रकृति दत्त अनुपम उपहार नदियां, जंगल इनका संरक्षण प्राकृतिक तरीके से होना बहुत जरूरी था...।
जब सड़क पर कोई हाईवा, किसी जीव को कुत्ता, सांप के ऊपर से गुजरता है तो तत्काल मर जाता है ऐसे कैसे हम आंख मूंद ले की नदियों में जब हाईवा उतरते हैं, जेसीबी चलती है तो नदी संरक्षण जैव विविधता इन हाईवा, जेसीबी के दबाव में खत्म नहीं हो रही होती है..... कई जीव जंतु नष्ट हो जाते हैं..।
खनिज माफिया को इन सब से मतलब नहीं है.. बाजारवाद,माफियागिरी, पूंजीवाद सिर्फ अपने लाभ और लाभ के लिए काम करता है ।उसे पुलिस और प्रशासन को खरीदना बाएं हाथ का खेल है,अगर वह बिकने को तैयार है..?
तो जैसा कि पिछले चार-पांच सालों से क्या 10 सालों से शहडोल में खनिज संपदा में डाका डाला जा रहा था, ब्योहारी की तमाम नदी-नाले, पहाड़िया टूटपुंजया नेताओं और चोरों को इतना बड़ा बना दिया कि वह अपना-अलग अपना समानांतर प्रशासन चला रहा है, रेगुलर मानिटरिंग होती थी माफियाओं की, छापामारी-जीपों में गिरोहों से अवैध खनिज को रीवा तक पहुंचाया जाता था। और मजाल है कि इस माफिया के खिलाफ किसी कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक ने आंख उठाने की जरूरत की हो...? सिर्फ और सिर्फ इस माफिया के साथ कोआर्डिनेशन/ समन्वय कर के कानून और शांति व्यवस्था बनाए रखना एक व्यवस्था बन गई ...?
किंतु इन सबमें सबसे खतरनाक हालात वह बन रहे थे, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़ा खतरा था... और यह काम अब जबकि लिखी हुई कानूनी बातों को क्रियान्वयन किया जाएगा एक स्मरणीय यादगार कमिश्नर का तोहफा कहलायेगा.....। विंध धरती के लिए न सिर्फ वन संपदा बल्कि सोन-अंचल के लिए भी.... क्योंकि यदि नदिया नहीं हैं, वन नहीं है.... तो बाकी औद्योगीकरण के जरिए होने वाला विनाश ..., वह तो वैश्विक बाजारवाद में रुकने से रहा..... किंतु छुटपुटिया लोगों को चोर से माफिया तक बनाने का जो काम हो रहा था, वह शायद रुक जाए....? और इसके लिए शहडोल आयुक्त शोभित जैन की यह बैठक एक यादगार बैठक के रूप में हमेशा उदाहरण बनी रहेगी।
मुझे याद है तब केंद्र में कांग्रेस सरकार थी और हमारे मुख्यमंत्री कमलनाथ तब पर्यावरण मंत्री थे, उस समय हर जिले में देशभर में पर्यावरण वाहिनी जिला स्तर पर बनाई गई ,जिस का कार्यकाल 2 साल का होता था। एक कार्यकाल में मैं भी मेंबर रहा और कुछ छोटी सी पहल में यूकेलिप्टस का प्रतिबंधित किया जाना वन विभाग द्वारा ताकि जैव विविधता व मिश्रित वन प्रणाली परंपरागत तरीके से बरकरार रहे एक सफलता थी...। और भी कई महत्वपूर्ण निर्णय हुए इसके बाद शायद ही पर्यावरण संरक्षण के लिए कोई जन सरोकार वाली समिति कोई काम कर पाई हो....?
शहडोल जैसे आदिवासी वनांचल और महत्वपूर्ण नदियों के क्षेत्र में जहां प्रशासन के सहयोग के बिना किसी सोच का क्रियान्वयन होना लगभग असंभव है.., इस दृष्टिकोण से संभागायुक्त की है बैठक बहुत जरूरी थी। वर्तमान बैठक के निष्कर्षों का आकलन दो चार महीने बाद निश्चित रूप से दिखेगा। किंतु जो क्षति हो चुकी है उसे कैसे क्षतिपूर्ति की जाएगी....? तब जबकि रिलायंस कंपनी का औद्योगिक विस्तार हो या फिर फोर लेन सड़क का निर्माण अथवा अन्य सड़क निर्माण से होने वाली वनों का नुकसान इसका भी आकलन किया जाना इसलिए जरूरी है ....? क्योंकि सर्वांगीण परिणाम मैं इसकी भी पृष्ठभूमि अवश्य प्रभाव डालेगी...?
बहर हाल पर्यावरण संरक्षण की दृष्टिकोण से इस महत्वपूर्ण बैठक के लिए शहडोल संभाग आयुक्त श्री जैन बधाई के पात्र हैं।
बाघ और जंगल में मित्रता थी । यदि बाघ को मारने कोइ आता तो वन उसे छिपा लेता और यदि वन को कोई काटने आता तो वाघ उसे डराकर भगा देता । इस प्रकार दोनो एक दूसरे की रक्षा करते थे।
एक बार किसी छोटी बात पर दोनों में झगड़ा हो गया । बाघ जंगल छोड़ कर चला गया। लोगो ने जंगल को काटना शुरू कर दिया और वन के अभाव में बाघ भी छिप नही सका और मारा गया।
प्रकृति और इंसान ऐंसे ही एक दूसरे के पूरक हैं । एक दूसरे का विरोध करके हम स्वयं को नष्ट कर रहे हैँ ।
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