..... बिन पानी सब सून......
विकास के नाम पर बड़ा डाका .....?
सड़क निर्माण में क्यों नष्ट हुए सैकड़ों तालाब....?
(त्रिलोकीनाथ )
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, सुंदरलाल पटवा नाम सुंदर विचार शायद कुरूप थे इसलिए जब शहडोल आए तो गांधी चौक में अपने भाषण में कहा कि "... हम जरूर पानी पिलाएंगे ...." ,जब लोगों ने पानी की मांग की | इत्तेफाक से वे चुनाव हारे और दिग्विजय सिंह शहडोल को नजदीक से जान चुके थे, कि नेतृत्व का अभाव है यहां.., जो कुछ भी है शायद अर्जुन सिंह जी का प्रभाव क्षेत्र है .. क्योंकि क्योंकि दलबीर सिंह यहां के नेता हुआ करते थे और उनके गुरु थे कुंवर अर्जुन सिंह, सीधी जिले के निवासी.... जो भी अंदर रही हो उन्होंने अर्जुन सिंह को तोड़ने के लिए दलवीर सिंह को तोड़ा.., उनके खिलाफ बिसाहूलाल को खड़ा किया और भीतर घात की जो मशीन पैदा हुई उसने कांग्रेस के कर्म करके रख दी..| मध्यप्रदेश में कांग्रेस कथा के कई पहलू हैं.... अपन इस पर नहीं जाएंगे...
रीवा- अमरकंटक सड़क मार्ग 110 करोड़ का योजना
सुंदरलाल पटवा ने व्यंग में कहा "... हम पानी जरूर पिलाएंगे,..., क्योंकि उन्हें लगा था कि ऑपोजिट पार्टी वाले उनकी सभा को डिस्टर्ब कर रहे हैं, पानी की मांग करके..... जबकि वास्तव में पानी की समस्या रही, पानी तो नहीं ला पाए भाजपा को 10 साल भोगना पड़ा सत्ता से दूर रहकर | दिग्विजय सिंह आए उन्होंने यहां सड़क में रोजगार की संभावना देख, रीवा से लेकर अमरकंटक तक पहली बीओटी ( यानी बनाओ-चलाओ और ट्रांसफर करो) की नीति बनाकर सड़क का अवसर देखा, सड़क निर्माता से उनके जो भी तालुकात रहे...? रीवा- अमरकंटक सड़क मार्ग 110 करोड़ का योजना थी| सड़क बनाएंगे... 15 साल टोल टैक्स लेंगे और 10 साल उस सड़क का रखरखाव करेंगे.. 25 साल का अनुबंध हुआ| 110 करोड़ में आधा पैसा शासन को सड़क निर्माता को नकदी देना था| क्योंकि चुनाव होने थे....? गारंटी और सुनिश्चित की गई गुणवत्ता के हिसाब से सड़क नहीं बनी थी.... सत्ता दिग्विजय सिंह की थी तो नियम कानून पर्यावरण संरक्षण के या अन्य लागू ही नहीं होने से खनिज दोहन के आदि-आदि.. जैसा की अभी शिवराज सिंह ने अंधेर-नगरी खनिज क्षेत्र में मचाया... शायद दिग्विजय सिंह ने शुरुआती तौर पर प्रयोग किया था...|
बरूका, छतवई ग्राम में 9 तालाब नष्ट
बहरहाल भ्रष्टाचार की माफिया गिरी पर अपन नहीं जाएंगे... बात सड़क की इसलिए आई क्योंकि मैं शहडोल के पास बरूका, छतवई ग्राम पंचायत में गया मेरे ससुराल पक्ष की मे हमारी काकी सास और गांव की सबसे वरिष्ठतम श्रीमती पार्वती देवी जी का निधन हो गया था| श्मशान घाट में गए तो तैयारी इस बात की भी थी कि नहाएंगे कहां....? पर श्मशान स्थल पर ही मैंने बाबूलाल नामदेव जी से पूछा, जो हमारी पत्रकारिता बिरादरी के थे,
.. कुल कितने तालाब हैं...?
उन्होंने कहा करीब 9 तालाब हैं, एक तालाब तो नष्ट ही हो रहा है , भाटा जा रहा है, तालाबों में पानी नहीं है..... लगे हाथ यह कहा कि तालाब सफाई का मतलब मिट्टी खोदने के अलावा कुछ नहीं रहता ...इसलिए पानी कहां से आए...? पानी का इनपुट/ आवक लगभग ना के बराबर है..|
गंभीरता से देखने पर समझ में आया, तालाब में आने वाले पानी के सभी रास्तों लगभग बंद हो गया है|
तालाब इसलिए थे.. क्योंकि हमारी सद्भावना, सहृदयता तालाब के साथ समन्वय करती थी..... उसका आभाव हुआ.... बचा-कुचा दिग्विजय सिंह जैसे मुख्यमंत्री ने विकास की /जो विनाश रेखा खींची... बीओटीसड़क मार्ग के नाम पर उससे सड़क ऊंची हो गई और सड़क पार से आने वाला पानी का बहाव का रास्ता बदल गया....... इस प्रकार सड़क के किनारे के कम से कम 12 तालाबों को मैं जानता हूं जो सूख गए...... क्योंकि सड़क ने उनका रास्ता बंद कर दिया है|
तालाब संरक्षण के लिए प्राइवेट ठेकेदारों के हाथ में सड़क मार्ग का जो काम हुआ, उससे मुझे तो नहीं मालूम कि रीवा से अमरकंटक तक कितने तालाब नष्ट हुए किंतु छतवई ग्राम पंचायत में दो तालाब जरूर बर्बाद हो गए ..|
उनका स्मारक दिग्विजय सिंह की पूंजीवादी अपराधिक प्रवृति की विचारधारा का स्मारक है.... जहां आमजन पानी-पानी के लिए मोहताज है.
बीओटीसड़क मार्ग 25 साल के लिए बनी थी....., 15 साल बाद कांग्रेस और भाजपा सत्ता काल में जो भी नूरा-कुश्ती की योजना बनी हो....?, 15 साल टोल-टैक्स वसूले जाने के बाद 10 साल का सड़क का रखरखाव एग्रीमेंट इसलिए छोड़ दिया गया अथवा उसे पूरा नहीं करवाया गया या करवाया जा रहा है क्योंकि शासन और प्रशासन में बैठे हुए "माफिया फोरलेन सड़क का प्रोजेक्ट लेकर आए" विकास के नाम पर बड़ा डाका डालने का काम|
सड़क-प्रबंधन पूरा न करवाने का शासन और प्रशासन पर डाका...
सड़क मार्ग में 15 साल के बाद 10 वर्ष का सड़क-प्रबंधन का काम पूरा न करवाने का शासन और प्रशासन पर डाका...; जी हां, यह एक डाका ही है, खुली-माफिया-गिरी अंजाम देता है| आदिवासी क्षेत्रों में नेता जैसे कोई चीज तो होती नहीं..., जो मुंह खोल सके.." भैया यह तो डाका पड़ रहा है...?" आईएएस-आईपीएस अफसर यह तो हुकुम का गुलाम होते हैं... विवेक.. सिर्फ कुछ देर कोर्ट के कैंपस में, कुछ घंटों के लिए मनोरंजन की वस्तु होती है.... क्योंकि वह भी एक मुखौटा होता है.. अन्यथा किसी अधिकारी को वह क्यों नहीं दिख रहा है.....?
तालाबों के संरक्षण और विनाश की कहानी के पीछे पूरी संरचना का...., जो हम जैसे आदिवासी क्षेत्र के निवासियों को खुली आंख से दिख रहा है.. इसका मतलब है की हर विकास में, जिसने भ्रष्टाचार ना हो वह प्रशासन की प्रतिबद्धता और प्राथमिकता का हिस्सा नहीं बन पाता... क्योंकि अधिकारी के पास बौद्धिकसमाज-वर्ण का सर्टिफिकेट होता है, इसलिए उन्हें दिखाना भी पड़ता है... कि वे कुछ कर रहे हैं... और तालाबों के संरक्षण पर औपचारिकता करके अपना समय-अवधि पास करते हैं.... कम से कम शहडोल के पास का सबसे बड़ा गांव बरूका, छतवई ग्राम के विनाश के अवधारणा की यही शुरुआत है|
शहडोल शहर के तालाब लोक-कथा का हिस्सा होते जा रहे हैं..... अधिकारी के पास समय नहीं..., नेताओं को ज्ञान नहीं..?
योग्यता के प्रति निष्ठा और निष्ठा के प्रति समर्पण और क्रियान्वयन..., योग्यता का प्रमाण पत्र होता है... एक तो अब आईएएस अधिकारी वल्लभ भवन में सजावट की विषय-वस्तु बन गए हैं..... अथवा "अंधा बांटे रेवड़ी.., चीन्ह-चीन्ह कर देय.." के अंदाज में शासन के लोग आईएएस का मजाक बना रखें...... शेष-अवशेष , आईएएस अधिकारी जो हमारे आई-कान होते हैं, उनसे बहुत अपेक्षा होती है.. कहना चाहिए, अपेक्षा के पहाड़ भी बहुत बड़े होते हैं शायद दबाव इतना होता है राजाओं महाराजाओं की तरह व्यवस्थाएं। इसलिए शायद भ्रमित हो जाते हैं, शासन की गुलामी से जो थोड़ा बहुत वक्त, उनकी योग्यता की चाहत की हमें होती है वह बस इतनी रह गई है कि विकास या विनाश जो भी करें, प्राकृतिक रूप से विरासत में मिले हुए पर्यावरण संरक्षण को बचाने की दिशा में क्या भारतीय प्रशासनिक सेवा के लोग सक्षम भी है..और अगर हैं, तो वह दिखता क्यों नहीं है.. , क्योंकि सत्य सिर्फ होना नहीं, दिखना भी चाहिए|
क्या प्राथमिकता इस प्रतिबद्धता पर कटिबद्ध नहीं होनी चाहिए कि, हम कुछ ना करें, हम बिल्कुल योग्य ना हो, तो भी विरासत की पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन दोनों को बनाए रखने और उसे कुशलता पूर्वक संरक्षण देने में हम कुछ दिखाने वाला सच करें।
बरूका, छतवई ग्राम इसलिए क्योंकि यह दिखा, शहर के आसपास के सभी नजदीक वाले ग्राम पंचायतों मैं यह विकास की अवधारणा का "बटुआ का भात" सिद्ध हो सकता है| यदि आप कुछ करने की सोच रहे हैं.. तो प्रयोग कीजिए कि, क्या तालाब बच सकते हैं, नए तालाब नहीं, जो विरासत में हमें प्राप्त हैं शहडोल शहर के तालाबों को तो शासन-प्रशासन और माफिया नुमा नागरिक भ्रष्टाचार के यह महा मिलावट तालाबों को दिन-प्रतिदिन नष्ट कर रहा , आप और हम जब पलक झपकते हैं तो कहीं ना कहीं कोई माफिया तालाब को नष्ट ही कर रहा होता है. इसलिए तालाब का संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए। क्योंकि "बिन पानी सब सून.. ,यह हमारे पुराने पुरखों ने कहा है, अब आप के पुरखों ने क्या कहा, आप कर रहे हैं...? हम तो इसी प्रकार की आदिवासी अवधारणा से चिंतित और परेशान हैं,
कोई कहे यह निंदा अथवा आलोचना अथवा शासन की बुराई है|, नहीं साहब, इस लेख में ऐसा कोई दुस्साहस करने का प्रयास हमारा नहीं है. हम तो रो सकते हैं, तो यह मान ले कि हमारा रोना है.., कान लगाकर सुनेंगे तो यह गला फाड़-फाड़ के चिल्लाना भी है और चीख भी, क्या लोकतंत्र की समस्त योग्यता में ऐसी क्षमता है कि हमारे रोना-रोने और चिकने को समझने की कोई सोच रखती है, या है भी या नहीं। जीवन बीमा निगम का अधिकारी, भटवा रहा था कुआं
कुआं में रहने वाले सांपों को भी पसंद नहीं
हाल में शहडोल के हाउसिंग बोर्ड के पास एक तालाब नुमा पन-सरा का कुआं, जो कई लोगों को पानी पिलाता रहा.... कहते हैं जीवन जीवन बीमा निगम का एक अधिकारी मुकेश गुप्ता अपनी पूंजीवादी अपराधिक मानसिकता को बढ़ावा देने के लिए जेसीबी से शाम को कुआं को तुड़वा कर भटवा रहा था. कुआं, कुआं कम था इंदारा जादा था( बड़ा कुआं) | अब यह बात हमको तो पसंद आने ही नहीं थी, कुआं में रहने वाले सांपों को भी पसंद नहीं आई और वे सूरज ढले हो रहे अपराध के कारण वहां से निकलने लगे, कुछ जेसीबी के आस पास देखे गए, जेसीबी वाले और मुकेश गुप्ता दोनों ही इंदारा भटवाने की प्रक्रिया को छोड़कर भाग गए. सुबह भूमि स्वामी योगेश जी वहां पर सब देखे तो शिकायत किए ,आधा भटवा कुआं फोटो दिए, अब प्रशासन को तो चाहिए यह कि वह तत्काल उचित कानूनी कार्यवाही करते हुए कुए को यथास्थिति ही नहीं पुनः संरक्षित करने के लिए कार्यवाही करें, किंतु जैसा मैंने पहले कहा लोकतंत्र की समस्या पूंजीवादी माफिया गिरी से भ्रष्ट और पतित हो चुकी है, इसलिए कुआं को अंतिम समय तक नष्ट होने की शिकायत योगेश करता ही रहेगा|
कहीं ना कहीं हम या तो अंधे हैं . ..?
यह उदाहरण है कि जब एक कुआं को, इस व्याकुल कर देने वाली गर्मी में हम नहीं बचा पा रहे तो, कहीं ना कहीं हम या तो अंधे हैं अथवा एयर कंडीशनर कमरे में रहने के कारण गर्मी का आभास नहीं कर पा रहे| और यही आभास मुझे श्मशान स्थल के पास छतवई ग्राम के उस सूखे हुए हुए तालाब को देख कर महसूस हो रहा था।
लोक निर्माण का सिर्फ और सिर्फ, मूर्खता प्रमाण पत्र
अनुभवों का जो पिटारा खुला उससे प्रशासन और शासन कुछ सीख लेकर आगे बढ़ सकता है ,तालाबों को प्राथमिक रूप से संरक्षित करने का काम समस्त उच्चाधिकारियों की शिक्षा व संस्कार दोनों को ही प्रमाणित करेगा अन्यथा जयस्तंभ चौक शहडोल का शहीद स्मारक के पास अक्सर ट्रकों के फूटते हुए टायर कितनी भी बमबारी की आवाज क्यों न करें और चेतावनी भी क्यों न दें की जयस्तंभ चौक के निर्माण में की बनावट पर लोक निर्माण विभाग सिर्फ और सिर्फ मूर्खता का प्रमाण पत्र है, जिसके कारण हर हफ्ते ट्रक का टायर बम की तरह फूटता है. किंतु हमारा प्रशासन कुंभकरण की नींद से भी ज्यादा गहरी नींद में सोया रहता है, एक बार तो इसी टायर बम विस्फोट में एक पथिक की अंतत: मृत्यु हो गई.......... किंतु आदिवासी क्षेत्र का नागरिक था, ऐसी मौतें सड़क एक्सीडेंट में होती ही रहती है.. अगर यही दुर्घटना किसी आईएएस अधिकारी की के लड़के की होती तो अवश्य स्थानांतरण के बाद भी आईएएस अधिकारी शहडोल नहीं छोड़ता और उसकी नींद उड़ गई होती।, जैसा कि शहडोल ने एक बार अनुभवी किया। यह अलग बात है वह दुर्घटना आईटीआई के पास कुछ और बात थी बहरहाल रोना चिल्लाना इसलिए है कि समय कम है.., सर्वोच्च प्राथमिकता तालाबों की हो तो कुछ बात बने.... कुछ खास बने... कुछ राह बने... कुछ वाह बने..|
सड़क निर्माण में मुआवजा का भ्रष्टाचार ....
रीवा- अमरकंटक सड़क मार्ग 110 करोड़ का योजना
सुंदरलाल पटवा ने व्यंग में कहा "... हम पानी जरूर पिलाएंगे,..., क्योंकि उन्हें लगा था कि ऑपोजिट पार्टी वाले उनकी सभा को डिस्टर्ब कर रहे हैं, पानी की मांग करके..... जबकि वास्तव में पानी की समस्या रही, पानी तो नहीं ला पाए भाजपा को 10 साल भोगना पड़ा सत्ता से दूर रहकर | दिग्विजय सिंह आए उन्होंने यहां सड़क में रोजगार की संभावना देख, रीवा से लेकर अमरकंटक तक पहली बीओटी ( यानी बनाओ-चलाओ और ट्रांसफर करो) की नीति बनाकर सड़क का अवसर देखा, सड़क निर्माता से उनके जो भी तालुकात रहे...? रीवा- अमरकंटक सड़क मार्ग 110 करोड़ का योजना थी| सड़क बनाएंगे... 15 साल टोल टैक्स लेंगे और 10 साल उस सड़क का रखरखाव करेंगे.. 25 साल का अनुबंध हुआ| 110 करोड़ में आधा पैसा शासन को सड़क निर्माता को नकदी देना था| क्योंकि चुनाव होने थे....? गारंटी और सुनिश्चित की गई गुणवत्ता के हिसाब से सड़क नहीं बनी थी.... सत्ता दिग्विजय सिंह की थी तो नियम कानून पर्यावरण संरक्षण के या अन्य लागू ही नहीं होने से खनिज दोहन के आदि-आदि.. जैसा की अभी शिवराज सिंह ने अंधेर-नगरी खनिज क्षेत्र में मचाया... शायद दिग्विजय सिंह ने शुरुआती तौर पर प्रयोग किया था...|
बरूका, छतवई ग्राम में 9 तालाब नष्ट
बहरहाल भ्रष्टाचार की माफिया गिरी पर अपन नहीं जाएंगे... बात सड़क की इसलिए आई क्योंकि मैं शहडोल के पास बरूका, छतवई ग्राम पंचायत में गया मेरे ससुराल पक्ष की मे हमारी काकी सास और गांव की सबसे वरिष्ठतम श्रीमती पार्वती देवी जी का निधन हो गया था| श्मशान घाट में गए तो तैयारी इस बात की भी थी कि नहाएंगे कहां....? पर श्मशान स्थल पर ही मैंने बाबूलाल नामदेव जी से पूछा, जो हमारी पत्रकारिता बिरादरी के थे,
.. कुल कितने तालाब हैं...?
उन्होंने कहा करीब 9 तालाब हैं, एक तालाब तो नष्ट ही हो रहा है , भाटा जा रहा है, तालाबों में पानी नहीं है..... लगे हाथ यह कहा कि तालाब सफाई का मतलब मिट्टी खोदने के अलावा कुछ नहीं रहता ...इसलिए पानी कहां से आए...? पानी का इनपुट/ आवक लगभग ना के बराबर है..|
गंभीरता से देखने पर समझ में आया, तालाब में आने वाले पानी के सभी रास्तों लगभग बंद हो गया है|
तालाब इसलिए थे.. क्योंकि हमारी सद्भावना, सहृदयता तालाब के साथ समन्वय करती थी..... उसका आभाव हुआ.... बचा-कुचा दिग्विजय सिंह जैसे मुख्यमंत्री ने विकास की /जो विनाश रेखा खींची... बीओटीसड़क मार्ग के नाम पर उससे सड़क ऊंची हो गई और सड़क पार से आने वाला पानी का बहाव का रास्ता बदल गया....... इस प्रकार सड़क के किनारे के कम से कम 12 तालाबों को मैं जानता हूं जो सूख गए...... क्योंकि सड़क ने उनका रास्ता बंद कर दिया है|
तालाब संरक्षण के लिए प्राइवेट ठेकेदारों के हाथ में सड़क मार्ग का जो काम हुआ, उससे मुझे तो नहीं मालूम कि रीवा से अमरकंटक तक कितने तालाब नष्ट हुए किंतु छतवई ग्राम पंचायत में दो तालाब जरूर बर्बाद हो गए ..|
उनका स्मारक दिग्विजय सिंह की पूंजीवादी अपराधिक प्रवृति की विचारधारा का स्मारक है.... जहां आमजन पानी-पानी के लिए मोहताज है.
बीओटीसड़क मार्ग 25 साल के लिए बनी थी....., 15 साल बाद कांग्रेस और भाजपा सत्ता काल में जो भी नूरा-कुश्ती की योजना बनी हो....?, 15 साल टोल-टैक्स वसूले जाने के बाद 10 साल का सड़क का रखरखाव एग्रीमेंट इसलिए छोड़ दिया गया अथवा उसे पूरा नहीं करवाया गया या करवाया जा रहा है क्योंकि शासन और प्रशासन में बैठे हुए "माफिया फोरलेन सड़क का प्रोजेक्ट लेकर आए" विकास के नाम पर बड़ा डाका डालने का काम|
सड़क-प्रबंधन पूरा न करवाने का शासन और प्रशासन पर डाका...
सड़क मार्ग में 15 साल के बाद 10 वर्ष का सड़क-प्रबंधन का काम पूरा न करवाने का शासन और प्रशासन पर डाका...; जी हां, यह एक डाका ही है, खुली-माफिया-गिरी अंजाम देता है| आदिवासी क्षेत्रों में नेता जैसे कोई चीज तो होती नहीं..., जो मुंह खोल सके.." भैया यह तो डाका पड़ रहा है...?" आईएएस-आईपीएस अफसर यह तो हुकुम का गुलाम होते हैं... विवेक.. सिर्फ कुछ देर कोर्ट के कैंपस में, कुछ घंटों के लिए मनोरंजन की वस्तु होती है.... क्योंकि वह भी एक मुखौटा होता है.. अन्यथा किसी अधिकारी को वह क्यों नहीं दिख रहा है.....?
तालाबों के संरक्षण और विनाश की कहानी के पीछे पूरी संरचना का...., जो हम जैसे आदिवासी क्षेत्र के निवासियों को खुली आंख से दिख रहा है.. इसका मतलब है की हर विकास में, जिसने भ्रष्टाचार ना हो वह प्रशासन की प्रतिबद्धता और प्राथमिकता का हिस्सा नहीं बन पाता... क्योंकि अधिकारी के पास बौद्धिकसमाज-वर्ण का सर्टिफिकेट होता है, इसलिए उन्हें दिखाना भी पड़ता है... कि वे कुछ कर रहे हैं... और तालाबों के संरक्षण पर औपचारिकता करके अपना समय-अवधि पास करते हैं.... कम से कम शहडोल के पास का सबसे बड़ा गांव बरूका, छतवई ग्राम के विनाश के अवधारणा की यही शुरुआत है|
शहडोल शहर के तालाब लोक-कथा का हिस्सा होते जा रहे हैं..... अधिकारी के पास समय नहीं..., नेताओं को ज्ञान नहीं..?
योग्यता के प्रति निष्ठा और निष्ठा के प्रति समर्पण और क्रियान्वयन..., योग्यता का प्रमाण पत्र होता है... एक तो अब आईएएस अधिकारी वल्लभ भवन में सजावट की विषय-वस्तु बन गए हैं..... अथवा "अंधा बांटे रेवड़ी.., चीन्ह-चीन्ह कर देय.." के अंदाज में शासन के लोग आईएएस का मजाक बना रखें...... शेष-अवशेष , आईएएस अधिकारी जो हमारे आई-कान होते हैं, उनसे बहुत अपेक्षा होती है.. कहना चाहिए, अपेक्षा के पहाड़ भी बहुत बड़े होते हैं शायद दबाव इतना होता है राजाओं महाराजाओं की तरह व्यवस्थाएं। इसलिए शायद भ्रमित हो जाते हैं, शासन की गुलामी से जो थोड़ा बहुत वक्त, उनकी योग्यता की चाहत की हमें होती है वह बस इतनी रह गई है कि विकास या विनाश जो भी करें, प्राकृतिक रूप से विरासत में मिले हुए पर्यावरण संरक्षण को बचाने की दिशा में क्या भारतीय प्रशासनिक सेवा के लोग सक्षम भी है..और अगर हैं, तो वह दिखता क्यों नहीं है.. , क्योंकि सत्य सिर्फ होना नहीं, दिखना भी चाहिए|
क्या प्राथमिकता इस प्रतिबद्धता पर कटिबद्ध नहीं होनी चाहिए कि, हम कुछ ना करें, हम बिल्कुल योग्य ना हो, तो भी विरासत की पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन दोनों को बनाए रखने और उसे कुशलता पूर्वक संरक्षण देने में हम कुछ दिखाने वाला सच करें।
बरूका, छतवई ग्राम इसलिए क्योंकि यह दिखा, शहर के आसपास के सभी नजदीक वाले ग्राम पंचायतों मैं यह विकास की अवधारणा का "बटुआ का भात" सिद्ध हो सकता है| यदि आप कुछ करने की सोच रहे हैं.. तो प्रयोग कीजिए कि, क्या तालाब बच सकते हैं, नए तालाब नहीं, जो विरासत में हमें प्राप्त हैं शहडोल शहर के तालाबों को तो शासन-प्रशासन और माफिया नुमा नागरिक भ्रष्टाचार के यह महा मिलावट तालाबों को दिन-प्रतिदिन नष्ट कर रहा , आप और हम जब पलक झपकते हैं तो कहीं ना कहीं कोई माफिया तालाब को नष्ट ही कर रहा होता है. इसलिए तालाब का संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए। क्योंकि "बिन पानी सब सून.. ,यह हमारे पुराने पुरखों ने कहा है, अब आप के पुरखों ने क्या कहा, आप कर रहे हैं...? हम तो इसी प्रकार की आदिवासी अवधारणा से चिंतित और परेशान हैं,
कोई कहे यह निंदा अथवा आलोचना अथवा शासन की बुराई है|, नहीं साहब, इस लेख में ऐसा कोई दुस्साहस करने का प्रयास हमारा नहीं है. हम तो रो सकते हैं, तो यह मान ले कि हमारा रोना है.., कान लगाकर सुनेंगे तो यह गला फाड़-फाड़ के चिल्लाना भी है और चीख भी, क्या लोकतंत्र की समस्त योग्यता में ऐसी क्षमता है कि हमारे रोना-रोने और चिकने को समझने की कोई सोच रखती है, या है भी या नहीं। जीवन बीमा निगम का अधिकारी, भटवा रहा था कुआं
कुआं में रहने वाले सांपों को भी पसंद नहीं
हाल में शहडोल के हाउसिंग बोर्ड के पास एक तालाब नुमा पन-सरा का कुआं, जो कई लोगों को पानी पिलाता रहा.... कहते हैं जीवन जीवन बीमा निगम का एक अधिकारी मुकेश गुप्ता अपनी पूंजीवादी अपराधिक मानसिकता को बढ़ावा देने के लिए जेसीबी से शाम को कुआं को तुड़वा कर भटवा रहा था. कुआं, कुआं कम था इंदारा जादा था( बड़ा कुआं) | अब यह बात हमको तो पसंद आने ही नहीं थी, कुआं में रहने वाले सांपों को भी पसंद नहीं आई और वे सूरज ढले हो रहे अपराध के कारण वहां से निकलने लगे, कुछ जेसीबी के आस पास देखे गए, जेसीबी वाले और मुकेश गुप्ता दोनों ही इंदारा भटवाने की प्रक्रिया को छोड़कर भाग गए. सुबह भूमि स्वामी योगेश जी वहां पर सब देखे तो शिकायत किए ,आधा भटवा कुआं फोटो दिए, अब प्रशासन को तो चाहिए यह कि वह तत्काल उचित कानूनी कार्यवाही करते हुए कुए को यथास्थिति ही नहीं पुनः संरक्षित करने के लिए कार्यवाही करें, किंतु जैसा मैंने पहले कहा लोकतंत्र की समस्या पूंजीवादी माफिया गिरी से भ्रष्ट और पतित हो चुकी है, इसलिए कुआं को अंतिम समय तक नष्ट होने की शिकायत योगेश करता ही रहेगा|
कहीं ना कहीं हम या तो अंधे हैं . ..?
यह उदाहरण है कि जब एक कुआं को, इस व्याकुल कर देने वाली गर्मी में हम नहीं बचा पा रहे तो, कहीं ना कहीं हम या तो अंधे हैं अथवा एयर कंडीशनर कमरे में रहने के कारण गर्मी का आभास नहीं कर पा रहे| और यही आभास मुझे श्मशान स्थल के पास छतवई ग्राम के उस सूखे हुए हुए तालाब को देख कर महसूस हो रहा था।
लोक निर्माण का सिर्फ और सिर्फ, मूर्खता प्रमाण पत्र
अनुभवों का जो पिटारा खुला उससे प्रशासन और शासन कुछ सीख लेकर आगे बढ़ सकता है ,तालाबों को प्राथमिक रूप से संरक्षित करने का काम समस्त उच्चाधिकारियों की शिक्षा व संस्कार दोनों को ही प्रमाणित करेगा अन्यथा जयस्तंभ चौक शहडोल का शहीद स्मारक के पास अक्सर ट्रकों के फूटते हुए टायर कितनी भी बमबारी की आवाज क्यों न करें और चेतावनी भी क्यों न दें की जयस्तंभ चौक के निर्माण में की बनावट पर लोक निर्माण विभाग सिर्फ और सिर्फ मूर्खता का प्रमाण पत्र है, जिसके कारण हर हफ्ते ट्रक का टायर बम की तरह फूटता है. किंतु हमारा प्रशासन कुंभकरण की नींद से भी ज्यादा गहरी नींद में सोया रहता है, एक बार तो इसी टायर बम विस्फोट में एक पथिक की अंतत: मृत्यु हो गई.......... किंतु आदिवासी क्षेत्र का नागरिक था, ऐसी मौतें सड़क एक्सीडेंट में होती ही रहती है.. अगर यही दुर्घटना किसी आईएएस अधिकारी की के लड़के की होती तो अवश्य स्थानांतरण के बाद भी आईएएस अधिकारी शहडोल नहीं छोड़ता और उसकी नींद उड़ गई होती।, जैसा कि शहडोल ने एक बार अनुभवी किया। यह अलग बात है वह दुर्घटना आईटीआई के पास कुछ और बात थी बहरहाल रोना चिल्लाना इसलिए है कि समय कम है.., सर्वोच्च प्राथमिकता तालाबों की हो तो कुछ बात बने.... कुछ खास बने... कुछ राह बने... कुछ वाह बने..|
सड़क निर्माण में मुआवजा का भ्रष्टाचार ....
अन्यथा जब दिग्विजय सिंह ने सड़क बनाई थी तो सड़क के आसपास के तालाबों को नष्ट करने का जैसे संकल्प ले लिया था या अनजाने में हो गया ...? अब वह योजना का लाभकारी हिस्सा "सड़क-प्रबंधन" का किसी नूरा-कुश्ती में बंद हो गया है और नई फोरलेन सड़क की तैयारी प्रारंभ हो गई है, जिसमें भ्रष्टाचार भी खुलकर नंगा नाच कर रहा है... एक उदाहरण शहडोल जिले के ब्यौहारी के गांवों में देखने को मिले, जहां खेतों की जमीन टुकड़ों टुकड़ों में बदल कर शासन से मनमानी मुआवजा लेने की रजिस्ट्री सैकड़ों की संख्या में अधिकारियों की मिलीभगत से कर दी गई| तो एक अन्य सड़क निर्माण में मुआवजा का भ्रष्टाचार अनूपपुर जिले के कोतमा क्षेत्र में भी खुलकर हो रहा है अधिकारी और कर्मचारी, भू माफिया से मिलकर जमीनों को टुकड़ों टुकड़ों में बांट कर करोड़ो रुपए वसूल रहे हैं.. , जैसे कभी या अभी कोयला कॉलरी क्षेत्रों में कर्मचारियों से सूदखोर वसूलते थे, एडवांस में चेक लेना बाद में मुआवजा का भुगतान करना, एक आम बात हो गई है. भू माफिया करोड़ों रुपए का कारोबार करते हुए अधिकारियों नेताओं और विधायकोंकी नई नई महंगी कारों वाहनों और मकानों का इंतजाम कर रहे हैं, यह सब तो ठीक है किंतु अगर विकास के लिए सड़क जरूरी है तो सड़क के बीच से ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आसपास के तालाबों के लिए और उसके इनपुट पानी की आवक की व्यवस्था भी उसमें शामिल की जाए, किसी भी कंडीशन में एक भी तालाब इन सड़क निर्माण से नष्ट नहीं होने चाहिए, चाहे पुल या पुलिया बनाना पड़े बनाना पड़े अथवा पाइप डालना पड़े यह तो प्रशासन की योग्यता का प्रमाण पत्र होगा अन्यथा आदिवासी क्षेत्र के तालाब यूं ही नष्ट होते चले जाएंगे|
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