शनिवार, 2 मार्च 2019



"लिखकर प्रमाण दो, भरेगा तालाब" 
 

  ===========त्रिलोकीनाथ के कलम से============

शहडोल नगर के तालाबों का निरीक्षण करते वक्त कमिश्नर शहडोल व कलेक्टर शहडोल के भ्रमण के समाचार में यह शीर्षक काफी विवेकपूर्ण लगा कि "लिखकर प्रमाण पत्र दो भरेगा तालाब" 

   अन्यथा अभी तक तालाबों के संरक्षण के लिए  तालाब गहरीकरण ,तालाब सौंदर्यीकरण आदि -आदि पर करोड़ों रुपए शहडोल नगर के तालाबों पर खर्च कर दिए गए और जितना पैसा खर्च किया गया उसी अनुपात में विरासत में मिले तालाबों को समाप्त करने का काम भी हुआ। कई तालाब विलुप्त हो गए।

जनवरी 1998 में आवास एवं पर्यावरण मंत्रालय ने शहडोल की भी विकास योजनाओं के लिए नियोजन एवं पर्यवेक्षण समिति का गठन किया 27 जनवरी 1999  को  मंत्रालय ने शहडोल विकास योजना  के लिए एक विस्तृत  समिति का गठन किया  जिसका विस्तार अप्रैल 2000 में नगर एवं ग्राम निवेश अधिनियम 1973 के तहत शहडोल विकास योजना के लिए समिति का पुनरगठन किया गया। इस प्रकार से शहडोल विकास योजना ( प्रारूप) 2011 बुकलेट में आजादी के 1947 के बाद का तालाबों की विनाश के बाद तत्कालीन बची खुची तालाबों का जिक्र आया। और सार्वजनिक रूप से प्रकाशित यह पहला दस्तावेज था, जिसमें प्रदर्शित किया गया की तब शहडोल , सुहागपुर आदि 13 ग्रामों में 129 तालााब बचे हैं. जिसका रबा करीब 124 हेक्टर  है|


 उसी में एक तालाब था, जेल भवन के बगल का तालाब..


  वाक्य कुछ  ऐसा था जिसे मैं बार-बार उठाता रहा ।तत्कालीन प्रभारीमंत्री अजय सिंह तालाब के मेड में शहडोल जिला जेल भवन के बगल में संप्रेक्षण गृह के शिलान्यास का  शुभारंभ करने के लिए मंत्री जी सर्किट हाउस से उठे ही थे, मैंने आवेदन देकर उन्हें कहा मंत्री जी शिलान्यास ना करें क्योंकि तब शासन ने प्रदेश स्तर पर जल संरक्षण -तालाब संरक्षण पर जागरूकता का काम किया था; मैंने कहा इसी तालाब को संरक्षित करके, प्रदेश में इसका संदेश देने का काम करें कि सरकारी स्तर पर कोई तालाब नष्ट नहीं किए जाएंगे ...।,किंतु बात तब प्रशासनिक चयन में लापरवाही की थी, तत्कालीन शहडोल प्रशासन ने समझा-बुझाकर कि साहब तालाब नहीं है ,मेढ है। और स्थल पर शिलान्यास करवा दिया।

 आज जहां संप्रेक्षण गृह बना है और उसका मल-मूत्र जिस तालाब पर जा रहा है उसके लिए कौन जवाब देंह है...? बहरहाल तालाब का रकबा बड़ा था ,मंत्री बदले, नये मन्त्री इंद्रजीत कुमार जी से फिर पहल हुई और उन्होंने तत्कालीन कलेक्टर पंकज अग्रवाल जी को कहा की " अब मान भी लीजिए कि , वहां का तालाब है और गहरीकरण की तिथि बताइए" । इस प्रकार यह तालाब संरक्षित हुआ। हमने पहल करके उसमें नाली भी बनवा दी, किंतु "अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता"..?
       कुछ इसी प्रकार के हालात में जैसा भी है यह तालाब प्रशासनिक विवेक -हीनता की गरीबी का रोना रोता हुआ एक प्रमाण-पत्र के रूप में जीवित है। किंतु तालाब है, यह खुशी की बात है ।धीरे-धीरे पट रहा है ,यह दिगर बात है ....?
 करीब 8-9 साल बाद जब कमिश्नरी बनी, अरुण तिवारी जी कमिश्नर हुए । उनसे आसरा लेकर फिर बातें उठी,लेकिन प्राथमिकता मोहनराम तालाब पर थी क्योंकि वह मेरे मिशन का हिस्सा था । और एक बैठक भी हुई, उसमे मै सदस्य भी रहा ।कमिश्नर साहब की इच्छाशक्ति से शहडोल के सभी तालाबों का चिन्हकन हुआ , रकवा भी चिन्हित हुआ। फिर आगे की कार्यवाही ठंडी होनी ही थी ,क्योंकि मैं भी ठंडा हो गया था । 

करोड़ों रुपए लगाकर तालाब-विनाश 
      परिस्थितियों में बदला हुआ प्रशासन, तालाबों में रुचि नहीं ले रहा था। उसकी रुचि तालाबों के जरिए भ्रष्टाचार के अनुसंधान की थी , तालाब पर काम् तो हो किंतु ज्यादा से ज्यादा भ्रष्टाचार के अवसर तलासे जाएं ..,कम से कम मेरी रुचि इसमें नहीं थी।, इसलिए मैं तटस्थ रहा मोहनराम तालाब पर जरूर करीब 2-3 करोड रुपए आगे-पीछे खर्च हो गए । भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा केंद्र शायद यही तालाब बन गया ..? 
     आज करोड़ों रुपए लगाकर भी इस तालाब का तथाकथित सुंदरीकरण ,तालाब विनाश का कारण बना हुआ है। अगर अकेले इस तालाब पर अध्ययन करके प्रशासनिक अधिकारी इस तालाब की समस्या का निराकरण कर ले ; तो मेरी छोटी समझ से शहडोल के समस्त तालाबों के समस्या का निराकरण सुनिश्चित या कहना चाहिए की गारंटी है । किंतु यह बात कितनी दूर तक टिक पाती है क्योंकि भ्रष्टाचारी बहुत ताकतवर है.. उनकी पहुंच भी बहुत ऊपर तक है...

"तालाब है, तो हम हैं" 

   बहरहाल जब यह खबर सामने आई तो खुशी की एक किरण जागृत हुई कि चलिए 2009 के बाद कमिश्नर शहडोल श्री जे के जैन व कलेक्टर श्री ललित दाहिमा फिर से तालाबों की जीवन के संरक्षण के बारे में यह जानने का प्रयास किया कि  "तालाब है तो हम हैं"  और अगर तालाब होने हैं तो कैसे रहेंगे...? क्या उसका इनपुट रहेगा, क्या आउटपुट रहेगा...? अधिकारियों ने यह भी देखने का प्रयास किया कि जो काम हुए हैं यह फिजूलखर्ची भी हुए हैं इंजीनियर काम नहीं किए। हां 2009 मैं जब कमिश्नर साहब के साथ मीटिंग हुई तो उसमें जो महत्वपूर्ण क्रियान्वयन सदस्य थे वे शहडोल के सुहागपुर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, नगर पालिका अधिकारी शहडोल और जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री किंतु यह बैठक किसी लोककथा की तरह सरकारी रिकॉर्ड मैं कैद हो गई ।इसके परिणामों को अपने अपने तरीके से भ्रष्टाचार में बदलने के अवसर ढूंढे जाने लगे ।ईमानदारी से लक्ष्यों के लिए कोई काम नहीं हो पाया , इसलिए जो थोड़ा बहुत 10-12 तालाबों में काम हुआ भी तो वह दिखाने का विकास हुआ जिसका परिणाम है कि आज जब प्रशासनिक अधिकारी तालाबों को देखने निकले हैं तो उन्हें सिर्फ दुर्दशा और विवेक-हीनता का क्रियान्वयन ही नजर आया। यह बहुत खुशी की बात है कि  अधिकारी इस दिशा पर अपनी धारणा को स्पष्ट तौर पर व्यक्त कर पाए ।काश , आज भी शहडोल के तालाबों पर इमानदारी से काम हो..। जैसा कि तत्कालीन कमिश्नर अरुण तिवारी के कार्यकाल में प्रारंभ हुआ था। तभी शहडोल के पूरे तालाब सुरक्षित व संरक्षित हो पाएंगे।

शहडोल के तालाब लयबद्ध हो, पुनर्जीवित होंगे..

   किंतु सवाल यह है कि हम कितनी ईमानदारी से तालाब संरक्षण के प्रति ईमानदार हैं  , सिर्फ अतिक्रमण हटाना भय का आतंक खड़ा करना मकसद नहीं होना चाहिए बल्कि परिस्थितिकी के अनुरूप तालाब की संरक्षण, उसकी सुरक्षा की गारंटी, उस में रोजगार के अवसर सभी एक साथ जब खड़े होंगे तभी शहडोल के तालाब एक दूसरे से लयबद्ध होकर पुनर्जीवित होंगे। और क्योंकि यह सब प्रशासनिक अधिकारियों को ही करना है और अगर इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं तो ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें सद्बुद्धि प्रदान हो ताकि वह महान पुण्य का कार्यकर सकें अन्यथा अतिक्रमण कारी और अफसरशाही में गठजोड़ शहडोल को  तालाब विहीन कर देगा जो नगर के विकास के लिए श्राप होगा...?
और यही किसी भी व्यक्ति की शिक्षा दीक्षा संस्कार और योग्यता की परीक्षा भी होती है सार्वजनिक जीवन में सामाजिक सरोकार में वह कितना योगदान दे पाता है अथवा किसी ने कहा है पशुओं में और हम में अंतर कुछ नहीं है सिर्फ बौद्धिक ज्ञान व मानव होने का अच्छा भी है जब हम सर्वांगीण विकास का जल संरक्षण का सामाजिक सरोकार का दायित्व निर्वहन करते हैं तो हमारे प्रदूषण का समन भी होता है और लोकतंत्र का निर्वहन भी। क्या हम पुण्य कमा पाने में योग्य भी हैं... यह  अगर चुनौती है तो असर भी कि हम अपनी योग्यता का क्या प्रदर्शन कर पाए शुभकामनाएं

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