सोमवार, 11 मार्च 2019









----------------------त्रिलोकीनाथ   -------------------------------

15 साल की भारतीयजनतापार्टी की सत्ता में शायद ही किसी भी मुख्यमंत्री के हालांकि दो मुख्यमंत्री ही रहे, उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान इन दोनों के किसी भी सभा में इतनी भीड़ देखने को नहीं मिली, जितनी कमल नाथ के बाणगंगा आमसभा में थी| यह एक अलग बात हो सकता है की भीड़ प्रशासनिक थी या उसमें कुछ योगदान जिला कांग्रेस कमेटी का भी था..? किंतु उसे लोकप्रियता की उपस्थिति कांग्रेस के नेताओं को जनसभा में देखने को मिली उसके मुकाबले उसके पात्र नेताओं के रूप में एक भी नेता ने अपनी प्रस्तुति मंच से नहीं दी.. ,मंच भी व्यवस्थित वक्ताओं से नहीं भरा था| और नेताओं की तो बात ही निराली है....?
 हालांकि शिवकुमार नामदेव जैसे कुशल वक्ता को ही नहीं मिला वर्तमान विधायक और कांग्रेसअध्यक्ष ही बोल पाए किंतु इससे यह साबित नहीं होता कि कांग्रेस में अच्छे वक्ताओं का अभाव है..? यह जनमानस अभी भी अच्छे विचारों को और वक्ताओं को कांग्रेस में देखने की अपेक्षा करती है| यह दूसरी बात है कि वर्तमान कांग्रेश जो स्वयं आंतरिक-अराजकता, अब तो सत्ता का नशा भी चढ़ा है, ऐसी कांग्रेश में बौद्धिक-व्यक्तियों को कितना महत्व मिलता है..? अगर ऐसा है तो की जनमानस भारतीयजनतापार्टी की किन्ही मुद्दों के कारण उससे दूर होता दिखा, तो कहीं ना कहीं भाजपा के अंदर उसी प्रकार की अराजकता का कब्जा हो गया था, जो कांग्रेस के वर्तमान स्वरूप में विद्वान दिख रहा है..?

कांग्रेस की नीतियां भी पारदर्शी है, जनहित को उसकी भागीदारी के हिसाब से ज्यादा से ज्यादा हिस्सा भी दिया जा रहा है, बावजूद इसके कुछ तो है जिस कारण से भारी जनसमर्थन का बुनियादी पक्ष होने के बावजूद भी नेतृत्व या कहना चाहिए स्थानीय-संगठन के साथ वह कदमताल मिलाती ही नहीं दिखती.., बल्कि समन्वय का अभाव कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है| इससे बचने का सबसे बड़ा तरीका तो यह है कि शीर्ष नेतृत्व सत्ता में आने के बाद अपने सामाजिक-दायित्व को प्राथमिकता देते हुए समन्वय-पूर्ण सत्ता की राजनीति का काम करें| किंतु अभी भी प्रदेश के शासन पर अतिक्रमण अथवा कब्जा करने की सामंती सोच कांग्रेसी-जयचंदओं से भर देती है, ऐसे में अकेला पृथ्वीराज कहां तक संघर्ष का झंडा बुलंद करके रह पाएगा..? इस रूप में प्रदेश की वर्तमान राजनीति में अनुभवी व कद्दावर नेता कमलनाथ प्रदेश के मुखिया के हकदार थे और उन्हें इस कांग्रेस के परिवार को,बिखरी हुई कांग्रेश को ठीक करने कभी काम करना है| किंतु जब तक शतरंज की बिसात में जयचंद की कार्यप्रणाली स्पष्ट नहीं होती है तो कांग्रेस के लिए कितना आत्मघाती सिद्ध होगा यह वक्त बताएगा..?

 अब तो जिम्मेदारी लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ और बढ़ गई है, इसमें भी यदि वही सब कुछ होता रहा जो राज्य कांग्रेस कमेटी में कब्जा पाने के लिए राज्य के नेतृत्व में विधानसभा के दौरान दिखा तो इसका खामियाजा लोकसभा चुनावों में देखने को मिलेगा..| क्योंकि परिस्थितियां और मुद्दे अब राष्ट्रीयता के इर्द-गिर्द बिछा दी गई हैं, और अगर वोटर को राष्ट्रीयता और अन्य विषयों में निर्णय लेना पड़ा तो अभी फिलहाल इतनी गिरावट नहीं आई है, राष्ट्रीयता को दरकिनार करेगा|
 इसके बावजूद वोटर के समक्ष यह बड़ा मुद्दा है बाहरी आतंकवाद से ज्यादा भारतीय राजनीति में आंतरिक आतंकवाद और अराजकता का आतंकवाद  या कहना चाहिए लोकतांत्रिक प्रणाली कितना जरूरी है इसका निर्णय मतदाताओं के विचारमंथन का विषयसामग्री भी बन पाएगा, लोकसभा चुनाव के परिणामों में देखने को मिलेगा| हालांकि चुनावआयोग ने अपने निर्देशों में सेना और राष्ट्रीयता के दुरुपयोग को प्रतिबंधित करने का काम किया है ताकि लोकतांत्रिक मुद्दे चुनाव की विषयसामग्री बन सकें, बावजूद इसके  न्यायालय ने धार्मिक आस्था के मुद्दे अयोध्या-विवादित मंदिर-मस्जिद ढांचे में मध्यस्थता का निर्णय करके इस हवा-हवाइ मुद्दे को चुनावी मुद्दे की विषय-सामग्री से हटाने का प्रयास किया| किंतु जिस प्रकार से चुनाव आयोग ने सेना के दुरुपयोग पर ब्रेक लगाया है, उस प्रकार से उच्चतम न्यायालय ने इस विवादित मुद्दे पर ब्रेक लगाने का कोई निर्देश जारी नहीं किया है..?
 और इस तरह यह चुनाव के मुद्दे में कितनी जगह लूट पाएगा, यह भी चुनाव परिणामों में देखने को मिलेगा| बहरहाल लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार में भारतीय मतदाताओं को यह बड़ा अवसर है, की तमाम प्रयासों के बावजूद लोकसभा चुनाव टलता हुआ नहीं दिखा और यह बधाई का और शुभकामना का भी अवसर है.., चाहे भारत-पाकिस्तान के युद्ध के मैदान में छक्का किसी ने भी मारा हो... लेकिन शांति का यह वाल  भारत के लोकतंत्र के लिए वरदान साबित होगा.. आशा करनी चाहिए| और इस लोकतांत्रिक त्योहार में कर्तव्य पारायण होकर प्रत्येक मतदाता ज्यादा से ज्यादा संख्या में मतदान करने के लिए अपनी भूमिका निभाने हेतु मतदान स्थल तक ना सिर्फ जाय.., बल्कि लोगों को साथ लेकर उन्हें भी कर्तव्य निर्वहन हेतु प्रेरित करें. यही सब की कामना है, भारत का लोकतंत्र स्वस्थ और बेहतर हो|

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