मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019




 
एक श्मसानी खामोशी......

और भी हैं भारत रत्न के दावेदार...?

तोड़ती पत्थर, देखा मैंने उसे प्रयागराज (इलाहाबाद ) के पथ पर,

भारत रत्न की घोषणा के बाद भारत में एक श्मसानी खामोशी छाई रही जो रहकर 27 तारीख को प्रयागराज कुंभ मेले में जैसे फूट पड़ी. उनके अपने ही  बाबा रामदेव ने व्यवस्था पर तंज कसा, उन्होंने कहा या तो पुरस्कार न दो, दो तो ईसाई, मुसलमान और हिन्दू सभी को देना चाहिए। मैं मानता हूं कि स्वामी विवेकानंद और महर्षि दयानंद को पुरस्कार की जरूरत नहीं है लेकिन जब आप स्वीकार करते हैं कि यह पुरस्कार उनके लिए हैं जिनका देश में बहुत बड़ा योगदान है तो हिन्दु साधुओं को भी अवार्ड देना चाहिए। Hindustan Hindi News

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 _______________________________  ( त्रिलोकीनाथ  )____________________________________
योगगुरु के नाम से फेमस साधु रामदेव से लेकर कॉर्पोरेट बाबा की हैसियत में पहुंचने वाले भारत के शायद अकेले संत हैं . रामदेव मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी अभी देश के कालेलोगों का कालामन साफ कर रहे हैं। कालाधन अभी देश के एजेंडे में हैं लेकिन इससे पहले कालामन साफ करना बेहद जरूरी है। बिना कालामन साफ हुए कालेधन की वापसी का कोई फायदा नहीं होगा।
ऐसा भी नहीं है कि भारत रत्न देने की राजनीति पहली बार हुई हो किंतु इस बार राज की नीति से ज्यादा कूटनीति  ज्यादा दिखती है . 2019 के चुनावी मौसम में देश में सभी को भारत रत्न दिया जा रहा है। सामाजिक, राजनीतिक, खेल और कला के क्षेत्र में काम करने वालों को सम्मान मिला। मैं इसका सम्मान करता हूं। क्या आजतक किसी साधु ने इस दिशा में काम नहीं किया। अगर सभी को सम्मान मिलता है तो फिर साधुसमाज को क्यों नहीं..? संतों को सम्मान नहीं मिला यह तो समझ से परे हैं। मदरटेरेसा को भी भारत रत्न से नवाजा गया है। तो हिन्दू संत समाज को क्यों नहीं। क्या स्वामी विवेकानंद, क्या गुरुगोविंद सिंह इस योग्य नहीं थे। दूसरे धर्म के लोगों को अगर भारतरत्न से नवाजा जा रहा है तो फिर हिन्दूसाधु समाज को भी भारतरत्न से नवाजा जाना चाहिए। महर्षि दयानंद, दक्षिण में एक करोड़ बच्चों को शिक्षा देने वाले शिशुणकुमार स्वामी को भारतरत्न नहीं दिया। हिन्दू साधु को क्या डूब मरना चाहिए। सोचना चाहिए कि जिन्होंने  देश बनाया उसे देना चाहिए।
 रामदेव मानते हैं या तो पुरस्कार न दो, दो तो ईसाई, मुसलमान और हिन्दू सभी को देना चाहिए। मैं मानता हूं कि स्वामी विवेकानंद और महर्षि दयानंद को पुरस्कार की जरूरत नहीं है लेकिन जब आप स्वीकार करते हैं कि यह पुरस्कार उनके लिए हैं जिनका देश में बहुत बड़ा योगदान है तो हिन्दु साधुओं को भी अवार्ड देना चाहिए। Hindustan Hindi News

बाबा से तटस्थ होकर हमारे भी मन में आता है, की जो मान-सम्मान प्रणबमुखर्जी दा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यालय नागपुर में जाकर कहीं ना कहीं पैदा की थी, वह भारत-रत्न पाने के बाद जैसे ग्रहण के आगोश में चली गई. कोई शक नहीं की पूर्व राष्ट्रपति प्रणबमुखर्जी दा भारत-रत्न के हकदार हैं. बावजूद इसके या तो भारत-रत्न के हकदार हैं, अथवा आर एस एस मुख्यालय नागपुर में जाने के हकदार हैं...? दोनों एक साथ अगर होता है... तो सवाल तो खड़े होते ही हैं..?
बावजूद इसके कि कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने लिखा था मैं तोड़ती पत्थर, देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर, समय बदल गया है, इलाहाबाद से प्रयागराज हो गया है. प्रयागराज में बाबा रामदेव बहुत नाराज हैं, क्या भारत का हिंदू-संत पत्थर तोड़ता ही रह जाएगा . क्या सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से यह प्रश्न अभी भी प्रश्न करता रह जाएगा.. जैसा कि उन्होंने कहा था, अपने  अमरकीर्ति तोड़ती पत्थर में ,की.....


“....सामने तरू-मालिका अट्टालिका, प्राकार।...
...देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्‍नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से 

जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्‍यों कहा -
'
मैं तोड़ती पत्‍थर।
'

यह सहज है की तरु-मालिका अट्टालिका-प्राकार के पथ पर, बैठे तोड़ती-पत्थर के चरित्र नायक को राजपथ में घट रही घटनाओं को सिर्फ देखना चाहिए, ना प्रश्न करना चाहिए और ना ही उठाना चाहिए..? क्योंकि सिर्फ प्रणबमुखर्जी दा को भारतरत्न मिला होता, वह उदारवादी विचारधारा का शायद प्रचारक होता. किंतु चाहे बाबा रामदेव के प्रश्न या फिर अजीबो-गरीब राष्ट्रपति पद के चुनाव में चर्चित होने वाले फिल्म चरित्र अभिनेता अमिताभबच्चन की हैसियत हो, गंगाबचाओ अनशन में जीवन समाप्त कर देने वाले स्वर्गीय प्रोफेसर जीडी अग्रवाल हूं हो या फिर अन्ना हजारे. इनको अनदेखा करना, बल्कि नानाजी अथवा भूपेनहजारीका को लगे हाथ भारतरत्न से नवाजा जाना, अन्य पात्र लोगों को दोयम दर्जे का व्यक्ति बना देता है. यह एक अलग बात है कि इससे भारतरत्न का महत्व कितना प्रभावित होता है अथवा भारतरत्न की चमक के सामने व्यक्तित्व कितने फीके हो जाते हैं..? जो कि उनकी रोशनी में चमकदार होने चाहिए.
इसलिए भी जैसा भी हो प्रयागराज के कुंभ से बाबारामदेव की बात दमदार लगती है. बल्कि भारतरत्न को गंगा में नहाने का अवसर भी पैदा करती है. जो लोग अट्टालिका-प्रकार राजपथ में विराजमान हैं, उन्हें भारतरत्न की चमक फीकी करने का अधिकार क्यों प्राप्त होना चाहिए..? अगर भारत-रत्न को इतना ही गुमान है  की उसकि चमक में हरप्रकार के लोगों को चमकने य चमकाने अथवा ब्रांडिंग करने का अवसर मिल जाएगा तो यह भी एक धोखा ही होगा.. वैसे इस प्रकार से दिए गए सम्मान का पूर्ण आदर करते हुए इतना ही कहा जाना उचित होगा की
या देवी सर्व भूतेषु भ्रांति रूपेण  संस्थिता, 
नमस्त्यैय ,नमस्त्यैय  नमस्त्यैय  नमो नमः
और यही तोड़ती पत्थर का शायद सारांश भी है.

प्रणव : कहीं ज्यादा मुझे महान देश  से मिला है।
भारत रत्न की घोषणा के बाद पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने  कहा, 'देश के लोगों के प्रति विनम्रता और कृतज्ञता की भावना के साथ मैं इस महान सम्मान को स्वीकार करता हूं। मैं हमेशा कहता हूं और मैं दोहराता हूं कि मैंने जितना दिया है उससे कहीं ज्यादा मुझे मेरे महान देश के लोगों से मिला है।
 जनसंघ से जुड़े थे नानाजी 
संघ से जुड़े नानाजी देशमुख पूर्व में भारतीय जनसंघ से जुड़े थे। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद उन्होंने मंत्री पद स्वीकार नहीं किया और जीवनभर दीनदयाल शोध संस्थान के अंतर्गत चलने वाले विविध प्रकल्पों के विस्तार के लिए कार्य करते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया था। वाजपेयी के कार्यकाल में ही भारत सरकार ने उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वालंबन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिए पद्म विभूषण भी प्रदान किया। 

भूपेन हजारिका पूर्वोत्तर राज्य असम से ताल्लुक रखते थे। अपनी मूल भाषा असमिया के अलावा भूपेन हजारिका ने हिंदी, बंगला समेत कई अन्य भारतीय भाषाओं में गाने गाए। उन्होंने फिल्म 'गांधी टू हिटलर' में महात्मा गांधी का पसंदीदा भजन 'वैष्णव जन' गाया था। उन्हें पद्मभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। 8 सितंबर 1926 में भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम के सदिया में जन्मे हजारिका ने अपना पहला गाना 10 साल की उम्र में गाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर तीनों हस्तियों को भारत रत्न दिए जाने पर खुशी जाहिर की है।


वर्ष 2011 से पहले, यह पुरस्कार केवल विज्ञान, कला, साहित्य और सार्वजनिक सेवाओं के क्षेत्र में उपलब्धियाँ प्राप्त लोगों को ही दिया जाता था। हालांकि, दिसंबर 2011 में, पुरस्कारों के मानदंडों के विस्तार में मानव प्रयास के सभी क्षेत्रोंकी उपलब्धियों को भी शामिल किया गया था। हर साल, अधिकतम तीन लोग ही भारत रत्न पुरस्कार पाने के हकदार होते हैं। भारत रत्न पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है; हालांकि, भारत रत्न पुरस्कार किसे प्रदान करना है, इसकी सिफारिश प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। पिछले कुछ वर्षों में राजनीति, व्यवसाय, खेल, संगीत, आदि क्षेत्रों में कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों को भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। नीचे हम भारत रत्न पुरस्कार विजेताओं की एक सूची पेश करते हैं।


सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वह वर्ष 1952 से वर्ष 1962 तक भारत के उपराष्ट्रपति भी रहे। वर्ष 1962 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया गया था। भारत में सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।राधाकृष्णन तुलनात्मक धर्म और दर्शन के सबसे प्रतिष्ठित विद्वानों में से एक थे। राधाकृष्णन ने मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के पद पर कार्य किया था, कलकत्ता विश्वविद्यालय के किंग जॉर्ज पंचम चेयर में मानसिक और नैतिक विज्ञान तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के स्पैल्डिंग में पूर्वी धर्म और नैतिकता के प्रोफेसर पद पर कार्य किया। सर्वपल्ली राधाकृष्णन हिंदू धर्म की समझ को एक आकार प्रदान करने में प्रभावशाली रहे थे।














































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