
सोचो.. सोचो,
कुछ तो सोचो....
हईया.. हईया, भैया...भैया..???
शहडोल .2019 की शुरुआत में शहडोल में युवा कांग्रेस के जागरूकता के गुण देखे गए, उन्होंने अपने मुख्यमंत्री कमलनाथ की घोषणा के अनुरूप शहडोल के मात्र रिलायंस सीबीएम प्रोजेक्ट में 70% रोजगार स्थानीय लोगों को देने की मांग की है. यह अलग बात है किन के स्थानीय लोगों में मध्य प्रदेश के लोग कम और शहडोल क्षेत्र के लोग लोगों को रोजगार देने की अपेक्षा की गई है. शहडोल में जो भी विकास हुआ वह समवर्ती विकास, तत्कालीन नेतृत्व में ईमानदारी के कारण था.
यह मानकर आदिवासी संभाग शहडोल को चलना चाहिए
जैसे दिग्विजय सिंह ने अपने स्वार्थ के लिए शहडोल को 3 जिलों में तोड़ दिया तो
शिवराज सिंह ने अपने स्वार्थ के लिए शहडोल मुख्यालय को संभागीय मुख्यालय बना दिया. जहां मात्र कुछ ब्यूरोक्रेट्स से काम
चलता था वहां भारी संख्या में ब्यूरोक्रेट्स को रोजगार पैदा कर दिया गया और
स्थानीय आमजन याने आदिवासी प्रकृति के नागरिक गण बेरोजगार होते चले गए. और इसकी समीक्षा करने के लिए जो बचे-कुचे बौद्धिक नेता थे, उनकी जगह “माफिया-नुमा”
नेताओं ने कब्जा कर लिया.
क्योंकि कुछ अनारक्षित राजनैतिक विधायक के अवसर थे वह भी आरक्षित होकर रह गए. कोतमा विधानसभा अनारक्षित बना कर रखा गया. इससे राजनैतिक तबका ने आरक्षित वर्ग
के विधायक का प्रतिनिधि के अंडर में स्वयं को स्वघोषित गुलाम के रूप में स्वीकार
करना इसलिए मजबूरी माना क्यों
कि ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना लूटपाट करके गुलामी बौद्धिक वर्ग की आवश्यकता बन गई.
कि ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना लूटपाट करके गुलामी बौद्धिक वर्ग की आवश्यकता बन गई.
नतीजतन
प्राकृतिक संसाधनों से भरा शहडोल संभाग ना तो छत्तीसगढ़ ना ही महाकौशल किंतु विंध्य का हिस्सा होने के कारण ,मध्यप्रदेश के नेताओं ने शहडोल को
चारागाह से ज्यादा महत्व नहीं दिया,
अपनी हालत में उसे छोड़ दिया.
जहां उद्योगपति और माफिया मिलकर शोषण के अवसर तलाशने लगे. और यही कारण है शहडोल में अनियंत्रित, असीमित-प्राकृतिकसंसाधन व रोजगार के अवसर होने के बावजूद भी शहडोल क्षेत्र
में बेगारी,बेरोजगारी,शोषण यहां की नियत बन गई. जो लोग रोजगार संबंधी जागरूकता के बातें करते भी हैं वे सर्वांगीण
विकास की बात नहीं बल्कि व्यक्तिगत धंधे का अवसर खोजते या तो ब्लैक मेलिंग कर रहे
होते हैं. अथवा किसी
राजनैतिक माफिया के गुलामों की पैरोंकारी करते दिखाई देते हैं. चाहे वह भारतीयजनतापार्टी; जिसमें कभी कोई सोच
ही नहीं थी अथवा कांग्रेस के नव उत्साही लोगों की बात हो, वह दमखम उनकी आदिवासी
प्रकृति के साथ नेतृत्व के अभाव में कमजोर खड़ी दिखाई देती है.
जब तक लोकतंत्र में जनमानस जागरूक नहीं होगा, खासतौर से शहडोल जैसे आदिवासी क्षेत्र
में आदिवासियों में जागरूकता व शेष समाज, बौद्धिक समाज से तालमेल करती हुई दिखाई नहीं देगी शोषणकारी व्यवस्था
सत्ता बदलने को की परवाह किए बिना आदतन अपनी गैर जिम्मेदारी का निर्माण करती रहेगी.



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