गुरुवार, 3 जनवरी 2019

सोचो.. सोचो, कुछ तो सोचो.... हईया.. हईया, भैया...भैया..???






सोचो.. सोचो, कुछ तो सोचो....
हईया.. हईया, भैया...भैया..???



 शहडोल .2019 की शुरुआत में शहडोल में युवा कांग्रेस के  जागरूकता के गुण देखे गए, उन्होंने अपने मुख्यमंत्री कमलनाथ की घोषणा के अनुरूप शहडोल के मात्र रिलायंस सीबीएम प्रोजेक्ट में 70% रोजगार स्थानीय लोगों को देने की मांग की है. यह अलग बात है किन के स्थानीय लोगों में मध्य प्रदेश के लोग कम और शहडोल क्षेत्र के लोग लोगों को रोजगार देने की अपेक्षा की गई है. शहडोल में जो भी विकास हुआ वह समवर्ती विकास, तत्कालीन नेतृत्व में ईमानदारी के कारण था.
 तब बाबूलाल गौर वाणिज्य मंत्री बनकर शहडोल जिले में औद्योगिक क्षेत्र के एक कार्यक्रम में आए थे मुख्यमंत्री कुछ कार्यकाल के लिए बन चुके थे. अपने भाषण में उन्होंने कहा कि शहडोल में लगने वाला रिलायंस सीबीएम प्रोजेक्ट में 90% स्थानीय लोगों को रोजगार सुनिश्चित तौर पर दिया जाएगा. जो 15 साल की भारतीय जनता पार्टी के शासन में सिर्फ जुमला साबित हुआ. तब भारतीयजनतापार्टी यह भी आश्वासन दिया था शहडोल को इंडस्ट्रियल-हब के रूप में विकसित किया जाएगा...? यह भी जुमला साबित हो गया.
यह मानकर आदिवासी संभाग शहडोल को चलना चाहिए जैसे दिग्विजय सिंह ने अपने स्वार्थ के लिए शहडोल को 3 जिलों में तोड़ दिया तो शिवराज सिंह ने अपने स्वार्थ के लिए शहडोल मुख्यालय को संभागीय मुख्यालय बना दिया. जहां मात्र कुछ ब्यूरोक्रेट्स से काम चलता था वहां भारी संख्या में ब्यूरोक्रेट्स को रोजगार पैदा कर दिया गया और स्थानीय आमजन याने आदिवासी प्रकृति के नागरिक गण बेरोजगार होते चले गए. और इसकी समीक्षा करने के लिए जो बचे-कुचे बौद्धिक नेता थे, उनकी जगह माफिया-नुमा नेताओं ने कब्जा कर लिया. क्योंकि कुछ अनारक्षित राजनैतिक विधायक के अवसर थे वह भी आरक्षित होकर रह गए.  कोतमा विधानसभा अनारक्षित बना कर रखा गया. इससे राजनैतिक तबका ने आरक्षित वर्ग के विधायक का प्रतिनिधि के अंडर में स्वयं को स्वघोषित गुलाम के रूप में स्वीकार करना इसलिए मजबूरी माना क्यों
कि ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना लूटपाट करके गुलामी बौद्धिक वर्ग की आवश्यकता बन गई.

 नतीजतन प्राकृतिक संसाधनों से भरा शहडोल संभाग ना तो छत्तीसगढ़ ना ही महाकौशल किंतु विंध्य का हिस्सा होने के कारण ,मध्यप्रदेश के नेताओं ने शहडोल को चारागाह से ज्यादा महत्व नहीं दिया, अपनी हालत में उसे छोड़ दिया. जहां उद्योगपति और माफिया मिलकर शोषण के अवसर तलाशने लगे. और यही कारण है शहडोल में अनियंत्रित, असीमित-प्राकृतिकसंसाधन व रोजगार के अवसर होने के बावजूद भी शहडोल क्षेत्र में बेगारी,बेरोजगारी,शोषण यहां की नियत बन गई. जो लोग रोजगार संबंधी जागरूकता के बातें करते भी हैं वे सर्वांगीण विकास की बात नहीं बल्कि व्यक्तिगत धंधे का अवसर खोजते या तो ब्लैक मेलिंग कर रहे होते हैं. अथवा किसी राजनैतिक माफिया के गुलामों की पैरोंकारी करते दिखाई देते हैं.  चाहे वह भारतीयजनतापार्टी; जिसमें कभी कोई सोच ही नहीं थी अथवा कांग्रेस के नव उत्साही लोगों की बात हो, वह दमखम उनकी आदिवासी प्रकृति के साथ नेतृत्व के अभाव में कमजोर खड़ी दिखाई देती है.


जब तक लोकतंत्र में जनमानस जागरूक नहीं होगा, खासतौर से शहडोल जैसे आदिवासी क्षेत्र में आदिवासियों में जागरूकता व शेष समाज, बौद्धिक समाज से तालमेल करती हुई दिखाई नहीं देगी शोषणकारी व्यवस्था सत्ता बदलने को की परवाह किए बिना आदतन अपनी गैर जिम्मेदारी का निर्माण करती रहेगी.
राजनीति में आपराधिक-मानसिकता 70% रोजगार स्थानीय लोगों और जाति का ध्रुवीकरण ने राजनीति को अपना शिकार बनाना चालू किया, उसका कुप्रभाव आदिवासी अंचलों में खासतौर से आरक्षित वर्ग की विधायिका-प्रतिनिधि पर ज्यादा पढ़ा.अन्यथा यह कैसे संभव है कि शहडोल में निकलने वाला कोयला शहडोल के स्थानीय रोजगार विकास में आमजन के साथ खड़ा हुआ दिखाई नहीं देता...? शहडोल का जंगल और खनिज, गैस और विद्युत होने के बावजूद भी स्थानीय आमजन को उसकी वही कीमत चुकानी होती 
है यह मुंबई, दिल्ली में बैठे हुए किसी सर्व सुविधा युक्त नागरिक को चुकानी पड़ती है...? बावजूद इसके शहडोल के गैस और विद्युत से भोपाल की विधायिका हो यह दिल्ली का संसद भवन सस्ते दरों पर विधायकों को और सांसदों को खाना तो खिला सकता है किंतु शहडोल के नागरिकों को रोजगार की वजए वह शोषण व कालाबाजारी का बाजार विकसित करता है..? स्वाभाविक रूप से विकसित होते शहडोल में युवाओं को अपने नए नजरिए के साथ विशेषकर महाविद्यालयों और विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के साथ समन्वय कर शहडोल की प्राकृतिक संसाधनों के साथ किस प्रकार से रोजगार परक अवसरों का उपयोग हो इस पर काम करना चाहिए. अमरकंटक विश्वविद्यालय हो अथवा शंभूनाथ विश्वविद्यालय शहडोल या फिर इंजीनियर कॉलेज शहडोल अथवा मेडिकल कॉलेज शहडोल में भी आपस में सेमिनार कर संभावनाओं के अवसर के लिए सहज खोज करना चाहिए, फिलहाल जो होता दिखाई नहीं देता..?
यदि ऐसा नहीं होता है इन विद्यालयों से निकलने वाले छात्र-छात्राएं भी सिर्फ लकीर के फकीर की तरह ज्ञापन और ब्लैक मेलिंग तक सीमित रह जाएंगे, जैसा कि अभी तक होता चला आया है बजाय इसके के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अलग-अलग कॉलेजों में अथवा एनएसयूआई अपने गिरोह पैदा करें बल्कि और यह गिरोह बड़े होकर किसी कांग्रेसी भाजपा के लिए एक पके-पकाए गुलाम की तरह भीड़ पैदा करें..., सबको समन्वित रूप से शहडोल क्षेत्र की, जो छत्तीसगढ़, महाकौशल और विंध्य का संगम है. इसे इसी रूप में देखना और विकसित करना तथा प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा का भार उठाना सीखना होगा और यही सहज विकास क्रम होगा.....

******************( त्रिलोकीनाथ )************************

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