शहडोलकांग्रेस का सपनों का सौदागर
------------------------------------------------------------( Triloki Nath )..- कांग्रेस कमेटी के हालात कुछ इसी प्रकार के हैं, एक तो 15 साल से लकवा ग्रस्त कांग्रेसकमेटी ने अपने उत्थान के लिए कोई प्रयोग नहीं किया, दूसरा जब लगा कि लोकतंत्र की हवा बदल रही है तो संगठन में छीना-झपटी के लिए जबरदस्त प्रयोग हुए. फिर ऊपर से जब संगठन मैं फंड का फंडा चला तो पार्टी के लोग शहडोल में अपनी गरीबी के फंड को सांगठनिक मजबूती और चुनावी उपयोग की बजाय चुनावकोष में खींचातानी कर पैसे पर कब्जा करने का काम ज्यादा किया, बूथ लेवल पर कार्यकर्ता भगवान भरोसे छोड़ दिए गए..? इन सब कांग्रेस की कमजोरी का अनुशासनिक संगठन कही जाने वाली भारतीयजनतापार्टी ने का जमकर फायदा उठाया और बावजूद इसके की जनता सत्ताविरोधी मतदान के लिए उत्सुक रही हो, उसे मतदान स्थल तक पहुंचाकर अपनी बात पहुंचाने में शहडोल कांग्रेस पूरी तरह से असफल रही.वर्तमान में शहडोल के 1-2 गुट नहीं अलग अलग कई गुट हैं, किसी ने कमलनाथ का तो किसी ने अरुण यादव का तो कोई खुद को सिंधिया का और बचे कुचे लोग दिग्विजय सिंह, राहुल सिंह में समर्पण भाव से दिखना चाहते हैं. बजाय इसके कि वे कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ता है.
बहरहाल यह मामला दिल्ली तक छाया रहा क्योंकि
इसमें एक कलेक्टर व डिप्टी कलेक्टर के तथाकथित संलग्न होने की चर्चा रही. बात दूर तलक जाती है तो इस राजनीतिक-इवेंट का
मैनेजमेंट प्रदेश कांग्रेस को करना था, ताकि वह अपने
राजनीतिक विरोधी भाजपा के शिवराज सिंह याने मा
मा के “मामू-गिरी” को वह आगामी लोकसभा चुनाव तक बना लेती भुना लेती.., किंतु जैसे राजस्थान में किसी निधन हो जाने पर रोने वाले किराए से बुलाए जाते हैं कुछ उसी तर्ज पर इस घटना पर अपनी हार का ठीकरा फोड़ते हुए रोने के लिए कोई जिलाकांग्रेस भवन का तो कोई पांडव नगर का उपयोग कर अपने नेता के प्रति निष्ठा दिखाने का काम किया, जो ठीक नहीं हुआ है..?
न की पैराशूट-नेताओं के माध्यम से शेष बचे-कुचे शहडोल में लूटपाट
के लिए स्वयं को परिभाषित करना चाहिए. और यही आदिवासी
क्षेत्र में लोकतंत्र की स्थापना का सही तकाजा होगा. बाकी कांग्रेसी
बहुत बुद्धिमान हैं, इसमें कोई शक नहीं है. निश्चय ही वह रास्ता निकाल लेंगे. किंतु कल जो हुआ, वैसा कभी ना हो यह अपेक्षा भी बनी रहेगी. निश्चय ही वह रास्ता निकाल लेंगे. किंतु कल जो हुआ, वैसा कभी ना हो यह अपेक्षा भी बनी रहेगी.
'कलेक्टर व डिप्टी कलेक्टर की चैटिंग"
वैसे तो जनसत्ता में मध्यप्रदेश के ही
कम समाचार आते हैं ,आज शहडोल का चर्चित
'कलेक्टर व डिप्टी कलेक्टर की चैटिंग" क भी कवरेज हुआ है.हालांकि यह एक बासी-समाचार हैं. अगर डिप्टी कलेक्टर पूजा तिवारी स्वयं सतर्क होकर थाना कोतवाली शहडोल में इसकी f.i.r. न कराती तो शायद शहडोल की पत्रकारिता को यह समाचार ना मिलता.
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------------------------------------------------------------( Triloki Nath )..- कांग्रेस कमेटी के हालात कुछ इसी प्रकार के हैं, एक तो 15 साल से लकवा ग्रस्त कांग्रेसकमेटी ने अपने उत्थान के लिए कोई प्रयोग नहीं किया, दूसरा जब लगा कि लोकतंत्र की हवा बदल रही है तो संगठन में छीना-झपटी के लिए जबरदस्त प्रयोग हुए. फिर ऊपर से जब संगठन मैं फंड का फंडा चला तो पार्टी के लोग शहडोल में अपनी गरीबी के फंड को सांगठनिक मजबूती और चुनावी उपयोग की बजाय चुनावकोष में खींचातानी कर पैसे पर कब्जा करने का काम ज्यादा किया, बूथ लेवल पर कार्यकर्ता भगवान भरोसे छोड़ दिए गए..? इन सब कांग्रेस की कमजोरी का अनुशासनिक संगठन कही जाने वाली भारतीयजनतापार्टी ने का जमकर फायदा उठाया और बावजूद इसके की जनता सत्ताविरोधी मतदान के लिए उत्सुक रही हो, उसे मतदान स्थल तक पहुंचाकर अपनी बात पहुंचाने में शहडोल कांग्रेस पूरी तरह से असफल रही.वर्तमान में शहडोल के 1-2 गुट नहीं अलग अलग कई गुट हैं, किसी ने कमलनाथ का तो किसी ने अरुण यादव का तो कोई खुद को सिंधिया का और बचे कुचे लोग दिग्विजय सिंह, राहुल सिंह में समर्पण भाव से दिखना चाहते हैं. बजाय इसके कि वे कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ता है.
कभी प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व का
सपना देखने वाले शहडोल के कांग्रेस नेता स्वर्गीय दलवीर सिंह के गुट के लोगों को
चुपचाप बदली परिस्थितियों में स्वयं को तलाशना पड़ रहा है..? बजाय इसके कि कांग्रेसभवन में एकत्र होकर कांग्रेसी-परिवार का हिस्सा बनकर शासन चलाने का काम करें और लोकतंत्र को मजबूती कैसे
मिले इस पर सोचे...? उनकी आपसी खींचातानी शहडोल कांग्रेसकमेटी
को सपनों का सौदागर बनाकर रख दिया है. नतीजतन जैसे ही कोई
फंड आता है तो लूटपाट चालू हो जाती है, इसी प्रकार जब कोई
इवेंट आता है तो उसमें भी खींचातानी दिखने लगती है.
वही खींचातानी कलेक्टर व डिप्टी कलेक्टर की चैटिंग
मामले में “जब जागे-तभी सवेरा” के अंदाज पर शुक्रवार को देखने को मिला. हालांकि इसमें दिग्विजय सिंह और राहुल सिंह के
ही गुट के लोग थे अन्य गुट वाले या तो इवेंट को समझ नहीं पाए या फिर इवेंट का यह
फंड उनकी पकड़ के बाहर था..? जबकि पत्रकारिता ने इसे थाली
सजाकर बाटा जरूर था.
“भल मारे, मोही रोय़ें का रहा...”

मा के “मामू-गिरी” को वह आगामी लोकसभा चुनाव तक बना लेती भुना लेती.., किंतु जैसे राजस्थान में किसी निधन हो जाने पर रोने वाले किराए से बुलाए जाते हैं कुछ उसी तर्ज पर इस घटना पर अपनी हार का ठीकरा फोड़ते हुए रोने के लिए कोई जिलाकांग्रेस भवन का तो कोई पांडव नगर का उपयोग कर अपने नेता के प्रति निष्ठा दिखाने का काम किया, जो ठीक नहीं हुआ है..?
एक तो प्रशासनिक अधिकारियों से इस स्तर की
अपेक्षा नहीं की जा सकती, किंतु अगर यह सच है तो शहडोल में
लोकतंत्र के निधन पर रोने का मामला नहीं है, बल्कि कांग्रेस
की आत्महत्या मैं रोने जैसा मामला है. कि वह अपने गुटबंदी
में पड़ी रही और लोकतंत्र मर गया..? अभी भी वक्त गुजरा नहीं
है कांग्रेश को फिर से नहा धोकर कांग्रेश भवन के अंदर एक साथ बैठकर भोजन करना
चाहिए और पुनर्विचार करना चाहिए. कि जब उन्होंने जिले को
बर्बाद करके छोड़ा था तब वह जिला था, अब धोखे से ही सही, शहडोल संभाग हो गया है. तो उसे अपने संभागीस्तर
मुख्यालय की गरिमा के अनुरूप कैसे व्यवहार करना है. इसकी भी
ट्रेनिंग लेनी चाहिए और महात्मा गांधी के विचारों में लोकतंत्र में अंतिम-पंक्ति के अंतिम-व्यक्ति की अभिव्यक्ति कैसे बने...? इसके पहले वह अपनी ही पार्टी संगठन के लोगों की अंतिम पंक्ति के अंतिम
व्यक्ति की अभिव्यक्ति बनने से शुरुआत करनी चाहिए.

चना चूर
गरम.. बाबू., मै लाया मजेदार... चना चूर गरम..

'कलेक्टर व डिप्टी कलेक्टर की चैटिंग" क भी कवरेज हुआ है.हालांकि यह एक बासी-समाचार हैं. अगर डिप्टी कलेक्टर पूजा तिवारी स्वयं सतर्क होकर थाना कोतवाली शहडोल में इसकी f.i.r. न कराती तो शायद शहडोल की पत्रकारिता को यह समाचार ना मिलता.
किंतु 3 दिन बाद
ही सही पत्रकारिता के माध्यम से कांग्रेस पार्टी शहडोल को मैं जो जागरूकता देखी गई
है वह भी इस चैटिंग से ज्यादा बढ़ा समाचार था. कुछ ही घंटे के अंदर में कांग्रेस
पार्टी के दो गुटों में अलग-अलग पत्रकार वार्ता हुई, एक जिला कांग्रेस के भवन में तो दूसरी
पांडव नगर में ..? वे चाहते तो एक पत्रकार वार्ता में ही
अपनी लंबे समय से असफलता के दुख को पत्रकार वार्ता में व्यक्त कर देते हैं. लगता
है शहडोल कांग्रेस कमेटी के लोग अपने चुनाव हारने के दुख को मैं स्वयं को यह नहीं
समझा पा रहे हैं.. ,कि वह सत्ता में हैं. और शासन उनको
चलाना है.
शासन और पुलिस प्रशासन में अगर यह बात
किसी डिप्टी कलेक्टर ने दर्ज करा दी है तो सफलता इस बात पर है कि तत्काल पुलिस
प्रशासन पर दबाव बनाकर "दूध का दूध और पानी का पानी" करा दिया जाए बजाय
इसके कि 3 दिन बाद बासी-प्रकरण पर पत्रकार
वार्ताएं आयोजित कर शासन और प्रशासन को "कौवा कान ले गया..." इस अंदाज
पर "प्रोपेगंडा" किया जाए.
हालांकि प्रोपेगंडा भी लोकतंत्र में
स्वयं को चमकाने के लिए एक हथियार है, किंतु जहां लोकतंत्र का अस्तित्व दांव
में लगा हो तो कांग्रेस कमेटी को हल्के पन से प्रशासनिक संवेदना को नहीं लेना
चाहिए..
दरअसल यह बात कुछ ऐसी ही है की या तो
कांग्रेस कमेटी शहडोल के नेता स्थिति की गंभीरता को नहीं समझ पा रहे हैं अथवा वे
अपनी अपनी छोटी छोटी चाहत में इस गंभीर प्रकरण का प्रोपेगंडा खड़ा कर रहे हैं.
बेहतर होता दोनों गुट पत्रकार वार्ता करने की बजाय पुलिस और प्रशासन पर मिलकर यह
दबाव बनाते कि इसमें तत्काल कार्यवाही करते हुए दोषी को पकड़ लिया जाए. ताकि वह
निकल कर भागने ना पाए, फिर चाहे दोषी उसका अपना ही क्यों ना
हो, अगर है
तो. जैसा कि भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाशतिवारी का बयान जिम्मेदारी पूर्ण तरीके से
आया है.तिवारी ने कलेक्टर मैडम एंड डिप्टी कलेक्टर के बीच हुई व्हाट्सएप मैसेज के
बिना प्रमाणिक हुए वायरल की निंदा की है. और उन्होंने इसके लिए दोषी जनों के खिलाफ
सख्त कार्यवाही की मांग की तथा कहा कि समाज के लिए ऐसे तत्व घातक हैं समाज के
भाईचारा शांति के दुश्मन हैं शहडोल इससे अछूता था लेकिन अब ऐसे लोग यहां भी आ गए
हैं समाज विरोधी लोगों पर रोक जरूरी है
किंतु लगता है कि अभी भी शहडोल के
कांग्रेसी स्वयं को समझा नहीं पा रहे हैं कि मध्य प्रदेश में वे शासन पर हैं और
उन्हें हर छोटी और बड़ी लोकतांत्रिक दुर्घटनाओं को संवेदना के साथ सफलता के अंजाम
में पहुंचाना चाहिए
रही शहडोल के पत्रकारिता की बात, ताजा समाचार सामने लाने में वह बधाई का पात्र है. किंतु जो पत्रकार वार्ता हुई उसके बाद पत्रकारिता को कहा जा सकता है कि चना चूर गरम.. बाबू., मै लाया मजेदार... चना चूर गरम
रही शहडोल के पत्रकारिता की बात, ताजा समाचार सामने लाने में वह बधाई का पात्र है. किंतु जो पत्रकार वार्ता हुई उसके बाद पत्रकारिता को कहा जा सकता है कि चना चूर गरम.. बाबू., मै लाया मजेदार... चना चूर गरम
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