मंगलवार, 25 दिसंबर 2018


        कमलनाथ का मंत्रीमंडल

  कांग्रेस में कीचड़ से कमल खिलाने का प्रयास  
                                             (त्रिलोकीनाथ)
 कमलनाथ का कमल सभी अवधारणाओं को ध्वस्त करते हुए कमलनाथ ने कांग्रेस के तालाब में कीचड़ से कमल खिलाने का प्रयास किया. कमलनाथ का मंत्रीमंडल कुछ इसी प्रकार का है.  हालांकि जातिगत व सामाजिक तुष्टीकरण से हटकर बना मंत्रिमंडल में लगभग सभी वर्ग के लोकतांत्रिक मंत्रिमंडल को बनाने का प्रयास किया गया है बावजूद इसके स्वयं को कमलनाथ गुटबंदी की कीचड़ स्वयं को मुक्त दिखाने का युद्ध जीता है. 114 कांग्रेस विधायकों वाली मध्यप्रदेश सरकार मैं 28 लोगों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है तो बाकी बचे  86 विधायकों को प्रसन्न रखना कमजोर काम नहीं है. क्योंकि संख्या-बल कांग्रेश के पास इतना भी नहीं है कि वे हर किसी विधायक को नजरअंदाज कर सकें. एक-एक विधायक को तवज्जो देना कमल नाथ की आवश्यकता भी है और मजबूरी भी. यह बात वरिष्ठ नेता होने के कारण साथ ही इंदिरा-राजीव के राजनीतिक अनुभव के साझीदार रहे कमलनाथ के लिए यह बड़ी बात नहीं थी. मध्यप्रदेश सरकार को कांग्रेस का सर्कस मानकर चलना चाहिए. विधायिका में इस सर्कस में पिंजड़े का शेर, पिंजड़े में भी नहीं है ऊपर से वह दहाड़ भी रहा है कि टाइगर अभी जिंदा है यह अलग बात है की कमलनाथ की सरकार बनने के बाद स्वयं को सबसे विश्वस्त व्यक्ति बताने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जो काम गत 15 वर्षों में नहीं किए, वह काम मंत्रिमंडल गठन के पूर्व लगभग कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के तत्काल बाद पूरी निष्ठा के साथ करते दिखाई दिए. वे स्वयं जिंदा-टाइगर के पास पहुंच गए और अपने पुत्र के साथ शिवराज सिंह के पैर पढ़ते हुए न सिर्फ यादगार तस्वीरें खिंचवाई बल्कि उन्हें सोशल मीडिया में वायरल भी कराया. दरअसल यह वायरल एक प्रकार का उद्घोष था की टाइगर अभी जिंदा है और यह टाइगर शिवराज सिंह नहीं था. बल्कि वह टाईगर था जो शिवराज सिंह को चुनौती देता नजर आया की टाइगर के दांत और नाखून नहीं है”.

 तो कांग्रेस सरकार की सर्कस में दो टाइगर एक दांत और नाखून वाला तथा दूसरा सिर्फ जिंदा-टाइगर इन दोनों को टाइगर को कांग्रेस के सर्कस में संभालने का काम कमलनाथ के लिए 2019 से ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि कौन सा टाइगर कब जीवित हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता.  ये जंगल के वे टाइगर नहीं है जिनका  अलग-अलग जंगल होता है, इन दोनों का जंगल एक ही है और यह दोनों मिलकर कभी भी विधायिका पर हमला कर सकते हैं और एक नया सर्कस दिखा सकते हैं. यही चुनौती, दिग्विजय के अपने पुत्र के द्वारा शिवराज सिंह का पैर-पड़ाते हुए वायरल कराई गई तस्वीर का संदेश भी है. कमलनाथ इस संदेश को भली-भांति समझते भी हैं. बावजूद इसके मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल में विंध्यप्रदेश के किसी भी टाइगर को टाइगर नहीं माना गया. चाहे वह अजय सिंह हो राजेंद्सिंह या फिर या फिर आदिवासी नेता बिसाहूलाल सिंह. यह सब दिग्गी राजा कोटे में घायल विधायकों की तरह फड़फड़ा गए. बिसाहूलाल सिंह तो अपने लावलश्कर लेकर कांग्रेस-सर्कस के सामने हो हल्ला भी मचाते रहे. कमलनाथ के तालाब की लहरों को दब गया अन्यथा एक तिहाई आदिवासी क्षेत्र वाले मध्यप्रदेश में आदिवासी मंत्रियों की संख्या चार न रह जाती..?
        बहराल शहडोल में मानस भवन मैं उस वक्त सुशासन दिवस {(अटल बिहारी वाजपेई की जन्म दिवस) में पहुंचे शिवराज सिंह ने पुनः दहाड़ लगाई टाइगर अभी जिंदा है साफ-साफ कहा है कि 200/- से ज्यादा का बिजली बिल आवे तो मत भरो, हमारी योजनाएं अगर बंद की गई तो मैदान में लड़ेंगे... सुशासन दिवस पर अनुशासन भंग करने की घोषणा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को सुशासन दिवस की धज्जियां उड़ाते हुए पहली बार देखा गया. तो यह एक अंदाज था की मध्यप्रदेश की विधायिका में यह किस प्रकार की चुनौतियां सामने आएंगी....?

अपने लिए तो इतना ही है की वीणा की संगीत में वीणा के तार जितने तने रहेंगे लोकतंत्र उतना ही मधुर संगीत प्रदान करेगा.. यह आशा करनी चाहिए. और 2018 के अंतिम सप्ताह में नए वर्ष की यही शुभकामना इन तमाम जिंदा टाइगरओं से अपेक्षित होनी चाहिए.

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