गुरुओं
के बीच में गुरु -घंटाल
कौन
बनेगा कांग्रेस का मुख्यमंत्री...?
( त्रिलोकीनाथ )
मध्यप्रदेश राजनीतिक-माफिया के काकस से शायद ही मुक्त हो
पाए..? देखना होगा कि अंततः गुरुओं के बीच
में गुरुघंटाल कितना कुछ सफल हो पाते हैं..?
जब
पहली बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बनने का जद्दोजहद कर रहे थे, उस वक्त भी यही हालात थे. जो वर्तमान में दिख रहा है. उस वक्त विंध्यप्रदेश में श्रीनिवास
तिवारी नाम कि वह शख्सियत हुई थी, जिससे दिग्गीराजा भयभीत रहते थे और इसीलिए उन्होंने अर्जुनसिंह के
खिलाफ श्रीनिवासतिवारी का यह कहकर अंत तक उपयोग किया कि श्री निवासतिवारी रीवा के
मुख्यमंत्री है दरअसल यह संज्ञा दिग्विजय सिंह के लिए तब एक ब्रह्मास्त्र थी. अर्जुनसिंह के खिलाफ और उनकी
व्यक्तित्व को क्षतिग्रस्त करने का औजार था. हालांकि एक और तीर का उपयोग उन्होंने
अजय सिंह राहुल के रूप में भी सेंधमारी कर के किया था किंतु अंततः अजय , अर्जुन सिंह के लड़के ही थे. तो वह इतना घातक नहीं था जितना कि
श्री तिवारी को ब्रह्मास्त्र बनाना.समय की नजाकत को पहचान कर तब अर्जुनसिंह
जी ने श्री तिवारी के साथ मध्यस्थता कर राजनीतिक मतभेदों को खत्म करना भी चाहा.
किंतु ब्रह्मास्त्र चल चुका था, तो उसे अपने लक्ष्य, जिसमें स्वयं ब्रह्मास्त्र को नष्ट भी
हो जाना था,
पाना ही था.
बहराल उस वक्त शहडोल के नेता आदिवासी नेता दलवीर सिंह जो प्रदेश कार्यवाहक अध्यक्ष
भी थे और मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी. प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व को कमजोर
करने के लिए पिछड़ा वर्ग का कार्ड चला, जिसमें सुभाष यादव नामक ओबीसी कार्ड तब दिग्गी राजा ने
इसलिए चलाया की कोई आदिवासी नेता अपना दावा पेश न कर सके और शतरंज की बिसात ने
कार्ड टिक गया. तो
दिग्विजय सिंह स्वयं को मुख्यमंत्री बनाने में सफल हो गए.
आज फिर जो हुआ वह आईने की तरह साफ है. विंध्यप्रदेश के अर्जुनसिंह हो या
श्रीनिवास तिवारी या मालवा के सुभाषयादव सब की राजनीति लगभग लुप्त हो गई. 10 वर्ष की कांग्रेसी सुख-सत्ता का लाभ दिग्विजय सिंह ने लिया. हां कांग्रेस जरूर धरातल में चली गई. अभी जो कॉन्ग्रेस आई है, इसलिए नहीं आई किसी ने कुछ किया है
बल्कि भाजपा की सत्ता विरोधी जो शबनमी अंदाज में सत्ता परिवर्तन हुआ है . यह अलग बात है कि कांग्रेस हाईकमान ने
दिग्गी राजा की सभी चालो को पहचान लिया और उन्हें प्रदेश की राजनीति में दूर रखने
का प्रयास किया.
बावजूद इसके दिग्गी राजा का राजवाड़ा कायम रहा और अपने कूटनीति के जरिए अंततः सत्ता
के करीब पहुंच गए.
यह काल्पनिक नहीं है क्योंकि कड़े संघर्ष में
सत्ता-परिवर्तन
कांग्रेस के जो चेहरे राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास प्रस्ताव लेकर पहुंचे उसमें
सुभाषयादव के पुत्र अरुण यादव को प्रमुखता से खड़ा दिखाया गया है. अरुण यादव कोई चुनाव जीतकर नहीं आए
हैं,
वैसे ही जैसे कि अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह चुनाव हार गए हैं. बल्कि अरुण यादव तो करारी हार हारे
हैं.
इसके बावजूद भी देश की पहली पंक्ति में ओबीसी नेता कार्ड के रूप में दिग्विजय सिंह
ने उन्हें प्रस्तुत किया है. यह अलग बात है कमलनाथ, दिग्विजय सिंह की करीबी हैं. सरकार बनाने के प्रस्ताव में कांग्रेस
के जो चेहरे राज्यपाल महोदय के समक्ष दिखे उसमें सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया का
चेहरा ही कांग्रेस का प्रथम व लोकप्रिय चहरा है, जो दिग्गी राजा की कूटनीति से अलग
दिखाई देता है.
विवेक तंखा तो वकील हैं, राज्यसभा सांसद होने के नाते नेता भी बन गए हैं. ऐसी स्थिति में गुरु घंटाल का रोल
पुनः सक्रिय हो गया है. और गुरु घंटाल ही गुरुओं की पद नियुक्ति में अपनी अहम भूमिका साबित
करते हुए दिखेंगे.
वैसे ही माना जाए तो आगामी लोकसभा चुनाव के
मद्देनजर एक परिपक्व राजनीतिक कमलनाथ को प्रदेश की बागडोर कांग्रेस के हित में
होगा. बावजूद
इसके प्रदेश की राजनीति को निष्पक्ष एवं निडर चेहरा, ज्योतिरादित्य का है जो लोकप्रिय है
मध्य प्रदेश की कांग्रेस की राजनीति के लिए उसे मुख्यमंत्री होना चाहिए .माना जाए तो राहुल गांधी की पहली पसंद
भी.
क्योंकि जिस प्रकार से उन्होंने युवाओं के हाथ कमान दे कर वरिष्ठ राजनीतिज्ञ का सम्मान बनाए रखने
का काम किया है,
उसमें भी ज्योतिरादित्य एक फिट मुख्यमंत्री हो सकते हैं. किंतु गुरु घंटाल के चलते शायद ही यह
प्रयास सफल हो पाएगा...? क्योंकि निडर और निष्पक्ष राजनेता होने के नाते ज्योतिरादित्य शायद
ही मध्यप्रदेश के तमाम भ्रष्टाचार पर कोई समझौता कर पाएंगे...?, जो राजनीतिज्ञों ने विभिन्न पार्टियों
में राजनीति का नकाब पहनकर प्रदेश को लूटने और लुटाने का धंधा बना रखा है. उसे कायम कर, बनाकर रखना ज्योतिरादित्य की फितरत
में शायद ही होगा...?
और यही कारण है कि प्रदेश, राजनीतिक-माफिया के काकस से शायद ही मुक्त हो
पाए..?
देखना होगा कि अंततः गुरुओं के बीच में गुरुघंटाल कितना कुछ सफल हो पाते हैं..?
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