मंगलवार, 25 दिसंबर 2018


        कमलनाथ का मंत्रीमंडल

  कांग्रेस में कीचड़ से कमल खिलाने का प्रयास  
                                             (त्रिलोकीनाथ)
 कमलनाथ का कमल सभी अवधारणाओं को ध्वस्त करते हुए कमलनाथ ने कांग्रेस के तालाब में कीचड़ से कमल खिलाने का प्रयास किया. कमलनाथ का मंत्रीमंडल कुछ इसी प्रकार का है.  हालांकि जातिगत व सामाजिक तुष्टीकरण से हटकर बना मंत्रिमंडल में लगभग सभी वर्ग के लोकतांत्रिक मंत्रिमंडल को बनाने का प्रयास किया गया है बावजूद इसके स्वयं को कमलनाथ गुटबंदी की कीचड़ स्वयं को मुक्त दिखाने का युद्ध जीता है. 114 कांग्रेस विधायकों वाली मध्यप्रदेश सरकार मैं 28 लोगों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है तो बाकी बचे  86 विधायकों को प्रसन्न रखना कमजोर काम नहीं है. क्योंकि संख्या-बल कांग्रेश के पास इतना भी नहीं है कि वे हर किसी विधायक को नजरअंदाज कर सकें. एक-एक विधायक को तवज्जो देना कमल नाथ की आवश्यकता भी है और मजबूरी भी. यह बात वरिष्ठ नेता होने के कारण साथ ही इंदिरा-राजीव के राजनीतिक अनुभव के साझीदार रहे कमलनाथ के लिए यह बड़ी बात नहीं थी. मध्यप्रदेश सरकार को कांग्रेस का सर्कस मानकर चलना चाहिए. विधायिका में इस सर्कस में पिंजड़े का शेर, पिंजड़े में भी नहीं है ऊपर से वह दहाड़ भी रहा है कि टाइगर अभी जिंदा है यह अलग बात है की कमलनाथ की सरकार बनने के बाद स्वयं को सबसे विश्वस्त व्यक्ति बताने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जो काम गत 15 वर्षों में नहीं किए, वह काम मंत्रिमंडल गठन के पूर्व लगभग कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के तत्काल बाद पूरी निष्ठा के साथ करते दिखाई दिए. वे स्वयं जिंदा-टाइगर के पास पहुंच गए और अपने पुत्र के साथ शिवराज सिंह के पैर पढ़ते हुए न सिर्फ यादगार तस्वीरें खिंचवाई बल्कि उन्हें सोशल मीडिया में वायरल भी कराया. दरअसल यह वायरल एक प्रकार का उद्घोष था की टाइगर अभी जिंदा है और यह टाइगर शिवराज सिंह नहीं था. बल्कि वह टाईगर था जो शिवराज सिंह को चुनौती देता नजर आया की टाइगर के दांत और नाखून नहीं है”.

 तो कांग्रेस सरकार की सर्कस में दो टाइगर एक दांत और नाखून वाला तथा दूसरा सिर्फ जिंदा-टाइगर इन दोनों को टाइगर को कांग्रेस के सर्कस में संभालने का काम कमलनाथ के लिए 2019 से ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि कौन सा टाइगर कब जीवित हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता.  ये जंगल के वे टाइगर नहीं है जिनका  अलग-अलग जंगल होता है, इन दोनों का जंगल एक ही है और यह दोनों मिलकर कभी भी विधायिका पर हमला कर सकते हैं और एक नया सर्कस दिखा सकते हैं. यही चुनौती, दिग्विजय के अपने पुत्र के द्वारा शिवराज सिंह का पैर-पड़ाते हुए वायरल कराई गई तस्वीर का संदेश भी है. कमलनाथ इस संदेश को भली-भांति समझते भी हैं. बावजूद इसके मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल में विंध्यप्रदेश के किसी भी टाइगर को टाइगर नहीं माना गया. चाहे वह अजय सिंह हो राजेंद्सिंह या फिर या फिर आदिवासी नेता बिसाहूलाल सिंह. यह सब दिग्गी राजा कोटे में घायल विधायकों की तरह फड़फड़ा गए. बिसाहूलाल सिंह तो अपने लावलश्कर लेकर कांग्रेस-सर्कस के सामने हो हल्ला भी मचाते रहे. कमलनाथ के तालाब की लहरों को दब गया अन्यथा एक तिहाई आदिवासी क्षेत्र वाले मध्यप्रदेश में आदिवासी मंत्रियों की संख्या चार न रह जाती..?
        बहराल शहडोल में मानस भवन मैं उस वक्त सुशासन दिवस {(अटल बिहारी वाजपेई की जन्म दिवस) में पहुंचे शिवराज सिंह ने पुनः दहाड़ लगाई टाइगर अभी जिंदा है साफ-साफ कहा है कि 200/- से ज्यादा का बिजली बिल आवे तो मत भरो, हमारी योजनाएं अगर बंद की गई तो मैदान में लड़ेंगे... सुशासन दिवस पर अनुशासन भंग करने की घोषणा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को सुशासन दिवस की धज्जियां उड़ाते हुए पहली बार देखा गया. तो यह एक अंदाज था की मध्यप्रदेश की विधायिका में यह किस प्रकार की चुनौतियां सामने आएंगी....?

अपने लिए तो इतना ही है की वीणा की संगीत में वीणा के तार जितने तने रहेंगे लोकतंत्र उतना ही मधुर संगीत प्रदान करेगा.. यह आशा करनी चाहिए. और 2018 के अंतिम सप्ताह में नए वर्ष की यही शुभकामना इन तमाम जिंदा टाइगरओं से अपेक्षित होनी चाहिए.

शनिवार, 22 दिसंबर 2018




 भारत-रत्न वापसी मामले ने पकड़ा तूल

भारतरत्न वापस लेने का प्रस्ताव दुर्भाग्यपूर्ण 
उदयप्रकाश

(त्रिलोकीनाथ)
शहडोल | नई किस्म की राजनीति का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भारतरत्न पुरस्कार वापस लिए जाने के प्रस्ताव पारित किए जाने से बौद्धिक स्तर के पढ़े-लिखे राजनीतिज्ञों  की कार्यवाही 21वीं सदी की सांप्रदायिकता का एक भिन्न रूप ही देखने में आया है. इससे कूटनीति के बहाने आम आदमी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने के नजर से भी देखा जा रहा है. जिस कारण से स्वयं आम आदमी पार्टी की सरकार में वैचारिक मतभेद उठ खड़े हुए हैं. प्रसिद्ध उपन्यासकार उदयप्रकाश दिल्ली सरकार की विधायिका मे भारत रत्न पुरस्कार वापस लौटाए जाने के संबंध में पारित प्रस्ताव पर आश्चर्य व्यक्त किए हैं. बताते चलें कि हिंदी के चर्चित लेखक उदयप्रकाश ने कन्नड़ साहित्यकार और विचारक एमएम कलबुर्गी की हत्या के विरोध में अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की थी. और जिससे प्रभावित होकर पुरस्कारों के लौटाने का जो सिलसिला चालू हुआ उसने मोदी सरकार पर  संवेदनहीनता के कई प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिए थे. और नरेंद्र मोदी  सरकार को असहिष्णुता का संकट का सामना भी करना पड़ा थाउदयप्रकाश ने 2010-11 में अपनी कृति 'मोहन दास' के लिए मिले साहित्य अकादमी पुरस्कार को लौटाने की घोषणा की . तब कलबुर्गी की हत्या से आहत उन्होंने लिखा, "अब यह चुप रहने का और मुँह सिल कर सुरक्षित कहीं छुप जाने का पल नहीं है. वर्ना ये ख़तरे बढ़ते जाएंगे." "मैं साहित्यकार कलबुर्गी की हत्या के विरोध में साहित्य अकादमी पुरस्कार को विनम्रता लेकिन सुचिंतित दृढ़ता के साथ लौटाता हूँ.उदयप्रकाश ने लिखा कि कलबुर्गी की हत्या ने उन्हें भीतर से हिला दिया है.

दिल्ली सरकार द्वारा राजीव गांधी से भारतरत्न वापस लेने का प्रस्ताव दुर्भाग्यपूर्ण है. किन्ही राजनैतिक अथवा सामुदायिक पृष्ठभूमि के कारण इस प्रकार से भारतरत्न की वापसी का प्रस्ताव पारित करना किसी भी सदन के लिए उचित नहीं है. भारतरत्न पुरस्कार व्यक्ति की किए गए कार्यों के मद्देनजर दिए हैं. विधायिका का किन्ही  निहित उद्देश्य के लिए इस प्रकार का हस्तक्षेप उचित नहीं है.”
उदय प्रकाश
विख्यात साहित्यकार/उपन्यासकार




दिल्ली विधानसभा 
मे शुक्रवार को 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर एक प्रस्ताव को पास किया, जिसमें यह मांग की गई है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को दिया गया भारत रत्न सम्मान वापस लिया जाए। हालांकि इस बीच, इस मुद्दे को लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) में ही घमासान मचता दिख रहा है। AAP विधायक अलका लांबा ने बागी तेवर अपना लिए हैं। पार्टी ने अलकालांबा का इस्तीफा स्वीकार कर उनकी प्राथमिक सदस्यता रदद् कर दी है। AAP विधायक अलका लांबा ने एक ट्वीट कर कहा, 'दिल्ली विधानसभा में प्रस्ताव लाया गया कि पूर्व पीएम प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी जी को दिया गया भारत रत्न वापस लिया जाना चाहिए। मुझे मेरे भाषण में इसका समर्थन करने को कहा गया, जो मुझे मंजूर नहीं था, मैंने सदन से वॉक आउट किया।

इन आरोपों के मद्देनजर पार्टी प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने सफाई देते हुए कहा  पूर्व  प्रधानमंत्री के बारे में जो पंक्तियां हैं, वे सदन में पेश किए गए मूल प्रस्ताव का हिस्सा नहीं थी और एक सदस्य ने उस पर हाथ से लिखकर इन्हें शामिल किया था। भारद्वाज ने कहा कि इस तरीके से प्रस्ताव पास नहीं सकता। हालांकि, बीजेपी नेता विजेंद्र गुप्ता ने दावा किया है कि राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लिए जाने का प्रस्ताव विधानसभा में पास हो चुका है और अब यह सदन की कार्यवाही का हिस्सा बन चुका है।  विधायक जरनैल सिंह ने विधानसभा में प्रस्ताव को पेश करते वक्त राजीव गांधी के नाम का जिक्र किया और 'सिख विरोधी दंगों को का बचाव' करने के लिए कांग्रेस नेता से भारत रत्न वापस लिए जाने की मांग की। हालांकि, भारद्वाज के बयान के बाद जरनैल सिंह प्रस्ताव में सिख विरोधी दंगों को नरसंहार बताते हुए इससे जुड़े मामलों की तेजी से सुनवाई की मांग की गई है। 
दूसरी तरफ, दिल्ली कांग्रेस ने पूरे विवाद पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि राजीव गांधी ने देश के लिए अपना बलिदान दिया। उन्होंनेAAP को बीजेपी की बी टीम बताते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी का असली रंग सामने आ गया है। 
राजीव गांधी के खिलाफ प्रस्ताव से यह संभावित गठबंधन बनने से पहले ही बिखर सकता है, इसीलिए आम आदमी पार्टी तुरंत डैमेज कंट्रोल मोड में आ गई। 


गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

जाति न पूछो साधु...


 जाति न पूछो साधु...
कमल मुरझाया, मुख्यमंत्री बने कमलनाथ

                                           


                                                     ( त्रिलोकीनाथ )

यह कहा जा सकता है की जाति न पूछो साधु की इस रूप में मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री कमलनाथ होने वाले कभी भी जाति के रूप में उस दौर से भी प्रचारित नहीं हुए जिस दौर में जातियां भारत की शासन प्रणाली पर उछल उछल कर अपना नाम बता रही थी क्योंकि जातिगत समीकरण से ही लोकतंत्र शासन प्रणाली को तय कर पा रहा था कांग्रेस के लिए यह सुखद है की कमलनाथ बजाज जाति के बजाए जाति के थे अपने कार्य से पहचाने गए इससे भी ज्यादा यह महत्वपूर्ण है कि कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही इंदिरा गांधी का युग पुणे पुणे प्रारंभ हो जाएगा बार-बार इंदिरा गांधी यह उनका परिवार इसलिए याद किया जाएगा क्योंकि मध्य प्रदेश में इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे के रूप में कोई मुख्यमंत्री पद संभाल रहा है इस प्रकार मध्य प्रदेश की नजदीकी गांधी परिवार से पारिवारिक हो जाएगी लोकतंत्र में इस नए रिश्ते और नाते की बड़ी अहमियत है फिर भी
तो 15 साल कमल का शासन खत्म हुआ और कमलनाथ मुख्यमंत्री बन जाएंगे. इस कद्दावर नेता का जन्म 18 नवम्बर 1946 (आयु 72) को कानपुर में हुआ था ! उनके पिता का नाम श्री महेंद्र नाथ है और उनके माता श्री का नाम श्रीमती लीला नाथ है !
नाथ सरनेम से यह पता नहीं चल रहा है कि वह किस जाति से हैं ! कुछ वेबसाइट वाले इस की जाति के बारे में खत्री पंजाबी लिखते हैं लेकिन इसका आधिकारिक तौर पर कभी भी अनाउंस नहीं हुआ है !
योगीआदित्यनाथ के लिए पीएचडी के विषय हो सकते हैं कमलनाथ !!
कि आखिर उनकी क्या  जाति क्या है...? 
                                                      

 श्रीमती इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे के रूप में चर्चित कमलनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए पीएचडी के विषय हो सकते हैं, कि आखिर उनकी क्या  जाति क्या है...?
 भगवान राम भक्त बजरंगबली महाराज जी की जाति दलित बताने वाले योगी के लिए यह चैलेंज का विषय इसलिए भी है क्योंकि कमलनाथ इंदिरा गांधी परिवार में उसी प्रकार से भक्ति भाव कि जैसे कि भगवान राम के दरबार में हनुमान जी का स्थान था. तो जानिए की कमलनाथ की जाति क्या है..

 छिंदवाड़ा सांसद कमलनाथ को राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश का कांग्रेस अध्यक्ष बनाया है। कांग्रेस की तरफ से सीएम है। मध्यप्रदेश से कमलनाथ का रिश्ता 1980 में जुड़ा जब इंदिरा गांधी ने छिंदवाड़ा सीट से उन्हे लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए भेजा। बताया जाता है कि कमलनाथ, संजय गांधी के दोस्त थे। इसी के चलते वो गांधी परिवार के संपर्क में आए और उन्हे छिंदवाड़ा में प्रत्याशी बनाकर भेजा गया लेकिन मध्यप्रदेश की जनता कुछ नए सवालों के जवाब तलाश रही है। कमलनाथ की जाति क्या है। उनके पिता क्या करते थे। उनके भाई बंधु कहां हैं और क्या कर रहे हैं। 


इंटरनेट पर कमलनाथ के बारे में जितनी भी जानकारियां उपलब्ध हैं उनमें 1980 के बाद की तमाम जानकारियां दी गईं हैं परंतु कमलनाथ के जन्म दिनांक 18 नवम्बर 1946 से लेकर 1980 तक कमलनाथ ने क्या किया। इसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो पा रही है। एक जानकारी में यह बताया गया है कि कमलनाथ की जाति (CASTE) खत्री पंजाबी है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार उनके पिता कानपुर में रहते थे लेकिन वो क्या करते थे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। 

बीते रोज भोपाल में हुई प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एक पत्रकार ने जब कमलनाथ से सवाल पूछा तो वो इसे टालते हुए बोले कि उनकी जाति हिन्दुस्तानी है और वो समाजसेवा के लिए राजनीति मेें आए हैं। बता दें कि कमलनाथ की पत्नी एवं बेटे 23 दिग्गज कंपनियों के मालिक हैं। एक अन्य मामले में उनके भांजे का भी जिक्र आया है। नाम रातुल पुरी बताया गया है। आरोप है कि कमलनाथ के कारण रातुल पुरी को मध्यप्रदेश सरकार से एक ऐसा अनुबंध मिला जिसमें उन्हे करोड़ों का फायदा हो रहा है। जनता जानना चाहती है कि कमलनाथ के सगे संबंधी क्या करते हैं और क्या वो कमलनाथ के ओहदे का फायदा उठाकर कमाई करते हैं। कितना बेहतर हो कि कमलनाथ खुद अपने बारे में सारी जानकारियां और कारोबारी रिश्तेदारों के विवरण सार्वजनिक कर दें नहीं तो चुनाव आते आते तक कई अफवाहें उड़ती दिखाई देंगी। 


गुरुओं के बीच में गुरु -घंटाल



        गुरुओं के बीच में गुरु -घंटाल




     
       कौन बनेगा कांग्रेस का मुख्यमंत्री...?

                                                 (  त्रिलोकीनाथ  ) 

 मध्यप्रदेश राजनीतिक-माफिया के काकस से शायद ही मुक्त हो पाए..? देखना होगा कि अंततः गुरुओं के बीच में गुरुघंटाल कितना कुछ सफल हो पाते हैं..?

जब पहली बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बनने का  जद्दोजहद कर रहे थे, उस वक्त भी यही हालात थे. जो वर्तमान में दिख रहा है. उस वक्त विंध्यप्रदेश में श्रीनिवास तिवारी नाम कि वह शख्सियत हुई थी, जिससे दिग्गीराजा भयभीत रहते थे और इसीलिए उन्होंने अर्जुनसिंह के खिलाफ श्रीनिवासतिवारी का यह कहकर अंत तक उपयोग किया कि श्री निवासतिवारी रीवा के मुख्यमंत्री है दरअसल यह संज्ञा दिग्विजय सिंह के लिए तब एक ब्रह्मास्त्र थी. अर्जुनसिंह के खिलाफ और उनकी व्यक्तित्व को क्षतिग्रस्त करने का औजार था. हालांकि एक और तीर का उपयोग उन्होंने अजय सिंह राहुल के रूप में भी सेंधमारी कर के किया था किंतु अंततः अजय , अर्जुन सिंह के लड़के ही थे. तो वह इतना घातक नहीं था जितना कि श्री तिवारी को ब्रह्मास्त्र बनाना.समय की नजाकत को पहचान कर तब अर्जुनसिंह जी ने श्री तिवारी के साथ मध्यस्थता कर राजनीतिक मतभेदों को खत्म करना भी चाहा.
 किंतु ब्रह्मास्त्र चल चुका था, तो उसे अपने लक्ष्य, जिसमें स्वयं ब्रह्मास्त्र को नष्ट भी हो जाना था, पाना ही था. बहराल उस वक्त शहडोल के नेता आदिवासी नेता दलवीर सिंह जो प्रदेश कार्यवाहक अध्यक्ष भी थे और मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी. प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व को कमजोर करने के लिए पिछड़ा वर्ग का कार्ड चला, जिसमें सुभाष यादव नामक ओबीसी कार्ड तब दिग्गी राजा ने इसलिए चलाया की कोई आदिवासी नेता अपना दावा पेश न कर सके और शतरंज की बिसात ने कार्ड टिक गया. तो दिग्विजय सिंह स्वयं को मुख्यमंत्री बनाने में सफल हो गए.
 आज फिर जो हुआ वह आईने की तरह साफ है. विंध्यप्रदेश के अर्जुनसिंह हो या श्रीनिवास तिवारी या मालवा के सुभाषयादव सब की राजनीति लगभग लुप्त हो गई. 10 वर्ष की कांग्रेसी सुख-सत्ता का लाभ दिग्विजय सिंह ने लिया. हां कांग्रेस जरूर धरातल में चली गई. अभी जो कॉन्ग्रेस आई है, इसलिए नहीं आई किसी ने कुछ किया है बल्कि भाजपा की सत्ता विरोधी जो शबनमी अंदाज में सत्ता परिवर्तन हुआ है . यह अलग बात है कि कांग्रेस हाईकमान ने दिग्गी राजा की सभी चालो को पहचान लिया और उन्हें प्रदेश की राजनीति में दूर रखने का प्रयास किया. बावजूद इसके दिग्गी राजा का राजवाड़ा कायम रहा और अपने कूटनीति के जरिए अंततः सत्ता के करीब पहुंच गए.
 यह काल्पनिक नहीं है क्योंकि कड़े संघर्ष में सत्ता-परिवर्तन कांग्रेस के जो चेहरे राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास प्रस्ताव लेकर पहुंचे उसमें सुभाषयादव के पुत्र अरुण यादव को प्रमुखता से खड़ा दिखाया गया है. अरुण यादव कोई चुनाव जीतकर नहीं आए हैं, वैसे ही जैसे कि अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह चुनाव हार गए हैं. बल्कि अरुण यादव तो करारी हार हारे हैं. इसके बावजूद भी देश की पहली पंक्ति में ओबीसी नेता कार्ड के रूप में दिग्विजय सिंह ने उन्हें प्रस्तुत किया है. यह अलग बात है कमलनाथ, दिग्विजय सिंह की करीबी हैं. सरकार बनाने के प्रस्ताव में कांग्रेस के जो चेहरे राज्यपाल महोदय के समक्ष दिखे उसमें सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा ही कांग्रेस का प्रथम व लोकप्रिय चहरा है, जो दिग्गी राजा की कूटनीति से अलग दिखाई देता है. विवेक तंखा तो वकील हैं, राज्यसभा सांसद होने के नाते नेता भी बन गए हैं. ऐसी स्थिति में गुरु घंटाल का रोल पुनः सक्रिय हो गया है. और गुरु घंटाल ही गुरुओं की पद नियुक्ति में अपनी अहम भूमिका साबित करते हुए दिखेंगे.
 वैसे ही माना जाए तो आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक परिपक्व राजनीतिक कमलनाथ को प्रदेश की बागडोर कांग्रेस के हित में होगा. बावजूद इसके प्रदेश की राजनीति को निष्पक्ष एवं निडर चेहरा, ज्योतिरादित्य का है जो लोकप्रिय है मध्य प्रदेश की कांग्रेस की राजनीति के लिए उसे मुख्यमंत्री होना चाहिए .माना जाए तो राहुल गांधी की पहली पसंद भी. क्योंकि जिस प्रकार से उन्होंने युवाओं के हाथ कमान दे कर वरिष्ठ राजनीतिज्ञ का सम्मान बनाए रखने का काम किया है, उसमें भी ज्योतिरादित्य एक फिट मुख्यमंत्री हो सकते हैं. किंतु गुरु घंटाल के चलते शायद ही यह प्रयास सफल हो पाएगा...? क्योंकि निडर और निष्पक्ष राजनेता होने के नाते ज्योतिरादित्य शायद ही मध्यप्रदेश के तमाम भ्रष्टाचार पर कोई समझौता कर पाएंगे...?, जो राजनीतिज्ञों ने विभिन्न पार्टियों में राजनीति का नकाब पहनकर प्रदेश को लूटने और लुटाने का धंधा बना रखा है. उसे कायम कर, बनाकर रखना ज्योतिरादित्य की फितरत में शायद ही होगा...?

 और यही कारण है कि प्रदेश, राजनीतिक-माफिया के काकस से शायद ही मुक्त हो पाए..? देखना होगा कि अंततः गुरुओं के बीच में गुरुघंटाल कितना कुछ सफल हो पाते हैं..?

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

हिंदी-भाषी राजनीति में पप्पू बन गया जैंटलमैन ....

rahul gandhi के लिए इमेज परिणाम

हिंदी-भाषी राजनीति में पप्पू बन गया जैंटलमैन
तो  विंध्य की राजनीति में ढह गए मिट्टी के शेर .....

(वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोकीनाथ की कलम से)

मध्य प्रदेश की राजनीति प्वाइंट1% वोट, सुई की नोक बरोबर जगह सत्ता को पलट कर रख दी है. माफ करो महाराज”, अब शिवराज के लिए लागू हो रहा है  क्योंकि जनता-जनार्दन ने खासतौर से किसान, कृषि-अर्थव्यवस्था पर टिकी किसान-मजदूर वर्ग शिवराज की कृषि कर्मण अवार्ड के जुमले को नकार दिया है. जो कृषि की गुणवत्ता के लिए मध्यप्रदेश शासन अब तक भारत शासन से लाया था.



किसानों ने धूर्त-नेताओं को वोट की भाषा में, दी चेतावनी .... 


kisan के लिए इमेज परिणाम भारतीय किसानों ने आजादी के पहली बार धूर्त-नेताओं को वोट की भाषा में, अपने अधिकारों के प्रति चेतावनी दी है. उसने सशर्त वोट दिया है. यानी अपने धान की बिक्री तब-तक रोक दी, जब-तक नई सरकार जो यह वादा करके आई है धान की कीमत, किसानों की हालत बदलेगी. उस कांग्रेस के भरोसे नई सरकार आने तक अपने घर में रखा, अब नई सरकार आएगी तो नए रेट में धान भी खरीदेगी और किसानों की हालत भी सुधरेगी. इस आश्वासन को पुख्ता करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बड़ी गंभीरता से अपनी पत्रकार वार्ता संभलकर जवाब भी दिया , किसानों का कर्ज माफी तत्कालिक समाधान जरूर हो सकता है किंतु स्थाई रूप से किसानी समस्याओं का निराकरण सरल नहीं है,किंतु हम उसे चुनौती के रूप में और किसानों के साथ मिलकर इसका हल निकालेंगे. यानी राहुल गांधी इसे बताओर जुमला नहीं भूलना चाहते. यह अच्छी बात है एक युवा दिमाग के लिए भारतीय लोकतंत्र के बहुसंख्यक समाज या कहना चाहिए महात्मा गांधी के शब्दों में भारत की आत्मा गांवों में बसती है तो आत्मा की संतुष्टि के लिए, समाधान किसी भी हालत पर निकालना ही चाहिए. और यह सोच के लिए शुभकामना इसलिए भी करनी चाहिए की प्रतियोगिता में ही सही अपने शेष बचे कार्यकाल में भी बौद्धिक-विभाग रखने वाला  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी भारतीय जनता पार्टी प्रतियोगिता में ही सही किसानों की गंभीर समस्याओं के प्रति थोड़ा गंभीर हो ही जाए. राहुल के लिए यह एक बड़ी जीत होगी, किसानों की समस्याओं को भारत-सरकार के लिए एक बड़ा मुद्दा बनाने में. अगर वे कामयाब हो गए तो.

विंध्य के धुरंधर रहे विरासत दरों को जनता ने कर दिया खारिज .... 

बहराल तत्कालिक बातें मध्यप्रदेश में क्रिकेट मैच की तरह ,सुई की नोक बराबर वोट-बैंक सत्ता के लिए चुनौती बरकरार बनी रहेगी
तो क्या परिवर्तन हुआ मध्य प्रदेश की राजनीति में . हम चर्चा करेंगे विंध्यप्रदेश की राजनीति में जहां



मध्य प्रदेश – चुरहट
शरदेन्दु तिवारी
भारतीय जनतपार्टी
71909
अजय अर्जुन सिंह
इंडियन नेशनल कांग्रेस
65507
विवेक कोल
बहुजन समाज पार्टी
2997




विंध्य के धुरंधर रहे राजनीति की विरासत संभालने वाले विरासत दरों को जनता ने 



खारिज कर दिया है
. अर्जुन सिंह की विरासत का दावा करने वाले नेता प्रतिपक्ष रहे अजयसिंह राहुल को चुरहट से हार का सामना करना पड़ा है। 

                         MADHYA PRADESH - GUDH      
नागेन्द्र सिंह
भारतीय जनता पार्टी
42569
कपिध्वज सिंह " भइया "
समाजवादी पार्टी
34741
सुन्दरलाल तिवारी
इंडियन नेशनल कांग्रेस
32735

श्रीनिवास तिवारी की विरासत का दावा करने वाले सुंदरलाल तिवारी औंधे मुंह गिर गए हैं, गुड से चुनाव हार गए हैं। 

मध्य प्रदेश – अमरपाटन
रामखेलावन पटेल
भारतीय जनता पार्टी
59836
डा. राजेन्‍द्र कुमार सिंह ‘‘दादा भाई’’
इंडियन नेशनल कांग्रेस
56089
छंगेलाल कोल
बहुजन समाज पार्टी
37918

अमरपाटन से नेता-प्रतिपक्ष रहे राजेंद्र सिंह भी चुनाव हार गए हैं और इन लोगों को छोड़ दें तो आदिवासी अंचल की राजनीति के हालिया धुरंधर रहे कांग्रेस के रामकिशोर शुक्ला के विरासत-दार संतोष शुक्ला तो, भाजपा के लवकेश सिंह के विरासत दार वीरसिंह रिंकू, दोनों ने मिलकर बागी उम्मीदवार के रूप में गोंडवानागणतंत्र पार्टी के तेजप्रताप सिंह को जो तेज दिया वह विलुप्त हो गया. और यहां से भारतीय जनता पार्टी के सीट से जुगलाल  के लड़के शरद को नए नेता बनकर उभरे हैं.


मध्य प्रदेश – ब्‍यौहारी
कोल शरद जुगलाल
भारतीय जनता पार्टी
78007
तेज प्रताप सिंह उइके
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी
45557

शहडोल में दिग्गज कांग्रेसी नेता दलवीर सिंह की विरासत संभाल रहे हिमाद्रीसिंह को भाजपा की सीट से नरेंद्र मरावी के लिए समर्थन मांगना भी काम नहीं आया.


मध्य प्रदेश – पुष्‍पराजगढ़
फुन्देलाल सिंह मार्को
इंडियन नेशनल कांग्रेस
62352
नरेंद्र सिंह मरावी
भारतीय जनता पार्टी
40951
पुष्पराजगढ़ में व्यापम के घोटाले-बाज प्रकरण में आरोपी बने फुन्देलाल फिर से चुनाव जीत गए हैं, तो जमीनी नेता कोतमा-विधानसभा सीट से सुनील सर्राफ युवाओं की नई उम्मीद बन कर सामने उभरे हैं
मध्य प्रदेश – कोतमा
सुनील सराफ
इंडियन नेशनल कांग्रेस
48249
दिलीप कुमार जायसवाल
भारतीय जनता पार्टी
36820

जमीनी हकीकत को देखने वाले सुनील के लिए यह एक बड़ी चुनौती भी होगी, क्योंकि शहडोल संभाग में 8 विधानसभा सीटों पर वहीं कोतमा विधानसभा सीट ही सामान्य है. जिसमें सुनील को विधायक बनाया है. अगर वह भी आदिवासियों की तर्ज पर ही राजनीतिक जिम्मेदारी को निभाने का काम किया तो उन्हें भी ठीक उसी तरह इस महत्वपूर्ण अवसर को गवाना पड़ेगा जैसे कि मनोज अग्रवाल ने खो दिया, जो निवर्तमान विधायक के रुप में कांग्रेस की जिम्मेवारी को कोतमा विधानसभा और अपने चापलूस चाटुकार मित्रों रिश्तेदारों के बीच में खो दिया.
एक महत्वपूर्ण पुष्पराजगढ़ विधानसभा क्षेत्र के योग्य उम्मीदवार नरेंद्र मरावी के रूप में खोना हुआ नए नेता के रूप में नरेंद्र मरावी करना वरना भी एक राजनीतिक क्षति मानी जानी चाहिए. बहरहाल विंध्य प्रदेश के इस आदिवासी अंचल को अपने कब्जे वाले साम्राज्य की तरह देखने वाली चुरहट और रीवा की राजनीति के सभी धुरंधर अपने अपने कारणों से जनता द्वारा नकार दिए गए हैं. बावजूद इसके रीवा में राजेंद्र शुक्ला को जनता ने आम स्वीकृति दे दी है, कि विंध्य प्रदेश की राजनीति में उन्हें अवसर अभी भी बाकी है.

मध्य प्रदेश – रीवा
राजेन्‍द्र शुक्ल
भारतीय जनता पार्टी
69806
अभय मिश्रा
इंडियन नेशनल कांग्रेस
51717
कासिम खान
बहुजन समाज पार्टी
6427

 अपनी सीमित कार्य क्षेत्र से बाहर व्यापक
-दृष्टिकोण में राजनीति करने की सोच रखते हो और यही अवसर रीवाराज परिवार के युवराज दिव्यराज सिंह को भी जनता ने चुनाव जीता कर संदेश दिया है. कि अगर मिल जुल कर आप राजनीति करना चाहे तो नए नेता के रूप में आप को स्वीकृति मिल सकती है। 

विंध्य छेत्र की बाकि सीटों का ब्यौरा :- 

मध्य प्रदेश – सिरमौर
दिव्‍यराज सिंह
भारतीय जनता पार्टी
49443
डाँ० अरूणा विवेक तिवारी
इंडियन नेशनल कांग्रेस
36042
रामगरीब बनवासी
बहुजन समाज पार्टी
18466



                      मध्य प्रदेश – जैतपुर
मनीषा सिंह
भारतीय जनता पार्टी
74279
उमा धुर्वे
इंडियन नेशनल कांग्रेस
70063



                     मध्य प्रदेश – बांधवगढ़
शिवनारायण सिंह (लल्लू भैया)
भारतीय जनता पार्टी
59158
ध्‍यान सिंह
इंडियन नेशनल कांग्रेस
55255



                      मध्य प्रदेश – मानपुर
मीना सिंह
भारतीय जनता पार्टी
82287
ज्ञानवती सिहं
इंडियन नेशनल कांग्रेस
63632


                      मध्य प्रदेश – अनूपपुर
बिसाहूलाल सिंह
इंडियन नेशनल कांग्रेस
62770
रामलाल रौतेल
भारतीय जनता पार्टी
51209

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