मंगलवार, 8 नवंबर 2022

सौखी, गोरतारा, कुदरी, कंचनपुर मे कौन है बेनामी भूमाफिया

आखिर कॉलोनाइजर किस कनेक्शन में बने हैं भूमाफिया

नव धनाढ्य रस्तोगी का,

आदिवासियों को लूटने का क्या है राज..?


पूर्व शासकीय अधिवक्ता और बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष संदीप तिवारी ने अपने साथी एडवोकेट अशोक तिवारी के साथ पत्रकार वार्ता कर शहडोल में आदिवासियों की जमीन की लूटपाट, तालाबों पर अवैध कब्जा जैसी बेनामी भू माफिया गिरी का पिछले दिनों बमबाड़ खुलासा पर गंभीर आरोप लगाए हैं। पूर्व शासकीय अधिवक्ता ने तमाम तथ्यों को रखकर शहडोल में चल रही भू माफिया गिरी और उससे उत्पन्न आदिवासियों का शोषण दमन और इन घटनाओं को संरक्षण देने वाले सत्ता पर प्रश्नचिन्ह करते खड़ा करते हुए कहा कि आखिर क्या कारण है की अपराधिक घटनाओं का उल्लेख करके धड़ाधड़ जब मकान गिराए जा रहे हैं गरीबों की मकानों को अतिक्रमण बताकर ढहा दिया जा रहा हो तब कॉलोनाइजर्स और सत्ता के लोग  भू माफिया गिरी मिलजुल कर कर रहे हैं ।

ऐसा उन्होंने अपने प्रदत  प्रमाणित अपराधों के दस्तावेजों को देते हुए कहा की आखिर हम नागरिकों की भी क्या कोई जिम्मेवारी है...? कौन इन माफियाओं के खिलाफ सशक्त आवाज उठाकर संविधान सम्मत, कानून सम्मत कानून प्रशासन की बात करेगा...?

 पूर्व शासकीय अधिवक्ता संदीप तिवारी ने कहा यदि यहां पर कोई कार्यवाही होती नहीं दिखाई देगी तो वह इस मामले को उच्च स्तर और न्यायालय तक अपनी आवाज को पहुंचाने का काम करेंगे बहरहाल कई प्रकार से कई लोगों पर  भू माफिया गिरी के आरोप लगाते हुए शहडोल के बेशकीमती तटवर्ती ग्रामों में शासकीय जमीनों और आदिवासियों की जमीनों पर हो रही हेराफरी पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। जिनका जवाब देना संबंधित शासकीय अथवा अशासकीय पक्ष की नैतिक जिम्मेदारी है किंतु क्या वह इतनी गंभीरता से नैतिकता का तकाजा मानकर भू माफिया गिरी पर खड़े प्रश्नों का निराकरण करेंगे, यह एक बड़ा प्रश्न है।

 


समाचार पत्र दैनिक भास्कर ने इस पर प्रकाश डाला है । पत्रकार वार्ता में उठाए गए बिंदुओं में बहुचर्चित गुड्डू रस्तोगी नाम के नव धनाढ्य व्यक्ति की माफिया गिरी पर जरूर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं की आखिर कैसे कंचनपुर में आदिवासियों की जमीनों से षड्यंत्र कर एक बड़ा वर्ग पूरी जमीन हथिया लेता है। और अब वहां पर कथित तौर में गुड्डू रस्तोगी का नया आशियाना खड़ा हो रहा है। ऐसा आरोप लगाया जा रहा है रस्तोगी उस समय चर्चा में आया था जब नेशनल हाईवे के बुढार रोड तिराहे में स्थित गुरुदीन शर्मा की जमीन और आश्रम में आदिवासियों की जमीनों पर हीरा फेरी करने की चर्चा के लिए रस्तोगी चर्चित हुआ था। 

अब फिर से रस्तोगी का कनेक्शन नई प्रकार की माफिया गिरी में सामने आया है जिसमें यह बात चर्चित हुई है कि आदिवासियों की जमीनों पर हेराफेरी करने वाले रस्तोगी ने कुछ हाईप्रोफाइल लोगों को भी दानवीर की तरह जिस भूखंड को दान करने का लिखा पढ़ी की है, वह भूखंड वास्तव में कहीं और है और रस्तोगी ने इस जमीन को कहीं और बता कर जमीनों में गोलमाल कर दिया है। किंतु इस बड़ी हेराफेरी और धोखाधड़ी के बावजूद भी रस्तोगी की हेराफेरी को चुपचाप आंख मूंद लेना आदिवासियों की भूमि पर बेनामी तरीके से कब्जा और हेराफेरी को बढ़ावा ही मिलता है।

 बहरहाल पूर्व शासकीय अधिवक्ता संदीप तिवारी के द्वारा उठाए गए तमाम मामले पर आखिर क्यों कार्यवाही होनी चाहिए अगर नया गांधी चौक शहडोल में तहसीलदार सोहागपुर द्वारा 2019 में ₹90000 की जुर्माना और अवैध निर्माण को हटाए जाने के आदेश के बाद भी अपने आकाओं की बदौलत अभी तक अतिक्रमणकारी नेमचद जैन के रेमंड शोरूम का अतिक्रमण प्रशासन का मजाक उड़ा रहा है ।


बताया जाता है नेम चंद्र जैन को अपील की जो राहत मिली थी वह भी निरस्त हो चुकी है। बावजूद इसके 3 वर्ष बाद भी उसका अतिक्रमण गांधी चौक से खाली कराकर और जुर्माना वसूलने की वजाय उसके माफिया गिरी को संरक्षण दिया जा रहा है। हाल में भू माफिया नेमचद जैन की एक अन्य हेराफेरी कर हथियाई  गई फॉरेस्ट विभाग के बगल में करोड़ों की जमीन के निर्माण के दौरान जल्दबाजी में मजदूरों की मौत हो गई थी वह भी मामला ले देकर निपट गया जैसे लगता है  ऐसे में कहीं कोई भूमाफिया कुछ भी कर सकता है ऐसा संदेश जाता है ।

और यही आरोप संदीप तिवारी ने पत्रकार वार्ता में लगाए हैं तो देखना होगा कि आदिवासियों के और सासकीय जमीनों की रक्षा के लिए कब अतिक्रमणकारियों पर कार्यवाही होती है अथवा जो भी आवाज उठाता है उसकी आवाज दबाने के लिए तमाम प्रकार के हथकंडे अपनाए जाते हैं।

 बहरहाल अब जबकि भारत के महामहिम राष्ट्रपति के पद पर प्रथम आदिवासी महिला माननीय द्रोपति मुर्मू का आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल आगमन होने जा रहा है। ऐसे में भी आदिवासियों की भूमि से भू माफियाओं को यदि अपदस्थ नहीं किया जा रहा है फिर शायद ही कभी आदिवासियों को न्याय मिलेगा कहना जरा मुश्किल है...? किंतु इससे भी ज्यादा आदिवासी संगठनों की मौन सहमति ज्यादा खतरनाक है जो चुपचाप ऐसे भू माफियाओं को अपनी मनमानी करने की अप्रत्यक्ष सहमति देते हैं।




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