कोतमा क्षेत्र में भविष्य के
दावेदार तैयारी देखे गए।
....त्रिलोकीनाथ..........
शहडोल में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भविष्य के चुनाव की बिगुल क्या फूंक दी शहडोल संभाग के इकलौते विधानसभा सामान्य सीट पर भविष्य के एमएलए साहब का अवतार देखने को मिला। ऐसा सोचने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए वैसे भी नेताओं को चुनाव लड़ा के लड़ाते अनुभव इतना ज्यादा हो गया है कि उसकी खपत के लिए कोई ना कोई विधानसभा से कोई न कोई चुनाव लड़ता ही रहता है। यह बात सर्वव्यापी हो चुकी है चुनाव आम ईमानदार आदमी के बस के बाहर हो गया है और अगर टिकट नहीं मिलती है तो भी संरक्षण तो चाहिए ही। क्योंकि जानीदुश्मन तो भी पीछा नहीं छोड़ने वाले। तो बेहतर है पहले से ही वातावरण का निर्माण क्यों ना हो जाए फिर कोतमा विधानसभा क्षेत्र से जीतने के बाद रेलयात्रा का सुख भी सर्वव्यापी है।
क्योंकि उनका दावा है कि भारतीय जनता पार्टी
की टिकट के लिए उन्हें हरी झंडी मिल गई है और अगर नहीं भी मिली है तो बाकी पार्टियां टिकट देने को क्यों तैयार नहीं होने होंगी जब दुकान खरीददार की खुल ही गई है और नहीं तो देश तो स्वतंत्र ही है स्वतंत्रता से चुनाव लड़ने में भी कोई बुराई नहीं है। इसलिए कोतमा विधानसभा की तैयारी के लिए 78 गांव में क्रिकेट व फुटबॉल किट की रेवड़ी के साथ शुरुआत कर दी गई है। अगर नाम मात्र को बटने वाले शहडोल में ₹5000 प्रति स्कूल किट का रेट माने तो करीब ₹800000 का शुरुआती भेंट जनता जनार्दन को समर्पित हो गया है। यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री जी ने दूसरे प्रकार की रेवड़ी बांटने से बचने की सलाह दी है। लेकिन उन्होंने इसे खाने के दांत और दिखाने के दांत और के अंदाज में अनसुना कर दिया है। और लोकहित में कुर्ता जैकेट पहन कर समर्पित हो गए हैं। बहरहाल एक तरफ कमलनाथ के शहडोल प्रवास में कोतमा के वर्तमान एमएलए के नाहोने पर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति गर्म हो गई है और मनोज अग्रवाल को मध्य प्रदेश प्रभारी जयप्रकाश अग्रवाल से न सिर्फ परिचय कराया गया बल्कि सपना भी दिखाया गया तो दूसरी तरफ गांधी चौक में मंच के नीचे विधायक जी के पक्ष में आए लोग जिंदाबाद के नारे लगाते देखे गए तो कांग्रेसमें कुछ विधानसभा की जो छीछालेदर हुई है उसके डैमेज कंट्रोल कांग्रेस कैसे करेगी यह तो भविष्य के अंधेरे में छिपा हुआ है ।किंतु एक नए चेहरे के आगाज होने से स्थानीय लोगों में अपने ही तरीके का उत्साह दिख रहा है ।
देखना होगा की फील गुड के मंत्र में भविष्य के विधायक का समर्पण भाव पवित्र भारतीय जनता पार्टी में किस हद तक उन्हें मुकाम में पहुंचाएगा क्योंकि इतना तो तय है की जानीदुश्मन क्रिकेट के मैदान से कोतमा के मैदान में भी पहुंचेंगे। किंतु जानीदुश्मन को भी मालूम है भाजपा में आने के बाद सिर्फ लक्ष्य पाना रह जाता है।
तो बुढ़ार क्रिकेट मैदान की रोमांचक खेल के बाद अगला क्रिकेट का मैदान कोतमा विधानसभा में कितना रोमांचक खेल पैदा करेगा यह देखना भी रोमांचक होगा क्योंकि आदिवासियों की जमीन पर सपनों का संसार कांच के घर से कमजोर नहीं होता। फिलहाल शुभकामनाएं देने में क्यों कंजूसी करने चाहिए यह उनका चाल चरित्र और चेहरा है की वे किस अंदाज में शुभकामनाओं को स्वीकार करते हैं।
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