शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

तिरंगा तेरे कितने रंग...? ( त्रिलोकीनाथ )

साहिल ना सही, तिनका ही ढूंढ ले...


भारत मतलब...

अपना रद्दी गोदाम..?


फिल्म झुंड में सदी के महानायक के सामने यह प्रश्न, झोपड़पट्टी वालों के एक बाल चरित्र-नायक ने किया। तो सदी का महानायक मुस्कुरा कर चुप रह गया.. हलां कि फिल्म मे फुटबॉल खेल के जरिए झोपड़पट्टी की जिंदगी बदलने का एक सपना है।
                                                              ( त्रिलोकीनाथ )    
किंतु भारत फुटबॉल नहीं,बावजूद इसके यह प्रश्न बड़ा महत्वपूर्ण है कि भारत का क्या मतलब है...? आज फरीदाबाद में लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास एक बाजार में मैंने इस टेलर नुमा लोक ज्ञानी से मिला, जो अपनी कुर्सी के पीछे बेशर्म की लकड़ी से झंडे को फहराता दिख रहा था ।मैं उससे पूछा, आपको भी झंडा बनाने का कितने का आर्डर मिला..? ; उसने कहा झंडा बनाने का मुझे कोई आर्डर नहीं मिला...। तो उसका दिल निश्चित तौर पर दुखी हुआ होगा कि, करोड़ों झंडों में, मेरे झुंड को भारत का एक भी झंडा, रोजगार नहीं दे पाया ..? ऐसे तिरंगे के निर्माण से अथवा गर्व करने से
कुछ फाइव स्टार, सेवन स्टार, विदेशी नागरिक शराब के जाम के साथ कुछ पल के लिए गर्व जरूर महसूस करते होंगे। इस फुटपाथ पर झंडा सिलने वाले व्यक्ति को क्यों गर्व होना चाहिए... ? अथवा भारत का क्या मतलब है यह कुशल कारीगर ही जिंदगी की शाम में क्या अर्थ है निकालें...? कुछ इसी तरह

क्या अमृत महोत्सव उसका मतलब है..?
क्या  हर घर तिरंगा उसका मतलब है....?
अथवा विभीषिका स्मृति दिवस यानी 14 अगस्त को झंडा फहराना

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का दावा उसका मतलब है....?


अथवा तथाकथित 5 अगस्त को राम जन्मभूमि दिवस में कांग्रेस पार्टी का काला कपड़ा पहन कर सरकार की तानाशाही के खिलाफ, महंगाई के खिलाफ जन जागरण उसका मतलब है....; क्योंकि गृहमंत्री अमित शाह ने दावा किया है कि कांग्रेस पार्टी ने राम जन्मभूमि का पूजन का दिन, 5 अगस्त को कमतर के लिए करने का तरीका उसका मतलब है  ..?
इस तरह अनेक मतलब निकाले जा सकते हैं यानी इवेंट के बाजार में अपनी डफली-अपना राग ,को राष्ट्रभक्ति बताकर जनता को ठगा जा रहा है ; क्या यही इसका मतलब है...?
मैं इस समय हरियाणा की धरती मैं हूं। कहते हैं कुरुक्षेत्र या इससे लगे मथुरा ,वृंदावन, गोकुल आदि स्थान भगवान कृष्ण की जन्मभूमि और कर्म भूमि होने से यह धरती विश्व संदेश का माध्यम बन गई। कि किस प्रकार कर्मों के प्रति समर्पण और संपूर्ण कर्म-फलों का त्याग, समाज के स्वस्थ परिवेश का कारण बनता है। लौकिक जीवन में राधा ने कृष्ण से अटूट प्रेम किया, विवाह किसी का भी कृष्ण से हुआ हो; किंतु कृष्ण के आगे राधा ही अपना स्थान पाती है। क्योंकि वह निश्चल, वासनाहीन व समाज मर्यादा के अनुरूप व्यवहार का कारक है। वैसे तो महाभारत का एक-एक चरित्र वंदनीय संदेश देता है, किन्तु कर्ण का जीवन हो या भीष्म पितामह का चरित्र, लोक-समाज लोक-व्यवहार और मर्यादित जीवन को पार करके परालोक विज्ञान में आज भी स्थापित व अनुकरणीय चरित्रनायकों का निर्माण करते हैं ।कि कर्मों का संपूर्ण समर्पण, कर्तव्य पूर्ति के लिए सुनिश्चित होना चाहिए। किंतु उसका प्रतिफल याने निष्कर्ष भगवान के लिए समर्पित होना चाहिए।
ना कि स्वयं के स्वार्थ पूर्ति का जरिया बनाना चाहिए। स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन के सारथी के रूप में स्पष्ट को विस्तार से कुरुक्षेत्र के महाभारत का मार्गदर्शन किया है कि जहां धर्म समाज पक्ष का झुका हुआ प्रदर्शित करता है वही कर्म फल के त्याग का निष्कर्ष है ।
ऐसे में लाखों लोगों के बलिदान से प्रतिफल स्वतंत्रता आंदोलन के बाद प्रतीकात्मक दुनिया के लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रतीक हमारा तिरंगा झंडा हो अथवा हमारी मिली-जुली संस्कृति से निर्मित भारत का संविधान हो, दोनों से ही हमें सिर्फ निर्देश अथवा संदेश लेने चाहिए । संसद में संशोधन , मंथन का बेहतरीन जरिया है।
 बावजूद इसके इवेंट मैनेजमेंट के लिए अथवा भ्रम फैलाने के उद्देश्य से संविधान को या फिर तिरंगे को ही अथवा स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े तमाम प्रतीकों को चाहे वह अशोक के स्तंभ हो अथवा अन्य कुछ भी उनसे छेड़छाड़ करने का मतलब सीधे-सीधे संविधान पर हमला करना जैसा है। ऐसे में पारंपरिक समाज व्यवस्था या फिर लोक ज्ञान का पतन होना ही होना सुनिश्चित है। इसकी कोई भी व्यक्ति गारंटी ले सकता है। फिर चाहे वह  फिल्म झुंड का बाल चरित्र नायक का यह प्रश्न कि

भारत का क्या मतलब है और उसका उत्तर भी उतना ही सटीक है कि अगर संविधान या फिर संविधान के प्रतीक चिन्ह तिरंगा या फिर अशोक स्तंभ उसका मतलब नहीं है उसे भी खिलवाड़ बनाकर अपने स्वार्थ सिद्धि सत्ता में बने रहने का सिर्फ घटिया माध्यम बना देना यह पार्टी के इवेंट प्रचार का जरिया बना देना उस उत्तर का समावेश है कि भारत का मतलब रद्दी का गोदाम ही है, इसमें कोई शक नहीं। और अलग-अलग "झुंड" में बॅटी हमारी राजनीतिक पार्टियों के लोग कभी भी ना एक होने वाले भारतीय गर्व की गाथा को, उसकी विरासत और संस्कृति को एकत्र नहीं कर पाएंगे । सतत संघर्ष से ही आजादी स्थापित होगा। क्या यह एक सपना बनकर रह जाएगा ...? क्योंकि सत्ता का चरित्र चील, कौवे और बाज के भरोसे तब तक फलित होता है जब तक मांस और रक्त की अंतिम बूंद भी उसमें टिकी रहती है। 


 तो फिर क्या हमारे समाज के ताना-बना बनाने का जिम्मेदारी वरिष्ठ व युवा नागरिकों के सिर्फ निहित स्वार्थ का हथियार बन कर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को मजाक बनाने में अपना योगदान कर रहा है...? यह बड़ा प्रश्न इस तथाकथित अमृत महोत्सव के इवेंट मैनेजमेंट से उजागर होता है । 
फिर चाहे वह सर्वोच्च संवैधानिक पद, राष्ट्रपति पद पर किन्ही महिला आदिवासी चरित्र को महामहिम के रूप में प्रतिष्ठित कर संसद में किसी सांसद किसी मंत्री द्वारा अपमानित करने का मामला हो या फिर प्रधानमंत्री अथवा लोकसभा स्पीकर का चुप रह कर उसको मौन सहमति देते दिखना एक भयानक श़ाक की तरह है। इसका पतन का प्रायश्चित कैसे होगा यह भी बड़ा प्रश्न खड़ा  है।

 क्या लोक-तंत्र, लूट-तंत्र का जरिया बन रहा है अन्यथा खड़े तमाम प्रश्नों पर उत्तर जनता को चाहिए ही चाहिए ,इस मूकबधिर व्यवस्था से। 
यह अलग बात है कि समाजवादी विचारक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने कहा था स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सत्ता को रोटी की तरह आग में पकाना चाहिए और उसे पलटते रहना चाहिए किंतु क्या तब तक रोटी इंतजार में जलकर खाक हो जाने का डर भी नहीं खड़ा हो रहा है...? 
 यही बड़ा प्रश्न है और उससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि 15 अगस्त के बाद भारत के करोड़ों तिरंगे झंडे क्या संविधान की मर्यादा के अनुरूप सुरक्षित रखे जाएंगे या उसको पतित करने वाले दंडित होंगे अथवा स्वतंत्रता का प्रतीक हमारा विश्व विजय तिरंगा प्यारा किसी गंदी नाली में, प्लास्टिक पन्नी की तरह या फिर किसी मैकेनिक के गंदगी पोछने के रूप में देखेंगे । 
जिससे हमारा वह सोच जो झंडे के प्रति सम्मान भाव, गर्व का कारण बनता था घृणा और पतन का कारण भी बनेगा... यह हमें आने वाले समय में देखने को मिलेगा कि संविधान के हम भारतवासी लोग, भारत का क्या मतलब निकालते हैं... बहरहाल आज का दिन सरकार के निर्देश को मानने का दिन है।

स्वतंत्रता दिवस की 2 दिन पूर्व से बहुत-बहुत शुभकामनाएं.. मां भारती सबको ज्ञान और विवेक दें ताकि लोकतंत्र बचाया जाए भारत के बच्चों को उनका सुरक्षित भविष्य मिले...




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