मंगलवार, 24 मई 2022

पुलिस ने सूदखोर को बताया उधार लेने वाला


आजादी के अमृत महोत्सव काल तक
 

सामंती व्यवस्था में पीस रहा है


 केवल आदिवासी 

मामला 17 लाख की सूदखोरी का

शहडोल। नौरोजाबाद विधानसभा क्षेत्र में ऐसा नहीं है कि हमारी पुलिस व्यवस्था काम नहीं करती, यह एक अलग बात है कि उसका पूरा समय नेताओं की जी हुजूरी और सत्ता की सलामी ठोकने में ज्यादा वक्त जाता है। और जो वक्त होता है वह व्यक्तिगत रूप से पुलिस समाज को मजबूत करने में तमाम प्रकार के आर्थिक गतिविधियों में लगा रहता है जो थोड़ा बहुत वक्त वह निकाल पाती है अपनी देशभक्ति और जन सेवा के लिए उसमें शासकीय औपचारिकताओं को पूरा करने में अपना समय नष्ट करती है। शायद यही कारण है कि वह एक  शुतुर्गमुर्ग की तरह जब कभी वास्तविक सामाजिक व शोषण के मुद्दे उनके सामने रेगिस्तान में आंधी तूफान की तरह आते हैं दुर्घटना बस,  तब वह रेगिस्तान की बालू में अपना सर छुपा कर समझने का प्रयास करती है कि तूफान नहीं चल रहा है। और ऐसे प्रकरणों में  उसमें लीपापोती करने में पूरा थाना का अमला थाना परिवर्तन होने के बाद बाद भी अपनी पूर्व की पीढ़ी को ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ बना देने के लिए झूठ के पहाड़ खड़ा कर देती है। ऐसे पहाड़ को पार करने में केवल आदिवासी अपने समाज के साथ इन पहाड़ों से सिर्फ सर टकराता रहता है और अंततः कीड़े मकोड़े की जिंदगी मर जाता है। यही प्रदेश के अनुसूचित जनजाति मंत्री मीना सिंह के विधानसभा क्षेत्र नौरोजाबाद थाने का सच बनकर रह गया है । कम से कम केवल आदिवासी का मामला यही कड़वा सच बन कर मध्य प्रदेश अनुसूचित जनजाति आयोग में पिछले 3 वर्ष से अपना दम तोड़ रहा है।

क्योंकि करोड़ों रुपए जनता जनार्दन के बजट से वेतन उठाने वाली उमरिया पुलिस अब देशभक्ति-जनसेवा के बजाय सामंतवादी नजरिए पर अपना विश्वास प्रकट करते दिख रहे हैं। उसे लगता है उसने जो कह दिया वही सत्य है ।

बार-बार झूठ को कई बार बोला जाए तो वह सच हो जाता है... इस अंदाज में उमरिया पुलिस यह सिद्ध करने में लगी हुई है की नौरोजाबाद थाना थाना अंतर्गत केवल आदिवासी परिवार के बारे में जो उसने लिख दिया वही आदिवासी परिवार का भाग्य माना जाएगा।




इस तरह पुलिस ने नौरोजाबाद के सूदखोर उमेश सिंह को उधार लेने वाला हितग्राही बता दिया और सूदखोरी से दो दशक से प्रताड़ित केवल सिंह को सूदखोर बताने का प्रयास किया।

क्योंकि उमरिया पुलिस को मालूम है की केवल आदिवासी की हैसियत नहीं है कि वह न्यायालय में जाकर न्याय की गुहार लगा सके। उसे यह भी मालूम है कि रोज की रोजी-रोटी की चकल्लस में ऐसे ही आदिवासी समाज के लोग चक्रव्यू में पढ़े ही रहते हैं इसके लिए ना तो उसके पास संसाधन है और ना ही लोकतंत्र की इस न्याय प्रणाली के जंगल में न्याय का रास्ता उसे मिल सकता है।शायद पुलिस का यही अंधविश्वास केवल आदिवासी के मानसिक प्रताड़ना का कारण बन रहा है।

 बावजूद इसके कि केवल आदिवासी; आदिवासी समाज की आदिवासी मंत्री क्षेत्रीय विधायक मीना सिंह को अपना रिश्तेदार बताने में जरा भी झिझक नहीं करता। तो क्या मंत्री जी मीना सिंह इस शोषणकारी व्यवस्था में पुलिस के साथ हैं...? अथवा पुलिस समझती है कि मंत्री मीना सिंह और केवल आदिवासी परिवार में कोई अंतर नहीं है...? इसलिए वह निडर होकर झूठी कहानी आयोग के सामने भेजने में जरा भी झिझक नहीं करती ....? अन्यथा इस प्रकार की झूठी निष्कर्ष निकालने पर दोषी पुलिस कर्मचारी और अधिकारी अब तक सस्पेंड हो कर मामले को दबाने के लिए दंडित किए जाने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं जो फिलहाल होता नहीं दिख रहा...?

बताते चलें अंततः नौरोजाबाद क्षेत्र के आदिवासी परिवार के मुखिया केवल सिंह  इस बात की गुहार मध्य प्रदेश जनजाति आयोग के पास 2019 में लगाई थी ।

तो पहले समझने की आदिवासी के साथ हुआ क्या था दरअसल नौरोजाबाद क्षेत्र का बहुचर्चित सूदखोर उमेश सिंह केवल से एटीएम ले लिया और फिर मांगने पर आनाकानी करता रहा । बनाये गए हिसाब पत्रक में 1 जनवरी 2011 से 3 फरवरी 2012 तक का है जिसमें लिखा गया है की बैंक से 16 लाख 73 हजार 704 रुपया निकाला गया जबकि केवल सिंह ने उमेश सिंह से करीब15-17 साल पूर्व करीब ₹30हजार मात्र उधार में लिया था पुलिस यह भी जानती है उमेश सिंह क्षेत्र में सभी लोगों को उधार का पैसा बड़े ब्याज में बांटता रहता है। और इस बाबत कुछ प्रकरण भी उमेश सिंह पर चलाए गए हैं। बताया जाता है उमेश सिंह  बिहार से आकर आदिवासी क्षेत्र में बसा है।

तो देखना होगा कि विशेष आदिवासी क्षेत्र में आरक्षण के जरिए अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के केवल आदिवासी परिवार को और उसके समाज का देश की आजादी में अमृत काल महोत्सव होने तक क्या न्याय की राहत मिल सकती है...? तब जबकि प्रदेश के आदिवासी विभाग का मंत्री सुश्री मीना सिंह आदिवासी समाज परिवार की रिश्तेदार हो और यदि ऐसा नहीं होता, अगर हालात यही हैं तो बाकी आदिवासी समाज से निकलने वाले नेता अथवा अधिकारी वर्ग क्या खुद के समाज के हितग्राही पक्षों का उद्धार कर पाने में सक्षम है...? अथवा आजादी के अमृत महोत्सव में केवल आदिवासी इस बात का प्रमाण है कि गुलाम भारत से ज्यादा देश की आजादी के बाद अंतिम पंक्ति का अंतिम व्यक्ति आज भी शोषण और पतन की नई व्यवस्था में प्रताड़ित होने को मजबूर है।



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