शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

पारदर्शी-भ्रष्टाचार में होते अवैध निर्माण

 आम के आम, गुठलियों के दाम...

पारदर्शी-भ्रष्टाचार का सबसे सहज चेहरा है ..

अवैध निर्माण

(त्रिलोकीनाथ)

शहडोल नगर विकसित होता हुआ अधकचरा नगर है। इसलिए भ्रष्टाचार के अवसर हर आपदा में इन्हें मिल जाता है। किंतु पारदर्शी-भ्रष्टाचार का अगर कोई सबसे बड़ा चेहरा नगर विकास में देखने को मिलता है तो वह है नगर में होने वाले अवैध निर्माण। इसमें निर्माण होते वक्त सभी सरकारी तंत्र को भरपूर पारदर्शी तरीके से भ्रष्टाचार करने का अवसर मिलता है। और यदि धोखे से भी  कोई शिकायत हो जाए, कहीं कोई अडीबाजी में अवैध निर्माण गिराने की बात हो तो उसमें भी पारदर्शिता नजर आती है। और प्रसासन की वाहवाही में अखबारों में बड़ी-बड़ी फोटो छप जाती है।

 किंतु कभी भी नहीं देखा गया है कि अगर कहीं कोई अवैधनिर्माण लगातार हो रहा है तो उस पर नगर पालिका परिषद हो  नजूल विभाग हो या फिर राजस्व अमला, उसके अधिकारी-कर्मचारी हो रहे अवैध निर्माण को तत्काल मौका स्थल पर रोक लगा सकें। क्योंकि ऐसे अवैध निर्माण ही अधिकारी और कर्मचारियों के लिए अवैध आमदनी के परजीवी होने का अवसर बनाते हैं।

 कौन नहीं जानता था कि अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के बगल में तालाब के मेड़ पर मदरसा संचालन के नाम पर अवैध निर्माण अपनी अट्टालिका खड़ा कर रहा है


किंतु उसे चुपचाप इसलिए निर्माण होते देखा गया क्योंकि तालाब की रकबे को छोटा करके इस अवैध निर्माण में तत्कालीन भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारियों ने अपना अपना हिस्सा बंदरबांट कर लिया। अब जबकि राजनीति आड़े आ रही है धर्म और मजहब को बदनाम करने का अवसर मिल रहा है

तो इसे अवैध निर्माण घोषित कर मदरसा ढहाए जाने  2 दिन से प्रशासन को परेशानी चली जा रही है पुलिस वा तहसील का पूरा मामला इसी काम पर लगा है है। इसी गली में एक तालाब पर सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी जय किशन तिवारी पिछले 25 वर्ष से लगातार शिकायत करते आ रहे थे कि तालाब के मेड़ पर एक गांजा तस्कर ने अवैध निर्माण कर लिया है। और उस अवैध निर्माण के चलते उससे लगी उनके प्लाट में भी दीवार तोड़कर अपना कब्जा कर लिया है। क्या हाईकोर्ट, क्या पुलिस, क्या प्रशासन अथवा नगर पालिका परिषद सब के सब उन

शिकायतों को रद्दी की टोकरी में फेंके जा रहे थे। किंतु वर्तमान प्रशासन ने दया दिखाते हुए उनके प्लाट से अवैध निर्माण तो नहीं हटाया किंतु तालाब के मेड़ पर अवैध निर्माण को हटाकर अपने कर्तव्य की पूर्ति की।

 कमोबेश इसी प्रकार सब्जी मंडी में डबल स्टोरी पर अवैध निर्माण  भी सामने आए , सब जानते हैं कि गांधी चौक में अवैध निर्माण का बड़ा चेहरा बना चंद्रलोक नजूल भूमि पर लगातार निर्माण होता रहा और तीन मंजिला होकर शासन और प्रशासन को मुंह चिढ़ा रहा है।


इसके अंशभाग में पर तहसीलदार ने वकायदे 90000 का जुर्माना करके इसे हटाने का दुस्साहस भी किया किंतु तत्कालीन कलेक्टर ललित दायमा रेमंड शोरूम में और चंद्रलोक में कपड़ा खरीदने पहुंच गए जिसके बाद अवैध निर्माण हटाने का काम ठंडे बस्ते पर जैसे पड़ा.. अभी तक पड़ा हुआ है...। अब उसे वैध करने के तमाम रास्ते खोजे जा रहे हैं । इसी क्रम में हाल में बुढार रोड स्थित कथित सरकारी जमीन पर थारवानी वॉच कंपनी ने अवैध निर्माण का झंडा गाढ़ा जहां एक आदिवासी महिला मजदूर की अवैध निर्माण की दीवार गिरने से मृत्यु हो गई अगर मौत नहीं होती तो पारदर्शी भ्रष्टाचारी समाज अधिकारी इससे भी पचा गए होते क्योंकि सत्ताधारी सिंधी समाज के नागरिक के इस अवैध निर्माण को पोषित कर रहे थे....?

इसी प्रकार के अन्य अवैध निर्माण शहर की गली कूचे में नगरपालिका, प्रशासन, नजूल के अधिकारियों की या तो मिलीभगत से अथवा अनदेखेपन से हो रहा है। तो सवाल यह भी है कि जब नगरपालिका मुहिम चलाकर  "प्रधानमंत्री आवास" तालाब के अंदर बनाने की अनुमति दे देते हैं और  जेलभवन के बगल में तालाब पर अवैध निर्माण हो जाता है तो अन्य अवैधनिर्माण कर्ताओं को प्रोत्साहन मिलना ही है की पारदर्शी-भ्रष्टाचार के सिद्धांतों को जिसने अपना लिया वह अवैध होते हुए भी कानूनी नकाब पहनकर निर्बाध अवैध निर्माण को चाहे वे तालाब के पास हो या तालाब के अंदर हो अथवा किसी भी सार्वजनिक स्थल पर सरकारी जमीन पर ही क्यों ना हो उन्हें हरी झंडी मिल जाती रही है।

 सूचना दाता बनने का रोजगार का अवसर हो सकते हैं

 गर् पालिका परिषद चाहे तो ...

 जिस पारदर्शिता से इस प्रकार के अवैध निर्माण में लोगों का अजीबका पोषण हो रहा है होना तो यह चाहिए कि अगर इतना पारदर्शी-भ्रष्टाचार हो रहा है तो बकायदे इसमे प्रोत्साहन राशि नागरिकों को भी सुरक्षित करनी चाहिए... ताकि वह सूचना देकर भ्रष्टाचार का बंटवारा कर सकें... इससे बेरोजगारों को रोजगार का अवसर भी मिल सकता है..

 क्योंकि पारदर्शी-भ्रष्टाचार में रोजगार का अवसर, शहर के अंदर तमाम कॉलोनी निर्माण पर अवैध निर्माण पर ज्यादा नजर आ रहा है... अंततः जब कभी फिर भी कानून जब भी जिंदा होता है अपना काम करता ही है। यह अलग बात है कि वह सिलेक्टिव तरीके से अपने कार्य को अंजाम देता रहा है जैसा कि इस बार मदरसा का नकाब पहने इस अवैध निर्माण को ढहा दिया गया है और बाकी अवैध निर्माण लगातार होते चले जा रहे हैं अथवा सीना तान कर छाती ठोक कर प्रशासन की पारदर्शी भ्रष्टाचार का चेहरा बना हुए हैं अथवा बन रहे हैं।



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