मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

गांधी प्रतिमा टूटने से दिल टूटता है संकल्प नहीं

चंपारण में चुनाव का इवेंट में गद्दारों ने किया प्रयोग


अब तक शहडोल में तोड़ी गई गांधी प्रतिमा के

अपराधी नहीं हुए चिन्हित..?

सबको सम्मति दे भगवान...

(त्रिलोकीनाथ)

 15 फरवरी 2022 को बिहार के चंपारण मैं दक्षिणपंथी लोगों द्वारा महात्मा गांधी की प्रतिमा को खंडित किए जाने की खबर अब गुस्सा नहीं दिलाती क्योंकि गांधी हत्या के विचारधारा ने हमें गांधी हत्या के जहर से एप्रूव्ड कर दिया है ।हम इसे स्वीकार करने लगे हैं कि देश में गांधी के हत्यारे कि अपनी सल्तनत है ।गांधी भलाई हजारों साल की गुलामी के बाद स्वतंत्र भारत के  भारत में पहला प्रयोग चंपारण की धरती में ही नील की खेती के विरुद्ध आंदोलन चलाया था।


 तब उन्हें अंग्रेजी सल्तनत की भयानक जुल्म की दास्तान को बताने के लिए चंपारण के ही रामचंद्र शुक्ल पोरबंदर गए थे। देश की आजादी का पहला प्रयोग चंपारण की ही धरती से हुआ था ।और जिस प्रकार का भारत नया इंडिया 2022 में दिख रहा है उससे यह कहना सहज है कि हम गुलामी के दौर पर लौट रहे हैं।

 नकाब स्वतंत्र भारत का होगा ऐसा प्रतीत होता है ।ऐसे में अगर चंपारण मे एहसान फरोश अथवा गद्दार भारतीय नागरिक गांधी की प्रतिमा तोड़ते हैं तो वह सिर्फ एक प्रतीक होगा, गुलामी की शुरुआत का प्रतीक इसे समझना चाहिए।

शहडोल में भी टूटी थी गांधी की प्रतिमा

 अपराधी आज भी लापता...?

 हमने शहडोल में इसे भली बात महसूस किया है ।तब अभी कुछ साल पहले पुराना गांधी चौक स्थित मनभावन संगमरमर की गांधी प्रतिमा रात के अंधेरे में तोड़ दी गई थी। बहुत शांति के साथ धैर्यवान शहडोल की जनता ने इससे पैदा हुई नपुंसक पुरुषार्थ को धारण करना चालू कर दिया था। इसलिए हम सब गुलामी शोषण अनैतिकता और असभ्य समाज को स्वीकारने लगे हैं। क्योंकि अब सार्वजनिक रूप से भी अगर अपराधी अपराध करते हैं और पुलिस की शरण में अपने संरक्षण के लिए f.i.r. रूपी नकाब में छुप जाते हैं। तो यह अपराध जगत में पल रहे अपराधियों के लिए एक ऐसा हिजाब है। जिसमें उन्हें कानून संरक्षित करता है ऐसा मानकर चलना चाहिए। इन परिस्थितियों में गांधीवादी विचारधारा से चलने वाला प्रशासन बीते कल की बात हो चुकी होती है।

गांधीगिरी में सरेआम आक्रमण कर लूट ली गई अकेली महिला

पुलिस ने अपराधियों को किया संरक्षित काउंटर केस बनाकर

 क्योंकि इमानदार, नैतिक और मौलिक अधिकार के तहत यदि कोई महिला अकेली पुलिस थाना क्षेत्र परिसर के बगल की सड़क में लूट और आक्रमण का शिकार हो जाती है तो उसे संरक्षण क्यों मिलना चाहिए..? यदि यह सब कुछ सुनियोजित तरीके से अपराध की सफलता के लिए षड्यंत्र कर  किया गया था। क्या षड्यंत्र कारी कोई दिनेश नाम का व्यक्ति पुलिस के किसी अधिकारी से मिलकर इस अपराध को घटित कराया ..? तो वह पुलिस अधिकारी कौन था..? अन्यथा क्या कारण है की घटनास्थल के पास लगे सीसीटीवी अथवा घटना की कराई गई वीडियोग्राफी चाहे वह दिनेश के मोबाइल पर हो अथवा आक्रमणकारी परिवारिक सदस्य के मोबाइल पर हो, उसे भी चिन्हित कर जांच किया जाना क्यों जरूरी नहीं समझा गया....?

 यह बात पुलिस की अनदेखी से संरक्षित होती है  ।क्या जांच अधिकारी की ईमानदार-कर्तव्य परायणता के लिए देशभक्ति जनसेवा का नारा उसे यह प्रेरित नहीं करता ..? यदि जांच अधिकारी के खून में ऐसी उबाल नहीं है तो उसे मालूम है कि जांच कैसी करनी चाहिए ..जो अपराधी के हित को और सुनियोजित षड्यंत्र का लक्ष्य साध सके...।

कब कलेक्टर पर भी हुआ था हमला...?

 हमला अथवा आक्रमण किसी पर भी हो सकता है ।शहडोल के एक कलेक्टर पर अपमानजनक हमला हुआ, शहर जानता है तो घर कलेक्टर सुरक्षित नहीं है...? अपराधियों से महात्मा गांधी की मूर्ति खंडित होने के बाद आज तक शहडोल में अपराधी चिन्हित नहीं हुए ...? मामला, जानबूझकर दबा दिया गया या फिर पुलिस का पुरुषार्थ गांधी प्रतिमा के खंडित होने पर अपराधियों को संरक्षित करने का काम करता रहा....?

 तो यह नया भारत है ।और इस नए भारत में अगर शहडोल की पुलिस और थाना नीलामी के जरिए भी व्यवसाय के लिए बेचे जाने लगे तो आश्चर्य क्यों होना चाहिए..? आखिर देशभक्ति-जनसेवा की भी अपनी एक ब्रांड वैल्यू है और जब किंगफिशर अपने ब्रांड वैल्यू में बिक गया को भी बेचने का काम निजीकरण करने का काम क्यों नहीं होना चाहिए । अगर इसमें करोड़ों अरबों रुपए के व्यवसाय की संभावना जिंदा है ऐसा मानकर भी चलना चाहिए।

 किंतु हम यह हमारे जैसे पिछड़े लोग आदिवासी प्रकृति के लोग इमानदारी नैतिकता और कर्तव्य निष्ठा को अभी भी गांधी की मूर्ति में समाया देखते हैं। लेकिन जब भी गांधी मूर्ति टूटती है तो हम नपुंसक-पुरुषार्थ को गर्व के रूप में मजबूत होता भी देखते हैं। इसलिए अब जबकि गांधी की कर्मभूमि का पहला बड़ा भारत में चंपारण में असहयोग आंदोलन के रूप में हुआ और लोगों ने गांधी प्रतिमा को खंडित होने का इवेंट क्रिएट करते की खबरें भी आई तो शायद यह है चुनाव के धंधे में सनसनी पैदा करने का राष्ट्रीय संकल्प के अलावा कुछ नहीं है । 

बावजूद इसके बहुत ही गंदा, निंदनीय और नपुंसकता भरा पुरुषार्थ है... ऐसा मानना चाहिए कुछ सिरफिरे लोग हो सकता है अपराध को संरक्षण देने में गर्व करने का सोच रखते हैं और अपराध जगत को संरक्षित करते हैं किंतु एक न एक दिन उनके निजी जीवन में इस अपराध को से दंडित होना ही पड़ता है। यही प्रकृति का न्याय है। इसलिए गांधी प्रतिमा अब जब कभी टूटती है तो हम सिर्फ अपने पुरखों के प्रति गद्दार होने का प्रमाण पत्र हासिल करते हैं । ऐसा मानकर चलना चाहिए। मूर्ख और गद्दार समाज मे इससे ज्यादा अपेक्षा भी नहीं करना चाहिए।


 फिर भी भारत के संविधान और संसद के सामने गांधी की छाया आजीवन बनी रहेगी क्योंकि दुनिया ने गांधी को और उनके विचारों आत्मसात करने में ही वसुदेव कुटुंबकम की भावना का साकार रूप देखा है। और इसलिए महात्मा गांधी हमेशा हमारे दिल में बसते रहेंगे।



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