प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम्
मेरे अंगने में
तुम्हारा क्या
काम है:
पद्मश्री कंगना
(त्रिलोकीनाथ)
कंगना अपने अंगना में जम कर विचारों को नग्न किया और अपनी सत्ता के संरक्षण वाली अंदाज में पद्मश्री की
कीमत चुकाती हुई पूरे खुले दिल के साथ जैसे बोली, मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है.. ? मैं चाहे यह करूं, मैं चाहे वह करूं.. मेरी मर्जी।
लेकिन भारतीय राजनीति में इस महान दिखानेवाली पद्मश्री कंगना राणावत को बख्शने के मूड में दिखाई नहीं देती यह जानते हुए कि सरकार को फर्क नहीं पड़ता है। पुरस्कारों की राजनीति में पहले भी कई साहित्य अकादमी पुरस्कार को सरकार कचरा कर चुकी है क्योंकि पुरस्कार विजेताओं ने उसे कचरे की तरह लौटा दिया था। असहिष्णुता के मामले में ।
कंगना ने असहिष्णुता की उससे भी बची कुची सभी सीमाओं को पार करके देश के वीर बलिदानों के बलिदान को झूठ बताने का जिस प्रकार का घृणित और निंदनीय वक्तव्य दिया है और अब उसका बचाव कर रही है। उससे लगता है कंगना अपने अंगना मैं अपने तरीके से नाचना चाहती है... क्योंकि वह एक्ट्रेस है और एक्ट्रेस यही करती है। अगर डायरेक्टर राजनीतिक होता है तो उसकी मजबूरी भी होती है आखिर उसकी भी अपनी अभिव्यक्ति होती है । जहां से लाभ होता है वहां वह काम करती है। एक्ट्रेस कभी किसी की बारात में नाचती है तो कभी किसी के पार्टी में नाचती है तो कभी किसी के किसी शर्त के इशारे पर भारतीय राजनीति की तहस-नहस करने के लिए भी नाचती रहती है। ऐसे में भारत के गौरवशाली आजादी के आंदोलन उसके वीर सेनानी 1947 में विभाजन में मारे गए लाखों भारतीय नागरिकों की कुर्बानी यह सब फिल्म की सीन की तरह होते हैं किसी 32-34 साल की प्रौड़ लड़की के लिए रोमांचकारी भी होते हैं अगर स्टेज अंतरराष्ट्रीय स्तर की राजनीति में टीआरपी बनाता हो... अगर उसमें अचानक चुनाव हार की कंडीशन में भी केंद्रीय मंत्री बन जाने का अवसर जिंदा दिखे तो कुछ भी आंय-दाएं-बाएं बका जा सकता है। पद्मश्री का भारतीय मंच महत्त्व तो रखता ही है।
किंतु दुर्भाग्य जनक वह पक्ष है जैसा कि सांसद मनोज झा ने कहा कि कंगना ने जो कहा वह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि जो लोग वहां ताली बजा रहे थे वह दुखद है।
भारत की राजनीति में यह समझने के बाद की विवादित इवेंट क्रिएट करने के लिए पुरस्कारों को भी एक हथियार बनाया जाता है और बनाया भी गया है फिर भी कंगना के अंगना में उसके मूर्खता पूर्ण डांस पर इतना विवाद आश्चर्यजनक है। बावजूद इसके ना तो किसानों के आंदोलन की चर्चा कम हो रही है और ना ही अन्य समस्याओं पर चर्चा कम हो रही है।
इसका मतलब है की राजनीति करवट बदल रही है। कंगना को पद्मश्री देकर अपने अंगना मे नचवाने पर भी लोग डायवर्ट हो जाएंगे शायद असफल हो रहा है।
फिलहाल जानिएकि भाजपा की इस "नई स्मृति ईरानी" कंगना ने क्या कहा-
बॉलीवुड की मशहूर एक्ट्रेस कंगना रनौत इन दिनों आजादी पर दिये गए बयान को लेकर काफी चर्चा में बनी हुई हैं। कंगना रनौत ने टाइम्स नाउ को दिए इंटरव्यू में कहा था कि 1947 में मिली आजादी भीख थी और असली आजादी 2014 में मिली है। कंगना रनौत के बयान से
जहां भाजपा ने असहमति जताई है तो वहीं कांग्रेस ने पद्मश्री वापस लेने की मांग की है।
इस तरह भाजपा के अपनी लैब से पैदा किए हुए इस "कंगना पद्मश्री वायरस" से पीछा छुड़ाने के लिए लाइफवॉय साबुन से हाथ धो रही है तो विपक्ष चुनाव के मौसम में इस अचानक आई बरसात से कंगना के अंगना में नहाने के मूड में दिखता है। फिलहाल तो यही वातावरण है
है कि नहीं....?, यही राजनीति का प्रत्यक्ष किम् प्रमाणम है
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