सोमवार, 15 नवंबर 2021

तालाब रक्षा मे मैं ब्लैकमेलर नहीं बन पा रहा 3 (त्रिलोकीनाथ)


मामला जेलभवन के बगल तालाब
का
 (भाग 1 )

भारत रत्न की

नजरें इनायत भी


न कर सके 


न्याय इस तालाब भूखंड पर

कहते हैं भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेई ने अपने शहडोल दौरे पर इस तालाब की भूमि पर न्याय की गुहार की थी तब उन्हें बताया गया कि तालाब के बगल में नजूल का प्लाट है जिसमें अन्याय हो रहा है । और बाद में नगर तथा ग्राम निवेश द्वारा शहडोल विकास योजना प्रारूप 2011


में ही जेल भवन के पास के तालाब को विलुप्त कर दिया था। तब तालाब साक्षात जिंदा रहा बावजूद इसके उनका तर्क था की चूंकी सरकारी रिकॉर्ड में यह तालाब नहीं है हमने भी उस तालाब को विलुप्त किया था।

नजूल ने जिंदा तालाब को बनाया प्लाट

 क्योंकि सरकारी रिकॉर्ड नजूल विभाग ने इस तालाब को प्लाट बनाकर तत्कालीन अधिकारियों ने अपने चहेते लोगों को बांट दिया था तथा जो




तालाब गणेश मंदिर के सामने बुढार रोड पर कब्जा करके नष्ट किया जा रहा था वहां एक बड़ा तालाब दिखाया गया था। मैंने आपत्ति की, मेरी आपत्ति का निराकरण करते हुए तालाबों को जिंदा किया गया। हालांकि जेल भवन के बगल का यह तालाब जहां पर सहकारी उपभोक्ता भंडार का कार्यालय है, नर्मदा गैस एजेंसी वगैरह बन गई हैं अब तो संप्रेक्षण गृह भी बन गया है इस पर काफी विवाद हुआ। क्योंकि जीवित भरे पूरे तालाब को तालाब मानने के लिए मुझे दवाब देना पड़ा ।

प्रभारी मंत्री अजय सिंह के सामने उठाया मुद्दा

उस समय अर्जुन सिंह के पुत्र शहडोल के प्रभारी मंत्री अजय सिंह राहुल शहडोल आए हुए थे। प्रशासन का फैशन था जल संरक्षण का और तालाब संरक्षण का सर्किट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस हुआ मैं अपनी योजना के अनुसार ब्लैकमेल करने के लिए पूर्व से इस तालाब में बनने वाले बाल संप्रेक्षण गृह की शिलान्यास पर आपत्ती के लिए उस वक्त खड़ा हुआ जब अजय सिंह प्रशासन के साथ शिलान्यास को जाने वाले थे। मेरा अनुरोध




मंत्री अजय सिंह से यह था कि पूरे प्रदेश में जल संरक्षण की शुरुआत आप जेल भवन के बगल में बाल संप्रेषण गृह के शिलान्यास को रोककर संदेश दे सकते हैं कि तालाबों पर कोई भी सरकारी भवन नहीं बनेगा। अजय सिंह को उचित भी लगा। उन्होंने तत्कालीन कलेक्टर पंकज अग्रवाल और संजय दुबे से इस आपत्ति का निराकरण करना चाहा, दोनों अधिकारियों ने समझा-बुझाकर मंत्री को पटाकर अंततः तालाब की मेड पर शिलान्यास करवा दिया।

फिर इंद्रजीत पटेल पर्यावरण मंत्री ने तालाब का गहरीकरण करवाया

 मंत्री बदल गए इंद्रजीत पटेल पर्यावरण मंत्री हुए साथ में शहडोल के प्रभारी भी फिर इसी सर्किट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस हुआ जहां पर मेरी बड़ी बहस हुई ।अंततः इंद्रजीत पटेल ने मुस्कुराकर कलेक्टर पंकज अग्रवाल से कहा अब तो सही हो गया है कि यहां पर तालाब है तो बताइए इसका गहरीकरण किस तिथि को किया जाए ....?और फिर तालाब का सरकारी फंड लाखों रुपए लगाकर गहरीकरण हुआ; मेरे अनुरोध पर तालाब संरक्षण हेतु करीब डेढ़ लाख रुपए की नाली का निर्माण भी किया गया ताकि मल मूत्र तालाब में ना जा सके।

 और इस तरह मैंने पहला तालाब शहडोल का बचाने का और संरक्षित करने का दो मंत्रियों के बहस के बाद सफलता पाई। किंतु 2020 में  इस प्रयास को धक्का लगा, जब भाजपा के पालिका परिषद में तालाब के मेड पर प्रधानमंत्री आवास योजना से किसी गरीब का घर बनवा दिया तालाब को भाटने के लिए इस तालाब के आसपास के सभी अमीरों का नकल करता हुआ तालाब नष्ट करने पर काम कर रहा है या फिर अन्य गरीबों के साथ अपनी गरीबी दूर कर रहा है, ऐसा भी कहना चाहिए। क्योंकि संप्रेक्षण गृह का मल मूत्र भरा जल इसी तालाब पर गिराया जा रहा है आसपास का पूरा मलवा इस तालाब को भर रहा है और इस कारण जब भी बरसात होती है सड़क पर पानी बहने लगता है। क्योंकि वह अन्य किसी तालाब से लिंक हो कर अन्य किसी तालाब में जाने के लिए आता है।

पूरा सरकारी तंत्र जैसे नपुंसक हो चला है

 किंतु इस तालाब के संरक्षण के लिए पूरा सरकारी तंत्र जैसे नपुंसक हो चला है पालिका परिषद ने तो इस पर अतिक्रमण ही करवा दिया है। इन सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि जहां सरकार का लाखों रुपए फंड तालाब गहरीकरण में लग चुका हो, नजूल विभाग शहडोल मानता है कि यह तालाब है ही नहीं; यह तो आवासीय और कमर्शियल प्लाटिंग का क्षेत्र है।

 उसके नक्शे में आज भी यह प्लाट है जहां लोग अतिक्रमण कर रहे हैं जहां वकायदे नक्शा बनाकर प्लाटिंग करने की योजना जिंदा है। ऐसे में तालाबों का संरक्षण सरकारी ढकोसला के अलावा कुछ प्रमाणित नहीं होता। तो फिर क्यों आशा करनी चाहिए कि शहडोल नगर के सैकड़ों तालाब बचे रहने चाहिए। उनकी भी हत्या की योजना प्लाट बनाकर क्यों नहीं करनी चाहिए। क्योंकि हमारा नेतृत्व  हमारी राजनीति और उस वार्ड में चुने हुए पार्षद और नेता उन तालाबों की रक्षा की प्रतिबद्धता पर चुनकर नहीं आए हैं। बल्कि तालाबों को अघोषित तौर पर बेचकर, उस पर अतिक्रमण कराकर अपना गौरव पूर्ण नेतृत्व जिंदा रखना चाहते हैं...?

 तो पत्रकारिता में यदि इस सिस्टम को ब्लैकमेल करने की क्षमता जिंदा नहीं है तो तालाब जिंदा नहीं रहेंगे... यह तय है।

 हमाम में सब नंगे हैं और इन नंगों की बस्ती में तालाबों का संरक्षण एक बेमानी भरा दंभ पूर्ण संघर्ष के अलावा कुछ नजर नहीं आता... हमारे प्रधानमंत्री ग्लासको जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में कुछ भी बोलें वह भी एक प्रकार का ढकोसला और राजनीतिक कूटनीति की तरह है जैसे शहडोल में  कूटनीतिज्ञ तालाबों को हत्या कर नष्ट करने में  उसमे भ्रष्टाचार के अवसर देखने और तालाब की जीवन को मृत शरीर की तरह बंदरबांट करने में अपनी बहादुरी समझते हैं और योग्यता भी क्योंकि उसी पर शायद उनकी आजीविका और परिवार पलता है। क्या पत्रकारिता को तालाबों के संरक्षण के लिए एक बेहतरीन ब्लैकमेलर नहीं बनना चाहिए..? अगर सामान्य प्रक्रिया से तालाब याने हमारे जिंदा रहने की शर्त जीवित बची रह सकती है।

 बिहारी समाज मे तालाब में उगने वाला छठ का सूर्य अगर जेल भवन के बगल में उस तालाब की 20 वर्ष पूर्व सरकारी धन से हुए गहरीकरण के बाद घाट बनाकर सूर्य उगाया जाता तो शायद यह तालाब सरकारी रिकॉर्ड में भी तालाब बन जाता और बचा रह सकता है किंतु जब "बाड़ी ही खेत को खाने लगे".... जब नजूल विभाग ही इस तालाब को प्लाट बनाने का संकल्प ले ले तो यह तालाब जिंदा कैसे रहेगा .... यह सरकार के लिए भी चुनौती है... प्रशासनिक अधिकारियों के लिए भी, जिन्होंने आईएएस, आईपीएस एस ए एस जैसी परीक्षा पास करके अपनी योग्यता का प्रदर्शन शहडोल नगर में कर रहे हैं।

 देखते हैं वह वास्तविक जीवन में क्या पास हो पाते हैं अन्यथा भ्रष्टाचार तो एक गौरवशाली परंपरा बनती जा रही है नैतिकता का भाषण भ्रष्टाचार की शायद पहली शर्त भी बन गई है यह तालाब यही प्रमाणित करता है.....


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