बुधवार, 13 अक्तूबर 2021

अमरकंटक जनजाति विश्वविद्यालय आदिवासियों के दमन का बना अड्डा..?


जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष ने लगाए विश्वविद्यालय प्रबंधन पर पर गंभीर आरोप 

कहा, कुलपति की वजह से 

जनजातियों काअपमान, 

का अड्डा बना,

अमरकंटक विश्वविद्यालय

जिस प्रकार से किसी छोटी सी संस्था से अमरकंटक विश्वविद्यालय में प्रमुख पद पर लाए गए कुलपति अपनी पदस्थापना पर चर्चित रहे अब उन पर गंभीर आरोप लगने चालू हो गए हैं । इस बार मध्य प्रदेश पूर्व जनजाति आयोग के अध्यक्ष नरेंद्रसिंह मरावी (कार्य परिषद सदस्य)इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक कार्य परिषद के अधिकृत जनजातीय सदस्य को अपमानित करने, उससे गैर कानूनी कार्य करने के लिए गलत कार्य योजना अनुमोदित कराने की साज़िश रचने, जनजातीय समुदाय के हितों के विपरीत कार्य, भ्रष्टाचार एवं शासकीय पद का दुरुपयोग कर कूटरचित एवं फर्जी दस्तावेजों के


आधार पर शासकीय कार्यों  गैरकानूनी निर्वहन करने के मामले में अपराध दर्ज कर कानूनी कार्रवाई करने के संबंध में कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक अनूपपुर को पत्र लिखा है

अपने व्यापक पत्र में शहडोल सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह के पति इंजीनियर नरेंद्रसिंह मरावी जोकि मध्य प्रदेश जनजाति आयोग के अध्यक्ष रह चुके हैं अपने आवेदन पत्र पर लिखते हुए कहा है

अत्यंत दुख के साथ यह पत्र लिख रहा हूँ कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2007 की धारा 24 (दो) के अनुसार कार्यपरिषद में जनजाति सदस्यों की संख्या पर्याप्त होनी चाहिए लेकिन कार्यपरिषद में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा ऐसा प्रयास किया गया है कि उसमें कम से कम जनजाति सदस्य रहें। कार्यपरिषद में इकलौता मैं ही जनजातीय सदस्य हूं उसके बावजूद भी लगातार मेरा अपमान, मेरा तथा जनजाति लोगों के


अधिकार की हनन तथा जनजाति महानायक  भगवान बिरसा मुंडा का अपमान, जनजाति छात्रों को प्रवेश से वंचित करने का कार्य, गैरकानूनी तरीके से शासकीय

पद का दुरुपयोग करके कूटरचित दस्तावेज के आधार पर छात्रों को नुक़सान, जनजाति सदस्य को अपमानित, प्रताड़ित तथा उसे अपने अधिकारों से वंचित किया गया है।इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2007 की धारा 25(2) में भी अकादमिक परिषद में अधिक से अधिक सदस्य जनजातीय समुदाय से सदस्य होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ है इसके अलावा कॉलेज डेवलपमेंट काउंसिल मी भी जनजाति सदस्य की संख्या ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। इसके अलावा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2007 की धारा 27 तथा धारा 28 में भी वित्त समिति में अधिक से अधिक सदस्य जनजातीय समुदाय से होना चाहिए लेकिन अधिनियम के विरुद्ध जाकर जनजातीय समुदाय को नुकसान पहुंचाने की नीयत से वित्त समिति में भी कम से कम जनजातीय सदस्यों को रखा गया है इसके पीछे नियत यह है कि जनजाति समुदाय को उनके अधिकारों से उनके लाभ से वंचित करके उन्हें अपमानित किया जा सके। यह कार्य परिषद के अध्यक्ष श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी तथा अवधेश कुमार शुक्ला अपने स्वयं के लाभ प्राप्त करने के लिए किए है। 

 जनजातीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2007 की धारा 29 में भी स्पष्ट है कि कोई भी कमेटी या परिषद या अन्य प्रकार की प्राधिकृत समिति में जनजातीय समुदाय की भागीदारी पर्याप्त संख्या में होनी चाहिए लेकिन विश्वविद्यालय के कुलपति तथा कार्य परिषद के अध्यक्ष श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी तथा कार्य परिषद के सदस्य अवधेश कुमार शुक्ला आपस में मिलकर षड्यंत्र रच कर साजिश पूर्ण नियत से जनजातीय समुदाय को अपमानित करने के लिए उन्हें उनके लाभ से वंचित करने के लिए वित्त समिति, बिल्डिंग्स समिति तथा अन्य प्रकार की सभी महत्वपूर्ण समितियों में जनजातीय समुदाय की भागीदारी नगण्य कर दी गई है जोकि अधिनियम के विपरीत जाकर जनजातीय पर अत्याचार करने जैसा अपराध है।

भारत के राजपत्र में प्रकाशित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय स्टेट्यूट की धारा 11 में तथा धारा 12 में यह लिखा है कि कार्य परिषद का गठन किस प्रकार से किया जाएगा। स्टेट्यूट की धारा 11 में लिखा है कि विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद की बैठक में 7 सदस्य से उसका कोरम पूरा होगा तथा स्टेट्यूट की धारा 12 में लिखा है कि कार्य परिषद का शक्ति तथा कार्य क्या है? स्टेट्यूट की धारा 11 तथा 12 में कहीं पर भी यह नहीं लिखा है कि कार्य परिषद में विशेष आमंत्रित सदस्य को बुलाकर बैठक किया जाएगा। कार्यपरिषद की बैठक की सदन की एक गरिमा होती है लेकिन यहां पर लेकिन विश्वविद्यालय में नियम विरुद्ध गैर कानूनी कार्य करने से तथा बार-बार गलत कार्य करने से हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि प्रत्येक बार कार्यपरिषद की बैठक में अपने लोगोंको अधिनियम विरुद्ध कार्य परिषद में बुलाने की परंपरा बन गई है ताकि कार्यपरिषद में गलत कार्यों को हावी होकर पारित करा लिया जाए। 

विश्वविद्यालय के कुलपति तथा कार्य परिषद के अध्यक्ष ने ऐसा ही कार्य आज होने वाली कार्यपरिषद की बैठक के लिए भी किया है तथा अधिनियम के विपरीत जाकर प्रोफेसर आलोक श्रोत्रिय,  प्रोफ़ेसर एनएसएचएम मूर्ति, श्री ए जैना को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में कार्य परिषद की बैठक में बुलाया गया है जो की पूर्णता नियम विरुद्ध - अधिनियम विरुद्ध है और ऐसा इसलिए किया गया है ताकि एक जनजातीय सदस्य की आवाज को दबाया जा सके, जनजातीय के हितों को दबाए जा सके तथा उनके ऊपर अत्याचार किया जा सके।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय कार्यपरिषद की 49 वीं बैठक आज दिनांक 13 अक्टूबर 2021 को आयोजित की गई है और इसकी सूचना ठीक 1 दिन पहले दिनांक 12 अक्टूबर 2021 को दी गई है जबकि इस कार्य परिषद की बैठक में अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा जो छात्रों के भविष्य से जुड़ा हुआ है, जनजातीय हितों से जुड़ा हुआ है, उस पर विस्तृत चर्चा करके उस पर निर्णय लिया जाना है। 

जानबूझकर 1 दिन पहले बैठक को फाइनल करना तथा आधा अधूरा एजेंडा देना की यह परंपरा गैरकानूनी तथा नियम विरुद्ध है। कम से कम 15 दिन पहले कार्य परिषद की रेगुलर बैठक की सूचना आ जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया क्योंकि कार्य परिषद के अध्यक्ष श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी तथा सदस्य श्री अवधेश कुमार शुक्ला आपस में मिलजुल कर जनजाति समुदाय को नुकसान पहुंचाने के लिए उन पर अत्याचार करने के लिए उनकी आवाज को दबाने के लिए साजिश पूर्ण नियत से ऐसा कार्य किए हैं। 

मैं बिंदुवार अपराध एवं अत्याचार की जानकारी दे रहा हूं कार्य परिषद की कार्यसूची के बिंदु क्रमांक एक में कार्यपरिषद की पिछली 46 वीं, 47 वीं तथा 48 वीं सम्पन्न हो चुकी बैठक के मिनट्स को कंफर्म किया जाना है, लेकिन विश्वविद्यालय की 48 वीं कार्यपरिषद की बैठक जो कि दिनांक 15 जुलाई 2021 को हुई थी, उसमें मेरे द्वारा दिए गए एजेंडा को शामिल नहीं किया गया था तथा विश्वविद्यालय में प्रवेश में व्याप्त भ्रष्टाचार को ठीक करने के लिए मेरी द्वारा दिए गए एजेंडा पर विश्वविद्यालय द्वारा सुनवाई नहीं की गई थी। 

ज्ञात हो गई दिनांक 15 जुलाई 2021 को कार्यपरिषद की बैठक में मैंने कुछ बिंदुओं पर एजेंडा आइटम को कार्यपरिषद में सम्मिलित कर उस पर चर्चा करके निर्णय लेने के लिए पत्र लिखा था लेकिन श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी तथा अवधेश कुमार शुक्ला ये लोग इस विश्वविद्यालय को अपनी निजी संपत्ति समझ लिए हैं कि उन्होंने कार्य परिषद सदस्य के रूप में मुझे प्रदत्त अधिकार तथा इंदिरा गांधी जनजाति विश्वविद्यालय अधिनियम से प्रदत्त शक्तियों का भी प्रयोग नहीं करने दिए मुझे अपमानित किए, जनजातीय होने के कारण मेरे पर अत्याचार किए तथा 


मेरे द्वारा दिए गए अजेंडा को बैठक में शामिल नहीं किए। मेरे द्वारा एजेंडा दिए गए अजेंडा दिनांक 15 जुलाई 2021 को मैंने कुछ एजेंडा को प्रमुखता से उठाया था क्योंकि उस समय विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रक्रिया का कार्यक्रम प्रारंभ हो रहा था, मैंने मेरिट पर एडमिशन देने के लिए नियम बनाने के लिए कार्यपरिषद में एजेंडा रखने के लिए बोला था लेकिन मुझे इस बात का झूठी हवाला देकर कार्य परिषद के अध्यक्ष श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी तथा सदस्य के शुक्ला द्वारा गुमराह किया गया कि इस बार का प्रवेश ऑल इंडिया लेवल पर एंट्रेंस एग्जाम के माध्यम से होगा। जबकि मैंने पत्र जो लिखा था वह देश के माननीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा किए जा रहे कार्यों को देखते हुए ही किया था क्योंकि कोरोना महामारी के कारण अन्य सभी जगहों पर एक साथ कॉमन एंट्रेंस एग्जाम की बात नहीं हो रही थी। 

तब मैंने सही समय पर सही बात को कार्यपरिषद में रखने के लिए अनुरोध किया था लेकिन मुझसे झूठ बोलकर मुझे प्रताड़ित करने के लिए तथा मुझे अपमानित करने के लिए मेरे द्वारा स्थानीय छात्रों तथा जनजाति छात्रों के हित में प्रवेश के संबंधित दिए गए एजेंडा को कार्यपरिषद की सूची में शामिल नहीं किया गया तथा अवधेश कुमार शुक्ला ने फर्जी तरीके से ऐडमिशन नोटिस जारी करके हजारों छात्रों का भविष्य दांव पर लगा दिया है क्योंकि एडमिशन नोटिस जो निकाला गया वह नई शिक्षा नीति 2020 के हवाला देकर उसके विपरीत निकाला गया है जिसे मै जाँच के दौरान प्रमाणित कर दूँगा, जारी किया गया प्रवेश सूचना पूर्णत अवैध है। जिससे आम छात्र गुमराह हो गए है।  

माननीय प्रधानमंत्री जी का स्पष्ट संदेश है कि सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास तथा सबका प्रयास होना चाहिए लेकिन विश्वविद्यालय ने ना तो विश्वास लिया, ना तो प्रयास को सम्मिलित कराया तथा विश्वविद्यालय को अपना निजी संपति समझते हुए अन्य राज्यों के अलग-अलग विशेष धर्मों के छात्रों को प्रवेश देने के लिए जानबूझकर बिना कार्य परिषद की मंजूरी के फर्जी प्रवेश सूचना जारी कर दिया है जो कि अपराध की श्रेणी में आता है।  

यह मामला मेरे साथ-साथ समस्त जनजाति समुदाय का अपमान तथा उनके ऊपर अत्याचार का है इसके अलावा विश्वविद्यालय गेट के बाहर भगवान बिरसा मुंडा का मूर्ति तो लगाया गया है लेकिन जब मैंने भगवान बिरसा मुंडा पर शोध के संबंध में एक एजेंडा को कार्यपरिषद में रखने के लिए दिया तो श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी तथा अवधेश कुमार शुक्ला के षड्यंत्र ने उस अजेंडा को कार्यपरिषद में शामिल नहीं होने दिया । यह घटना भगवान बिरसा मुंडा के साथ साथ पूरा जनजाति समुदाय का अपमान है। 

अत्याचार एवं अपमान इस स्तर पर बढ़ गया है कि जनजातीय विश्वविद्यालय के जनजातीय संकाय में जनजातियों पर शोध के लिए एक भी जनजातीय शोध छात्र का विश्वविद्यालय में चयन नहीं किया है। बहुत सारी सीटें खाली छोड़ दी हैं, एक योग्य छात्रा का प्रवेश परीक्षा से एक दिन पहले निरस्त कर दिया गया तथा षडयंत्रपूर्व प्रवेश में भ्रष्टाचार करके जनजाति छात्रों को प्रवेश से वंचित कर दिया गया है यह घटना मेरे साथ-साथ समस्त जनजातीय समुदाय का अपमान है। 

एक तरफ एक्ट में जनजातीय समुदाय से प्रतिनिधित्व अधिक से अधिक संख्या में होने का उल्लेख है जनजाति छात्रों को अधिक प्रवेश देने का उल्लेख है लेकिन विश्वविद्यालय राजपत्र में प्रकाशित अधिनियम के विपरीत लगातार कार्य हो रहा है तथा जनजाति विश्वविद्यालय में जनजातियों के विरोध में कार्य हो रहा है। 


मेरा अपमान तथा मेरे साथ अत्याचार इस प्रकार हुआ है कि दिनांक 15 साथ 2021 को आयोजित की गई कार्य परिषद की मिनिट्स आज दिनांक तक मुझे नहीं भेजी गई है और ना ही मुझ से हस्ताक्षर कराया गया है और बिना मेरे अनुमोदन के, बिना मेरे हस्ताक्षर के आज दिनांक 13-10-2021 को होने वाली कार्यपरिषद की बैठक में उसे अनुमोदित करने के लिए कार्यसूची (एक) में रखा गया है, जो सीधे-सीधे शासकीय पद का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार तथा एक जनजाति कार्य परिषद सदस्य का अपमान तथा उस पर अत्याचार करने का है। इसके अलावा प्रवेश के सम्बंध में मेरे द्वारा प्रस्तुत एजेंडा को शामिल नहीं करते हुए मध्य प्रदेश के हजारों जनजाति छात्रों के अधिकार से उन्हें वंचित करने का अपराध किया गया है। 

आज का कार्य परिषद की बैठक अपने आप में अवैध तथा भर्राशाही का एक जीता-जागता उदाहरण है, जिस पर कानूनी कार्रवाई करके दोषियों को गिरफ्तार किया जाना जरूरी है इसके अलावा दिनांक 11 अक्टूबर 2021 को अकादमिक परिषद की बैठक की अनुमोदन करने पर प्रस्ताव रखा गया है, आज की कार्यसूची में एजेंडा क्रमांक 3, दिनांक 11 अक्टूबर 2021 को आयोजित की गई अकादमी काउंसिल की बैठक का अनुमोदन करना है। ज्ञात हो कि इस बैठक में विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का प्रारूप तथा एडमिशन से संबंधित मुद्दों को पारित किया जाना है विश्वविद्यालय में भर्राशाही इस प्रकार हो गया है कि दादागिरी के आधार पर इसे अनुमोदित कराया जा रहा है, इस प्रकार की दादागिरी भारत के माननीय प्रधानमंत्री जी की अपील सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास तथा सब के प्रयास के एकदम विपरीत है, क्योंकि इस मामले में केवल 4 लोगों ने मिलकर पूरा पाठ्यक्रम के स्ट्रक्चर का डिजाइन कर दिया गया है और यह वे लोग हैं, जो श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी के कहने से तथा अवधेश शुक्ला के कहने से गलत पाठ्यक्रम स्ट्रक्चर बनाए हैं तथा एडमिशन की गलत प्रक्रिया करवाएं है तथा अपने गलत कार्य को सही करने के लिए उसका अनुमोदन दबाव डालकर कार्यपरिषद में कराना चाहते हैं।

 पूर्व जनजाति आयोग अध्यक्ष के अनुसार पाठ्यक्रम कैसा हो? उसमें जनजाति समुदाय की भागीदारी, कास्ट, कल्चर इत्यादि का समावेश कैसा हो? इस पर कोई चर्चा नहीं की गई है, अधिनियम में जनजातीय विषयों, जनजातीय कल्चर, जनजातीय क्राफ्ट, कला इत्यादि को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने का उल्लेख है इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार कई ऐसे महत्वपूर्ण विषय हैं जिस का समावेश स्ट्रक्चर में किया जाना आवश्यक है लेकिन झूठी वाहवाही 

तथा झूठी दिखावा तथा समाज को और सरकार को गुमराह करने के लिए एक पाठ्यक्रम का स्ट्रक्चर तथा एडमिशन प्रक्रिया का अनुमोदन दबाव डालकर करवाने का प्रयास किया जा रहा है जिसका हर स्तर पर मैं विरोध करूंगा। 

सरकार का यह मंशा है कि सब के विश्वास और सब के प्रयास के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से पाठ्यक्रम का स्ट्रक्चर बनाया जाए लेकिन इन लोगों ने इस पाठ्यक्रम का स्ट्रक्चर गलत बनाया है, पाठ्यक्रम का स्ट्रक्चर वे लोग बनाए है जिनके ऊपर भ्रष्टाचार सहित कई गंभीर अपराध करने का आरोप है। 4 लोगों ने पाठ्यक्रम का स्ट्रक्चर बना दिया , भागीदारी शून्य है, किसी से न पूछा, ना किसी को दिखाया और अचानक शाम को अजेंडा भेजा जाता है कि दूसरे दिन 13-10-2021 को इसे पास कर दिया जाए। बनाया गया स्ट्रक्चर जो अकादमिक परिषद से पास होकर कार्य परिषद से जबरदस्ती पारित करवाने का प्रयास किया जा रहा है वह पूरी तरह से अवैध एवं भर्राशाही का उदाहरण है। 

श्री मरावी ने मांग की है  13-10-2021 की इस कार्यपरिषद की बैठक को तत्काल स्थगित कराकर संपूर्ण मामले की जांच करा कर दोषियों पर अपराधिक मुकदमा दर्ज करने के बाद ही अगली बैठक किया जाना उचित होगा। इस बैठक को स्थगित करने का तथा दोषियों पर अपराध दर्ज किया जाना समाज हित में अब अत्यंत आवश्यक हो गया है। भर्राशाही एवं अत्याचार का इस तरह इस प्रकार बढ़ गया है कि एजेंडा के साथ पाठ्यक्रम स्ट्रक्चर बदलने का जो प्रस्ताव है उसे अजेंडा के साथ भेजा नही गया है इसका मतलब यह हुआ कि  कार्यपरिषद को बिना दिखाएं, बिना बताए, जबरदस्ती अनुमोदन करवाया जाए, इससे स्पष्ट है कि मैं एक जनजातीय समुदाय से हूं तथा कार्यपरिषद सदस्य के रूप में जनजाति सदस्य का अपमान करके उसके ऊपर अत्याचार करके उससे जबरदस्ती गैर कानूनी रूप से फर्जी एवं गलत एजेंडा को अनुमोदित कराने का यह अत्यंत गम्भीर आपराधिक मामला है।

जितने भी नए कार्यपरिषद के सदस्यों का नाम विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर नहीं डाला गया है। पिछले कार्यपरिषद की बैठक का कोई भी एजेंडा विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर नहीं है तथा इसी प्रकार का एजेंडा को वेबसाइट पर नहीं डाला जाना यह अपने आप में चोर के समान कार्य करने का एक प्रमाण है। रोस्टर में बदलाव करके, नियम विरुद्ध भर्ती करने के लिए भर्ती में अपने क्षेत्र तथा अपने जाति के लोगों को गैरकानूनी रूप से फायदा दिलाने के लिए क्षेत्रवाद, जातिवाद हावी करने के लिए 2020-21 में चयनित किए गए नए शिक्षकों का नाम तथा उनकी स्थानीयता का उल्लेख आज तक वेबसाइट पर नहीं किया गया है। इसका मतलब यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन किस प्रकार से गैरकानूनी का काम चोरी-चोरी कर रहा है तथा पब्लिक यूनिवर्सिटी होने के बावजूद भी ये लोग अपना निजी यूनिवर्सिटी समझ कर गैरकानूनी कार्यो का धड़ल्ले से अंजाम दे रहे हैं। अधिकारियों को भी 

गेस्ट हाउस मुहैया कराकर किसी भी मामले की जाँच नहीं हो पाए, पता नहीं कौन सी चाल चली जा रही है जिससे आम जनजातियों का नुकसान-नुकसान और नुकसान हो रहा है।

उन्होंने अपने पत्र में कहा  कि कार्य परिषद के अधिकृत जनजातीय सदस्य को अपमानित करने, उससे गैर कानूनी कार्य करने के लिए गलत कार्य योजना अनुमोदित कराने की साज़िश रचने, जनजातीय समुदाय के हितों के विपरीत कार्य, भ्रष्टाचार एवं शासकीय पद का दुरुपयोग कर कूटरचित एवं फर्जी दस्तावेजों के आधार पर शासकीय कार्यों  का गैरकानूनी निर्वहन करने के मामले में एफ आई आर अपराध दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की जावे।

हालांकि इस मामले में विश्वविद्यालय प्रबंधन का पक्ष जानने का प्रयास किया गया किंतु जिम्मेदार अधिकारियों ने जवाब देना उचित नहीं समझा




1 टिप्पणी:

  1. अजीब बात है केन्द्रीय जनजाति विश्वविद्यालय अमरकंटक में जनजातियों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा और जनजाति के कार्यपरिषद श्री मरावी की बात सुनी नहीं जा रही है

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