कोविड-19 का विश्व पर्यावरण दिवस
आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल के लिए पर्यावरण दिवस के मायने.....
किन्हे चिंता हैपर्यावरण की...?
(त्रिलोकीनाथ)
भारत के लिए भी पर्यावरण संरक्षण की औपचारिकता का पर्यावरण दिवस 5 जून को हर साल आता है। राजधानी स्तर पर इसमें शासकीय नाटक नौटंकी मैं व्यस्त हो जाने का एक अवसर आ जाता है किंतु आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल जैसे स्थानों में इसे "पर्यावरण पाखंड दिवस" के रूप में बनाकर रखना चाहिए। क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार विभाग लगभग पूरी तरह से फ्लाफ सिद्ध हुए हैं। क्योंकि जब इन विभागों का जन्म हुआ रहा होगा और अब यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाएगा तो पाया जाएगा वर्ष दर वर्ष लगातार इस गैर जिम्मेदार विभाग के कारण पर्यावरण संरक्षण के सभी मानक चाहे तालाब, नदी, वन तमाम प्रकार के खदाने और औद्योगिक कार्यप्रणाली में नित्य नूतन होने वाले पतन सील प्रक्रिया जारी रही है।
हाल में बहुचर्चित बक्सवाहा खदान के लिए एकमुश्त जंगल काटे जाने का यदि कोई अनुबंध हुआ है
और उस पर कार्य चल रहा है तो
पर्यावरण दिवस पर छतरपुर के लोगों को धिक्कार दिवस के रूप में याद रखना चाहिए |अक्सर देखा गया है कि प्राकृतिक वृक्षों को काटने के लिए सरकारी स्तर पर ऐसे कार्यवाही होती हैं जैसे कि घर के कचरा को फेंकने जैसा|
अगर इस पर कार्य करने वाले यह महसूस करें कि जब आप किसी वृक्ष को काटने का अनुमति देते हैं तो अपने परिवार के मां-बाप को काटने, बच्चों को काटने अथवा बीवी को काटने का अनुमति देने जैसा काम कर रहे होते हैं इस अनुभव के साथ यदि आप वृक्षों को काटने पर काम कर रहे होते हैं तब आप वृक्ष को बचा पाने पर आपकी कोई सोच जिंदा रहती है ...? अन्यथा पूंजीपति ,नेता, प्रशासनिक माफिया के गठजोड़ का उद्योगपति टुकड़ों में पेसा फेंक कर अपना स्वार्थ सिद्ध करता रहता है |
दो तीन बातें विश्व पर्यावरण दिवस पर रखना चाहूंगा बिड़ला परिवार अगर छतरपुर के बक्सवाहा में जंगल को काटकर हीरा निकालने का अपराध करने जा रहा है तो कोई नया काम नहीं करने जा रहा है, आदिवासी अंचल शहडोल में इसी बिड़ला परिवार का ओरियंट पेपर मिल पर्यावरण विनाश का इतिहास रचा है आखिर क्या जरूरत थी कि पूरे आदिवासी अंचल को ओरियंट पेपर मिल्स के कच्चा माल यूकेलिप्टस प्लांटेशन के लिए वृक्षारोपण के नाम पर बलिदान कर दिया गया...? मिश्रित वन वृक्षों की पूरी श्रृंखला की हत्या कर दी गई| यह बात उद्योगपति अकेले करता रहता तो आप रोक लेते। जैसा कि 98 में पर्यावरण वाहिनी के जरिए यूकेलिप्टस प्लांटेशन को वन विभाग द्वारा प्रतिबंधित करवाया गया किंतु जब शासन और प्रशासन तथा नेता मिलकर किसी न किसी रूप में यूकेलिप्टस के प्लांटेशन खूब बढ़ाने के लिए शासकीय धन के साथ परियोजना बनाकर उद्योगपति बिड़ला की गुलामी करते हैं तब प्रश्न खड़े ही होते हैं...?
इसी तरह एक अन्य उद्योगपति रिलायंस के मुकेश अंबानी की नई गुलामी की कथा आई, कहते हैं कि जो वृक्ष शहडोल में काटे गए या उद्योग के विकास के लिए काटना जरूरी था उनकी भरपाई प्रदेश के मालवा अंचल स्थित आगर मालवा अथवा किसी अन्य जिले में वृक्षारोपण करके की गई है.. यह भी एक नया प्रयोग है। यदि अंबानी की सोच चलती तो वह भारत ही नहीं किसी अन्य ग्रह में वृक्षारोपण इन नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों से निश्चित तौर पर करा लेता ..?
कौन देखता है यह औद्योगिक विकास का नया नमूना है तो जब वृक्षों की बात आती है तो ऐतिहासिक दृष्टिकोण से और अब तो 17 साल की भाजपा सरकार भी मानने लगी है कि नर्मदा का जिंदा रहना बहुत जरूरी है.. इसलिए तमाम प्रकार के प्रयोग करना चालू कर दिए।तो जहां नर्मदा का जन्म हुआ, अमरकंटक में; वहां पर भी यूकेलिप्टस के गैरजरूरी प्लांटेशन को हटाने के लिए अभी तक कोई योजना नहीं बन पाई है। कई ईमानदार अधिकारी मेरे संपर्क में रहते हैं वह भी चाहते हैं की यूकेलिप्टस जड़ से अमरकंटक विशेष क्षेत्र से हट जाए ...ताकि नर्मदा नदी को होने वाली नुकसान से बचाया जा सके किंतु करोड़ों रुपए खर्च करके नर्मदा के नाम पर वोट का धंधा करने वाले तमाम राजनेता ऐसा करते दिखाई नहीं देते।
इसलिए वृक्षारोपण के यह कहानी सिर्फ ढोंग महसूस होती है कि पर्यावरण संरक्षण आदिवासी विशेष क्षेत्र में कोई मुद्दा है.. ? हां, प्रदूषण निवारण बोर्ड जैसे सफेद हाथी पहले ओपियम की गोद में बैठ कर मनमानी तरीके से सोन नदी का करीब चार दशक तक और अभी प्रदूषण कारी परिस्थिति बनाने में मदद करते रहे ताकि उसके पानी का उपयोग यहां का आम निवासी न कर सके। ऐसा कानून में नहीं लिखा है किंतु भौतिक धरातल में यही होता रहा।
अब तो वृत स्तर का कार्यालय है यहां बैठा हुआ, सफेद हाथी अलग-अलग प्रकार के तरीके से सिर्फ पर्यावरण के नाम पर लूटपाट शोषण और दमन का कुचक्र चलाता देखा गया है। खुद मुख्यालय के तालाबों में गिरता हुआ मलजल अथवा नष्ट हो रहे तालाबों के प्रति एक भी मुकदमा न्यायालय में इसने दर्ज नहीं किया। ऐसे में कॉलरी क्षेत्रों में या रिलायंस अथवा दूसरे उद्योग पतियों के सामने यह सिर्फ भ्रष्टाचार की भीगी बिल्ली के रूप में खड़े नजर आते हैं। और औपचारिकता पूरी करने में अपना अंगूठा लगा देते हैं ।
क्योंकि आदिवासी क्षेत्र है कोई देखने सुनने वाला है नहीं, तो लूट सके तो लूट, इस अंदाज पर पर्यावरण दिवस क्षेत्र के तमाम पर्यावरण विनाश का स्मृति दिवस के रूप में सामने आता है|
यह बात अब किसी से छुपी नहीं है किस शहडोल संभाग के तीनो जिलों उमरिया शहडोल अनूपपुर की रेत खदान ठेकेदार का नकाब पहनकर माफिया का सल्तनत चल रहा है और उसे खुलेआम संबंधित विभाग अपना अपना और अपने नेताओं के परिवार का पेट पाल रहे हैं नदी की हत्या के तमाम प्रयास हो रहे हैं बावजूद नदियां मर नहीं रही है हां नदी के जल जीव सरकार और कानून व्यवस्था की तिलांजलि में लगातार मरते जा रहे हैं।
कहने के लिए अब शहडोल क्षेत्र में भारत स्तर का आदिवासी विश्वविद्यालय भी है और एक शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय भी बन गया है किंतु यहां के छात्रों को इस क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए शोध करने का शायद कोई ऑफर विश्वविद्यालय प्रमुख भी नहीं देना चाहते... क्योंकि इतना बड़ा जोखिम उठाने पर उनकी नैतिकता उनको इजाजत नहीं देती...? जो भी थोड़ी बहुत काम हुए हैं अथवा होते हैं वह प्रदूषण निवारण बोर्ड की तरह है, सिर्फ उपस्थिति दर्शाने वाले दिखाने के दांत बनकर रह गए हैं।इस तरह पर्यावरण दिवस एक और औपचारिक दिवस के रूप में खत्म हो जाएगा, अगले साल आने वाले नए पर्यावरण दिवस के तैयारी के लिए।
भारतीय संस्कृति में हिंदू सनातन धर्म का महत्वपूर्ण पुराण, गरुड़ पुराण में दूसरे अध्याय के श्लोक 14 ,15, 16 में मार्ग का उल्लेख है जिसमें बताया गया है कि
"वहां मार्ग में, कहीं घना अंधकार है तो कहीं दुख से चढ़ी जाने योग्य से शिलाए हैं कहीं मावाद, रक्त और विष्ठा से भरे हुए तालाब हैं।" यदि आप गरुड़ पुराण की प्रायोगिक लैब को देखना चाहते हैं तो मोहन राम मंदिर के स्रोत तालाब को निश्चित तौर पर देखिए, जो शहडोल संभाग मुख्यालय के हृदय स्थल स्थित शहर का तमाम प्रकार की नालियों का और विष्ठा से भरा हुआ बड़ा केंद्र है। और इसी राम के नाम पर सत्ता स्वयं को गौरवान्वित महसूस करती है |क्या पर्यावरण संरक्षण को देखने वाले विशेष विभाग प्रदूषण निवारण बोर्ड इसे नहीं देख पाया ...?
पर्यावरण दिवस में इसे उन्हें जरूर देखना चाहिए ,ऐसा भी नहीं है यह विभाग वहां कभी गया नहीं अभी दो-तीन साल के अंदर ही उसने अपने औपचारिक तालाब सफाई का प्रोपेगेंडा भी किया तो क्या गरुड़ पुराण के उल्लेख किए गए विष्ठा से भरे हुए इस तालाब पर इनके अधिकारियों ने स्नान नहीं किया, जरूर करना चाहिए क्योंकि तभी उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
ऐसा पर्यावरण दिवस में संभाग मुख्यालय को देखकर लगता है अलग-अलग धर्म और ऐतिहासिक पुराण की कथा में पर्यावरण संरक्षण के सूत्र प्रतिपादित हैं| जिन्हें पढ़ने और समझने की फुर्सत भी उन्हें नहीं है| जब तक कि बाजारवाद सूत्रों को प्रचारित करने का पाखंड ना रखें, क्योंकि गुलामी बाजारवाद की ही है| बहरहाल पर्यावरण दिवस के प्रति यदि जरा भी नमक-हलाली अधिकारियों की जमीन में जिंदा हो तो उन्हें कोई मील का पत्थर जरूर स्थापित करना चाहिए
किंतु ऐसा होता नहीं देखता पर्यावरण स्मृति दिवस पर आशा करनी चाहिए की तमाम संबंधित जिम्मेदार विभाग अपने जिंदा होने का कोई बड़ा प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर पाएंगे| कम से कम केंद्र बिंदु अमरकंटक के एनजीटी के आदेश के बाद भी यूकेलिप्टस का हटाया जाना का काम तत्काल होना चाहिए अन्य आदेशों का पालन दिखाने वाले प्रक्रिया पर जरूर देखनी चाहिए और अमरकंटक विश्वविद्यालय को एनजीटी के आदेशों के पालन पर एक शोध भी करना चाहिए तभी शायद हम एक कदम पर्यावरण संरक्षण के लिए बढ़ाते हुए दिखेंगे अन्यथा पेट विष्ठा खाने वाले पशु भी पाल रहे है।
कोविड-19 के इस महामारी में पर्यावरण संरक्षण का महत्वपूर्ण घटक ऑक्सीजन की समस्या दें लाखों लोगों की मौत का कारण बना क्या शासन और प्रशासन में इतने ईमानदार व्यक्ति बैठे हैं कि वे वृक्ष के महत्व को समझ सके। इमानदारी से और अगर पार्टी के अंदर बैठे हैं तो अकेले भारतीय जनता पार्टी 10,00,00,000 सदस्य अपने जीवित नेताओं नरेंद्र मोदी अमित शाह और एक-आध उनके निजी नेताओं इनके नाम पर भी 3 पेड़ लगा दें तो शायद 30 करोड़ पेड़ हमें ऑक्सीजन देने के काबिल बन जाएंगे और यदि इतना भी नहीं कर सकते हैं इन्हीं क्या हक है कि शहडोल आदिवासी अंचल के मिश्रित वन श्रृंखला की हत्या करा दें अथवा छतरपुर के बक्सवाहा के लाखों पेड़ पे हत्या कराने का काम करें तो फिर नीतियां इस दिशा पर क्यों नहीं बनानी चाहिए कि पहले पेड़ लगाकर उन्हें पांच 10 साल जीवित रखिए फिर अपनी औद्योगिक आर्थिक विकास के लिए पेड़ के सामूहिक संहार का काम कीजिए अन्यथा कोई हक नहीं कि आपको प्रकृति से ₹1 का भी फायदा मिले एक पेड़ में कई जीवजंतु का जीवन टिका होता है आप इन सब की हत्या नेताओं माफिया और सरकारी अफसरों के साथ मिलकर क्यों करवाते हैं..? क्या हम मानव विकास की श्रृखला में स्वयं को मानव मानने से मना कर रहे हैं जब हम प्रकृति के खिलाफ खड़े होते हैं कोरोना महामारी की पर्यावरण दिवस यदि आप नहीं समझ पा रहे हैं तो अपने भविष्य की पीढ़ी की कष्टदाई मौत का षड्यंत्र कर रहे हैं यह नितांत निजी अपराध भी है। विश्व पर्यावरण दिवस से हम कुछ सीखें, यह प्रयास करना चाहिए। क्योंकि आप भी अगर बताना पड़े कि ऑक्सीजन का कोई महत्व होता है तो या तो बताने वाला मूर्ख है या फिर सुनने वाला महामूर्ख।
Bahut mahatwa poorn prasang par vichaar karane yogya lekh hay. Ham sabhi ko is muhim me saath chalana chahiye
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