(त्रिलोकीनाथ)
जी हां, कुछ ऐसा ही पिछले 1 हफ्ते से मेरे लिए यह विषय सामग्री बनी हुई है कि आखिर मूर्ख कौन है....,?
तो पहले समझ ले इन दिनों सोशल मीडिया में अप्रैल फूल डे यानी 1 अप्रैल को मूर्ख दिवस को अंग्रेजों की देन के रूप हिंदुत्व ब्रांड के लोगों द्वारा प्रायोजित किया जा रहा है ।हो सकता है हिंदुत्व के बाई-प्रोडक्ट के विचार सही हो की भारतीय सनातन वर्ष चैत्र मास, नव वर्ष अपमानित करने व फिरंगी ने अंग्रेजी मास जनवरी सही ठहराने के लिए 1 अप्रैल को अप्रैल फूल डे के रूप मेंं बदल दिया ,उनकी ताकत थी क्योंकि वे शासन में रहकर प्रोपागंडा कर सकते थे। जैसा वर्तमान में देखने को मिल रहा है ।
किंतु जब अप्रैल माह अखबार मेंं छपी खबर भारतीय जनता पार्टी शासित नगरपालिका परिषद की पढ़ने को मिली तब से लगातार यह मेरे विषय सामग्री का हिस्सा बन गई कि आखिर मूर्ख कौन है...? परिषद के सदस्यों को मूर्ख मानना उनकी अवमानना भी हो सकती है, परिषद को मूर्ख मानना शायद सही हो किंतु जलकर की दरें बढ़ाकर शहडोल नगर पालिका परिषद कोई पहली बार यह मूर्खता कर रही है ऐसा नहींं है, इसलिए भी कि सबसे पहले पहल जब ₹10 प्रति कनेक्सन जलकर लगा करता था जिसे बढ़ाकर समन्वय बनाते हुए ₹40 किया गया। क्योंकि जल प्रदाय सफेद हाथी की तरह हो गया था। तो अकेले जितनी ताकत शहडोल नगरपालिका परिषद की थी याने उससे डेढ़ गुना ताकत की मूर्खता करते प्रशासक रहे गजेंद्रर सिंह की। क्योंकि उन्हें लगाकि जलकर कम है इसलिए इसे ₹100 कर देना चाहिए। अब नगरपालिका परिषद को जिसमेंं चुने हुए पार्षद गण है लगा कि यह रकम भी बहुत कम है ₹ 150 कर देनी चाहिए।
तो यह भी एक मूर्खता है क्योंकि प्रतियोगिता मूर्खता की चालू हो गई है, आखिर मूर्ख दिवस में इससे अच्छा क्या परिणाम हो सकता था क्योंकि या तो शहडोल नगरपालिका क्षेत्र के रहने वाले सभी नागरिक मूर्ख हैं जो इस प्रकार का जल कर देने के लिए बाध्य होंगे या फिर पालिका परिषद का यह निर्णय मूर्खतापूर्ण है की अत्यावश्यक जल की उपलब्धता पर ₹ 150 जलकर बढ़ा दिया जाए या फिर महामूर्ख अब लगभग नगर निगम बन चुकी दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनका मंत्रिमंडल होगा जो दिल्ली वासियों के लिए यह सोचता है की नागरिकों को जरूरत का पानी मुफ्त में मिलना चाहिए। हम महामहिम राष्ट्रपति भारत सरकार की सीधी संरक्षण वाले विशेष आदिवासी क्षेत्र संविधान की पांचवी अनुसूची क्षेत्र में शामिल शहडोल जिले के निवासी हैं। मूर्खता की इस प्रतियोगिता में शहडोल नगरपालिका परिषद फिलहाल पुरस्कार की हकदार हो गई है।
इसलिए भी कि कॉर्पोरेट-सिस्टम जो गुजरातियोंं का जमात है जो ईस्ट इंडिया कंपनी का पर्यायवाची बनता चला जा रहा है। जिसे हर घर में नल के द्वारा जल पहुंचाने की जिम्मेदारी है उसके लिए भारी मुनाफा का जल का रेट उच्चतम स्तर पर मुनाफाखोरी के लेवल पर पहुंचाने की जिम्मेदारी नगरपालिका परिषद ने तय कर ली है। और अंततः सभी नगरपालिका परिषदोंं को मुनाफाखोरों के जल प्रदाय के रेट पर मार्केट बनाना पड़ेगा। इसलिए क्योंकि नगरपालिका परिषद कि यह मूर्खता एक योग्यता है कॉर्पोरेट सिस्टटम का गुलामी की एक पहचान भी।
किंतु जब शहडोल नगरपालिका परिषद की बात आती है तब यहां के नागरिक ही मूर्ख साबित होते हैं... क्योंकि वह जलकर भुगतान करने का नागरिक दायित्व पूरी गुलामी से निभाना जानते हैं। क्योंकि उनका अपना कुआं, उनके अपने तालाब, उनकी अपनी नदियां और नाला पूरे षड्यंत्र के सा इसी नगरपालिका परिषद ने भू माफियाओं के हवाले कर दिया।
बचाखुचा कचरा डालकर तालाब नष्ट कर दिए गए और जब जल संसाधन क्रमसः नष्ट कर दिए जा रहे थे तब नागरिक गैरजिम्मेदार हो मूख सहमति दे रहे थे ।
मैंं भी एक मूर्ख नागरिक होने का गर्व महसूस करता हूं। मेरे कुए पर घरौला तालाब का और मोहनराम तालाब जल स्रोत का लाभ मिलता था जैसे दोनोंं तालाब पालिका परिषद की कार्यप्रणाली से विनाश की कगार पर चले गए, मेरा कुआं पानी देना बंद कर दिया। यही हाल करीब-करीब हर कुओ का है शहडोल नगरपालिका क्षेत्र में।
तो फिर भूजल पानी को और कैसे विनाश किया जाए ..? तो प्रशासकों ने अराजक तरीके से अवैज्ञानिक तरीके से और भ्रष्टाचार पूर्ण तरीके से भू जल निकास के लिए अनुमति देना प्रारंभ कर दिया.. अब तो दो तीन फीट अंतर में भी बोरिंंग होने लगा है क्योंकि प्रशासकों ने बोरिंग की बेड अनुमति देना प्रारंभ कर दिया है तो शहर का पानी आप से प्राकृतिक रूप से छीन लिया गया ।
क्योंकि हम मूर्ख हैं...? अब जबकि भूजल स्तर खत्म कर दिया ,पानी खत्म होने लगा तो ₹10 का पानी ₹150 में नगर पालिका ने देना प्रारंभ कर दिया।
पहले सेठ साहूकार लो "परहित धर्म सरस नहीं भाई..." के अंधविश्वास को अपनाकर जगह-जगह पानी की पूर्ति करते थे ताकि आदमी तो आदमी जानवर को भी पानी सहज रूप से मिल जाए। वर्तमान परिषद के निर्णय को समझें तू बे सब मुर्ख थे ।
अनुभव के हिसाब से मैंने तो इसे हमेशा मुफ्त सेवा के रूप के रूप में देखा इसलिए कभी चंदा और सहयोग के रूप में जल कर का भुगतान करता हूं और ऐसा ही हमेशा सोचता रहूंगा । क्योंकि हमारी पालक संस्था और नगर के प्रथम पालक प्रतिनिधि का यही एक अहम दायित्वव है। हमारे लिए पीने का पानी/ नियमित उपयोग का पानी की व्यवस्था करें। क्योंकि प्राकृतिक रूप से मिलने वाले पानी को नगर पालिका परिषद ने नष्ट करने का काम किया है । आज भी वह लगातार अपने विनाशकारी कार्यों को गर्व के साथ अंजाम देती है। तालाबों के अंदर मकान बनाने की अनुमति देने में उन्हें जरा भी शर्म नहींं आती है।
1997 में 98 में जेल बिल्डिंग के पास के तालाब पर मेरी कलेक्टर से और मिनिस्टर से पत्रकार वार्ता में भिड़ंत हो गई अंततः तत्कालीन आईएएस संजय दुबे और कलेक्टर पंकज अग्रवाल जीत गए क्योंकि वे जेल बिल्डिंग के पास वाले तालाब को तालाब नहीं होना बताकर तत्कालीन प्रभारी मंत्री अजय सिंह शेष संप्रेक्षण गृह का शिलान्यास करवा दिया किंतु बाद में पर्यावरण मंत्री और प्रभारी शहडोल इंद्रजीत कुमार प्यार से पंकज अग्रवाल को समझाएं कि तालाब है और उसका गहरीकरण कर दो जय हो गया जो भी जैसा भी था उसी हालात पर मैंने तालाब को बचा लिया यहां पर मैं जीत गया और थोड़ा सा गर्मी भी हुआ कि मैं कम मूर्ख हूं किंतु जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री आवास की घोषणा की तो नगर पालिका परिषद शहडोल ने संप्रेक्षण गृह के पास महान परोपकारी कार्य करते हुए अपना धन लगाकर और प्रधानमंत्री को भी उसमें शामिल करते हुए एक आवास स्थल आपके ऊपर बनवा दिया ताकि यह तालाब जल्द नष्ट हो जाए।
बहरहाल यह सब मनोरंजन की वस्तुएं हैं हम अद्यतन व्यवस्था में कोविड-19 के चुनौती भरे माहौल में विकास का रास्ता क्यों नहीं देखें शायद लोकतंत्र के नए सूत्र में इसलिए अगर मुनाफाखोरी के द्वारा, मुनाफाखोरी जल निगम के गुजराती ठेकेदारों के लिए, पालिका परिषद से जलकर की दरें उच्चतम स्तर पर ले जाने की मूर्खतापूर्ण योग्यता का प्रदर्शन करना हो या फिर अपने नागरिकोंं को गुलाम बनाने का मीठा जहर देना हो तो कुछ इसी प्रकार से दिया जा सकता है।
ऐसा नहींं है कि जब कई किलोमीटर दूर से सरफा नदी से पानी लाया जा रहा था तब वह हमेंं मुफ्त मे मिल रहा था या अब हम मुफ्त में लेना चाहते हैं... दरअसल तब वास्तव में नगरपालिका परिषद नागरिकोंं की पालक परिषद की एक पहचान थी अब जो हालात हो चले हैं ऐसे में इसका नाम भी बदल देना चाहिए, "नगर भ्रष्टाचार परिषद" कर देना चाहिए, उससे यह संतोष तो होगा कि डेढ़ सौ रुपए नहीं डेढ़ हजार रुपए प्रति कनेक्शन अगर आपने जल कर की दरेंं तय की तो नाम के अनुसार काम किया है। क्योंकि आप गुजराती नल जल प्रदाय सिस्टम से उनके उच्च दरों को मार्केट बनाने का काम किया अन्यथा अकेले पूरे पार्षद ही इस प्रकार मूर्खतापूर्ण प्रस्ताव का कम से कम विरोध तो दर्शा ही सकते थे....? अन्यथा उनके पास अपने राजनैतिक अधिकार हैं अगर उन्हें ज्ञान हो तो किंतु सब कुछ चुपचाप जैसे किसी मूर्ख प्रशासक ने 40 से ₹100 कर दिया, आपने पूरी योग्यता का प्रदर्शन करते हुए सौ से डेढ़ सौ कर दिया तो फिर क्या जरूरत है इस पाखंड पूर्ण नगर पालिका परिषद के चुनावोंं की या फिर पार्षदों की ....?
तो क्या शोषण को समन्वय बनाए रखने का कॉर्पोरेट के हिस्सा बन गए हैं..? अखिर आसपास के नालों में कॉलोनी कैसे बन रही है...? वहांं बरसाती जल एकत्र करने का काम क्यों नहीं हो रहा...? क्यों भू माफियाओं को शहर के आसपास की जमीन भ्रष्टाचार के लिए सौंपी जा रही है....? तो फिर सत्ता से ही बेचारे सूदखोर क्या गलत कर रहे...? खून ही तो चूस रहे.... आखिर वह भी तो एक रोजगार है...?
फिर हमारे पुलिस अधीक्षषक महोदय गोस्वामी जी को "सूदखोरी मानस" लिखने की क्या आवश्यकता पड़ी...? अगर जलकर का प्रस्ताव मूर्खतापूर्ण ना होकर बौद्धिक समाज का दबा कर के प्रस्तुत किया गया या फिर दिल्ली में विशिष्ट बुद्धिमान आईएएस की शिक्षा प्राप्त मुख्यमंत्री केजरीवाल ने जो मॉडल प्रस्तुत कि "नागरिकों को जरूरत का मुफ्त पानी देने का" क्या वह मूर्खता की पराकाष्ठा है....?
यह प्रश्न खड़ेे होंगे और हर नागरिक को इसलिए बार बार सोचना चाहिए कि आपके आसपास के जल स्रोत नष्ट करके आपको ही प्रति लीटर पानी देने का योजना पर काम हो रहा है...?
तो मूर्ख कौन है....?
परिषद है या नागरिक हैं...? या मूर्खता उस कॉर्पोरेट सिस्टम की योग्यता है जो कभी ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में तो कभी गुजराती नल जल प्रदाय करने वाले ठेकेदारोंं के रूप मे सीधा राष्ट्रपति जी के संरक्षण वाले पांचवी अनुसूचित शहडोल क्षेत्र के आसपास गिद्धों की तरह है समाज सेवा का नकाब पहनकर घेराबंदी कर चुकी है।
तो तय करते रहिए क्योंकि हिंदूवादी सोच यह सिद्ध करने में लगी है कि अप्रैल फूल दिवस फिरंगीयों की चाल थी.. किंतु सच बात यह है कि उन्होंने हमें वर्ष के 365 दिन में एक दिन मूर्ख दिवस के रूप में दिया, किंतु हमारे ही लोग हिंदुओं का नकाब पहनकर हमेंं 364 दिन मूर्ख बनाने का काम कर रहे है।
तो अगर आप नागरिक हैं तो अप्रैल फूल कम से कम एक महीना बने रहिए। पूरे अप्रैल मे ही नही हर माह यह सोचिए क्या खेल हो रह है हमें और कितना मूर्ख बनना चाहिये...?
क्या सूरज की रोशनी, ईश्ववर की दी सांसे, वृक्षों की दी हुई छाया भी बहुत जल्द कॉर्पोरेट सिस्टम, गुजराती कॉर्पोरेट मॉडल के रूप में हमारी समाज सेवा करने के लिए हमारे द्वार पर उपलब्ध रहेगा तब भी नगर पालिका परिषद को ही अपने संसाधन से मार्केट प्राइस बनाना पड़ेगा। जो कचरा ₹15 में एकत्र करने की एक सोच थी, वह ₹100 में बन गई है ।और भी आंकड़ेे हैं इस मूर्ख बनाने वाले हिंदुओं के चैत्र माह में,अप्रैल में। हम तय करते रहेंगे कि हमें कितना मूर्ख बनना है क्योंकि होली में मूर्खदिवस को कोरोनावायरस के डर और आतंक ने गायब कर दिया है.. तो जितना गर्म आप हैं हिंदू होने का करते होंगे उस से 100 गुना ज्यादा गर्व से आप कह सकते हैं की गर्व से कहो हम विशेष आदिवासी क्षेत्र राष्ट्रपति जी के संरक्षण में रहने वाले मूर्ख नागरिक हैं...।
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