संवेदनहीनता की पराकाष्ठा, एक जश्न .....
राष्ट्रीय सड़क सप्ताह का बड़ा तोहफा
अगर मैं भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवादी पत्रकार अर्णब गोस्वामी की आत्मा को 2 मिनट के लिए अपने अंदर ले लूं ,तो अरणव अपने पुलवामा में 40 शहीद की मौत पर जो जश्न एक अफसर के साथ शेयर किया था तो रीवा अमरकंटक सड़क की हत्यारी मार्ग के कारण नहर के अंदर जिन 40 लोगों की हत्या कर दी गई है उस का जश्न मनाना चाहता हूं ...तो कैसे मना लूंगा , फिलहाल मैंने सोचा कि शिवराज सिंह जी ने जब व्यवहारी यात्रा किया था उस पर जो लेख लिखा था मैं उसे रिपीट कर अरनव की आत्मा को तृप्त के लिये ,मेरी पहली श्रद्धांजलि के रूप में अपना पुराना लेख प्रस्तुत करता हूं, इसका पार्ट 3 शीघ्र लिखूंगा... क्योंकि मैं पत्रकार तो हुं ही चाहे गैर अधिमान्य पत्रकार ही क्यों ना हूं ।नई भाषा में भविष्य के "चुकुर समाज "का विंध्य का चुकुर। तो पढ़िए और जश्न का आनंद लीजिए। मौत का भी अपना एक जश्नन होता है। वे, राष्ट्रवादी हैं तो हम लोग आदिवासी क्षेत्र के आदिवासी चुकुर है हमें भी जश्न मनााने का हक होना चाहिए... क्योंकि शर्म उन्हें तो आती ही नहीं.........
मुद्दों की गरीबी में मुख्यमंत्री की ब्योहारी यात्रा...
क्या आसमान से दिख सकती है
"रीवा-अमरकंटक की हत्यारी" सड़क
(त्रिलोकीनाथ)
खबर है 16 तारीख को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह "विजय सोता पुल" विषय पर आने वाले हैं, हो सकता है स्थानीय राजनीति को भी थोड़ा सा सनसनी पैदा करें.. क्योंकि ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र कॉन्ग्रेस से लाए गए भाजपा विधायक शरद कोल का विधानसभा क्षेत्र है। और मुख्यमंत्री की पहली पसंद में वे विधायक बने थे ,तब क्षेत्र के दबंग युवा नेता रिंकू सिंह बगावत कर दी थी।
आरक्षण के अंधकार से मुक्त होकर ब्यौहारी की लॉटरी खुली है अब भारतीय जनता पार्टी का नगर पंचायत अध्यक्ष का पद सामान्य के लिए बना हुआ है। तो संभवत है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अपनी यात्रा में एक और लॉटरी भी खोलने वाले हैं..। क्योंकि भाजपा में कब किसकी लॉटरी लग जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। तो देखते चलिए रिंकू सिंह के बगावती तेवर के बीच में घंटी बांधने की जिम्मेदारी किसके सिर पर जाएगी। बहरहाल व्यवहारी को जिला बनाना या ना बनाना अभी ख्याली पुलाव ही है जो हवाई यात्रा के दौरान उतरते उतरते पक जाए कोई भरोसा भी नहीं। क्योंकि की "टुकड़े टुकड़े गैंग" के रूप में शहडोल जिले को लूट खसोट का बड़ा अड्डा बना दिया ।तो देखते चलिए आगे आगे होता है।
विकास की नई रफ्तार की फोटो फेसबुक में आई है
एक जो नेताओं के आने में पैदा होती है। किंतु अभी जो कुछ देखना है समझना है विशेषकर व्यवहारी के जनप्रतिनिधियों को वह यह है कि क्या कांग्रेस पार्टी के कार्यकाल में रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग का ठेका जिस ठेकेदार को दिया गया था कथित तौर पर 25 वर्ष के लिए, उसे 15 साल टोल टैक्स वसूलने के बाद भागने की छूट क्यों दे दी गई। क्या अनुबंध में यह भी था कि 15 वर्ष टोल टैक्स वसूलने के बाद वह सड़क को मौत का सड़क बना देगा।
जैसा कि रीवा अमरकंटक सड़क मार्ग में आए दिन होता रहता है। या फिर गुपचुप तरीके से कथित तौर पर 25 वर्ष का अनुबंध
15 साल में ही खत्म कर दिया गया है यानी कानून में संशोधन कर दिया गया है...?
बहरहाल और यदि लोग मर रहे हैं तो उसकी जिम्मेदारी नेता लेगा, मंत्री लेगा या ठेकेदार अथवा सब जिम्मेदारी अयोध्या में बैठे भगवान राम पर छोड़ दी गई है...? पर क्या फर्क पड़ता है मर तो किसान भी रहे हैं दिल्ली की सड़कों पर यह तो एक व्यवस्था है तो आदिवासी क्षेत्र में लोगों की क्या हैसियत है यह सोच भी हो सकती है...?
तो यह बात एक बड़ा मुद्दा है व्यवहारी वासियों के लिए भी और रीवा और शहडोल संभाग के लोगों के लिए भी, क्योंकि व्यवहारी केंद्र है विरोधाभासी विध्वंसक राजनीति की...। जहां के निवासी दशकों तक मंत्री रहे स्वर्गीय रामकिशोर शुक्ल के और बाद में समाजवादी से भाजपा के मंत्री रहे लोकेश सिंह के सानिध्य में रहे हैं..।
इन्हीं दोनों परिवार मैं एक शुक्ला परिवार के वरिष्ठ नेता एडवोकेट संतोष शुक्ला को हाल में पुलिस वाले को में गुंडा लिस्ट में चर्चित करने की खबरें गर्म रही हैं...। तो क्या उन्हें गुंडा बना कर उनकी राजनीत हो खत्म करने की साजिश हो रही थी...?, जैसा कि खुद संतोष शुक्ला का कहना था।
तो फिर क्या इसी रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग के लिए व्यवहारी से शहडोल तक पद यात्रा करने वाले संतोष शुक्ला पुनः मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के पास अनुबंधित सड़क मार्ग में हो रही सड़क दुर्घटनाओं में हत्याओं की जिम्मेदारी तय करने की बात रख पाने का साहस करेंगे...? और साहस करते की बात जहां तक है तो स्वर्गीय लवकेश सिंह के भाजपा के बागी पुत्र रिंकू सिंह भी सड़क मार्ग में हो रहे हत्याओं के लिए बात उठाने की जोखिम उठाएंगे.....? क्योंकि दोनों ताकतवर नेता रहे हैं..।
बातें तो और भी हैं क्योंकि व्यवहारी के ही किसी विद्यालय में तस्करों ने रेत की तस्करी की प्राथमिक शिक्षा का केंद्र बनाया था, पहली बार ही किसी स्कूल में रेत माफिया के द्वारा भंडारण करके रेत की तस्करी की योजना बनाई गई थी और रेत तस्करी का बड़ा स्वर्ग इस समय व्यवहारी विधानसभा क्षेत्र बना हुआ है। बल्कि इसी ब्यौहारी के स्कूल से तस्करी का ज्ञान प्राप्त कर शहडोल और रीवा संभाग रेत तस्करों का स्वर्ग बन गया है। यह अलग बात है कि सभी विशेष राजनीतिक दल के लोग हैं ।
तो राजनीति इस बात की भी कि क्या वर्षों बरस मंत्री रहे स्थानीय नेताओं में यह साहस बचा है कि वे मुख्यमंत्री को बता सकें यह सब आखिर कब तक चलता रहेगा...? और दूसरी बात है कि मुख्यमंत्री जब हेलीकॉप्टर की उड़ान से आएंगे, तो जमीनी नेताओं जिनकी है हैसियत आदिवासी क्षेत्र में कीड़े-मकोड़े की तरह है, (जो उन्होंने खुद बनाई है आपस में फूट करके) उनको सुनने और समझने का वक्त भी देंगे....?
क्योंकि पिछले 16 साल से भाजपा की ही सरकार है तो देखते चलिए मुद्दे तो ढेर सारे हैं....। क्या उठाने वाले टाइगर जिंदा है ....? क्योंकि बांधवगढ़ टाइगर का कब्र का भी रहा है जो सुर्खियों में बने रहे... तो कुछ टाइगर घर में घुसकर सोते हुए लोगों को शिकार किए जाने पर भी प्रदेश में खबर बनी है ...।
मुद्दे और भी बहुत हैं.., खुद उनके व्यवहारी नया सब्जबाग दिखाने का, जिसमें जिला बनाना भी एक सुनहरा सपना बना हुआ है...? यह अलग बात है कि लावारिस बन चुका आदिवासी क्षेत्र शहडोल को जिले के "टुकड़े-टुकड़े गैंग" में बदल कर उसे लूटपाट का अड्डा बना दिया है। जो पूरी तरह से पारदर्शी है ।
और यह भी मुद्दा है जो आम बात हो गई है कि कोई रेंजर पुष्पा सिंह किसी रेत तस्कर बड़े
पारदर्शी तरीके से वन क्षेत्रों में तस्करी प्लान करती है...? मुद्दा यह भी है कोई कबाड़ी हमारे आईजी साहब को असभ्यता से धमकाने का खुलेआम काम करता है....?. और दोनों ही कोई मुस्लिम कौम के तस्कर और स्मगलर होते हैं। और दोनों ही इस आदिवासी क्षेत्र में काला धन का बड़ा कारोबार करते हैं तो हिंदुओं की सरकार क्या अभी तक सोती रही या फिर सोने का नाटक करती रही...? जिस कारण मुस्लिम तस्कर आदिवासी क्षेत्र को अपना चारागाह बना लिए और प्रशासनिक अमला उनसे सौदा करता रहा....?
और तमाम हिंदुत्व के ठेकेदार चाहे वे संगठन मंत्री हो या आर एस एस के महान कर्णधार, क्या इनसे मिलकर हिसाब किताब लेते थे...? जो जान नहीं पाए कि मुस्लिम तस्कर कहीं पाकिस्तान परस्त तो नहीं....?
आखिर काला धन उन्हें क्यों चाहिए क्या यह भी कोई बड़ी नूरा कुश्ती तो नहीं है....?
हिंदुत्व के साथ बड़ी धोखाधड़ी क्यों हो रही है दूर गांव में मुस्लिमों का आदिवासियों पर कब्जा क्यों हो रहा है क्या हिंदुत्व का भयानक और डराने वाला चेहरा सिर्फ ईसाईयों के लिए है... आखिर यह तस्करों का स्वर्ग क्यों बन गया....? क्या "टुकड़े टुकड़े गैंग" के रूप मेंबने जिलो मे बैठे हुए जिले के विधायक और मंत्री जिम्मेवार नहीं है ... अगर मुद्दे के रूप में देखेंगे तो यह भी एक मुद्दा है....?
और इन सब की जिम्मेवारी ,आदिवासी क्षेत्रों को खनिज, संपदा, नदियों को नष्ट-भ्रष्ट करने की लुटुवाने की, ना अधिकारियों पर जवाबदेही तय हुई ना "माननीय तस्कर" किसी गुंडा लिस्ट में आए जो आए स्थानीय नेता ब्यौहारी के ही थे... तो मुद्दा यह भी है।
देखते हैं 16 को क्या-क्या होता है ... कुछ होता भी है या नहीं होता है, यहां के टाइगर जिंदा है या जिंदा बनने का प्रयास करते हैं... क्योंकि टाइगर जिंदा है कहने वाले मुख्यमंत्री तो आएंगे और बिहार नगर पंचायत की लॉटरी खोल कर चले जाएंगे... आखिर एक और पुल और सड़क का शिलान्यास करने वाले मुख्यमंत्री को हेलीकॉप्टर से जरूर दिखेगा कि रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग में आदिवासी क्षेत्र के कीड़े-मकोड़े दुर्घटनाओं में मर जाते हैं। और क्षेत्र के सांसद या विधायक वे सिर्फ वेतन उठाने के लिए लोकसभा विधानसभा में जाते हैं । उन्हें इन सड़कों से क्या लेना देना मुख्यमंत्री जी यह भी जानते हैं ।तो सड़क या पुल कीड़े-मकोड़ों के लिए नहीं कॉर्पोरेट जगत के लिए ही बनाना पड़ता है ।
क्योंकि उन्हें यह भी मालूम हो गया है कि राजनीति सिर्फ एक सट्टा है और सट्टे में विरासत का कोई रोल नहीं होता है... किंतु अगर मुद्दे उठे और टिके रहे तो विरासत जिम्मेदारों के हाथ में संघर्ष की सौंपी जा सकती है... कुछ लोग सीख सकते हैं कि मुद्दों में लड़ना चाहिए अन्यथा शहडोल संभाग के जिले "टुकड़े-टुकड़े गैंग मे बड़े चारागाह बनी रहे हैं आप भी किसी पशु के रूप में जीना सीख लीजिए क्योंकि यही सच्ची राष्ट्रभक्ति दिखती है आज के दौर में......? हो सकता है मैं गलत हूं आशा भी करता हूं मैं गलत साबित रहूं..।
(------------भाग 3 अगले अंक में------------)
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