चेतना सुने, आदिवासी क्षेत्र को क्यों जिंदा रहना चाहिए ...
भारत के अंदर जिस प्रकार की मजबूरी या दबाव का वातावरण सत्ता के अंदर दिख रहा है, जिससे वह अपने आत्मा की आवाज इन किसानों की आवाज को सुन और समझ पाने में स्वयं को विरोधाभास में पा रही है उससे यह प्रतीत होता है की देश की सत्ताधारी संगठन भारतीय जनता पार्टी ,मोदी सरकार, उसकी मात्र संस्था आर एस एस, अंबानी -अदानी अथवा अर्णब गोस्वामी जैसी पत्रकारिता को संरक्षण देने वाली विचारधारा और उसका संगठन इस समय असमंजस के हालात में गुजर रहा है।
शायद पहली बार उसे अपने आर्डर को फॉलो कराने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। आखिर भारत अपनी आत्मा की आवाज की बात को कैसे अनसुनी कर दे या बिना आत्मा को समझाएं कानून कैसे लागू हो जाए...? इस प्रक्रिया में अब सरकारी पक्ष ने 2 हफ्ते से चल रहे आंदोलनकारी किसानों को अपना नया प्रस्ताव दिया जिससे किसानो ने एक सिरे से खारिज कर दिया।
तो आदिवासी क्षेत्र की जिलों को और ऐसे प्रदेशों को भी उनके किसान नागरिकों को कम से कम यह जानना ही चाहिए कि दिल्ली में हो क्या रहा है...? क्योंकि जिस प्रकार की जितना भी ही नागरिक समाज पक्ष में अथवा विपक्ष में अपना समर्थन देने के लिए गुलाम की तरह अथवा एक लाश की भांति चुपचाप सुनता रहता है अथवा उस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता है यह
स्वतंत्रता की अधिकार के खिलाफ है आखिर एक दायित्व भी है जिसमें राष्ट्र के प्रति जागरूकता होनी ही चाहिए ।तभी हम बचे रहेंगे। तो जानिए कि क्या प्रस्ताव आया था और मंथन करते रहिए यह क्या उचित था अथवा क्या अनुचित है...?
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