शुक्रवार, 5 जून 2020

उम्रदराज भाजपा उम्मीदवार बिसाहूलाल तोडेंगे भाजपा की परंपरा...

कितने सफल होंगे
भाजपा के राजेंद्र शुक्ला
और उनके संजय.........

दुनिया की सबसे बड़ी सदस्यता वाली 
(त्रिलोकीनाथ)
 राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी क्या अपने ही बनाए आचार संहिता को तोड़ने वाली है, कम से कम अनूपपुर के विधानसभा उपचुनाव में देखकर के यही कहा जा सकता है। तो क्या बाबूलाल गौर का अथवा सरदार सरताज सिंह का या फिर भाजपा की केंद्रीय राजनीति में नेताओं के साथ धोखाधड़ी हुई है ......उन्हें जानबूझकर मुगल साम्राज्य की तरह अपने वरिष्ठ लोगों की राजनीतिक हत्या करने के लिए "मार्गदर्शक-मंडल का यज्ञवेदी" बना दी गई है...? ताकि चिन्हित वरिष्ठ भाजपा नेता उसमें  स्वाहा किए जा सके..? 
      यह सब प्रश्न इसलिए भी खड़े होते हैं क्योंकि अगर अनूपपुर क्षेत्र के व कांग्रेस से स्वाभिमान व सम्मान के लिए बगावत
करके भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन करने वाले वरिष्ठतम वयोवृद्ध विधायक रह चुके बिसाहू लाल सिंह को भाजपा अनूपपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित करती है तो उसे न सिर्फ अनूपपुर क्षेत्र के मतदाताओं को बल्कि प्रदेश और देश के मतदाताओं को भी यह जवाब देना पड़ेगा कि उसने जो रीति और नीति बनाई क्या उनका स्वार्थ और पाखंड से प्रेरित राजनीतिक उम्र का आवरण में एक नकाब की तरह मात्र रहा..?  
     और इससे वह क्या संदेश देना चाहती है इस प्रकार एक प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि क्या बिसाहू लाल सिंह अपने किसी उत्तराधिकारी को विधानसभा उपचुनाव में बतौर भाजपा उम्मीदवार घोषित करने जा रहे हैं....?
    यदि ऐसा होता है तो यह एक प्रकार की उस कबीलाई राजनीति का भाजपा के अंदर शुरुआत होगा जो कांग्रेस ने अपने लंबे शासनकाल में अपनी वर्तमान हालत में कम से कम मध्यप्रदेश में कबीलाई राजनीति बना कर रखती है। और वही उसके आंतरिक आत्महत्या का कारण भी है।
    पिछली बार देखा जाए तो कांग्रेस  सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की कबीलाई राजनीति के इर्द-गिर्द मध्य प्रदेश संकीर्णता के चक्रवात में डूब गया है। बिसाहूलाल इसी चक्रवात की "बायप्रोडक्ट"  हैं।

तो क्या राजनीति का यह "बायप्रोडक्ट" वयोवृद्धतम आदिवासी नेता भाजपा के अंदर कबीलाई राजनीति की छूत से क्षेत्रीय भाजपा कार्यकर्ताओं के अंदर नए चक्रवात का ग्रहण चालू करेगा....?, यह भी देखना होगा ।  
     किंतु यदि ऐसा नहीं होता तो भारतीय जनता पार्टी के मूल कार्यकर्ता रामलाल रौतेल जैसे नेताओं का क्या होगा , क्या अभी चुप बैठने वाले हैं ...., क्योंकि भाजपा की गैैैर आरक्षित वर्ग के लोगों की  राजनीति में तो मार्गदर्शक मंडल को स्वीकार कर लिया जाता है। क्या आदिवासियों के बीच में भी इसे स्वीकार्य बनाया जाएगा...? अनूपपुर विधानसभा उपचुनाव यह भी तय करने वाला है।
   सब जानते हैं कि वयोवृद्ध आदिवासी नेता कमलनाथ जी के "चलो-चलो.." की भाषा या दिग्गी राजा के रजवाड़े से परेशान नहीं बल्कि वे  तथाकथित तत्कालीन प्रति विधायक ₹500000000 की दर पर सत्ता परिवर्तन की हवा हवाई राजनीति कोरोना काल में जो चली उसका असर ज्यादा देखने को मिला। उससे ज्यादा कड़वा सच यह भी है कि अगर कोरोना वायरस के चलते दो-तीन महीने का लाकडाउन अगर ना मिला होता तो भाजपा को कांग्रेस के बागी नेताओं को चट मंगनी पट ब्याह की अंदाज में एडजेस्ट करना बहुत कठिन हो जाता। जो आज भी वर्तमान बना हुआ है।
     यही कारण है कि 1 महीने तक सिंगल मुख्यमंत्री की सरकार चली और अब तक दानवीर कर्ण और पांडव यानी भाजपा परिवार के 6 सदस्यों का मंत्रिमंडल हम देख पा रहे हैं। बहरहाल अनूपपुर क्षेत्र का भविष्य चाहे जो भी हो किंतु भाजपा की साख में आंख लग गई है..., भाजपा ने अपने चुनाव प्रभारियों को उप चुनाव की तैयारी हेतु तैयार कर दिया है अनूपपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए कुशल कैबिनेट मंत्री रहे नेता राजेंद्र शुक्ला तथा विधानसभा में कभी सर्वाधिक धनी व्यक्ति होने के कारण मंत्री रहे संजय पाठक अनूपपुर विधानसभा उपचुनाव के प्रभारी बनाए गए हैं
देखते हैं यह जुगल-जोड़ी बिसाहूलाल के लिए किस प्रकार से परिणाम दायक साबित होती है...? अगर अपने ही पैरामीटर तोड़कर उम्र दराज वयोवृद्ध बिसाहू लाल अनूपपुर विधानसभा में उम्मीदवार घोषित होते हैं ।  क्योंकि अगड़े व्यक्ति को दबाना उसकी बौद्धिकता और गुणवत्ता को मापना  जैसा होता है किंतु आदिवासी नेता जब अपने में राजनीति करता है तो दशा और दिशा में बदल जाती हैं यह इस आदिवासी क्षेत्र की बिंद विंध्यमैकल की  धरा की विरासत रही है। कोई बड़ी बात नहीं, अंत में बिसाहू लाल को कहा जाए आप अपना उत्तराधिकारी कोई युवा नेता बताएं.... क्योंकि अंत भला तो सब भला।

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