अनूपपुर में व्यक्तित्व का बागी अंदाज और कोरोना-कॉल
में भटकती विरासत की राजनीति..
(त्रिलोकीनाथ)
शहडोल क्षेत्र में अनूपपुर जिले से हाल के दशक में जो अपनी राष्ट्रीय पहचान बना पाए उसमें अनूपपुर शहर से लगे सोनपार सीतापुर गांव के उपन्यासकार उदय प्रकाश जी के अलावा व्यक्तिगत परिचित होने वाले बिसाहूलाल को भी गिना जा सकता है। उदय प्रकाश जी पहले ऐसे व्यक्ति थे
जिन्होंने व्यवस्था के खिलाफ बगावत करते हुए अपने मिले पुरस्कार को वापस कर दिया था और और फिर सरकारी पुरस्कार कचरे की तरह पूरे देश से वापस होने लगे थे , यही इस व्यक्तित्व की एक बड़ी पहचान है क्योंकि व्यक्तित्व की आभा भी एक विरासत होती है...।
अब मध्य प्रदेश राजनीति में बिसाहूलाल पहले ऐसे शख्स रहे शायद जिनकी वजह से या उनकी बुजुर्गइयत से मध्यप्रदेश की राजनीति में परिवर्तन का शुरुआत हुआ।
टी-शर्ट पहन कर वे पहली बार टीवी में जब प्रकट हुए तब बेंगलुरु कि किसी होटल में अपनी भावनाओं को रख रहे थे। जिसका कुल निष्कर्ष यह था कि उनके कांग्रेसी नेताओं ने कहा "चलो चलो..." और इस प्रकार बिसाहूलाल चल दिए, कांग्रेश छोड़कर।
और अंततः शिवराज सिंह के साथ गलबहिया करते हुए भोपाल की मीडिया के सामने प्रकट हुए।
बिसाहूलाल इसलिए भी अपनी पहचान बनाए पाए क्योंकि पहली बार उन्होंने तबके सोहागपुर विधानसभा क्षेत्र में अपने हिसाब से डिस्ट्रक्टिव पॉलिटिक्स करते हुए शबनम मौसी को चुनाव लड़ाने के लिए अपनी भावनाओं का इजहार किया था। अनूपपुर में ही बैठकर ।
और तब शबनम मौसी सोहागपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बन पाई।
इससे यह तो तय है की बिसाहूलाल जो बोलते हैं उसमें दम रहता है..
क्योंकि वह राजनीत की शबनमी-चाल के जन्मदाता भी हैं। रोचक बात यह है कि बिसाहूलाल संयुक्त शहडोल जिले के जिला कांग्रेस अध्यक्ष रहे ।उन्हें यानी आदिवासी नेता को संरक्षण देने वाले तब कांग्रेस के नेता दलवीर सिंह उनके मार्गदर्शक थे । यह भी रोचक है कि जब राजनीति के चलते दिग्विजय सिंह यानी दिग्गी राजा, दलवीर सिंह से यानीं प्रदेश की राजनीति में अर्जुन सिंह के खिलाफ जाकर बिसाहूलाल को गुट् राजनीति में बगावत की सीख दी।
तब बिसाहूलाल बागी होकर दलवीर सिंह की राजनीति में घातक सिद्ध हुए थे । यह अजीब संयोग है कि आज दलवीर सिंह की परिवारिक विरासत मे उनकी पुत्री श्रीमती हिमाद्री सिंह भारतीय जनता पार्टी से सांसद है और बिसाहूलाल कांग्रेस से ही नहीं, दिग्गी राजा से भी बगावत करके गाजियाबाद से लेकर बेंगलुरु तक हवा हवाई यात्रा करते रहे। क्योंकि नीचे भारत में कोरोनावायरस घूम रहा था ।और इधर नीचे उनके पुत्र कह रहे थे कि बिसाहूलाल का अपहरण हो गया है।
फिर बिसाहूलाल प्रकट हुए और कहे कि मैं तीर्थ यात्रा में गया था। इस प्रकार
इसी दौरान कोरोनावायरस से फैली महामारी अपना विस्तार कर चुकी थी किंतु हवा हवाई राजनीत में प्रति विधायक 50,00,00,000 रुपये की बिक्री का बाजार सातवें आसमान पर था।
यह काल्पनिक सत्य रहा कि क्या पचास करोड़ में कोई विधायक खरीदा जा सकता है..? किंतु यह स्पष्ट था कि कोरोना महामारी इतनी रोमांच नहीं पैदा कर पा रही थी जितना कि मध्य प्रदेश के 22 विधायक और 50 करोड़-पति विधायक की कीमत रोमांच पैदा कर रही थी।
बहरहाल बिसाहूलाल ने कई नेताओं को नेता बनाया उनका दावा है कि कोतमा विधायक सुनील शराफ उन्हीं की मदद से विधायक बन पाए, अब यह अलग बात कि सुनील , बिसाहूलाल से बागी हो गए हैं इस प्रकार जिस सीढ़ी पर पैर रखकर व्यक्ति आगे बढ़ता है उस सीढ़ी को तोड़ देना, खत्म कर देना इस क्षेत्र की राजनीति की पहचान बनती जा रही है..। राजनीति में गद्दारी या बगावत की विशेषता का आनुवंशिक से पैदा होना दुखद है।
यह फिलासफी फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दें क्योंकि अनूपपुर जिले में राजनीति कोरोना का फिर से मात देती नजर आ रही है। हालां कि बिसाहूलाल अब हवाई जहाज में नहीं है ना ही किसी फाइव स्टार के होटल में ,इसके बावजूद भी उनकी मानसिक उड़ान उसी स्तर की है। अभी उन्हें लगता है कि वह भारतीय जनता पार्टी की बनाई हुई मार्गदर्शक मंडल या कहना चाहिए वृद्ध आश्रम में नहीं भेजे जाएंगे इसलिए भी उसी टीशर्ट को जो बेंगलुरु में पहनते थे देखे गए हैं। और अब कोरोनावायरस को चार-लात मारते हुए
पूरी फौज-पटाखे के साथ जब से अनूपपुर जिले में आए हैं तब से अपनी पहचान वायरस की तरह फैला रहे हैं ।
इस बात का शेष बचे कांग्रेसियों में बहुत गुस्सा है उन्होंने यानी सुनील और पुष्पराजगढ़ विधायक कुंदे लाल सिंह आदि के नेतृत्व में जिले के कलेक्टर से मिलकर इस बात की आपत्ति दर्ज कराई है की बिसाऊ लाल को भी क्वॉरेंटाइन किया जाए क्योंकि वे भोपाल के छूते हुए अनूपपुर जिले में आए हैं और वे कोरोनावायरस का संक्रमण फैला सकते हैं
उसी प्रकार उन्हें भी 14 दिन के लिए घर में रहने को कहा जाए जैसे कोतमा विधायक सुनील आपको घर में नजरबंद रखा गया जो अद्यतन हालात में सर्वाधिक प्राथमिक व उचित मांग रहे किंतु अनूपपुर जिला प्रशासन की कितनी हैसियत है कि वह बिसाहूलाल को नजर बंद कर सकते हैं यानी क्वॉरेंटाइन मैं डाल सकते हैं और विशाल लाल का रुतबा यह कि वे दूसरे दिन अपने पूरे अंदाज में क्षेत्र के लोगों से मिलते हुए दिखे उसी प्रकार जैसे मनोज कुमार ने गाना गाया था
ना इज्जत की चिंता, ना फिकर कोई सम्मान की..... जय बोलो ..
इस तरह वे शेष बचे क्षेत्र के कांग्रेसियों को मुंह चिढ़ा रहे थे उन्हें उनकी औकात बता रहे थे कि वे बिसाहूलाल हैं वही शबनम मौसी जैसे विश्वव्यापी विधायक को जन्म देते हैं उनसे न टकराइए ।
अब इस चुनाव के युद्ध में क्षेत्र का प्रवासी श्रमिक और उन पर सवार संभावित कोरोनावायरस परेशान है कि बड़ा कौन है ....? कोविड-19 का कोरोनावायरस या फिर इस क्षेत्र के राजनेता यह बात भविष्य में तभी होगा वैसे विंध्य-मेकल के गोद में बसा अनूपपुर जिला या कहना चाहिए शहडोल क्षेत्र, हालांकि उस स्तर पर कोरोनावायरस से प्रभावित नहीं है जिस स्तर पर इंदौर ,भोपाल , जबलपुर परेशान है किंतु क्या गारंटी है कि यह नेता लोग अपनी राजनीतिक कलाबाजियों के चलते कोरोनावायरस का संक्रमण के निमंत्रण को स्थापित करने में कोई अनजानी गलती तो नहीं कर रहे हैं...।
यह इन नेताओं की समझ से शायद परे हैं क्योंकि उन्हें सिर्फ अपने चुनाव की चिंता है लेकिन जो लोग जानते हैं उन्हें मालूम है कि यह नेता मानने वाले नहीं हैं क्योंकि इन्हें जनहित की कोई दरकार भी नहीं है या कोरोनावायरस को वोटर से ज्यादा महत्त्व भी नहीं दे रहे हैं।
किंतु अदृश्य ताकतें कितनी ताकतवर होती हैं इतना बड़ा अनुभव होने के बावजूद भी कि वे सत्ता भी पलट सकती हैं अगर इनकी समझ इनको नहीं समझा पा रही है तो यह अनूपपुर जिले का दुर्भाग्य होगा ।
प्रशासन को अपनी कर्तव्यनिष्ठा इसलिए भी निभानी चाहिए ताकि लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए उन्होंने जो कसम खाई है जिसके लिए वे वेतन पाकर अपने शरीर में वह परिवार का पेट भोजन करते हैं। यह सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए अन्यथा समय चूकने के बाद हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं रह जाएगा। अब अनूपपुर जिले में नेताओं यानी विधायिका से ज्यादा कार्यपालिका के भरोसे ही भविष्य सुरक्षित दिखता है बेहतर होता विधायिका और कार्यपालिका मिलकर कोरोनावायरस को हरा पाते.....
में भटकती विरासत की राजनीति..
(त्रिलोकीनाथ)
शहडोल क्षेत्र में अनूपपुर जिले से हाल के दशक में जो अपनी राष्ट्रीय पहचान बना पाए उसमें अनूपपुर शहर से लगे सोनपार सीतापुर गांव के उपन्यासकार उदय प्रकाश जी के अलावा व्यक्तिगत परिचित होने वाले बिसाहूलाल को भी गिना जा सकता है। उदय प्रकाश जी पहले ऐसे व्यक्ति थे
जिन्होंने व्यवस्था के खिलाफ बगावत करते हुए अपने मिले पुरस्कार को वापस कर दिया था और और फिर सरकारी पुरस्कार कचरे की तरह पूरे देश से वापस होने लगे थे , यही इस व्यक्तित्व की एक बड़ी पहचान है क्योंकि व्यक्तित्व की आभा भी एक विरासत होती है...।
अब मध्य प्रदेश राजनीति में बिसाहूलाल पहले ऐसे शख्स रहे शायद जिनकी वजह से या उनकी बुजुर्गइयत से मध्यप्रदेश की राजनीति में परिवर्तन का शुरुआत हुआ।
टी-शर्ट पहन कर वे पहली बार टीवी में जब प्रकट हुए तब बेंगलुरु कि किसी होटल में अपनी भावनाओं को रख रहे थे। जिसका कुल निष्कर्ष यह था कि उनके कांग्रेसी नेताओं ने कहा "चलो चलो..." और इस प्रकार बिसाहूलाल चल दिए, कांग्रेश छोड़कर।
और अंततः शिवराज सिंह के साथ गलबहिया करते हुए भोपाल की मीडिया के सामने प्रकट हुए।
बिसाहूलाल इसलिए भी अपनी पहचान बनाए पाए क्योंकि पहली बार उन्होंने तबके सोहागपुर विधानसभा क्षेत्र में अपने हिसाब से डिस्ट्रक्टिव पॉलिटिक्स करते हुए शबनम मौसी को चुनाव लड़ाने के लिए अपनी भावनाओं का इजहार किया था। अनूपपुर में ही बैठकर ।
और तब शबनम मौसी सोहागपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बन पाई।
इससे यह तो तय है की बिसाहूलाल जो बोलते हैं उसमें दम रहता है..
क्योंकि वह राजनीत की शबनमी-चाल के जन्मदाता भी हैं। रोचक बात यह है कि बिसाहूलाल संयुक्त शहडोल जिले के जिला कांग्रेस अध्यक्ष रहे ।उन्हें यानी आदिवासी नेता को संरक्षण देने वाले तब कांग्रेस के नेता दलवीर सिंह उनके मार्गदर्शक थे । यह भी रोचक है कि जब राजनीति के चलते दिग्विजय सिंह यानी दिग्गी राजा, दलवीर सिंह से यानीं प्रदेश की राजनीति में अर्जुन सिंह के खिलाफ जाकर बिसाहूलाल को गुट् राजनीति में बगावत की सीख दी।
तब बिसाहूलाल बागी होकर दलवीर सिंह की राजनीति में घातक सिद्ध हुए थे । यह अजीब संयोग है कि आज दलवीर सिंह की परिवारिक विरासत मे उनकी पुत्री श्रीमती हिमाद्री सिंह भारतीय जनता पार्टी से सांसद है और बिसाहूलाल कांग्रेस से ही नहीं, दिग्गी राजा से भी बगावत करके गाजियाबाद से लेकर बेंगलुरु तक हवा हवाई यात्रा करते रहे। क्योंकि नीचे भारत में कोरोनावायरस घूम रहा था ।और इधर नीचे उनके पुत्र कह रहे थे कि बिसाहूलाल का अपहरण हो गया है।
फिर बिसाहूलाल प्रकट हुए और कहे कि मैं तीर्थ यात्रा में गया था। इस प्रकार
इसी दौरान कोरोनावायरस से फैली महामारी अपना विस्तार कर चुकी थी किंतु हवा हवाई राजनीत में प्रति विधायक 50,00,00,000 रुपये की बिक्री का बाजार सातवें आसमान पर था।
यह काल्पनिक सत्य रहा कि क्या पचास करोड़ में कोई विधायक खरीदा जा सकता है..? किंतु यह स्पष्ट था कि कोरोना महामारी इतनी रोमांच नहीं पैदा कर पा रही थी जितना कि मध्य प्रदेश के 22 विधायक और 50 करोड़-पति विधायक की कीमत रोमांच पैदा कर रही थी।
बहरहाल बिसाहूलाल ने कई नेताओं को नेता बनाया उनका दावा है कि कोतमा विधायक सुनील शराफ उन्हीं की मदद से विधायक बन पाए, अब यह अलग बात कि सुनील , बिसाहूलाल से बागी हो गए हैं इस प्रकार जिस सीढ़ी पर पैर रखकर व्यक्ति आगे बढ़ता है उस सीढ़ी को तोड़ देना, खत्म कर देना इस क्षेत्र की राजनीति की पहचान बनती जा रही है..। राजनीति में गद्दारी या बगावत की विशेषता का आनुवंशिक से पैदा होना दुखद है।
यह फिलासफी फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दें क्योंकि अनूपपुर जिले में राजनीति कोरोना का फिर से मात देती नजर आ रही है। हालां कि बिसाहूलाल अब हवाई जहाज में नहीं है ना ही किसी फाइव स्टार के होटल में ,इसके बावजूद भी उनकी मानसिक उड़ान उसी स्तर की है। अभी उन्हें लगता है कि वह भारतीय जनता पार्टी की बनाई हुई मार्गदर्शक मंडल या कहना चाहिए वृद्ध आश्रम में नहीं भेजे जाएंगे इसलिए भी उसी टीशर्ट को जो बेंगलुरु में पहनते थे देखे गए हैं। और अब कोरोनावायरस को चार-लात मारते हुए
पूरी फौज-पटाखे के साथ जब से अनूपपुर जिले में आए हैं तब से अपनी पहचान वायरस की तरह फैला रहे हैं ।
इस बात का शेष बचे कांग्रेसियों में बहुत गुस्सा है उन्होंने यानी सुनील और पुष्पराजगढ़ विधायक कुंदे लाल सिंह आदि के नेतृत्व में जिले के कलेक्टर से मिलकर इस बात की आपत्ति दर्ज कराई है की बिसाऊ लाल को भी क्वॉरेंटाइन किया जाए क्योंकि वे भोपाल के छूते हुए अनूपपुर जिले में आए हैं और वे कोरोनावायरस का संक्रमण फैला सकते हैं
उसी प्रकार उन्हें भी 14 दिन के लिए घर में रहने को कहा जाए जैसे कोतमा विधायक सुनील आपको घर में नजरबंद रखा गया जो अद्यतन हालात में सर्वाधिक प्राथमिक व उचित मांग रहे किंतु अनूपपुर जिला प्रशासन की कितनी हैसियत है कि वह बिसाहूलाल को नजर बंद कर सकते हैं यानी क्वॉरेंटाइन मैं डाल सकते हैं और विशाल लाल का रुतबा यह कि वे दूसरे दिन अपने पूरे अंदाज में क्षेत्र के लोगों से मिलते हुए दिखे उसी प्रकार जैसे मनोज कुमार ने गाना गाया था
ना इज्जत की चिंता, ना फिकर कोई सम्मान की..... जय बोलो ..
इस तरह वे शेष बचे क्षेत्र के कांग्रेसियों को मुंह चिढ़ा रहे थे उन्हें उनकी औकात बता रहे थे कि वे बिसाहूलाल हैं वही शबनम मौसी जैसे विश्वव्यापी विधायक को जन्म देते हैं उनसे न टकराइए ।
अब इस चुनाव के युद्ध में क्षेत्र का प्रवासी श्रमिक और उन पर सवार संभावित कोरोनावायरस परेशान है कि बड़ा कौन है ....? कोविड-19 का कोरोनावायरस या फिर इस क्षेत्र के राजनेता यह बात भविष्य में तभी होगा वैसे विंध्य-मेकल के गोद में बसा अनूपपुर जिला या कहना चाहिए शहडोल क्षेत्र, हालांकि उस स्तर पर कोरोनावायरस से प्रभावित नहीं है जिस स्तर पर इंदौर ,भोपाल , जबलपुर परेशान है किंतु क्या गारंटी है कि यह नेता लोग अपनी राजनीतिक कलाबाजियों के चलते कोरोनावायरस का संक्रमण के निमंत्रण को स्थापित करने में कोई अनजानी गलती तो नहीं कर रहे हैं...।
यह इन नेताओं की समझ से शायद परे हैं क्योंकि उन्हें सिर्फ अपने चुनाव की चिंता है लेकिन जो लोग जानते हैं उन्हें मालूम है कि यह नेता मानने वाले नहीं हैं क्योंकि इन्हें जनहित की कोई दरकार भी नहीं है या कोरोनावायरस को वोटर से ज्यादा महत्त्व भी नहीं दे रहे हैं।
किंतु अदृश्य ताकतें कितनी ताकतवर होती हैं इतना बड़ा अनुभव होने के बावजूद भी कि वे सत्ता भी पलट सकती हैं अगर इनकी समझ इनको नहीं समझा पा रही है तो यह अनूपपुर जिले का दुर्भाग्य होगा ।
प्रशासन को अपनी कर्तव्यनिष्ठा इसलिए भी निभानी चाहिए ताकि लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए उन्होंने जो कसम खाई है जिसके लिए वे वेतन पाकर अपने शरीर में वह परिवार का पेट भोजन करते हैं। यह सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए अन्यथा समय चूकने के बाद हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं रह जाएगा। अब अनूपपुर जिले में नेताओं यानी विधायिका से ज्यादा कार्यपालिका के भरोसे ही भविष्य सुरक्षित दिखता है बेहतर होता विधायिका और कार्यपालिका मिलकर कोरोनावायरस को हरा पाते.....
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