गुरुवार, 18 जून 2020

अलविदा दात्री अलविदा : उत्कर्ष नाथ गर्ग


अलविदा दात्री अलविदा


अलविदा दात्री, तुमने इस रूप में जन्म लिया , शुक्रिया । 
तुम दुबारा यह रूप धारण न करो यह कामना करता हूँ   ।

मैं तुम्हारे इस चित्र को देख के यह कल्पना कर रहा हूँ कि अगर मैं होता और किसी पदार्थ को अपने मुंह मे रखता और वह अचानक से विस्फोट होता तो मेरा क्या होता , शायद उसी छण वो जो अभी तुम्हारे साथ हुआ है । मौत । तुमने गाय होने में कोई कमी नही की और हमने पशु होने में । हम दोनों एक प्रतिस्पर्धा में थे तुम गाय होरही थी और हम पशु । हर एक चरित्र गाय का अपनाकर जो मिला उसे खाकर, भरोसा करके ,हर एक रूप में तुम गाय के गुणों को विद्वमान कर रही थी , वही दूजी ओर हर मौके पे भक्षक बनके हम पशु होरहे थे हम पशु साबित होने के कोई मौके नही छोड़ रहे तुमने भी एक मौका दिया हमने वो अवसर पा लिया और साबित कर दिया हम पशु हैं । दात्री तुम्हारा देह यही समाप्त होचुका है किंतु जीवन नही , तुम्हारे गुण सदैव तुम्हारे जीवन को इस भू में विद्यमान रखेंगे   । दात्री आज शायद हम तुम्हारे देह को इस रूप में देख के अपनी व्यवस्थाओं का आंकलन कर सकते हैं , हमारी व्यवस्था तुम्हारे देह की तरह विक्षिप्त पड़ी है , उसपे भी केवल ढंकने मात्र की मिट्टी डाल दी जाती है कि वह विक्षिप्त न दिखे फिर कोई कुत्ता आता है उस विक्षिप्त देह को और विक्षिप्त बनाता है और सच बताऊ तो दात्री उस समय तुम मृत होके भी बहुत कुछ बोल रही होती हो और हम जीवित होक भी मूक होते हैं । किन्तु बोले क्या ? हमारी औकात बहुत सीमित है , हम शोर मचा सकते हैं ,वही कर रहे हैं  आगे भी वही करेंगे हमे तुम्हारी तरह बोलना नही आता , न हम तुम्हारी पुकार को सुन सकते हैं । दात्री तुमसे एक गुज़ारिश है तुम दोनों काया मत अपनाना न मनुज की क्योंकि वो सचेत मृत है , न गौ की । माफ करना दात्री पुनः अलविदा ।।

अलविदा दात्री अलविदा ... 😓😢😢

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