रेत से निकल रहा है तेल-2
भरपूर प्राकृतिक संसाधन के बावजूद कीमतें आसमान पर किस माइंडसेट से...
लूट के आलम में विकास का माइंड सेट...
स्थानीय लोगों को सस्ती रेत कब होगी उपलब्ध....
(त्रिलोकीनाथ )
किंतु पुराना माफिया जो स्थापित था उसके साथ प्रतियोगिता.. क्योंकि लेडी डॉन पुराने माफिया के साथ है.... उसे नए पारदर्शी सिस्टम में भारत में अलग-अलग जगह अपना साम्राज्य स्थापित करने में तकलीफ हो रही थी... तो एक माफिया व्यवस्था के तहत नए रेत ठेकेदार के साथ खुली लड़ाई चली.... व्यवस्थाएं वही थी सिर्फ "नई बोतल में पुरानी शराब" डाल दी गई थी...।
ठेकेदार को लाभ भी चाहिए इसलिए रेत के दाम दस से ग्यारह हजार प्रति ट्रॉली पहुंच गए। यह भी सही है की स्थानीय लोगों के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने रेत उपलब्ध कराने की कानून बनाए हैं किंतु उनके गोद में बैठा शहडोल नगर को जब यह सुविधा नहीं है दूर अंचल में कैसे होगा...?
यह ठीक उसी प्रकार का है जैसे शहडोल में शहीदों के अपमान की मानसिकता को बढ़ाने वाला जय
स्तंभ चौक इसी भारतीय जनता पार्टी के परिषद काल में लगातार दूसरे पंचवर्षीय योजना के तहत अभी सुसज्जित नहीं हो पाया है... यह अलग बात है कि संपूर्ण जिला प्रशासन क्या जिला न्यायाधीश, क्या आईजी, क्या कमिश्नर, कलेक्टर, एसपी जो भी उच्च अधिकारी इस जयस्तंभ चौक से शायद ही कोई दिन ना हो, जहां न गुजरते हैं.. फिर भी यह शहीद स्थल जय स्तंभ चौक की सड़क नहीं बन पाई.....? फिलहाल प्रगति है शायद अगले पंचवर्षीय योजना तक बन जाए..., यह एक व्यवस्था है। और एक प्रमाण पत्र भी, की विनाश से ही सृजन होता है....?
जब तक शहडोल में पानी की दर दस हजार प्रति नल कनेक्शन मासिक ना हो जाए..., जब तक एकलाख रुपये प्रति ट्राली रेत न बिकने लगे... तब तक विकास पुरुष का माइंडसेट नहीं होगा.... और मुख्यमंत्री जी शायद इसी "माइंडसेट" की बात अंग्रेजी में करते हैं.... क्योंकि विकास की रफ्तार उनकी मौन साधना में उनके गोद में बैठे हुए शहडोल मुख्यालय मैं अपने लक्ष्य को पा रही है... , यह अलग बात है कि इसके लिए कुछ वक्त और लगे।
अन्यथा कोई कारण नहीं है कि भरपूर जल संसाधन, भरपूर प्राकृतिक संसाधन रेत, पत्थर, खनिज विशेषकर रेत थोड़ा एक कदम और चलें तो कोयला सीबीएम गैस और इन सब से पैदा होता बिजली की दरें आम नागरिकों को लूटने के स्तर पर बना दी गई हैं। ठेकेदारों को "माइंडसेट" कर दिया गया है कि वे स्थानीय नागरिकों का किसी भी सीमा तक अपमान करें और लूट के आलम को बरकरार रखें..., क्या यही माइंडसेट है अंग्रेजी का ।
अन्यथा क्या कारण है कि अगर भाजपा मुख्यालय से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के पुतलों का दहन पूरी निष्ठा के साथ होता है पूरे प्रदेश में या देश में तो एक पुतला लगे हाथ महंगाई का भी जलाने का काम जिला भारतीय जनता पार्टी क्यों नहीं करती....? उससे ज्यादा यह की विपक्षी जिला कांग्रेस पार्टी अपने नेता के पुतले दहन प्रतियोगिता में क्या ताली बजा रही है... आखिर वह भी "महंगाई-डायन" का पुतला क्यों नहीं जलाती , एक पुतला इसका भी जलना चाहिए। ताकि हो हल्ला हो कि शहडोल का प्राकृतिक संसाधन लेडी डॉन के संरक्षण में लुट गया ... और लूटने के आलम में बरकरार है... क्या जब नागरिक अपने हाथों में कानून व्यवस्था लेगा, क्योंकि शोषण की कोई सीमा तो होगी....? तब तक प्रशासन का मूक-बधिर बना रहना कितना जायज है ....
कम से ऐसी व्यवस्था का निर्माण क्यों नहीं होना चाहिए कि ठेकेदार को समुचित लाभ मिले और स्थानीय आदमी को समुचित राहत... रेत निर्यात के फिर मनमानी दर चाहे कुछ भी क्यों ना हो...? कम स्थानीय व्यक्ति को प्राकृतिक संसाधन में उसका समुचित अधिकार जिले के निर्माण पर क्यों नहीं होना चाहिए.....?, जो ₹10000- ₹11000 ट्रॉली रेत आती है शहर में वह किसी नाले की होती है। सोन नदी का रेत, सोने के भाव में बिक रहा है... क्या यही अंग्रेजी का "माइंडसेट" है। अन्यथा मुख्यमंत्री जी का अंग्रेजी का "माइंडसेट" किस बात का संदेश देता है।
उम्मीद करना चाहिए जिम्मेदार वर्ग चाहे वह विधायक हो, पालिका परिषद हो या फिर प्रशासन हो इस लूट और डाके के सिलसिले पर मंथन करेगा और अपने अधिकारों का उपयोग कर सभी चीजों को खासतौर से जलकर और रेत की कीमत तत्काल नियंत्रित करेगा। क्या उम्मीद किया जा सकता है....?
आखिर शहडोल नगर कि बिगड़ गई ट्रेन कब बनेगी, ताकि आम आदमी राहत की सांस ले सके....।
भरपूर प्राकृतिक संसाधन के बावजूद कीमतें आसमान पर किस माइंडसेट से...
लूट के आलम में विकास का माइंड सेट...
स्थानीय लोगों को सस्ती रेत कब होगी उपलब्ध....
(त्रिलोकीनाथ )
किंतु पुराना माफिया जो स्थापित था उसके साथ प्रतियोगिता.. क्योंकि लेडी डॉन पुराने माफिया के साथ है.... उसे नए पारदर्शी सिस्टम में भारत में अलग-अलग जगह अपना साम्राज्य स्थापित करने में तकलीफ हो रही थी... तो एक माफिया व्यवस्था के तहत नए रेत ठेकेदार के साथ खुली लड़ाई चली.... व्यवस्थाएं वही थी सिर्फ "नई बोतल में पुरानी शराब" डाल दी गई थी...।
ठेकेदार को लाभ भी चाहिए इसलिए रेत के दाम दस से ग्यारह हजार प्रति ट्रॉली पहुंच गए। यह भी सही है की स्थानीय लोगों के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने रेत उपलब्ध कराने की कानून बनाए हैं किंतु उनके गोद में बैठा शहडोल नगर को जब यह सुविधा नहीं है दूर अंचल में कैसे होगा...?
यह ठीक उसी प्रकार का है जैसे शहडोल में शहीदों के अपमान की मानसिकता को बढ़ाने वाला जय
स्तंभ चौक इसी भारतीय जनता पार्टी के परिषद काल में लगातार दूसरे पंचवर्षीय योजना के तहत अभी सुसज्जित नहीं हो पाया है... यह अलग बात है कि संपूर्ण जिला प्रशासन क्या जिला न्यायाधीश, क्या आईजी, क्या कमिश्नर, कलेक्टर, एसपी जो भी उच्च अधिकारी इस जयस्तंभ चौक से शायद ही कोई दिन ना हो, जहां न गुजरते हैं.. फिर भी यह शहीद स्थल जय स्तंभ चौक की सड़क नहीं बन पाई.....? फिलहाल प्रगति है शायद अगले पंचवर्षीय योजना तक बन जाए..., यह एक व्यवस्था है। और एक प्रमाण पत्र भी, की विनाश से ही सृजन होता है....?
जब तक शहडोल में पानी की दर दस हजार प्रति नल कनेक्शन मासिक ना हो जाए..., जब तक एकलाख रुपये प्रति ट्राली रेत न बिकने लगे... तब तक विकास पुरुष का माइंडसेट नहीं होगा.... और मुख्यमंत्री जी शायद इसी "माइंडसेट" की बात अंग्रेजी में करते हैं.... क्योंकि विकास की रफ्तार उनकी मौन साधना में उनके गोद में बैठे हुए शहडोल मुख्यालय मैं अपने लक्ष्य को पा रही है... , यह अलग बात है कि इसके लिए कुछ वक्त और लगे।
अन्यथा कोई कारण नहीं है कि भरपूर जल संसाधन, भरपूर प्राकृतिक संसाधन रेत, पत्थर, खनिज विशेषकर रेत थोड़ा एक कदम और चलें तो कोयला सीबीएम गैस और इन सब से पैदा होता बिजली की दरें आम नागरिकों को लूटने के स्तर पर बना दी गई हैं। ठेकेदारों को "माइंडसेट" कर दिया गया है कि वे स्थानीय नागरिकों का किसी भी सीमा तक अपमान करें और लूट के आलम को बरकरार रखें..., क्या यही माइंडसेट है अंग्रेजी का ।
अन्यथा क्या कारण है कि अगर भाजपा मुख्यालय से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के पुतलों का दहन पूरी निष्ठा के साथ होता है पूरे प्रदेश में या देश में तो एक पुतला लगे हाथ महंगाई का भी जलाने का काम जिला भारतीय जनता पार्टी क्यों नहीं करती....? उससे ज्यादा यह की विपक्षी जिला कांग्रेस पार्टी अपने नेता के पुतले दहन प्रतियोगिता में क्या ताली बजा रही है... आखिर वह भी "महंगाई-डायन" का पुतला क्यों नहीं जलाती , एक पुतला इसका भी जलना चाहिए। ताकि हो हल्ला हो कि शहडोल का प्राकृतिक संसाधन लेडी डॉन के संरक्षण में लुट गया ... और लूटने के आलम में बरकरार है... क्या जब नागरिक अपने हाथों में कानून व्यवस्था लेगा, क्योंकि शोषण की कोई सीमा तो होगी....? तब तक प्रशासन का मूक-बधिर बना रहना कितना जायज है ....
कम से ऐसी व्यवस्था का निर्माण क्यों नहीं होना चाहिए कि ठेकेदार को समुचित लाभ मिले और स्थानीय आदमी को समुचित राहत... रेत निर्यात के फिर मनमानी दर चाहे कुछ भी क्यों ना हो...? कम स्थानीय व्यक्ति को प्राकृतिक संसाधन में उसका समुचित अधिकार जिले के निर्माण पर क्यों नहीं होना चाहिए.....?, जो ₹10000- ₹11000 ट्रॉली रेत आती है शहर में वह किसी नाले की होती है। सोन नदी का रेत, सोने के भाव में बिक रहा है... क्या यही अंग्रेजी का "माइंडसेट" है। अन्यथा मुख्यमंत्री जी का अंग्रेजी का "माइंडसेट" किस बात का संदेश देता है।
उम्मीद करना चाहिए जिम्मेदार वर्ग चाहे वह विधायक हो, पालिका परिषद हो या फिर प्रशासन हो इस लूट और डाके के सिलसिले पर मंथन करेगा और अपने अधिकारों का उपयोग कर सभी चीजों को खासतौर से जलकर और रेत की कीमत तत्काल नियंत्रित करेगा। क्या उम्मीद किया जा सकता है....?
आखिर शहडोल नगर कि बिगड़ गई ट्रेन कब बनेगी, ताकि आम आदमी राहत की सांस ले सके....।
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