“हे-भारतीय मतदाता !” [व्यंग्य रचना]
शाद अहमद ''शाद'' पूर्व सचिव प्रगतिशील लेेेखक संघ |
अपने चछुओं को पूरा खोलकर, मुझे पहचानने का प्रयास कर – मैं ही हूँ धरती पर तेरा भाग्यविधाता ।
तेरी धुंधली दृष्टि जब किंचित स्पष्ट होगी तो सौम्य मुस्कान एवं धवल वस्त्रों से सुसज्जित तू मुझे अपने निकट ही पायेगा ।
मेरी पावन उपस्थिति से तूने चुनावी ऋतु के आगमन का अनुमान तो लगा ही लिया होगा ।
अब - अपने चुनाव क्षेत्र की संकरी-गलियों तक में धवल वस्त्रों में लिपटा हुआ मैं सर्वत्र व्याप्त हूँ ।
कभी मैं तुझे किसी पोस्टर में दिख जाऊंगा – कभी किसी बैनर में ।
मतदान तिथि की घोषणा होते ही संभवत: एक (या अधिक) बार – तेरे भविष्य को सुखमय बनाने के आश्वासनों के साथ मैं तुझे प्रणाम करता हुआ साछात दर्शन भी दे सकता हूँ ।
वैसे, ये मौखिक आश्वासन तेरे लिए उतने ही मिथ्या हैं – जितना तेरा जीवन ।
हे मूढाधिराज !
तेरे लिए - इस पंचवर्षीय से पूर्व मैं दूसरे रूप में तेरा भाग्यविधाता था – इस पंचवर्षीय इस रूप में हूँ – चुनाव पश्चात् अगले पंचवर्षीय किस रूप में अवतरित होऊंगा? तू नहीं जानता (और सत्य कहूं तो अभी मैं भी नहीं )
किन्तु तुझे इससे क्या प्रयोजन कि तेरा नवीन भाग्यविधाता कौन हो जाए.?
उस भाग्यविधाता का स्वरुप कुछ भी हो – तेरी परिणति तो सामान ही होगी ।
हे अविवेकी !
तू निरंतर एक (मिथ्या) प्रश्न पूछता है “तेरा भाग्योदय कब होगा.?”
तेरा यह प्रश्न पूर्णरूप से तेरे अविवेकी होने की घोषणा है ।
तुझे धिक्कार है कि “मनुष्य योनी में जन्म पाकर भी ऐसा निकृष्ट प्रश्न पूछता है.?”
हे पापात्मा !
किसी मृग ने (भी) कभी इस तुच्छ कोटि का प्रश्न नहीं किया कि “उसका भाग्य कब बदलेगा.?”
पशु होने के पश्चात भी उसे भलीभांति भान होता है कि “उसके जन्म का उद्देश्य घास-फूस खाकर जीवित होने का अभिनय करते हुए अंततः किसी मांसभक्षी के एक समय का भोजन हो जाना है ”
वह स्वयं के प्राण बचाने हेतु प्राणपण से कुंलाचें अवश्य भरता है – यह उसका पशुशार्थ हुआ ।
किन्तु प्रत्येक मृग जानता है कि वन के प्रत्येक कोने में भिन्न आकार-प्रकार के नख-दन्त, आतुरता से छिद्रान्वेषण हेतु लपलपाती जिव्हा के साथ, उसकी नर्म देह की प्रतीक्षा में हैं ।
एक मृग के लिए कोई अंतर नहीं कि उसके प्राण सिंह ने लिए या भेड़िये ने - उसे गिद्धों ने नोचा या सियार ने चबाया I
क्योंकि उसे भलीभांति ज्ञात होता है कि उसकी अंतिम परिणति किसी माँसाहारी की क्षुधा तृप्ति ही है |
हे–नरकगामी !
ध्यान से स्वयं का अवलोकन कर – तेरी स्थिति भी किसी मृग से किंचित भिन्न नहीं |
तेरे जीवन का उद्देश्य भी निश्चित है
एक निर्धारित आयु से मतदान प्रारंभ कर – मृत्यु पूर्व तक तुझे केवल निर्विकार भाव से मतदान करते चले जाना है I
इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि तूने अपना मत (वोट) किसे दिया |
हे निकृष्टबुद्धि !
उन पापत्माओं की संगत का त्याग कर जो तेरे मत (वोट) को अमूल्य ठहराने का भ्रम उत्पन्न करते हैं I
विचार कर, जब तेरे प्राण – तेरे अस्तित्व का मोल ही दो कौड़ी से अधिक नहीं तो तेरी अंगुल की एक नीली सूखी बूँद कितनी मूल्यवान हो सकती है ?
ध्यान से स्मरण कर – जब तीन पंचवर्षीय पूर्व अस्वस्थता के कारण तूने अपना मत (वोट) नहीं दिया था तब भी कोई अनचाहा ही तेरा भाग्यविधाता चुन कर आ गया था ।
वस्तुतः यह तेरा भ्रम ही है कि “यदि तूने अपना मत (वोट) इसे न देकर उसे दिया होता तो तेरा भाग्य परिवर्तित हो जाता
अब तो पूर्व अनुभव से तू भी भलीभांति जानता है कि प्रत्येक पांच वर्ष में तेरे भाग्यविधाता तो परिवर्तित हो सकते हैं किन्तु तेरा भाग्य नहीं
हे उलूक पुत्र !
तेरे वास्तविक कष्ट का कारण पार्टी के घोषणा पत्र में अंकित घोषणाएं नहीं अपितु उन घोषणाओं से उपजी तेरी अपेक्षाएं हैं ।
तूने युगों पूर्व प्रेषित सन्देश “अपेक्षाएं ही दुखों का मूल कारण हैं” को गम्भीरता से ग्रहण नहीं किया ।
इस कटु सत्य को ध्यान रख - तेरा जीवन कभी सुखमय नहीं था – न आज है – न भविष्य में होगा ।
तेरे पास थोडा भी नहीं है और अधिक प्राप्ति की आकांक्षा मृत्यु पर्यन्त बनी ही रहेगी ।
हे जन्मजात कृपण !
अच्छे दिनों की मृग मारीचिका में कब तक बूथ-बूथ भटकेगा.?
मैं इस बूथ में भी हूँ और उस बूथ में भी ।
इसे विनम्र निवेदन नहीं मित्रवत सुझाव समझ ।
जिस किसी को भी तेरा मत (वोट) जायेगा, जब वहां से भी छल की ही आश्वस्ति है तो इस पूर्व ज्ञात परिणाम हेतु तुझे वैचारिक रूप से भटकने की आवश्यकता ही क्या है.?
तुझे विशुद्ध रूप से यही परिणाम तो मुझसे भी मिलने वाला है ।
यदि तेरे नवीन भाग्यविधाता के अथक प्रयासों के पश्चात् भी तेरा जीवन बचा रहा तो आने वाले पंचवर्षीय से कुछ समय पूर्व तुझे पुनः दर्शन दूंगा ।
जा ! निर्विकार भाव से लोकतंत्र के महायग्य में मेरे चुनाव चिन्ह पर अपना मत (वोट) रुपी आहुति अर्पित कर I
और हाँ ! प्रमाण के रूप में तर्जनी की नीले चिन्ह वाली छवि सोशल मीडिया में डालना विस्मृत न कर जाना।
!
शाद अहमद ''शाद''
Mob : 9644400901, 7000586403
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