बुधवार, 13 मई 2020

पुरस्कार .... : शाद अहमद 'शाद'

              “पुरस्कार...” शाद अहमद 'शाद'

बहुत पुरानी बात है - जब उच्च कोटि के पुरस्कार किसी व्यक्ति या संस्था के समाज के प्रति योगदान को मापने, मानवता को प्रेरित करने आदि का मानक होते थे I
समय तो परिवर्तनशील है ही – जब सभी मामलों में परिवर्तन हो रहा है तो पुरस्कार वितरण के तौर-तरीकों में क्यों न हो.?

इधर नगरों में उच्च पुरस्कारों के लिए नामों की सूचि जारी हुई तो यह बात जंगल में जंगल की आग की तरह फैल गयी I
जानवरों ने नगरों से प्रेरित हो सर्वसम्मति से निर्णय किया कि नगरों की तर्ज़ पर जंगल में भी विलक्षण कार्य करने वाले जानवरों को पुरस्कृत किया जायेगा I

जंगल का यह निर्णय उचित भी था - क्योंकि अब नगर असीमित अट्टालिकाओं का दूर तक फैला जंगल हैं और जंगल सीमित वृक्षों का नगर I

अब जंगल मे नयी समस्या उत्पन्न हुई कि जानवरों को पुरस्कार देने के मानक क्या रखे जाएँ.?
इधर समस्या उत्पन्न हुई – उधर नगरों की तर्ज़ पर समाधान प्रस्तुत I
वैसे भी जंगल राज में समस्या का समाधान आनन्-फ़ानन हो ही जाता है I

तय हुआ कि नगरों में वितरित पुरस्कारों के मानक के आधार को ही जंगल में दिए जाने वाले पुरस्कारों के सन्दर्भ में भी उचित पाया जाये I

उधर नगरों में पुरस्कार वितरण के बाद से पूर्ण असंतुष्टि का वातावरण है I
पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं पर असक्षम होने के आरोप लगाये जा सहे हैं और निर्णायक मंडल न तो सच बोल पा रहा है न ही पुरस्कार देने के अपने निर्णय का बचाव कर पा रहा I

हांलाकि जंगल में भी स्थिति लगभग ऐसी ही है क्योंकि पुरस्कार प्राप्तकर्ता (जंगल की सभी) छिपकलियों पर जानवरों में आम सहमति नहीं है I
निर्णायक मंडल (भेडिये, गिद्ध, सियार, कौवे, लकड़बग्घे) पर आरोप की शक्ल में प्रश्न है कि “आख़िर छिपकलियों के किस योगदान के कारण पुरस्कृत किया गया.?”

निर्णायक मण्डल ने स्पष्ट किया “जंगल में छिपकलियों का योगदान अतुलनीय रहा है – क्योंकि ये सदैव वृक्ष की शाखा को नीचे से सहारा देती हैं – इस कारण भारी-भरकम शाखाओं से सुसज्जित वृक्ष गिरने से बचे रहते हैं - वन-संरक्षण में इनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता – तात्पर्य यह कि जंगल को जिलाए रखने में छिपकलियों का योगदान अतुलनीय है I”

यह खबर नगरों तक भी पहुंच गयी और वहां भी स्पष्टीकरण दे दिया गया “इन पुरस्कार प्राप्तकर्ता विभूतियों के कारण ही इनके धर्म की पताकाएं अब तक लहरा रही हैं और इनके मज़हब का वजूद बचा हुआ है I”

आम शांतिप्रिय जानवर और मनुष्य अनमने मन से अपने सिर हिला रहे हैं ...
!
शाद अहमद “शाद“
Mob : 7000586403, 9644400901

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...