मंगलवार, 19 मई 2020

उन्हें जाने दो भैया... क्योंकि लोकतंत्र फेल है.. पद्य जब गद्य बन जाते हैं... (त्रिलोकीनाथ)

उन्हें जाने दो भैया...
क्योंकि लोकतंत्र फेल है..
पद्य जब गद्य बन जाते हैं...

(त्रिलोकीनाथ)
जो जैसा जा रहा है, उसे जाने दो भैया... क्योंकि लोकतंत्र फेल है ....
यही है वक्त की नजाकत, हम आप चाहे कितनी भी बातें कर ले, और सुन ले...
 सब मनोरंजन है.... क्योंकि श्रमिक वर्ग.. हां, उसकी एक ही जात है, कि वह श्रमिक है.... इसमें वह हर श्रमिक है,
 जो इस समय अपने लोक ज्ञान से,
 या तो पैदल चलकर ...
या फिर पटरी में चलकर....
 या फिर कोई भी संसाधन पकड़ कर...
 कैसे भी, बस चला जा रहा है.....
अपने घर की ओर.., क्योंकि लोकतंत्र फेल है अब चाहें तो कितनी भी विरुदावली गा ले..
 किंतु सच बात यह है कि लोकतंत्र फेल है..

 पिछले दो माह से, बंद कमरों के अंदर...
 शीशों की महलों में, अपनी जान बचाते.. 
खुद को छुपाते, जिम्मेदार वर्ग सिर्फ...
 शानदार कायर की तरह, शीशे के अंदर से,
 प्रबंधन का पाखंड कर रहा है...
 क्योंकि यह स्वत: सिद्ध है,
 अब हमें बताने की भी जरूरत नहीं है कि, करोड़ों लोग भारतीय नागरिक सड़क पर है.. चल रहे हैं, और चलते-चलते घायल है...
 प्रताड़ित हैं, भूखे हैं, भयभीत हैं, और...
 कई मर भी रहे हैं.., क्योंकि लोकतंत्र फेल है

 इसलिए जाने दो भैया, लोकतंत्र फेल है..
 उन पर दया करो,  कृपा करो...
 श्रमिक वर्ग ही नहीं, गर वह ऑटो वाले भी हैं
 पैसे की कीमत पर भी., वे हमें गारंटी देते हैं.. कोई आशा प्रकट करते हैं.... की पहुंचाएंगे,
 मंजिल पर.... उन्हें जाने दो भैया ....
क्योंकि लोकतंत्र फेल है...

 सत्ता का क्या, उसका तो चरित्र है....
 वह भ्रम फैलाकर कायम रहना चाहता है..
 अपनी कुर्सी पर,
 क्योंकि लोकतंत्र फेल है....
 प्रयास सिर्फ प्रयास हैं,गर मनसा होती...
 ठीक उसी तरह, जैसे ठीक 8 बजे..,
 आपात हालात जन्म लेते हैं...
 ठीक उसी तरह ,
 आपात प्रबंधन सुनिश्चित हो सकता है..

 गर पंचायत के पंच को पंच-परमेश्वर मानकर,
 वीर श्रमिकों को उनके हवाले किया होता...
 किंतु, ऐसा नहीं हुआ..
 केरल, उड़ीसा को छोड़कर ,
 शायद ही कोई पंच...
 पंच-परमेश्वर बना हो....
 इसीलिए कहते हैं, लोकतंत्र फेल है...
 उन्हें जाने दो भैया.... दर्द में...
 और दर्द न दो.....
 दर्द का रिश्ता कायम करो.....
 क्योंकि लोकतंत्र फेल है.....
 कम से कम वीर श्रमिकों के मामले पर,
 जो सिर्फ चल रहे हैं.....
 घड़ी की सेकंड सुई की तरह....
 अथक.., श्रमवीर की तरह..............



(वास्तव में इसे  आलेख के रूप में लिख रहा था,  कब यह  काव्य-खंड बन गया पता ही नहीं चला : त्रिलोकीनाथ)

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