- इस समय यह धरती से 53 मिलियन यानी 4 अरब 2 करोड़ 77 लाख 3 हजार 200 मील की दूरी पर है। जिस रफ्तार से यह पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है, उसके अनुसार यह 27 मई तक पृथ्वी से टकरा सकता है।
- ब्रिटेन सहित कई यूरोपीय देशों में इसे शाम के समय देखा जा सकेगा। एशियाई देशों में यह ईस्टर्न टाइम जोन के अनुसार अलसुबह नजर आ सकता है।
- अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का कहना है कि यह धूमकेतू 11 हजार वर्ष में एक बार पृथ्वी से टकराता है। हालांकि इससे कोई क्षति नहीं होती, केवल आसमान का रंग बदलकर हरा हो जाता है।
- 27 मई को यह साफ देखा जा सकेगा। यदि आपके पास छोटी मोटी दूरबीन या टेलीस्कोप है तो और अच्छा है।
- सूर्य से यह जितना निकट होगा, इसकी चमक उतनी ही अधिक हो जाएगी। इस बात की संभावना भी है कि यह छोटे टुकड़ों में बंट जाए।
- इस धूमकेतू में मुख्य रूप से बर्फ और मीथेन गैस से भरा एक हिस्सा है जो सूर्य के चक्कर लगा रहा है। पृथ्वी के करीब आने का कारण धरती की ग्रेविटी है।
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क्या होते हैं धूमकेतू
धूमकेतु या कॉमेट सौरमण्डलीय में पाए जाने वाले ऐसे तारे होते हैं, जो मूल रूप से पत्थर, धूल, बर्फ और गैस के बने हुए छोटे-छोटे टुकड़े होते है। यह ग्रहोंं के समान ही सौरमंडल में सूर्य की परिक्रमा करते हैंं। छोटे पथ वाले धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा एक अण्डाकार पथ में लगभग 6 से 200 साल में एक बार पूरी करते हैंं। कुछ धूमकेतु तारों का पथ वलयाकार होता है और वो अपने पूरे जीवनकाल में मात्र एक बार ही दिखाई देते है। लम्बे पथ वाले धूमकेतु अक्सर एक परिक्रमा करने में हजारों वर्ष लगाते हैंं। अधिकतर धूमकेतु बर्फ, कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, अमोनिया तथा अन्य पदार्थ जैसे सिलिकेट और कार्बनिक मिश्रण के बने होते हैं। इन्हें सामान्य भाषा में पुच्छल तारा भी कहा जाता है क्योंकि इनके पीछे उक्त तत्वों की लंबी पूंछ बनी हुई होती है जो सूर्य के प्रकाश से चमकती रहती है( अरविंद दुबे के सौजन्य से)
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