...उस पथ पर देना तुम फेंक ....
एक और पुष्पांजलि .... (भाग-1)
जीबी रोड में कोठे का खड़ा लोकतंत्र का रेल मंत्रालय....?
(त्रिलोकीनाथ )
(त्रिलोकीनाथ )
प्रधानमंत्री जी ने पहली बार ही स्पष्ट कहा था कि महाभारत का युद्ध 18 दिन का था और कोविड-19 के विरुद्ध युद्ध 21 दिन का होगा। यह युद्ध लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसमें कोई शक नहीं है कि आधुनिक भारत में यह बड़ा महाभारत है। कारण चाहे जो भी हो, वक्त आने पर उसका भी खुलासा हो ही जाएगा। किंतु इस महाभारत में क्या भारतीय लोकतंत्र की रेल सेवाएं दुनिया की सबसे बड़ी रेल सेवाओं में एक है, स्वयं को लोकसेवा से अलग करने का कसम खा ली है....? क्या वह उस पतित महिला की तरह हो चली है जोकि सज-धज कर संभल कर किसी कोठे में बिकने को तैयार हो जाती है......? क्या रेल मंत्रालय का यही लक्ष्य रह गया था.......?
यह ठीक है कि रेल मंत्रालय को वर्तमान लोकतंत्र ने बेचने की पूरी ताकत लगा रखा है, उसे अलग-अलग तरीके से सजाता और संवारता रहा, अलग-अलग पूंजीपति उसे खरीदने के लिए सरकार के द्वार में, सरकारी-सिस्टम से खरीदने के लिए खड़े थे। जिसे रेल मंत्रालय में "निवेश की भाषा" निजी क्षेत्रों में देने का सर्कस चालू था।
क्या यह उसी के कु-परिणाम थे, कि एक बड़ी आहट, जो आधुनिक लोकतंत्र पर विश्वास खो चुके प्रवासी श्रमिकों के महापालायन के दौर में भारत के किसी भी अंचल पर जब कहीं कोई बड़ी घटना घट जाती है तो उससे भी इस महाभारत के युद्ध में कोई सीख नहीं ली जाती......?, कोई अनुमान नहीं लगाया जाता, कोई रोडमैप तैयार नहीं होता...., ताकि संघर्ष को सरलता से और सुविधाजनक बनाया जाए ।
पूरे भारत की आपदा का इसलिए भी नहीं अनुमान लगाना चाहते क्योंकि वह एक झूठा अनुमान होगा। इसलिए शहडोल संभाग के रेलवे क्षेत्र में 24 अप्रैल को घटित उस घटना को दृष्टांत करना उचित होगा,
जिसमें अनूपपुर के पास ठीक इसी प्रकार से जैसे कि कल हमारे ही शहडोल के 16 मजदूर औरंगाबाद जिले में रेल की पटरियों पर कीड़ों-मकोड़ों की तरह मार दिए गए, ठीक इसी तरह 2 प्रवासी मजदूर रेल पटरियों में अपनी सतत पैदल यात्रा के बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे। इसे हम दुर्घटनाग्रस्त घटना के रूप में देख सकते हैं.... क्योंकि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने लगभग 99% निजी क्षेत्र के मीडिया ने पूरे प्रोपेगंडा के साथ 24 घंटे बताया की प्रधानमंत्री जी ने पूरे भारत में जब जनता कर्फ्यू का आवाहन किया, तो रेल सेवाओं को बंद करने की भी जानकारी दी थी। और फिर जो परिस्थितियां बनती चली गई उससे यह तय हो गया, विश्वास भी हो गया की रेल सेवाएं बंद ही रहेंगी .... । मालगाड़ी और यात्री गाड़ी का फर्क उतने प्रोपेगंडा के साथ नहीं बताया गया जो मजदूरों को समझ आता है ।
दूसरी तरफ प्रवासी मजदूरों की बातें सुनी जाएं तो उन्हें ही जैसे कोरोनावायरस मानकर पुलिस का अमला, उनसे नफरत की दूरी बनाकर कहीं न कहीं भी पीट देती थी..... क्योंकि कोई रोडमैप नहीं था जनता कर्फ्यू का । इसलिए उसने जो काम किया वह मजदूरी तो नियोक्ता ने दिया ही नहीं था, ऊपर से एक अज्ञात, अदृश्य जेल मैं रहने की जब सभी सीमाएं टूट गई.... प्रवासी मजदूर बजाए सड़क मार्ग के रेल पटरियों के सहारे अपने घर की तरफ लौट चलें... क्योंकि मजदूरों को विश्वास था हमारे प्रधानमंत्री जो बोल रहे हैं वह सच था। कि रेल मंत्रालय भी काम नहीं करेगा, यह रेलवे भी नहीं चलेगी। और जब कहीं अवसर मिलता वह अपनी परिस्थितियों में रेल पटरियों को पत्थरों को बिछौना बनाकर आराम कर लेता ।इसी का खामियाजा अनूपपुर जिले में मजदूरों को भुगतना पड़ा ।और वे मालगाड़ी दुर्घटना के शिकार हो गए।
यह सही है कि हमारा मजदूर भाई इतना ही नादान है... क्यों, उसने मालगाड़ी और यात्री गाड़ी में फर्क नहीं समझा... जब प्रधानमंत्री जी ने कहा तो उसको विस्तार से समझने का प्रयास भी नहीं किया।
फिर भी दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कर्मचारी संगठन भारतीय रेल व रेल मंत्रालय के क्षेत्र में जब अनूपपुर ऐसी दुर्दांत घटना घटी तब रेल मंत्री पियूष गोयल और उनका पूरा इंटेलिजेंस, पूरा प्रबंधन क्या कुंभकरण की नींद सो रहा था.....?, क्या भारतीय सेना ढोल और नगाड़े लेकर उनको जाकर जगाती की अनूपपुर में घटी घटना दोबारा फिर कहीं ना घटित हो जाए.?
यह ठीक है की आपने देश के सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संगठन रेल मंत्रालय को "टुकड़े-टुकड़े गैंग" में पूंजीपतियों को षड्यंत्र करके बेचने का धंधा चालू कर दिया था.... जैसे अलग-अलग हिस्से में कोठे की वेश्याएं स्वयं को बेचती हैं.... बिना किसी खतरे की आशंका को लेकर लक्ष्य के लिए काम करती हैं... क्योंकि वही उनका नैतिक व्यवसाय है। क्या आप भी निजी निवेश के नजर में पूरे रेल मंत्रालय को कोठा बनाने का काम कर रहे थे.... चलो कर भी रहे थे, बेच भी रहे थे क्योंकि आपसे संभल नहीं रहा था, रेल मंत्रालय या अन्य कोई आपके दूसरे कारण रहे होंगे....।
किंतु जब भारत के हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री ने कह दिया की वर्तमान संकट महाभारत का युद्ध के समतुल्य है तो आपने क्या तैयारी की..? या फिर बंद कमरे में इस कोरोनावायरस खत्म हो जाने के बाद रेल मंत्रालय को टुकड़े-टुकड़े गैंग में बेचने का रोडमैप तैयार कर रहे थे..? इस मंत्रालय के लोकहित की कल्पना को आपने तिलांजलि दे दी थी...?
अन्यथा, यदि अनूपपुर क्षेत्र की घटना घटी तो उसे पूरे भारतवर्ष में उदाहरण क्यों नहीं माना गया ।
यही गलती, जी हां, यही गलती यदि केरल में 28 जनवरी को आए पहले 3 कोरोनावायरस कोविड-19 के मरीजों के मद्देनजर खतरे का आभास अगर हमारा लोकतंत्र सतर्कता से करता तो, वह जो जानें भारत में जा रही हैं इस वायरस के कारण, जो तकलीफ हो रही हैं इस वायरस के कारण, उसका सामना हमें नहीं करना पड़ता। उससे ज्यादा खौफनाक और खतरनाक यह कि जब मंजर तथाकथित आर्थिक मंदी का चल रहा हो तब लाखों करोड़ों रुपए आग लगाने के लिए आग के हवाले नहीं करने पड़ते....? किंतु हम केरल के तीन युवकों में पाए गए कोविड-19 की घटना से भी कुछ नहीं सीखे थे... बात जनवरी की है ।
एक लंबे और भयानक कष्टकारी महा- पलायन के दौर पर, जब 24 अप्रैल को शहडोल क्षेत्र में प्रवासी मजदूरों की रेल से कटकर मौत हुई तो भी आप अपने बंद कमरों के अंदर अपनी जान को छुपाए किसी कायर की तरह , कोई रोडमैप नहीं बना पाए.... पीयूष गोयल जी जरा भी नैतिकता है तो शहडोल क्षेत्र के ही 15 प्रवासी मजदूरों की हत्या के लिए स्वयं को जिम्मेवार मानकर तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए....।
उस रेल मंत्रालय से जो वर्तमान व्यवस्था में विलासता की जीवन जी रहे निवेश कारी लोगों के हाथ आप इसे बेचना चाहते थे। मान लीजिए आपने बेच ही दिया और इस्तीफा दे दीजिए। इसलिए भी क्योंकि वर्तमान में जो बहुचर्चित कोरोना काल का नया नेता, और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं राजमाता विजयराजे सिंधिया के नाती ज्योतिरादित्य, श्रमवीर पलायन कराकर सुरक्षित राजनीतिक प्रवासी कर वापसी कराई गई है, उन्हीं के पिता सभी माधवराव सिंधिया (एक सच का महाराजा) जब कभी कांग्रेस पार्टी में एक मंत्रालय देख रहे थे तब एक दुर्घटना मात्र हुई थी और उन्होंने अपना नैतिक दायित्व समझकर जिम्मेदारी लेकर मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया था...
माधवराव सिंधिया‘केंद्र में 1991 में जब पीवी नरसिंम्हा राव की सरकार बनी तो सिंधिया को नागरिक उड्डयन मंत्री बनाया गया. लेकिन साल भर बाद ही एक रूसी विमान के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने अपना पद छोड़ दिया. जबकि इस घटना में एक भी जनहानि नहीं हुई थी।
माधवराव सिंधिया‘केंद्र में 1991 में जब पीवी नरसिंम्हा राव की सरकार बनी तो सिंधिया को नागरिक उड्डयन मंत्री बनाया गया. लेकिन साल भर बाद ही एक रूसी विमान के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने अपना पद छोड़ दिया. जबकि इस घटना में एक भी जनहानि नहीं हुई थी।
क्या आप इस महामारी में भी बंद कमरे के अंदर जब रेल मंत्रालय को बेचने का प्लान बना रहे हैं तब प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक हत्या के लिए स्वयं जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने की जिम्मेदारी नहीं उठा सकते, एक कागज में साइन ही तो करना है, इस कलंक से बच सकते थे।
क्योंकि प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए बावजूद अनूपपुर की इसी प्रकार की रेल दुर्घटना हुई थी आप और आपका मंत्रालय पूरा सिस्टम सिर्फ कुंभकरण की नींद सो रहा था, अब आप जाग जाइए.., जरा भी नैतिकता हो तत्काल इस्तीफा दे दीजिए.... कई कारण है हालांकि इससे ऐसी घटनाएं नहीं होंगी इसकी कोई गारंटी नहीं है... लेकिन आप जल्लाद नहीं हैं, की हत्या का काम फांसी के रूप में करते रहें।
आप या आपके हर मंडल स्तर में, जोन स्तर में अथवा केंद्रीय स्तर पर अपने सलाहकारों की सलाह से अनूपपुर की दुर्घटना से बेहतर प्रबंधन कर सकते थे। किंतु आपके यहां सलाहकार कम गुलामों की फौज ज्यादा है शायद इसीलिए निष्कर्ष नहीं निकला अनूपपुर की दुर्घटना से ताकि शहडोल क्षेत्र के प्रवासी मजदूरों की हत्या के पाप से मंत्रालय को बचा सकते थे।
किंतु यह तब होता है जब इच्छाशक्ति लोकहित की लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए प्रतिबद्ध होती है.... क्या हमने अपने लोकहित को भी किसी "मार्गदर्शक मंडल" में बैठा दिया है, जहां वह देखकर और सिर्फ कसमसा कर आत्महत्या की सोच पैदा करते रहें.... जैसे हमारे प्रवासी मजदूर पल-प्रतिपल पैदल चलकर आत्महत्या ही कर रहे हैं... जब तक वह मर ना जाएं। क्या हम इस से बच सकते थे, यदि भविष्य में ऐसी रेल दुर्घटनाएं ना हो तो यह हमारे लिए वीर श्रमिकों को एक पुष्पांजलि होगी। क्योंकि वह इस महाभारत युद्ध में शहीदों की मौत मरे हैं। उनकी हत्या हुई है... दुर्घटना नहीं....
(प्रयास है यह बात प्रदेश के रेल मंत्री को देश के राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री को भी इसी प्रकार से पहुंचाई जाए यदि आपके पास एप्रोच है इन लोगों का तो जरूर शेयर कीजिए अगर हम भारत के नागरिक हैं तो हमारी जिम्मेदारी है कि हमारे नेता तक हम अपना दुख पहुंचायें।)
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