कोरोना पार्ट 3
वो सात वचन....1
(त्रिलोकीनाथ)
बहरहाल बहुत सारी बातें संविधान में नहीं लिखी गई इसीलिए हमारा संसद नियम बनाने का अधिकार रखता है । वर्तमान कोरोना काल में जो हालात दिखाई दे रहे हैं वह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल से अधिक तो नहीं किंतु उससे कम भी नहीं दिखाई देते।
छत्तीसगढ़ के जशपुर नगर के पूर्व महाराजा दिलीप सिंह जूदेव की मूछें और उनका अंदाज किसे याद नहीं है.... जिस पर उन्होंने कहा था "रुपया खुदा तो नहीं , लेकिन खुदा से कम भी नहीं..." कुछ इसी प्रकार का वर्तमान कोरोना का जनता कर्फ्यू अपनी उपस्थिति दर्शा रहा है।
जो संविधान से कम लोक ज्ञान से ज्यादा प्रेरित है। जिसका सबसे ज्यादा असर उस वर्ग को प्रताड़ित कर रहा है... जिस वर्ग से इसका दूर-दूर तक लेना-देना नहीं था। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने कहा है यह अमीरों का रोग है।
वास्तव में जिन्होंने भ्रष्टाचार या एन केन प्रकारेण या धोखाधड़ी से उनकी स्थापित इमानदारी के कारण वह अमीर बन गए और ज्यादा अमीर बनने के लिए अथवा विलासिता के दृष्टिकोण से गांधी के देश को छोड़कर विदेश चले गए या फिर महात्मा गांधी के कुटीर भारत को नजरअंदाज कर विकसित राष्ट्र की अंधी दौड़ में शामिल हो गए थे। कोरोना कोविड-19 का प्रहार उन्हीं पर पड़ा और वे आयात करके वापस भारत सरकार द्वारा भारत लाए गए। यहां पर उनका लोक ज्ञान शायद चूक गया.... या फिर सब कुछ स्क्रिप्ट था ,सीमित मात्रा में.... अन्यथा जब कोरोनावायरस काल में मध्य प्रदेश की सत्ता लूट परिवर्तन का युद्ध चल रहा था तब तक न्यायपालिका भी कोरोनावायरस कर गंभीर नहीं थी और उसका परिणाम यह है जैसा कि कल ही धोखे से कांग्रेस के सांसद बने मध्यप्रदेश के विद्वान अधिवक्ता व समाजसेवी विवेक तंखा ने कहा कि, "नियम में यह बाध्यता आदेशित है कि मंत्रिमंडल के अधिकतम सदस्य कुल विधायकों की संख्या के 15% से ज्यादा नहीं होने चाहिए तो यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कम से कम कितने मंत्री होने चाहिए ....,. क्योंकि मध्यप्रदेश में यदि कोविड-19 की सूची में भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन गया है और नियंत्रण से बाहर है...., इन सबके बावजूद प्रदेश के स्वास्थ्य प्रमुख आईएएस अधिकारी कोरोना संक्रमित हैं, ऐसी स्थिति में अकेले शक्तिमान की तरह हजारों करोड़ों के बजट को किस प्रकार से हमारे मुख्यमंत्री पिछले 25 दिनों से नियंत्रित कर रहे हैं ....? यह एक आश्चर्यजनक अलोकतांत्रिक किंतु लोकतांत्रिक प्रयोग है ।
इससे ज्यादा और क्या कि जब संकट काल की आपात स्थिति निर्मित हो तब राष्ट्रीय सरकार की बजाय वन-मैन-आर्मी मुख्यमंत्री का प्रयोग भारतीय गणतंत्र के लिए एक खतरनाक उदाहरण बन रहा है। क्या यह सभी बाबा साहब अंबेडकर की जयंती में बोलते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अभिव्यक्ति का हिस्सा नहीं हो सकता था...., या फिर यह गैर जरूरी था कि भारत के दो बड़े राज्य महाराष्ट्र गैर भाजपा सरकार है और मध्य प्रदेश तब कॉन्ग्रेस की सरकार से मुक्त की गई थी...?
अब जबकि सप्तपदी का सिद्धांत लोक ज्ञान से आया है इसके सबसे पहले सिद्धांत बुजुर्गों का संरक्षण हमारी पहले मंथन का विषय होगा( जारी-2)
वो सात वचन....1
(त्रिलोकीनाथ)
भाजपा हाई-कमान से लेकर लो-कमान तक सब यह जानते हैं की बाबा साहब अंबेडकर के जन्मदिवस पर उन्हें याद करते हुए 14 अप्रैल को जब उन्हें हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 दिन के "लाकडाउन" का नवीनीकरण कर रहे थे, तो उन्होंने अपना "सप्तपदी-सूत्र" का प्रतिपादन किया । जो आगामी 19 दिन के लाकडाउन में जनता कर्फ्यू के दौरान नागरिकों से अपेक्षित रहेगा।
सब यह भी जानते हैं भारत के संविधान में जिसे अंबेडकर का संविधान भी कह कर उनके भक्त खुश होते हैं.. कहीं भी कानूनी तौर पर ऐसे निर्देश विश्व महामारी के दौरान जारी करने का कोई अधिनियम नहीं बना है..... यह हमारे लोकज्ञानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाह उनके सलाहकारों की अपनी "खुद की ईजाद की हुई अनुभवी तरकीब" है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने यह तरकीब यूं ही नहीं बताई, इसके पूर्व भी उन्होंने कोरोना के दौरान काम कर रहे कर्मचारियों के सम्मान के उत्साहवर्धन के लिए अचानक प्रकट होकर ताली, थाली, घंटी घड़ियाल, शंख आदि बजाकर स्वागत करने व प्रोत्साहन करने का प्रयोग किया था। एक और इंटरवल में उन्होंने ठीक भारतीय जनता पार्टी के गठन दिवस की पूर्व संध्या पर दीया, मोमबत्ती जला व अपने टा
मोबाइल टॉर्च आदि जलाकर रोशनी प्रकट करने की अपील की थी।
यह सब घटनाएं भी भारत के संविधान लिखते वक्त अध्यक्ष भीमराव और उनके अन्य सैकड़ों की संख्या में सदस्यों ने अधिनियम या नियम नहीं बनाए थे। क्योंकि उन्हें इस प्रकार की विश्व महामारी जो कथित तौर पर रासायनिक जैविक हथियार कोविड-19 के प्रयोग के दौरान क्या होना चाहिए नहीं लिखा था। इसलिए लोकज्ञान ही अनुगमन का सिद्धांत बन जाता है । जो ठीक उसी प्रकार का था जैसे लोकज्ञानी अन्ना हजारे को जब अपने आंदोलन के दौरान कोई रास्ता नहीं समझ में आया तो उन्होंने जेल से निकलते वक्त अधीक्षक के कार्यालय में ही धरना दे दिया था।
यह लोकज्ञान की बहुत बड़ी विशेषता है और यही विशेषता लोगों के आकर्षण का कारण बन जाती है। क्योंकि आम भारतीय लोक ज्ञानी ही है..... और उसी में अपनी जीवन को गुजार देता है।
अब इस महायुद्ध में भी उत्तर कोरिया अपने लोकज्ञान से आधुनिक अनुसंधान में मिसाइल परीक्षण करने से बाज नहीं आ रहा है जनसत्ता में प्रकाशित यह व्यंग कोरोना महामारी के दौरान सटीक बैठता है
बहरहाल बहुत सारी बातें संविधान में नहीं लिखी गई इसीलिए हमारा संसद नियम बनाने का अधिकार रखता है । वर्तमान कोरोना काल में जो हालात दिखाई दे रहे हैं वह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल से अधिक तो नहीं किंतु उससे कम भी नहीं दिखाई देते।
छत्तीसगढ़ के जशपुर नगर के पूर्व महाराजा दिलीप सिंह जूदेव की मूछें और उनका अंदाज किसे याद नहीं है.... जिस पर उन्होंने कहा था "रुपया खुदा तो नहीं , लेकिन खुदा से कम भी नहीं..." कुछ इसी प्रकार का वर्तमान कोरोना का जनता कर्फ्यू अपनी उपस्थिति दर्शा रहा है।
जो संविधान से कम लोक ज्ञान से ज्यादा प्रेरित है। जिसका सबसे ज्यादा असर उस वर्ग को प्रताड़ित कर रहा है... जिस वर्ग से इसका दूर-दूर तक लेना-देना नहीं था। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने कहा है यह अमीरों का रोग है।
वास्तव में जिन्होंने भ्रष्टाचार या एन केन प्रकारेण या धोखाधड़ी से उनकी स्थापित इमानदारी के कारण वह अमीर बन गए और ज्यादा अमीर बनने के लिए अथवा विलासिता के दृष्टिकोण से गांधी के देश को छोड़कर विदेश चले गए या फिर महात्मा गांधी के कुटीर भारत को नजरअंदाज कर विकसित राष्ट्र की अंधी दौड़ में शामिल हो गए थे। कोरोना कोविड-19 का प्रहार उन्हीं पर पड़ा और वे आयात करके वापस भारत सरकार द्वारा भारत लाए गए। यहां पर उनका लोक ज्ञान शायद चूक गया.... या फिर सब कुछ स्क्रिप्ट था ,सीमित मात्रा में.... अन्यथा जब कोरोनावायरस काल में मध्य प्रदेश की सत्ता लूट परिवर्तन का युद्ध चल रहा था तब तक न्यायपालिका भी कोरोनावायरस कर गंभीर नहीं थी और उसका परिणाम यह है जैसा कि कल ही धोखे से कांग्रेस के सांसद बने मध्यप्रदेश के विद्वान अधिवक्ता व समाजसेवी विवेक तंखा ने कहा कि, "नियम में यह बाध्यता आदेशित है कि मंत्रिमंडल के अधिकतम सदस्य कुल विधायकों की संख्या के 15% से ज्यादा नहीं होने चाहिए तो यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कम से कम कितने मंत्री होने चाहिए ....,. क्योंकि मध्यप्रदेश में यदि कोविड-19 की सूची में भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन गया है और नियंत्रण से बाहर है...., इन सबके बावजूद प्रदेश के स्वास्थ्य प्रमुख आईएएस अधिकारी कोरोना संक्रमित हैं, ऐसी स्थिति में अकेले शक्तिमान की तरह हजारों करोड़ों के बजट को किस प्रकार से हमारे मुख्यमंत्री पिछले 25 दिनों से नियंत्रित कर रहे हैं ....? यह एक आश्चर्यजनक अलोकतांत्रिक किंतु लोकतांत्रिक प्रयोग है ।
इससे ज्यादा और क्या कि जब संकट काल की आपात स्थिति निर्मित हो तब राष्ट्रीय सरकार की बजाय वन-मैन-आर्मी मुख्यमंत्री का प्रयोग भारतीय गणतंत्र के लिए एक खतरनाक उदाहरण बन रहा है। क्या यह सभी बाबा साहब अंबेडकर की जयंती में बोलते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अभिव्यक्ति का हिस्सा नहीं हो सकता था...., या फिर यह गैर जरूरी था कि भारत के दो बड़े राज्य महाराष्ट्र गैर भाजपा सरकार है और मध्य प्रदेश तब कॉन्ग्रेस की सरकार से मुक्त की गई थी...?
अब जबकि सप्तपदी का सिद्धांत लोक ज्ञान से आया है इसके सबसे पहले सिद्धांत बुजुर्गों का संरक्षण हमारी पहले मंथन का विषय होगा( जारी-2)
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