रविवार, 19 अप्रैल 2020

सवाल - विद्यार्थियों की सुरक्षा का। करीब डेढ़ हजार राहगीरों ने लिया आश्रय। (त्रिलोकीनाथ)

कोविड-19  संक्रमण  से सुरक्षा ।


सवाल -     विद्यार्थियों  की सुरक्षा का। 
करीब डेढ़ हजार  राहगीरों ने  लिया आश्रय।

(त्रिलोकीनाथ)

 शहडोल । कोरोना  लॉक टाउन  अवधि में हमें उपलब्ध शहडोल जिले के32 आदिवासी छात्रावासों में राहगीरों को ठहरने जैसे शेल्टर होम की व्यवस्था की गई है। जिसमें  19 अप्रैल के अपडेट के अनुसार सुहागपुर विकासखंड के दो हॉस्टल बुढार विकासखंड के नोहा स्टल गोहपारू के 6 जैसीनगर के 12 ब्यौहारी के 3 जिले में 32 हॉस्टल में कुल 1409 राहगीरों को आश्रय दिया गया जिस में सर्वाधिक 531 गोहपारू के छह हॉस्टलों में राहगीर ठहराए गए जबकि जैसीनगर में 385 सुहागपुर में 200 बयान वे त्योहारी में 173 तथा बुढार में 28 राहगीरों को आश्चर्य मिला सूत्रों के अनुसार जिले में विभिन्न छात्रावासों में 502 राहगीर 19 अप्रैल को ठहरे रहे थे इससे यह प्रतीत होता है कि राहगीरों को यथा स्थिति प्रवास का भी अवसर दिया जाता रहा है।
 किंतु जिन आदिवासी हॉस्टलों में इस प्रकार की व्यवस्थाएं की गई है उसमें किस प्रकार के आगंतुक आकर ठहर रहे हैं यह कोई प्रमाणित नहीं होता है ब्यावहारी और जैसीनगर सहित गोहपारू वाह सोहागपुर विकासखंड के आश्रय स्थल व हॉस्टल्स में जहां से भी सूचनाएं आ रहे हैं भारी संख्या में राहगीर वहां रुकें।  जहां उनके सोने पढ़ने रहने की व्यवस्था है। निश्चित रूप से यह तारीफ ए काबिल काम है। और जिला प्रशासन कि समय-समय पर नियमित छात्रावासों पर भ्रमण तथा पर्यवेक्षण की सफलता की खबरें भी आती रही हैं
 किंतु इसका दूसरा पक्ष भी सामने जिस तरीके से आया है वह बहुत  चिंतित करने वाला है जिसके दूरगामी परिणाम पर अधिकारियों की नजर है भी या नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता... ।
आश्रय स्थलों के आंतरिक सूत्रों के अनुसार    बताया जा रहा है  राहगीरों को जो सामग्री हॉस्टल्स में सोने पड़ने रहने के लिए दी जा रही है, स्वाभाविक है वह हॉस्टल के  रहवासी विद्यार्थियों के छात्रावासों की सामग्री है किंतु इनकी चद्दर या तकिया की खोलिया की साफ सफाई का उचित प्रबंधन वहां पर संबंधित चपरासी लोग करने से बच रहे हैं। क्योंकि उन्हें भी कोविड-19 की बीमारी को लेकर गंभीर चिंता है। ऐसे में ऐसे कपड़ों का क्या होगा जबकि नित्य प्रति दिन कपड़ों को बदले जाने की अपेक्षा स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से प्राथमिकता का काम है ।

उससे ज्यादा खतरनाक यह है कि जब आज इन कपड़ों को नहीं स्वच्छ रखा जा सकता है जब की बीमारी का बोलबाला है तो लॉक डाउन खुलने के बाद जब भी आदिवासी छात्रावास के बच्चों का प्रवेश हॉस्टल में होगा और यह बच्चे इन कपड़ों का उपयोग करेंगे जो एक खतरनाक संभावना की ओर भी ले जा सकेगा।
 यदि ईश्वर न करे कभी ऐसा हो एक भी बच्चा बीमारी के संक्रमण से प्रभावित हो गया फिर उसके लिए कौन जिम्मेदार ठहराया जाएगा....? इसकी जवाबदेही किस पर होगी यह बातें विस्फोटक तरीके से आदिवासी छात्रावासों के लिए बड़ी समस्या का कारण बन सकता है।
 गंभीर प्रश्नों पर भी संबंधित शिक्षा प्रमुख यह गैर जिम्मेदार होकर जवाबदेही तय नहीं करते हैं और उत्तर देने से बचते हैं तो निश्चित रूप से आदिवासी क्षेत्र में यह एक गंदा प्रयोग कहा जाएगा।
 सूत्रों के अनुसार शहडोल जिला सहित संभाग के सभी छात्रावासों में इस प्रकार के कार्यवाहीया चल रही हैं जहां हजारों की संख्या में राहगीरों को रुकवाया जा रहा है बेहतर होगा छात्रावासों में जहां की कोरोना अवधि के लॉक डाउन मैं राहगीरों के गए उन्हें पूरी तरह से सैनिटाइज करने के साथ ही पूरे कपड़े बदलने की आवश्यकता भी अत्यावश्यक हो गई है ।वैसे भी शहडोल में कोरोना प्रभावित क्षेत्र से अचानक किसी एक ट्रक के आ जाने की खबर ने माहौल को खराब कर दिया है समुचित संसाधन नहीं होना अथवा सीमित होना भी एक कड़वा सत्य है। कहने के लिए सैनिटाइजर को जगह-जगह भारी मात्रा में क्रय करके भिजवाया जा रहा है। किंतु इसका उपयोग धरातल में पहुंचने  की प्रक्रिया अनेक प्रश्नों में खड़ी हुई है। यह बात तो स्पष्ट है कि जितनी गंभीरता लॉक डाउन के दौरान प्रदर्शित की गई है लाक डाउन खुलने के बाद इसे बीती कल की बात के अंदाज में देखा जाएगा। क्योंकि इतनी सतर्कता रहेगी, यह असंभव टाइप का दिखता है ।तब आदिवासी छात्रावासों के विद्यार्थियों के साथ कोई भी अनहोनी के लिए कौन व्यक्ति जिम्मेदार ठहराया जाएगा....?
 यह भी तय नहीं है, बेहतर होता की समुचित सुनियोजित तरीके से राहगीरों को चिन्हित कर उनके रिकार्डों को भी संग्रहण करना चाहिए... यदि संक्रमण काल में किए जा रहे हैं तो ताकि कल किसी भी परिस्थिति में राहगीरों को तलाशने में परेशानी ना हो। इन सबसे ज्यादा यह की इन हॉस्टलों में जो कि अपनी बद से बदतर हालातों के लिए चर्चित रहते हैं बच्चों के प्रवेश के पहले पूरी तरह से सुरक्षित संरक्षित बेहतर होता उसकी स्वच्छता को सर्वोच्च रूप से अपडेट करने के बाद ही विद्यार्थियों को प्रवेश करने दिया जाता किसी भी संभावना के लिए कम से कम एक निश्चित अवधि जो माह में एक बार आवश्यक रूप से इन हॉस्टल में रहने वाले विद्यार्थियों को चिकित्सा परीक्षण की व्यवस्था कम से कम 1 वर्ष तक अपडेट की जानी चाहिए ताकि किसी भी प्रकार का संक्रमण की कोई संभावना बची ना रह जाए। हालांकि इस मामले में डीपीसी से भी जानकारी अपेक्षित थी ताकि किसी गणना का अनुमान लगाया जा सके किंतु उन्होंने इसे गैरजरूरी समझा अथवा उनके हॉस्टलों में किसी राहगीर को नहीं ठहराया गया होगा बच्चों की संवेदना को लेकर हमारे अधिकारियों की सतर्कता बेहद गंभीर काम भी है जिसमें उन्होंने लापरवाही नहीं बरती होगी समझा जा सकता है।

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