बुधवार, 1 अप्रैल 2020

त्रेता और कलयुग के भक्तों के सिर्फ एक "..राम.."/लोकतंत्र और रामायण 1, 2 अप्रैल 20





लोकतंत्र और रामायण 1, 2 अप्रैल 20




त्रेता और कलयुग के भक्तों के सिर्फ एक
  "..राम.."


(त्रिलोकीनाथ)

"मैं एक राजा की पुत्री हूं एक राजा की धर्मपत्नी हूं राज्य से कम क्या मांगूंगी"

कैकेई सहायता से युद्ध की जीत के बाद राजा दशरथ के  द्वारा आरक्षित दो वचन के अधिकार पर महारानी कैकेई ने उक्त वचन के साथ 1-राम को बनवास और -भरत को अयोध्या का राज मांग लिया था। महत्वपूर्ण यह है कि तब भरत को भी नहीं मालूम था किसके नाम पर क्या मांगा जा रहा है।
      सब जानते हैं यह दो वचनों के साथ ही रामायण प्रारंभ होती है, इन दो वचनों की उत्पत्ति को रामायण रचयिता ने कैकेई की दासी "मंथरा" को कारण बताया है, हालांकि आगे दशरथ के मित्र और महामंत्री सुमंत ने कैकेई को उलाहना देते हुए कहा कि "तुम्हारी माता ने भी ऐसी हट की थी और तुम्हारे पिता प्रताड़ित हुए थे", यानी वे तब अनुवांशिकी को दोष दे रहे थे.. ।
आज "मूर्ख दिवस" है, "अप्रैल फूल" भी कहते हैं इसे, यह लोकज्ञान से उपजी कहावत है ।
चीनी वायरस "कोरोना" के भारत आक्रमण पर वर्तमान भाजपा सरकार ने यह मानकर 21 दिनों के भारत "लॉकडाउन" को सफल करने के लिए 130 करोड़ की आबादी को रामानंद सागर की सफलतम सीरियल रामायण की सफलता के मद्देनजर सड़कों को "सोशल डिस्टेंसिंग"  रखने के लिए और मनोवैज्ञानिक नैतिक पाठ पढ़ाने के लिए भी रामायण सीरियल पुनः चालू किया । अच्छा है हमें आदर्शों का  ज्ञान होते रहना चाहिए  दिखावे के लिए ही सही किंतु बहुत जरूरी है  क्योंकि भारत का  आदर्श लुप्त हो रहा है ।
आज अपने द्वारा अपनी पत्नी कैकेई के लिए आरक्षित किए गए दो वचन पूर्ण करने के चक्कर में राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिए, सीरियल 2 घंटे में लगभग चलता है सुबह 9:00 बजे और शाम के 9:00 बजे। सब जानते हैं, नेशनल टीवी चैनल भी इसका लाभ उठा रहा है। क्योंकि वह भी रामायण की तरह विलुप्त हो रहा था मिडल क्लास फैमिली में।
 तो क्या सीखा हमने दशरथ की मृत्यु तक। कोरोना में लोकतंत्र के दशरथ, जनता..., जो मर रही है और आज जो दशरथ मर गए हैं उस में क्या अंतर है.? यह भी रामायण का एक पक्ष है। आधुनिक रामायण के लिए।
 तो चलिए शुरुआत करते हैं ,मंथन से लोकज्ञान में यह बात आई है कि नैतिकता के महान आदर्शों में मनुष्य को सनातन पुराण रामायण से क्या लेना चाहिए.....?रामायण का कार्यकाल त्रेता युग का है। सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग चार युगों में हम बांटे गए हैं। इनके नामकरण पर हम नहीं जाएंगे यह विस्तार का विषय है। किंतु सतयुग में जीने वाले लोग जो बोल देते थे वह सच हो जाता था ऐसा माना जाता है, त्रेता में उसका असर भी आया सत्य के साथ रक्ष-संस्कृति का रक्षित संस्कृति का खलनायक रावण भी प्रकांड विद्वान रहा। शिव की आराधना में उनका बहुचर्चित शिवतांडव आज भी हमें ताकत देता है। किंतु अनाचार, असत्य की मंशा के कारण सत्य का अपमान हो रहा था। ऋषि -मुनि अपने अनुसंधान के लक्ष्य को नहीं पा रहे थे, भगवान विष्णु का अवतार भगवान राम के रूप में हुआ।

 हालांकि रामायण रचयिता चाहते तो सर्व संपन्न साली भगवान राम को अयोध्या में महाराजा बना करके भी चक्रवर्ती सम्राट के दौर पर रावण के आतंक के विनाश का कारण बना सकते थे। किंतु तब मनुष्य को आचरण की पद्धति, प्रकृति से व्यवहार की पद्धति और पर्यावरण संरक्षण की पद्धति का आदर्श हमें नहीं मिलता। शायद इसीलिए विशेषकर कलयुग को दृष्टि में रखते हुए त्रिकालदर्शी रचयिता वाल्मीकि ऋषि ने मानव कल्याण के लिए रामायण के राम को वन में भेजा, वनवास दिया....
 ऐसा हम मानते हैं लेकिन हमारा आज का रावण ऐसा नहीं सोचता,  वह राम को लोकतंत्र में सिर्फ उपयोग करने की सामग्री के रूप में देखता है.. अगर आज रावण होते तो वह वही करते जो हमारा लोकतंत्र  राम को लेकर जो प्रयोग फिलहाल कर रहा है ....?  ऐसे आरोप लग रहे हैं.....
 हम भी चाहते हैं यह झूठे साबित हो।
 लोकतंत्र के प्रमुख रचयिता महात्मा गांधी की जब लोकजन से मुलाकात के दौरान एक रावण ने हत्या कर दी, तो प्राण-अंत पर उनके अंतिम शब्द है ,"हे राम..."
आज जब सीरियल में रामानंद का दशरथ प्राण-अंत कर रहा था वह भी कह रहा था, " राम राम राम...."
इसलिए दशरथ की मौत हमें त्रेतायुग से जोड़ती है , वे हमें मृत्यु-उत्सव में  आदर्श प्रस्तुत करते हैं।
 वह अलग बात है कि सनातन धर्म मानता है अंत में ऐसा करने से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त हो जाता है, फिर चाहे कोई रावण ही महात्मा गांधी की हत्या करें या फिर किसी मंथरा की उत्पत्ति से अयोध्या का महाराजा पुत्रशोक में मर जाए। यह मृत्यु का सत्य है.....।
 "हिंदी-चीनी भाई-भाई" कहकर विश्वासघात के बीज बोने वाला को रोना का जनक अहमदाबाद में झूला झूल रहा था। उसने भारत को भी देखा रहा होगा अभी तक अज्ञात है कि बुहान में कोरोना कोविड-19 का जन्म के बाद चीन में संक्रमित व्यक्तियों की संख्या दुनिया में कम क्यों हो गई..? हजारों किलोमीटर दूर अमेरिका में, स्पेन में और इटली में जब चार लाख से ऊपर आदमी प्रभावित है तो खुद चीन कैसे एक लाख के नीचे के आंकड़े में सुरक्षित चल रहा है....? और उसे सुरक्षा के ज्ञान है, तो वह पूरी दुनिया को क्यों नहीं बांट रहा है..? आदि आदि कई प्रश्न है..?
 अगर हमारे कलयुग के बाल्मिक होते, कोई त्रिकालदर्शी, तो देख पाते...?
 भारत में खासतौर से आजादी के बाद त्रिकालदर्शीयों की या तो अकाल हो गया है या फिर यह जाति विलुप्त हो गई है....? अथवा जो भी त्रिकालदर्शी हैं वह बाजारवाद के गुलाम हैं...
 अन्यथा लोक ज्ञान का रामायण, लोकतंत्र के रामायण में ज्ञान का अभाव पैदा नहीं करता.... चलिए छोड़ते हैं इन गप्पो को....
 मोटा मोटा एक लोक ज्ञान और भी आया लोग कहते हैं की उच्च परीक्षाओं में इस बात की भी चर्चा है कि किस प्रकार से जब बहुचर्चित सीरियल रामानंद सागर का रामायण चला तो बरसों तक उसका जो असर रहा उसने राम के सहारे अपनी राजनीतिक नैया को पार कराने में एक विचारधारा को मदद दिया...
 कैसे वातावरण का निर्माण हुआ उससे भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा को और अब नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में रहने का दूसरा टर्न चल रहा है ..... 
इसे नरेंद्र मोदी जी का दुर्भाग्य कहें यह सौभाग्य किंतु यह कड़वी सच्चाई है चीनी कोरोना का हमला हमें इसी दौर में देखने को मिल रहा है.. यही वर्तमान सच का एक स्वरुप है, महात्मा गांधी के प्राण-अंत और दशरथ के प्राण-अंत का आज सिर्फ एक सच है , और वह है सिर्फ..., "राम........."




( जारी )
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं.....                                           -त्रिलोकीनाथ

(सिर्फ मनोरंजन यदि किसी कानून में आपत्ति हो तो अवश्य हमें सतर्क करिएगा.....)

Good picture
और अंत में
 वक्त वक्त की बात है महानायक अमिताभ बच्चन से भी ज्यादा लोकप्रिय हुआ तब का रामायण का राम अरुण गोविल आज अपने ही बनाए हुए चरित्र राम को देखकर कोरोना वायरस से भयमुक्त हो आध्यात्मिक आनंद का लाभ उठा रहे हैं लोगों के रीमिक्स बनते हैं किंतु अरुण गोविल स्वयं रिटर्न हुए हैं रामायण रिटर्न से.....

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