शुक्रवार, 6 मार्च 2020

कोरना का कहर बड़ा या सांप्रदायिकता का जहर..? गांधी तेरे देश में.... त्रिलोकीनाथ

मातृशक्ति को बारंबार सलाम


कोरना का  कहर बड़ा
या सांप्रदायिकता का जहर..?
गांधी तेरे देश में....

( त्रिलोकीनाथ )

कोरोना का कहर देश में भय का वातावरण ला रहा है। मानवता का नाश का संदेश, दर्दनाक मौत का संदेश, दुनिया के सभी देश अपनी अपनी सुरक्षा में लगे हैं ।कहते हैं अमेरिका में सभी कार्यालय में छुट्टी घोषित कर दी गई है। जब तक की मौसम साथ नहीं देता, प्रकृति कोरोना को नष्ट करने का वादा नहीं करती। अमेरिका में अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए वहां का प्रशासन छुट्टी घोषित कर रखा है ।हालांकि अमरीका में इतना कहर नहीं है जो भारत में फैल रहा है जहर है, सांप्रदायिकता का जहर ।
हो सकता है इसमें वोट बैंक का लूट का न्याय छुपा हो और इस लूट के लिए कट्टरपंथी ताकतें चाहे वे "हिंदुत्व के दुकानदार" कहूं या फिर "मुस्लिम साम्राज्यवाद के विस्तारक" दोनों ही अपनी अपनी दुकानदारी में मस्त हैं। उन्हें कोरोना के जहर से कोई लेना देना नहीं है। किंतु मानवता और मानव भयभीत भी थे ।
ट्रंप की यात्रा में सांप्रदायिकता उफान पर आ गई थी दिल्ली में 50 से ज्यादा लोग सांप्रदायिकता की बीमारी में मर गए। 500 से ज्यादा लोग प्रभावित होकर प्रदूषित जीवन जीने को मजबूर हैं और लाखों लोग इसकी चपेट पर हैं।

 कहते हैं दिल्ली के शाहीन बाग में अनशन पर बैठे अनशनकारी भी कोरोना की दहशत में अपनी सुरक्षा में मानवता की सुरक्षा की प्राथमिकता को महसूस कर रहे हैं। हालांकि सांप्रदायिकता का धंधा करने वाला वर्ग इसे "फ्री की बिरयानी" से जोड़कर मानवता की सुरक्षा को मजाक में बदल रहा है, गंदा मजाक। क्योंकि इससे भी संप्रदायिकता का वोट बैंक सुनिश्चित होता है।

 "शाहीनबाग" इतना चर्चित हुआ कि हमको सोचना पड़ा शाहीन किसने नाम रखा होगा... क्या अर्थ है..?
 हमने पाया शाहीन का अर्थ, "तराजू के उस कांटे" के लिए कहा गया है जो कि समानता के न्याय को बराबरी के अंदाज से दिखाने का प्रतीक है.
 शाहीन एक ऐसे पक्षी का भी नाम है जो शिकार करने में माहिर है...।
और शायद इसी पक्षी के या तराजू के कांटे के नाम पर मुस्लिम समाज में कुछ लोग अपने को "शाहीन" लिखने लगे।
 किंतु शाहीन बाग में कभी ऐसे पक्षी आते रहे होंगे इसलिए इस बगीचे का नाम शाहीन बाग पड़ गया था, या फिर किसी शाहीन ने इस बाघ का नाम शाहीन रखा होगा...? ऐसा लगता है ।
यह लोकतंत्र का दौर है, शिकारी पक्षियों का जमघट अभी भी है... किंतु शिकार हो रहे लोकतंत्र के अनशनकारियों के सामने शिकारी पक्षी शायद भयभीत है...? भारत के लोकतंत्र का प्रतीक आंख में पट्टी बांधे वह महिला एक तराजू उठाए हैं.. और वह तराजू के बीच में जो कांटा लगा है उसी को शाहीन कहते हैं ।वह न्याय का तराजू है ।

जब समानता न्याय संविधान के पुराणों में लिखा गया।
 गुलामी से स्वतंत्रता के बाद हमारे पूर्वजों ने जो भी परिस्थितियां बनी, तत्कालीन परिस्थितियों के मद्देनजर समानता का, समता का संविधान का अधिकार हमें जीने के लिए रास्ते के रूप में दिया ।अन्यअधिकार भी हैं जिन्हें मौलिक अधिकार कहा गया है। इन सब का उद्देश्य लोकतंत्र में मानवता के अधिकार को बचाए रखना है। हो सकता है जब मानवता का विकास हो रहा था तो छोटे-छोटे धर्म और संप्रदाय अपने-अपने नजरिए से साम्राज्यवाद के विस्तार के लिए अपना धर्म विकसित करते रहे हो। किंतु सैकड़ों वर्षो की गुलामी के बाद भारत जब आजाद हुआ तो जो पुराण लिखा गया "संविधान का पुराण" उसका सम्मान यदि हम नहीं कर सकते हैं तो धार्मिक पुराण ग्रंथों का सम्मान कैसे करेंगे...?
 क्योंकि कल ही हमने इस पुराण को माना था जिसमें मानवता निहित थी। हो सकता है इसमें भी परंपरा प्रथा के नाम पर त्रुटियां हो गई हूं जैसे कुरान में  बाइबिल में  या पुराणों में त्रुटियां थी। हमने उन्हें सुधारा....। हम संवाद से इन्हें सुधार सकते हैं।
 किंतु शाहीन पक्षी जो सांप्रदायिकता का प्रतीक है,  वह "न्याय के तराजू कांटा"शाहीन"  को यह सोचकर तोड़ने में लगा है की स्वतंत्र हो चुका मानवता का पक्षी उसका शिकार हो जाएगा.... किंतु उसे मालूम नहीं तराजू का कांटा,शाहीन; लोहे का होता है.. उसकी खूबसूरती का मंजर यह है कि कुछ लोग उसे पीतल में बनाते हैं, तो कुछ लोग सोने में भी...।
 जब तराजू का दौर था, यही कांटा यही साहीन, न्याय की घोषणा करता था। किसी  "सांप्रदायिकता के शिकारी पक्षी, "शाहीन" की यह सोच आज बेमानी है। 

क्योंकि देश स्वतंत्र हो चुका है और शाहीन लोकतंत्र के सर्वोच्च स्तंभ न्यायपालिका का ब्रांड है, और उसे एक महिला पकड़े हुए हैं। शाहीन बाग में लोकतंत्र के तराजू को आज स्वतंत्र नागरिक, महात्मा गांधी के बताए रास्ते पर, अनशन के रास्ते पर न्याय का घोषणा कर रही हैं। उनसे संवाद न करके, सांप्रदायिकता का शिकारी पक्षी लगातार अपनी अवमानना कर रहा है। यही एकमात्र रास्ता है कि उसे मानवता के रास्ते पर तत्काल संवाद की प्रक्रिया प्रारंभ कर देनी चाहिए। सिर्फ न्यायपालिका की जिम्मेदारी नहीं है कि वह  संवाद कर्ता नियुक्त करें ।विधायिका जिसमें कई साहीन पक्षी शिकार के लिए उड़ते रहते हैं उन्हें भी सांप्रदायिकता का रास्ता छोड़कर न्याय के रास्ते पर भारत की  अनशन रत पूरे समाज को, जिसमें मुस्लिम समाज आज अगुआ है... संविधान की रक्षा के लिए और उनकी प्रतीक के रूप में महिलाएं वहां हमारे बुजुर्ग मां बहन, न्याय की तराजू "शाहीन" को बार-बार दिखा रही हैं... उसे सहज रूप से स्वीकार कर लेना चाहिए।
 क्योंकि अगर "हिंदुत्व" में भरोसा  है तो हमारा सनातन धर्म भी यह कहता है,"श्री दुर्गा सप्तशती" में कि शक्ति का अवतार का बड़ा संदेश जाता है। आज संविधान के पुराण से भारत की मुस्लिम महिलाओं ने जिस नए का तराजू लेकर अवतार लिया है उसे पहचानने की जरूरत है। कि उसके पीछे भारत का बहुत बड़ा सनातन धर्म उनके साथ खड़ा है।
 हो सकता है चीन का "कोरोना" वायरस कुछ देर के लिए शाहीन बाग को पूरे देश में प्रभावित कर जाए। तो यह कब नहीं हुआ....."श्री दुर्गा सप्तशती" पढ़ी जाए तो राक्षस हमेशा महिलाओं की शक्ति को कमजोर समझ कर काम करते रहें, थोड़ा वक्त लगेगा... थोड़ा ठहर कर... दो कदम पीछे चल कर...उस मुस्लिम समाज को जो स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं अपने उनके समाज के अंदर भी प्राथमिकता से शाहीन पक्षियों और अन्य जगह में पल रहे शाहीन पक्षियों  के सांप्रदायिकता के वायरस को नष्ट करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
 सनातन धर्म से प्रेरित हर स्वतंत्र भारत का नागरिक की सदभावना और समर्थन हमेशा लोकतंत्र के अनशन कारियों के साथ बना रहेगा। आशा करना चाहिए कि मानवता को नष्ट करने वाला कोरोना वायरस के साथ-साथ सांप्रदायिकता का वायरस भी नष्ट हो जाए.... होली के आग में जल जाए.... शुभम मंगलम।

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