रविवार, 4 अगस्त 2019





अथ आदिवासी क्षेत्रे-3

  नियमों को धता बताते हो रही जमीनों की हेराफेरी कर
कॉलोनाइजर के आड़ में भू माफिया कमा रहे हैं करोड़ों


(  त्रिलोकीनाथ  )

 शहडोल नगर में विकास की गंगा तेजी से बह रही है.... पत्रकार जगत चिल्लाता रहे, क्या फर्क पड़ता है...? अव्यवस्थित ,अनियंत्रित, अघोषित और भ्रष्ट कार्यप्रणाली की सहायता से शहडोल का विकास तेजी से हो रहा है। यह समझ पाने में दिक्कत महसूस हो रही है कि यह सब कुछ सुनियोजित योजना के तहत हो रहा है या फिर अनजाने में...? किंतु जिस प्रकार से यह सब सब कुछ व्यवस्थित होता दिखता है तो यह कह पाने में जरा भी संकोच नहीं होना चाहिए कि लाखों रुपए तनखाह उठाने वाला प्रशासनिक अमला इन सब से अनजान नहीं है... उसमें इतनी तो योग्यता है ही और वह है जानता भी है, की भारत की संविधान में पांचवी अनुसूचित क्षेत्र घोषित है। "विशेष आदिवासी क्षेत्र" का दर्जा होने के कारण यहां पर बिना प्रशासन की इच्छा के कोई भी कार्य क्रियान्वित नहीं हो सकते। इसलिए यह मानने में या समझने में दिक्कत नहीं होती कि जो कुछ हो रहा है वह सब प्रशासन की अघोषित सहमति से हो रहा है।
 इसके परिणाम भविष्य में चाहे जो भी हो किंतु वर्तमान में यह उन सभी संभावनाओं पर पानी फेर रहा है जिसके तहत शहडोल नगर को एक खूबसूरत नगर बनाए जाने की संभावना बनी हुई है...। किंतु भ्रष्ट व्यवस्था में यह छोटे से छोटे मामले में अथवा बड़े से बड़े मामले में लाचार और लावारिस अधिक दिखाई पड़ता है। सभी अधिकारियों की शैक्षणिक योग्यता उन्हें चुनौती देती हैं कि क्या वे आजाद भारत के शिक्षा प्राप्त बौद्धिक व्यक्ति हैं....., अथवा नहीं.? वह उनकी शैक्षणिक गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है कि क्या सिर्फ सुव्यवस्थित नगर बनाने में एक योग्य योग्यता भी हासिल कर नहीं कर पाए ....? 
बहराल यह बात इसलिए उठी है क्योंकि शहडोल के विकास में शासकीय या फिर निजी जमीनों पर बनाए गए नियम और कानूनों, तालाबों, नदी-नालों और वृक्षों के संरक्षण के लिए जिम्मेदार कानून व्यवस्था लगभग कहीं भी क्रियान्वित होने में असफल होती दिखाई दे रही है...। जहां जिसकी जब इच्छा पड़ती है अगर उसमें भ्रष्टाचार की और माफिया गिरी की एकमात्र योग्यता है वह सभी प्रशासनिक अमले पर, चाहे वह पुलिस का हो अथवा प्रशासन का कुछ हद तक न्यायपालिका का भी पैरों तले रोदता हुआ मनमानी तरीके से काम करता है।
 हाथ में उंगली में गिने जाने वाले कॉलोनाइजर एक्ट के मामले में बन रही नई कालोनियां, कॉलोनाइजर एक्ट के नियमों को धता बताते हुए मनमानी तरीके से जमीनों की हेराफेरी कर रहे हैं ।दिखाई गई जमीनों की सीमाओं से बाहर जाकर सरकारी जमीन पर कब्जा कर लेना, नदी और नालों को छोटा कर देना भू माफिया के बाएं हाथ का खेल है। कई जांच रिपोर्ट है राजस्व अधिकारियों तहसीलदार, एसडीएम अथवा नजूल विभाग में धूल खाती ही पड़ी हैं। उनको साफ करने की हिमाकत तब होती है जब उसने भ्रष्टाचार की संभावना हो....? पोंडा नाला के पास सिंहपुर रोड में बन रही कॉलोनी हो या फिर बड़े नामधारी नेताओं की  कालोनियां हूं या फिर कृषि भूमि पर मनमानी तरीके से कालोनियों का नक्शा बनाकर आम जनता के बीच में धन लूटने का खुला खेल हो...... सब में कानून और व्यवस्था तब तक जागरूक नहीं हो रहा है जब तक की उसमें कोई व्यक्ति शिकायतकर्ता ना बन जाए....?

 अथवा जब तक यह विषय वस्तु कानून और शांति व्यवस्था के लिए चुनौती न बन जाए ....? स्वाभाविक है कानून व्यवस्था की चुनौती तब तक नहीं खड़ी होती जब तक शोषण की इंतहा क्रांति के  करीब न खड़ी हो जाए...... तब तक न वर्तमान प्रशासन यहां खड़ा रहेगा और नाम भूमाफिया... वे सब लूटपाट करके कहीं और किसी नगर में नए आतंक का निर्माण कर रहा होगा। और यही है पूंजीवादी-बाजारवाद की व्यवस्था का प्रमाण। क्या इसके लिए सोहागपुर क्षेत्र के विधायक अथवा सांसद या फिर नगर के जनप्रतिनिधियों के पास फुर्सत है....? शायद नहीं.... क्योंकि वे अपने वोट बैंक के लिए तालाब नदी नालों और जातिवादी फैक्टर के मद्देनजर फैसला लेते हैं ।शहर के विकास से उनका कोई लेना देना नहीं है। फिलहाल कम से कम तो यही दिखाई देता है।
 बेहतर होता कि लोकतंत्र के सभी प्रतिनिधि नव निर्मित हो रहे शहडोल नगर कि विकासशील धारा के सड़ी हुई व्यवस्था ना बन कर एक मजबूत भविष्य का निर्माण करने के बारे में एकमत हो। और प्रत्येक जमीनी विकास के लिए फूंक-फूंक कर कदम रखें। यह बात इसलिए कहीं जा रही है क्योंकि बार-बार उदाहरण सामने आने के बावजूद भी हमारी नपुंसक विचारधारा हमें ठोस निर्णय लेने से डराती है ...?

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