शनिवार, 3 अगस्त 2019

पारदर्शी भ्रष्टाचार का कार्यालय सहायक आयुक्त शहडोल........?

अथ कथा आदिवासी क्षेत्रे...-2
अज्ञान-योग्यता ने मंडल संयोजक को बना दिया
जिले का क्षेत्र संयोजक

पारदर्शी भ्रष्टाचार का 
कार्यालय सहायक आयुक्त शहडोल

30 जुलाई 2019 को राज्यसभा में पारित होने के बाद "मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक" याने बहुचर्चित तीन तलाक बिल कानून बन गया ।अंतर्विरोध के कारण एक आलोचना जमकर सांप्रदायिक नजरिए से सत्ता के व्यंग और तानाशाही को स्थापित करती है , व्हाट्सएप मैसेज में कहा गया "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगाते हुए कि,


"भारत पहला देश होगा, जहां मुसलमान अपनी बीवी को छोड़ेगा तो उसे 3 साल की जेल होगी और हिंदू छोड़ेगा तो प्रधानमंत्री बनेगा"


दिखने और दिखाने का यह सत्य , वास्तव में विरोधाभास को परिभाषित भी करता है किंतु यह अन्याय प्रधानमंत्री स्तर पर यूं ही नहीं पहुंच गया.... उसकी जड़ें अन्याय की जमीन पर हमेशा से फलती फूलती रही हैं। छोटे और बड़े स्तर पर यह अन्याय खुलकर पूरी तानाशाही के साथ असभ्य भाषा में कहें तो पूरी गुंडागर्दी के साथ विभाग को चलाने का नजरिया होता है । जोकि शहडोल आदिवासी क्षेत्र को लूटने-लुटाने की कार्यशैली कैसे सिस्टमैटिक तरीके से पैदा होती है उसको दिखाता है।


 बात है शहडोल  के सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग में सोहागपुर केे पदस्थ एमएस अंसारी मंडल संयोजक विभाग की अराजक कार्यप्रणाली के प्रमाण पत्र के रूप में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के समक्ष तक दिखे, जब 7 दिसंबर 2015 को केलमनिया गांव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दौरा हुआ । क्षेत्र की विद्युत समस्या पर मुख्यमंत्री ने जो प्रश्न पूछा उसका सही जवाब नहीं मिला क्योंकि कथित तौर पर मंडल संयोजक सोहागपुर अंसारी सहायक आयुक्त आदिवासी विकास शहडोल की तरफ से प्रतिनिधित्व करते हुए मुख्यमंत्री के शिविर पर उपस्थित रहे। जिससे स्वभाविक रूप से लापरवाही सिद्ध हुई और कमिश्नर शहडोल ने उन्हें तत्काल निलंबित करके जांच खड़ी कर दी।  कथित, जैसा कि निलंबन का दौर था, 7 अप्रैल 2016 को शासन की "ग्राम उदय से भारत उदय" के नाम पर अंसारी नामक इस भ्रष्टाचारी का उदय हुआ, जांच का निष्कर्ष 29 अक्टूबर 2016 को कमिश्नर को प्राप्त हुआ।


 अगर कमिश्नर डीपी अहिरवार के आदेश 26 नवंबर 2016 को पढ़ा जाए तो उन्होंने कहा है "जांच प्रतिवेदन में स्पष्ट है कि मंडल संयोजक को खंड स्तर के अधिकारी होने के कारण जिला स्तर की जानकारी नहीं थी....," यानी अज्ञानी था, बता दें उन्हें यह जानकारी प्रदेश के मुख्यमंत्री को देनी थी , बहरहाल प्रतिवेदन में कहा गया, श्री अंसारी शिविर में सहायक आयुक्त के स्थान पर थे...,  अतः एमएस अंसारी, मंडल संयोजक विकास खंड कार्यालय सुहागपुर को तैयारी के साथ ना आने के कारण भविष्य के लिए चेतावनी जारी की गई ...और फिर जो होता है वह हुआ।यह मंडल संयोजक स्तर के अधिकारी  को लेकर टिप्पणी थी।


 अब दूसरा पक्ष देखते हैं, निलंबन अवधि  जांच दिसंबर 2015 और नवंबर 2016 के बीच एक नया नाटक चलता है, इसी दौरान सहायक आयुक्त अपने पत्र क्रमांक 3351 दिनांक 16 जून 2016 को एक आदेश पारित करते हैं जिसमें कमिश्नर के किन्ही पत्र.... क्रमांक 2183  दिनांक 22 अप्रैल 2016 का हवाला देकर इस मंडल संयोजक, जोकि अज्ञानी था, उसे जिला स्तर पर पदस्थ करने का काम किया गया । नोट शीट बताती है 31 मई2016 को क्षेत्रीय संयोजक जो जिला स्तर का अधिकारी होता है, आर् पी मलैया चूकी रिटायर होने वाले हैं, इसलिए इस "मंडल संयोजक" को जो अज्ञानी था, और निलंबित भी रहा, उसे जिला स्तर पर "क्षेत्र संयोजक" का अस्थाई प्रभार दिया गया।और मजे की बात यह है कि छात्रवृत्ति शाखा प्रभार भी उन को सौंप दिया गया ।


 निलंबन अवधि के दौरान जब ग्राम उदय भारत उदय का कार्यक्रम चला तो इस भ्रष्टाचारी का उदय हो गया और अस्थाई प्रभार आदेश इतना वजनदार था कि वह है 2016 से लगातार 2019 तक वर्तमान में जारी है। याने मंडल संयोजक स्तर का अज्ञानी अधिकारी जैसा कि  कमिश्नर ने अपने जांच प्रतिवेदन पर टिप्पणी की है इस अज्ञानी मंडल संयोजक को "क्षेत्र संयोजक" जिलास्तर का अधिकारी बना कर तमाम जिले की भ्रष्टाचार के लिए अप्रत्यक्ष तौर पर प्रत्यक्ष रूप से नियुक्त किया गया और यह आरक्षित भी हो गया......?

आरक्षित इसलिए कहना जरूरी है, क्योंकि कथित तौर पर यदि कोई शहडोल में स्थाई रूप से "क्षेत्र संयोजक" अधिकारी आता है तो उसे इस मंडल संयोजक अंसारी द्वारा पूरे साजो समान खर्चे-वरचे के साथ भोपाल जाकर वापस किसी दूसरे स्थान पर स्थानांतरित भी करवाया जाता है। ताकि सहायक आयुक्त कार्यालय में खुली भ्रष्टाचार की स्थाई दुकान "अस्थाई-क्षेत्र-संयोजक" के नाम पर खोली गई है ...., उस पर कोई आंच ना आए.....। यह सहायक आयुक्त कार्यालय का एक रूप है...।

 बहरहाल अब समझ ले कि जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शासन को गलत जानकारी अथवा भ्रामक जानकारी देने के कारण अज्ञानी मंडल संयोजक एमएस अंसारी को निलंबित  करके रखा गया तब यह निलंबन  न सिर्फ सहायक आयुक्त बल्कि कई उच्चाधिकारियों के लिए वरदान साबित हुआ.... और जब इस वरदान का प्रतिफल देने की बारी आई तो मंडल संयोजक को क्षेत्र संयोजक बनाकर जिले में पदस्थ कर दिया गया। जो फिलहाल 3 वर्ष से जारी है उम्मीद है रिटायरमेंट का बरकरार रहेगी।

  कम से कम सहायक आयुक्त कार्यालय में पदस्थ एमएस अंसारी मंडल संयोजक को मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश के साथ धोखाधड़ी करने की घटना एक बीज के रूप में क्यों न देखी जाए......?  इस प्रकार की मानसिकता कि न्याय के लिए अन्याय पूर्ण आदेशों का क्रियान्वयन  कितना उचित है...?


 यदि कोई भी अधिकारी क्षेत्र संयोजक के पद पर इस मंडल संयोजक अंसारी के आदेश पत्र को देखेगा तो उसे महसूस होगा कि यह कोई अस्थाई प्रभार नहीं था... बल्कि नियुक्ति पत्र जैसा था...., अस्थाई नियुक्ति, पूर्णकालिक पद पर कैसे होती है इसकी जानकारी महालेखाकार मध्य प्रदेश ग्वालियर को भी दी गई और तत्काल नियुक्त क्षेत्र संयोजक, एमएस अंसारी को भी। जबकि वे तब निलंबित  रहे.. मंडल संयोजक थे....

 इसीलिए हम कहते हैं कि सफेद हाथी आदिवासी विकास  में कैसे घूम घूम कर सभी योजनाओं को भ्रष्टाचार के लिए काम कर रहा है यहां उल्लेख करना उचित होगा कि बड़ा अधिकारी किसी छोटे अधिकारी के माध्यम से ही अपने भ्रष्टाचार के तमाम सपनों को मूर्त रूप देता है ।

 आदिवासी संभाग मुख्यालय  में यह समझ से बाहर है की कोई अज्ञानी-मंडल-संयोजक निलंबित होकर कैसे क्षेत्र-संयोजक के पद पर काम करता है .....? और यह सब कुछ न सिर्फ सहायक आयुक्त अपनी कर्तव्यनिष्ठा से कर रहा है, बल्कि उच्चाधिकारियों को सूचना देते हुए अज्ञानी कर्मचारियों को उच्च पद पर रखते हुए उस पद पर आरक्षण जैसा कर दिया जाता है ।

और यही मंडल संयोजक, सहायक आयुक्त बनकर  आगे चलकर इन्हीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए लालपुर में बैगा सम्मेलन का करोड़ों रुपए का मिठाई और पानी का प्रबंध करने का फर्जी बिल अपने सभी खंड शिक्षा अधिकारियों के साथ मिलकर भुगतान करते हैं। जिले के बैगा मिठाई और पानी पाए या नहीं....?  किंतु आदिवासी विभाग को पानी पिलाने का काम जमकर हुआ...!

 एक सूत्र की माने तो तत्कालीन कलेक्टर अनुभा श्रीवास्तव को किसी एक नोट सीट को छुपाकर पूर्व कलेक्टर नरेश पाल की आपत्तियों को भी नजरअंदाज करने का दुस्साहस इसलिए किया गया ताकि जिले के भ्रष्टाचार के पालनहार दुर्गा टेंट हाउस वाले बल्लू गुप्ता का फर्जी बिल जो कथित तौर पर तेरा लाख का रहा पास कराया गया...... अब यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि यह बल्लू वह बल्लू नहीं है जो गांजे के आरोप में जेल में है..... यह बल्लू आज भी जिले के ऐसे ही "अंसारियों" को पाल पोस रहा है..... और शहडोल में उनके नाम पर बड़े-बड़े प्लॉट्स भी खरीद रहा है ....., कोतमा तिराहा में एक अंसारी की बहुत जल्दी इसी आदिवासी विकास की रफ्तार में कोई नई "गोल्डन टावर" देखने को मिल सकती है....

 अब आप कहेंगे कि सफेद हाथी दिखता नहीं है... विशेषता यह है कि दिन की रोशनी में वह सफेदी में नहीं दिखता..,और रात के वह अपने कालेपन में गुम हो जाता है।

 इसलिए यह व्यवस्था है और सिर्फ व्हाट्सएप मैसेज का आनंद लीजिए कि "हिंदू छोड़ेगा तो प्रधानमंत्री और मुसलमान छोड़ेगा तो जेल"

 क्या संबंधित उच्च अधिकारी भ्रष्टाचार के ऐसे मिथक सत्य को आरक्षित करने का काम करेंगे अथवा अस्थाई प्रभार हटाकर सत्य का पर्दाफाश करेंगे... अन्यथा यह तो दीमक है पूरे सिस्टम को धीरे धीरे खा लेंगे.....?   क्योंकि इसी आदिवासी विभाग में जब सबका विभागीय परिवर्तन होता है तो लेखापाल कौशल सिंह मरावी का छात्रावास का अस्थाई प्रभार नहीं हटता क्योंकि यदि आदिवासी छात्रावासों का भ्रष्टाचार का आरक्षण कौशल की कुशलता से संचालित होता है क्योंकि अंसारी मंडल संयोजक होकर क्षेत्र संयोजक अपने अज्ञान से बन जाता है तो फिर श्री मरावी तो कुशल ही है....सहायक आयुक्त आदिवासी कार्यालय की सफेद हाथी की गरिमा को बनाए रखने के लिए...........? 

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