गुरुवार, 29 अगस्त 2019



 


जम्मू-कश्मीर.-2
छोड़ी कलेक्टर की नौकरी!
 
केरल के कन्नान नेअभिव्यक्ति की दमन पर
कहा; जमीर गवारा नहीं करता....


 (  त्रिलोकीनाथ  )

कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है...., की एकता को मजबूती से प्रदर्शित करने वाले कोट्टायम केरल  निवासी 2012 के आईएएस कन्नान गोपीनाथन ने कश्मीर के आजादी और अभिव्यक्ति की दमन को लेकर  अंततः आईएएस सर्विस से इस्तीफा दे दिया..... । 
युवा अधिकारी गोपीनाथन की मान्यता है के "जम्मू कश्मीर में 370 निरसन चुनी ही सरकार का अधिकार है, लेकिन लोकतंत्र में लोगों को ऐसे फैसलों पर प्रतिक्रिया देने का अधिकार है।
 यह पहला अवसर है कि किसी आईएएस अधिकारी और युवा सोच ने अपनी नौकरी छोड़ते हुए सुदूर कश्मीर की एकता से अपने सूत्र को जोड़ते हुए भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद की है.....
 इस आवाज को जो "कश्मीर से कन्याकुमारी की आवाज है" और यह सत्ता धारियों को सुननी   ही चाहिए अन्यथा भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतिबंध, चुने ही सरकारों का यह दमन ही होगा ...। हला कि अभिव्यक्ति की आजादी का पहला आंदोलन जब साहित्य अकादमी अवार्ड जीतने वालों में सबसे पहले शहडोल क्षेत्र के सीतापुर निवासी उदयप्रकास सिंह ने अवार्ड वापसी कर शासन की नीतियों का विरोध प्रदर्शन किया था ,तब अवार्ड वापसी की झड़ी लग गई थी शायद इससे कोई सीख नहीं लेने का अनुभव कश्मीर से कन्याकुमारी तक की एकता के क्षतिग्रस्त होने के दर्द को शायद ही देख पाये....? और इसीलिए गोपीनाथन  ने आईएस सर्विस को त्याग कर कश्मीर की अभिव्यक्ति की बंदिश पर नाखुशी जाहिर की है। उसके दर्द को साझा करने का प्रदर्शन भी किया है। निश्चित तौर पर उनका प्रदर्शन बौद्धिक समाज में स्वयं के होने का और लोकतांत्रिक देश में आजादी की सतत स्वतंत्रता बनाए रखने की जागरूकता का संदेश है। और यह संदेश गुलाम भारत में अक्सर आजादी के दीवाने करते रहे हैं।
 इसमें कोई शक नहीं की स्वायत्तता का विशेष प्रावधान अलग-अलग राज्यों में अलग अलग तरीके से स्थापित है अपनी अपनी भौगोलिक परिस्थितियों के कारण उसका रूप अलग-अलग है उसे लागू करने बनाए रखने और उसका निराकरण या निरसन करने का काम भी सतत स्वतंत्रता के संघर्ष का हिस्सा है .....।
और जब तक इसमें स्थानीय नागरिकों की जवाबदेही और भागीदारी तय नहीं होती है तो यह किस प्रकार से अपने लक्ष्य को प्राप्त करेगी...? इसमें कई प्रकार की शंकाएं होना स्वाभाविक है किंतु किसी भी स्थिति में स्थानीय नागरिकों  की आजादी और उनका अधिकार के प्रति संवेदनहीनता नहीं करना चाहिए ।
कश्मीरी पंडितों का मामला,पलायन का मामला है उससे ज्यादा कानून-व्यवस्था का मामला है जिसमें सरकारें असफल होती रही हैं...। अपनी असफलता को छुपाने के लिए किसी की आजादी को कुचला जा सकता है....?
 यह समझने में हम जैसे पांचवी अनुसूची में अनुसूचित आदिवासी विशेष क्षेत्र के प्रावधानों मैं शामिल शहडोल जिले के निवासियों को अनुभव  है की भलाई पांचवी अनुसूची की संवैधानिक व्यवस्था शहडोल में लागू हो किंतु यह व्यवस्था स्थानीय आम आदमी, मिडिल क्लास लाइफ के लिए ही दिखती है....?, उद्योगपति और उनके पीछे छिपे हुए  मल्टीनैशनल्स के लिए लागू होती नहीं दिखती.....?

 यही कारण है कि पूंजीवादी बाजार का खतरनाक स्वरूप युगों से बहती आई हुई अमरकंटक की नर्मदा नदी में 2019 की गर्मी में नर्मदा की धारा को कई दिनों तक विलुप्त हो गई  यानी काली और खदानों ने  बिगाड़ी ही पर्यावरण संरचना  के कारण नर्मदा सूख गई  और कमजोर हो गई ..... । यह तो हमारी आदिवासी धारणा की दिखने वाली सोच  है।सरकारी और प्रशासनिक अमला अभी तक इसकी पुष्टि नहीं किया है यानी प्रमाणित नहीं किया, क्योंकि वह उसके नकारे पन को भी प्रमाणित करती है।
 2020 का साल और कितने खतरनाक परिणाम लाएगा यह नर्मदा मां ही जाने.....? इस अनुभव से हम स्वतंत्रता के दमन को प्रमाणित कर सकते हैं, की स्वायत्तता के कमजोर होने से क्या नुकसान होता है..... यह ठीक है आदिवासी अंचलों में विद्रोह के स्वर स्वाभाविक रूप से नहीं उठते.... किंतु जिस वक्त आदिवासी समाज को महसूस हुआ कि नर्मदा को नष्ट करने में विकास ने कितनी बड़ी भूमिका खड़ी की है वह भी मुखर हो चलेंगे .....? इस मायने में कश्मीर की स्वायत्तता अग्र सोची प्रतीत होती है ......? 
यह ठीक है, की वहा पीछे आतंक का उद्योग फलता फूलता रहा है किंतु इसमें स्थानीय नागरिकों की या वहां से पलायन करके अथवा भगा दिए गए कश्मीरी पंडितों का संघर्ष एक सतत प्रक्रिया है...... जिसे सरकारों ने सुनने में बहुत देर कर दी और एक सही निर्णय 370 या 35a को हटाने का काम बेहद गलत तरीके से किया गया... लोकतंत्र में होने वाला सच से ज्यादा दिखाने वाला सच ज्यादा प्रभावशाली होता है।
 बावजूद इसके इसमें एक राष्ट्रीय मौनसहमति को बल मिला किंतु इसके आड़ में पिछले 25 दिनों से स्थानीय नागरिकों का अभिव्यक्ति का दमन देश में गुलामी अथवा दमन का शासन का एक प्रयोगशाला बन सकता है .....।
जिस के खतरे का अनुभव नर्मदा के विलुप्त हो जाने और विकास की परिभाषा के गढने के बीच में छुपा है.... जिसे समझने की आवश्यकता है। अन्यथा "कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है, इसे धक्का लगेगा और शायद इसी की संवेदनशीलता ने केरल के आईएएस अधिकारी को हिला कर रख दिया ।
जो प्रतीकात्मक रूप से उन सभी भारतीय नागरिकों के भावनाओं का संदेश है, जो जल्द ही नहीं सुलझाया गया तो इसके परिणाम लोकतांत्रिक हितों के लिए खतरनाक साबित होंगे । इस तरह भारत का स्वर्ग तीनतलाक बिल से होकर कैसे चंद्रयान तक का सफर कर पाएगा.....? 
तो तैयार रहें, यह सब भी अयोध्या के विवादित मुद्दे की तरह गंगा के प्रदूषण का हिस्सा बन जाएंगे और हम भारतीय नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्य के दमन को तथाकथित राष्ट्रवाद की आग में झोंक चुके होंगे.... ईश्वर ना करें जम्मू कश्मीर की प्रयोगशाला से निकले वायरस भारत की स्वतंत्रता के लिए दुखदाई साबित हो...
 इस नारे के साथ कि, "सबका साथ-सबका विकास".....?

सोमवार, 26 अगस्त 2019


मोदी का मंत्र  "थ्री-एम" 3-मंडे------1

×-दमन की प्रयोगशाला बन रहा जम्मू-कश्मीर...?



×-370 पर लोकसहमति की मोहर कब तक...?


×- मुखर हो रहा है कश्मीर से कन्याकुमारी तक अभिव्यक्त

 ×-केरल के आईएएस कन्नान बने संवेदना के सूत्र... 
×-अभिव्यक्ति की दमन पर छोड़ी कलेक्टर की नौकरी!
×-...कहा ; जमीर गवारा नहीं करता.......


(  त्रिलोकीनाथ  )

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाषा में थ्रीएम यानी 3monday( सोमवार) को क्रियान्वित चंद्रयान, तीन तलाक और 370 पर की गई कार्यवाही क्या आंतरिक विचार विमर्श के लोकतांत्रिक मायने रखने का हक नहीं रखते....?
 निश्चित तौर पर अगर भारत आजाद है तो उसकी आजादी इस बात पर नियत है कि प्रत्येक अच्छे और खराब सभी पहलुओं पर खुली चर्चा हो..... यदि वह ज्यादा संवेदनशील है  तो बंद कमरे में, सभी लोकतांत्रिक तत्वों के साथ मंथन हो...। ताकि उसके अच्छे और अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकें ।
सिर्फ उसका श्रेय लेने, उसके कूटनीतिक परिणामों की लालच में ,भारत की आजादी को गुलाम बना देना किसी गुलाम परख सोच की ही प्रस्तुति हो सकती है....... और हमारे पुरखों ने कम से कम यह तो सिद्ध किया ही है, कि वे गुलाम रहे जरूर.... लेकिन उनके अंदर आजादी की आग भी रही। जिसके परिणाम स्वरूप भारत अंततः स्वतंत्र देश का और उससे ज्यादा लोकतांत्रिक देश का स्वरूप ले सका ।हां, कुछ कमियां थी... तो निर्माण की प्रक्रिया में यह सब स्वभाविक हिस्सा है ।यह कुछ वैसा ही है जैसा कि जब मैं लेख लिख रहा हूं तो मच्छर बार-बार मुझे काट रहे हैं, और डिस्टर्ब कर रहे हैं....
किंतु इस सबसे निर्माण की प्रक्रिया रुक नहीं जाती और रुकनी भी नहीं चाहिए।
 "स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा" यह नारा यूं ही नहीं बना था एक स्वाभाविक स्वस्थ मनोवृति इसे संचालित कर रही थी। हर नागरिक के दिल और दिमाग में यह नारा बसा ही है और इसी नारे ने संपूर्ण भारत में आजादी का समन्वय सूत्र स्थापित किया था। ऐसे ही किसी नारे में लोगों में संपूर्ण भारत भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश-अफगानिस्तान आदि मैं यह मानवीय धारणा स्थापित हुई थी। यह अलग बात है कि जब 1947 में देश आजादी की प्रसव पीड़ा से गुजर रहा था तब पाकिस्तान ने प्रदूषण का मार्ग चुना, भारत ने स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था को महसूस किया। बीते 70 साल में यह हमारी प्रगति का प्रमाण पत्र है इसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। जब भी हमारी मनोवृति प्रदूषित होती है तो वह प्रदूषण को अपनाने के लिए मार्ग तय करती है.. तब लक्ष्य मिलता है।
 लोकतांत्रिक राष्ट्र के निर्माण के बाद भारत में भी पाकिस्तान की आजादी के कारक जन्म ले रहे थे, उन्हें झिझक बहुत थी प्रदूषण से घुलमिल जाने के लिए क्योंकि वे स्वस्थ स्वतंत्र राष्ट्र के अनुयाई रहे.... वे जम्मू-कश्मीर जो भारत का नहीं दुनिया का स्वर्ग कहलाता है, उसके निवासी थे।
 अंततः आजादी के हित में प्रगति के मार्ग को अपनाया और यह है मार्ग चंद्रयान से कमजोर नहीं था, यह पहला सोमवार था।  फिर आया "तीन-तलाक बिल" खुद मुस्लिम पक्षधर धार्मिक राष्ट्रों ने चाहे वह पाकिस्तान ही क्यों ना हो इस तीन तलाक की परंपरा को अस्वीकार कर दिया था, कि यह प्रदूषण है,इस्लामी परक मानवीय मूल्यों के विकास में। और इस्लामी राष्ट्रों की सच्चाई सिद्धांतों को ठीक करने में हमें 7 दशक लग गए हैं।
 अब ठीक है कि राजनीति का स्वार्थ अपने तरीके से कूटनीति करता है ।तीन तलाक को भारतीय मुसलमानों को स्वयं ठीक कर लेना चाहिए था क्योंकि यह इनकी आंतरिक समस्या है किंतु कतिपय अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी या हमारी गुलामी मानसिकता इस्लामी समाज में इसे ठीक करने में बहुत देर कर दी, जिससे कूटनीतिक कट्टरपंथियों को इस पर खेल करने का अवसर मिल गया और यह देरी 70 साल के फासले को पार कर गई...., यह देरी उसी प्रकार की है जैसे जम्मू कश्मीर के निवासियों ने जो स्वयं को 370 की या 35a की सीमाओं में स्वयं को बांधे रखा, इसपर मंथन और चिंतन कर इससे मुक्त होने के रास्ते उनकी विधानसभा में तय नहीं हो पाए.....,, जिससे इसका भी लाभ कट्टरपंथी राजनीति करने वालों के लिए एक अवसर बन गया......। इसे भी संशोधित करके स्वाभाविक परिवेश में पूर्ण स्वायत्तता को बनाए रखते हुए निराकृत कर लेना चाहिए था । क्योंकि यह हमारी राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाधक बनने का बड़ा प्रचार तंत्र या हौआ बना दिया गया था।
 कुछ वैसे ही जैसे अयोध्या का राम मंदिर सिर्फ एक हौआ है... सब जानते हैं कि अयोध्या में हजारों की संख्या में मंदिर है, जिसे इतना खूबसूरत वहां की सत्ता जब चाहे तो बना दे, जो अयोध्या को सनातन धर्म का तक्षशिला विश्वविद्यालय दुनिया में घोषित कर दे।
 किंतु यह भी जम्मू कश्मीर की 70 साल या तीन तलाक की 70 साल पुरानी देरी से ज्यादा देरी के रूप में और घिनौना रूप में उभर कर आई। "अहम् ब्रह्मास्मि" अथवा "वसुधैव कुटुंबकम" की अवधारणा वाला हिंदू सनातन धर्म इतनी छोटी और संकीर्ण मानसिकता का प्रतीक नहीं हो सकता कि  राम अगर कहीं जन्मे थे तो उसी कण्  , उसी मकान पर, उसी पत्थर पर जन्मे थे ..., यह सोच हमारे अंधविश्वास का हिस्सा है, इसके अलावा कुछ भी नहीं हो सकता है। इस सोच के कारण मुझे हिंदुत्व-ब्रांड राष्ट्रद्रोह  या फिर धर्म द्रोही मान ले ।किंतु एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में जहां मेरा राम पूरी कायनात के मालिक हैं, वे लीला करते हैं.., जहां मेरे कृष्ण का तर्क जीवन के उल्लास के साथ आनंद पूर्ण जीवन बिताने का मार्ग देता है जहां मेरे शंकर जब नर्मदा के पास आते हैं कण-कण में स्थापित हो जाते हैं ...., उन्हें किसी कमरे के अंदर बंद करके रखकर सोचने का काम... "बहुत देर हो चुकी" से ज्यादा कुछ प्रमाणित नहीं होता। और "यह देरी" गुलाम परक मानसिकता को बल देती है.... कि हां अभी भी हम अपने प्रदूषणकारी सोच के गुलाम हैं । पूर्ण स्वतंत्रता, पूर्ण मोक्ष  के लिए सभी धर्मों को एकाकार होना पड़ेगा.... मानवी मूल्यों का धर्म, विविधताओं की अनिवार्यता एक बेहद शोध संस्थान के रूप में स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करता है। इस हेतु हिंदू सनातन धर्म कभी प्रदूषण कारी मार्गों को चुना,  नहीं कह सकते हैं.... शासन प्रशासन व्यवस्था चलाने में हिंदुत्वब्रांड का दुकान बहुत जरूरी है... किंतु यह दुकान चलाने की आवश्यकता हो सकती है... देश और राष्ट्र चलाने की कतिपय आवश्यकता नहीं है..... इसलिए स्वस्थ और स्वतंत्र लक्ष्य के लिए संकीर्ण व प्रदूषित रास्ते और भी देरी करेंगे या फिर उसमें बाजारवाद पैदा करेंगे.........
 जो बाजारईयों के हित में होगा... जैसे भारत के 33 करोड़ देवी देवताओं के अगर चित्र मिल सकते तो चाइना से इनकी मूर्तियां और चित्र भारत ने बड़ा बाजार बना देते हैं... तो क्या 3 एम बाजारवाद का बाजार खोलता है ...,यह शंका प्रबल होती है,
 जब कोई आईएएस अधिकारी इस शंका के आधार पर जम्मू कश्मीर के लोगों की स्वतंत्रता को कुचलने के लिए अपनाए गए रास्ते पर यह तय करता है कि जब कोई मेरे से पूछेगा कि तुमने क्या किया तो मैं कहूंगा मैंने नौकरी छोड़ दी थी ..... (जारी भाग 2)










मंगलवार, 20 अगस्त 2019

दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर; ग्लोबल वार्मिंग अमरकंटक में भी गायब हुआ पर्यावरण- परिस्थितिकी

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दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर, किया गया 'अंतिम संस्कार'

aajtak.in
20 August 2019
दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर, किया गया 'अंतिम संस्कार'
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क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) की वजह से आइसलैंड में पहली बार एक ग्लेशियर गायब हो गया. इसका नाम (ओकजोकुल) था. इस घटना के साथ ही कई अन्य ग्लेशियरों के भी खत्म होने की आशंका बढ़ गई है. इसे धरती के लिए खतरनाक संकेत माना जा रहा है. (ग्लेशियर की 1986 और 2019 की फोटो, Credit- AP)
दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर, किया गया 'अंतिम संस्कार'
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पश्चिमी आइलैंड में ओकजोकुल ग्लेशियर के खत्म होने पर स्थानीय लोगों ने 'अंतिम संस्कार' जैसी रस्म अदा की. आइसलैंड के प्रधानमंत्री कैटरीन जकोबस्डोटिर, यूएन ह्यूमन राइट्स कमिश्नर मैरी रॉबिनसन, रिसर्चर्स, छात्र और अन्य लोग अंतिम संस्कार सेरेमनी में शामिल हुए. (फोटो- AP)
दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर, किया गया 'अंतिम संस्कार'
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इस मौके पर प्रधानमंत्री कैटरीन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि आखिरी सेरेमनी न सिर्फ आइसलैंड के लोगों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरक होगी. क्योंकि हम यहां जो देख रहे हैं वह क्लाइमेट चेंज का सिर्फ एक चेहरा है. (फोटो- AP)
दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर, किया गया 'अंतिम संस्कार'
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वैज्ञानिकों का कहना है कि आइसलैंड के दर्जनों ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा दिखाई दे रहा है. बर्लिन यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर जुलियन वीस ने कहा कि किसी ग्लेशियर को गायब होते देखना ऐसी घटना है जिसे आप सीधे महसूस कर सकते हैं और समझ सकते हैं. (फोटो- AP)


दुनिया पर खतरा! पहली बार गायब हुआ ग्लेशियर, किया गया 'अंतिम संस्कार'
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प्रोफेसर जुलियन ने कहा कि आप क्लाइमेट चेंज को रोज महसूस नहीं करते, एक इंसान के तौर पर देखें तो यह बहुत धीरे हो रहा है. लेकिन भौगोलिक पैमाने पर यह काफी तेज है. (फोटो- AP)

आओ अमरकंटक संरक्षण के लिए स्वार्थी हो जाएं

-(----त्रिलोकीनाथ-------)

यह तो  दुनिया की बातहै....
अब जरा हम स्वार्थी हो जाएं..... भारत की ओर देखें ,फिर मध्य प्रदेश की ओर और ज्यादा स्वार्थी हो जाएं तो शहडोल क्षेत्र की ओर देखें...., जो भौगोलिक रूप से बेहद संवेदनशील है बिंंन्ध्य-मैंकल पर्वत श्रेणी का संगम है ,अमरकंटक पर्वत की श्रृंखलाओं को जिस के संरक्षण में 1960 के दशक में जो पर्यावरण और पारिस्थितिकी रही ,जल संसाधन का जो विशाल भंडार था, वनों का और उन वनों के संरक्षण में जड़ी बूटियों का, लघु वनोपज का, जो विशाल भंडार रहा.... उसके साथ ही आंकड़े निश्चित तौर पर वन संरक्षक के पास शहडोल में संरक्षित हैं...?

 जिनकी तुलना आज के सांख्यिकी आंकड़ों से अगर देखा जाए तो इस स्पष्ट तौर पर दिखेगा कि कई जैव विविधता पूर्ण जड़ी बूटियों का उत्पादन या तो घट गया है या फिर खत्म हो गया है....! एक तो मैं ही गिना सकता हूं हर्रा ......जी हां त्रिफला का एक भाग  " हर्रा-बहेड़ा  "राह चलते नहीं दिखते हमको ......यह यह वृक्ष गायब हो चुके हैं या विलुप्त होने वाले वृक्षों में इन्हें शायद वन विभाग ने रखा हो .....?

तो यह विकास की या विनाश की एक श्रृंखला है.... जब हम दुनिया को देखते हैं तो आसपास भी देखना चाहिए और उतनी ही संवेदनशीलता के साथ ,यह देखना चाहिए अमरकंटक की जल धाराओं खासतौर से सोन नदी और इसके आसपास 100 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र को हमने खनिज उत्पादन के आड़ में या औद्योगीकरण के नाम पर सिर्फ विनाश करने का काम किया है.......?
 यही विकास किया है..., वृक्षारोपण के नाम पर एक उद्योग के लिए कच्चा माल यानी यूकेलिप्टस लगाकर अमरकंटक पर्यावरण को सिर्फ नष्ट करने का काम किया है ...... एनजीटी  यूकेलिप्टस हटाने के लिए कहा  तो शायद नानी मर रही है ......? , 
अभी यदि जागरूकता अनपढ़ आदिवासियों या आदिवासी क्षेत्रों के लिए नहीं, जिनके पास ठेका है... मेरिट की योग्यता है... आईएएस ..,आईपीएस .. आई एफ एस या आई ई एस  होने का दावा है ...उनके लिए है .....
कि क्या वे योग्य हैं ......भारत की आजादी के बाद अमरकंटक पर्वत श्रेणी को और उसकी जैव विविधता को पर्यावरण संरक्षण को बचा पाने के लिए ....?
रही नेताओं की बात ...तो आजादी के बाद शायद ही कोई नेता सभी दल के आपस में बैठकर निष्पक्ष भाव से अमरकंटक क्षेत्र यानी शहडोल संभाग और बिलासपुर कोरबा के आसपास के लोग आपस में बैठकर क्षरित होते अमरकंटक को बचाने के लिए शायद ही बैठे हो......?
 जब भी चिंता करते दिखे तो सिर्फ क्षेत्र की लूट के लिए ......?
जिसे दोहन का नाम दिया गया ....उसके लिए बैठे हैं ....अब भी वक्त है की कि ग्लेशियर के विनाश से और अमरकंटक के विनाश से कुछ सीखें....
 अगर जरूरत पड़ती है तो वन संसाधन हो या खनिज संसाधन को चाहे वह कोयला हो बॉक्साइट हो रेत हो या फिर सीबीएम गैस हो इन सब के दोहन की प्रक्रिया में आवश्यक अंग बने .....सिर्फ भ्रष्टाचार और लूट के लिए.... नहीं बल्कि स्वस्थ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी........
 यही हमारे होने का मतलब है ...
हां पत्रकारों की जरूर ..वे अब अपना पेसा बदल चुके हैं ...जिस कार्य के लिए प्रकृति ने उन्हें निहित किया है उससे दूर जा चुके हैं..., या भटक चुके हैं ...उन्हें भी यूनियन बाजी और अपनी छोटी सोच से ऊपर उठकर अमरकंटक भौगोलिक परिक्षेत्र पर चिंतन करना चाहिए.... जो शायद वे नहीं कर रहे हैं ...?
क्योंकि विकास की धारा अमरकंटक की शीर्ष चोटी पर उन दिगंबर जैन मुनियों के लिए फाइव स्टार स्तर तक की मंदिर और धर्मशाला का हेड क्वार्टर बनाने का काम कर रहे हैं जिस में कभी भी महान संत विद्यासागर जी महाराज जैसे अथवा अन्य साधु-संतों जैसे लोगों के लिए रहने का आवास चिंतन का आवास या फिर मंथन का आवाज नहीं बनेगा.....

 तो भैया शीर्ष स्तर पर धर्म के नाम पर और मैदानी क्षेत्रों में कर्म के नाम पर हो रहे विकास के विनाश से सतर्क हो जाइए नहीं तो जैसे ग्लेशियर गायब हो गया है ....वैसे अमरकंटक भी गायब हो जाएगा ....तो नर्मदा सोन महानदी जोहिला यह तो अमरकंटक के कारण ही हैं.... तो जरा सोचिए समझिए और बुद्धि हो तो कुछ करिए भी क्योंकि मेरे जैसे बुद्धिहीन लोग सिर्फ बता ही सकते हैं ....करना तो उन्हें हैं जिनके पास अधिकार हैं... जो अधिकारी हैं ,और जिम्मेदार हैं जिनके पास जिम्मेदारी है....?

सोमवार, 12 अगस्त 2019

मुख्यमंत्री की मंसा को चूना लगाया माफिया ने / करोड़ों की भूमि, कौड़ियों में..लुट गया बैगा

अथकथा आदिवासी क्षेत्रे -4

 तू डाल डाल-मैं पात पात ......

करोड़ों की भूमि,  
कौड़ियों में  लूटा साहूकार /भूमाफिया ने 
(  त्रिलोकिनाथ )
×गुहार लगाती रहा मजदूर  बैगा परिवार 
×हत्या की धमकी के बाद  अंततः लुटा  बैगा
×आदिवासी विशेष पिछड़ी जनजाति  समाज 

😭मुख्यमंत्री की मंसा को  चूना लगाया माफिया ने

दिवस- विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त 19🇮🇳

स्थान - आदिवासी संभाग मुख्यालय संविधान की  पांचवी                   अनुसूची में  आदिवासी विशेष  हितों के लिए 
           सुरक्षित क्षेत्र शहडोल नगरी क्षेत्र गोरतरा

नाम-    संसतिया बैगा बेवा गज्जू बैगा उम्र करीब 55 साल 
           2 पुत्र 1 पुत्री
पेसा-   दिहाड़ी मजदूरी

भूमि मालिक-  आराजी ग्राम गोरतरा रकबा करीब 3:30 एकड़
                     मुख्यमंत्री आवास योजना में निर्मित मकान 

भूमि को लूटने वाले
 साहूकार/ माफिया-  अभिषेक सोनी, जीवन जयसवाल व
                    अन्य 
भूमि का सौदा - 2 एकड़ भूमि करीब 89000 वर्ग फिट

स्थल -           नेशनल हाईवे सड़क से करीब आधा कि0मी0 
                  दूर संभाग मुख्यालय शहडोल का बसाहट
                    ग्राम गोरतरा, आराजी
सासकीय कीमत - करीब 43 लाख रुपए 
आराजी का सौदा-- ₹3 लाख 
भुगतान की प्रक्रिया - पहले दो ₹2000-3000 करके 
                               अभिसेक सोनी द्वारा
                  साहूकारी  करना बाद में जमीन गिरवी
                 रखना , एग्रीमेंट करना और फिर  किसी राहुल 
                 बैगा के नाम पर 89000 वर्ग फीट जमीन का 
                 सौदा करना 2017 के अंत से चालू है षड्यंत्र में
                 मार्च 2018 तक अभिषेक सोनी साहूकार द्वारा 
                आदिवासी के नाम पर एग्रीमेंट करना  धन अग्रिम 
                देने के बाद रजिस्ट्री के वक्त दिया  ₹50हजार।,
                 ₹300000 की रजिस्ट्री कराना
                रजिस्ट्री वक्त मात्र ₹50000 देना और 1 वर्ष 
                तक कई किलोमीटर दूर पैसे के भुगतान के लिए 
                विधवा महिला मजदूर संसदीय बैगा और उसके 
                परिवार को पैदल बार-बार बुलाना ।
                इसके बावजूद भी पैसा न देना 

शिकायत - अंततः शहडोल कलेक्टर को, पुलिस अधीक्षक को मई 2019 में पहली बार जमीन लूटे जाने की आराजी क्षति होने की शिकायत हुई ।

शिकायत में कोई कार्यवाही ना होने से, बैगा परियोजना शहडोल के प्रशासक को भी शिकायत।
 फिर कई स्मरण पत्र ,अंतिम पत्र; जनसुनवाई में पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर को।

 न्याय के लिए गुहार ,भू माफिया व बेनामी कारोबारी साहूकार द्वारा जान से मारे जाने धमकाने, व हत्या करने की शिकायत ......? बैगा परिवार द्वारा बार-बार की गई, कोई कार्यवाही नहीं...?

 निष्कर्ष :---    आदिवासी दिवस में, मुख्यमंत्री द्वारा घोषणा किए जाने के बाद पुलिस थाना सुहागपुर की सहमति और निर्देश पर, घेराबंदी करते हुए षड्यंत्र करके, धमकी और पैसे के बलबूते अंततः नाममात्र का पैसा वापस कर, शिकायत वापस लेने का सफलता........  भूमाफिया ने कराया

तकनीकी कानूनी व्यवस्था- पूर्व राजस्व बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश त्रिपाठी का मानना है कि जिस प्रकार का 43  लाख रुपए की सासकीय घोषित मूल्य में तीन लाख रुपए की रजिस्ट्री "मिथ्या-सौदा है जिसे मान्य नहीं किया जा सकता। वे कहते हैं की भलाई आदिवासी व्यक्ति के नाम पर यह लेनदेन हुआ है किंतु जिस प्रकार की प्रक्रिया दिखती है यह विशुद्ध माफिया का "बेनामी लेनदेन" है जिसे बेनामी-सौदे और  पांचवी अनुसूची में साहूकारी लेन-देन के प्रकरण में शामिल करते हुए खुली जांच करना चाहिए... व जब तक 5 एकड़ से कम कृषि भूमि बची रह जाए तब तक ही उस आदिवासी परिवार को जमीन बिक्री की अनुमति दी जानी चाहिए जैसा कि 165 में के प्रावधानों में कानून ने सुरक्षा दी है.....।

अंतिम निष्कर्ष:--- विश्व आदिवासी दिवस में मुख्यमंत्री कमलनाथ के फैसले के बाद कि साहूकारी कर्ज़ माफ होंगे.... पुलिस, प्रशासन के भृष्ट लोगो की सहमती से "भू-माफिया" के षडयंत्र से हत्या और धमकी से भयभीत बैगा परिवार की एकमात्र कीमती करोड़ों रुपए की भूमि 2 एकड़ लूट ली गई मात्र तीन लाख रुपए में वह भी 2 वर्ष में टुकड़े टुकड़े कर साहूकारी की तरह पैसे दिए गए। याने जमकर बंदरबांट हुआ, यानी गरीब मजदूर की भूमि जो उसके और उसके परिवार को कृषि अजीबका का एक मात्र साधन था, माफिया-तंत्र जिसमें भू माफिया, दलाल ,सहयोगी भ्रष्ट पुलिस कर्मचारी, प्रशासनिक कर्मचारी ,बैगा परियोजना आदि सबने मिलकर मुख्यमंत्री कमलनाथ जी की मंशा जानकर तत्काल गरीब की जमीन लूटने का षडयंत्र का अंजाम दिया ..?

 इस प्रकार सनसतिया  बैगा का  शिकायती  पत्र, "सांप" भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी....? याने भू माफिया से लेकर उच्च पुलिस प्रशासनिक अधिकारी तक करोड़ों रुपए की जमीन का बंदरबांट हुआ...?. और बैगा परिवार  विरासत में प्राप्त अपनी जमीन को खो दिया ...,वह मजदूर का मजदूर रह गया..
 अब उसके और उसके परिवार के हिस्से में इन्हीं पुलिस , प्रशासन ,नेता माफिया और दलाल की गुलामी सुनिश्चित हो गई है । वे उनके यहां जाकर मजदूरी और गुलामी करें ।यही व्यवस्था है.......?
 विश्व आदिवासी दिवस में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ की मंशा के संकल्प को इस प्रकार से साकार किया गया... यही लोकतंत्र है या भ्रष्टतंत्र....
 काश..., जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटा कर भारत के संविधान में  बनाई गई  आदिवासी हितों के लिए पांचवी अनुसूची के साथ 370 भी लगा दी गई होती तो शायद विरासत में प्राप्त विशेष पिछड़ी जनजाति आदिवासी बैगा समाज का यह परिवार लोकतंत्र की आजादी में गुलाम घोषित नहीं होता.....
 यह अलग बात है कि उसे गरीबी रेखा के नीचे का प्रमाण पत्र और इन तथाकथित मसीहाओं की भीख में दी हुई आजादी हासिल है ....


लालपुर बैगा सम्मेलन में भी लगे थे
 भ्रष्टाचार के ठुमके ....
मुख्यमंत्री ने भी ठुमक-ठुमक कर 
भ्रष्टाचारियों को किया संरक्षित....?

तो यह कहानी है व आंकड़े हैं, उस आदिवासी विशेष पिछड़ी जनजाति के बैगा परिवार की जिनको लूटकर हमारा सिस्टम इन्हीं के नाम पर करोड़ों रुपए बर्बाद कर सम्मेलन करता है और उसमें भी सरकारी धन को लूट के अंजाम देता है...., और फिर मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जैसा कि लालपुर बैगा सम्मेलन में आए और जमकर इनके साथ ठुमके भी लगाए... शिवराज सिंह चौहान इन ठुमको से इतना खुश हुए कि उन्होंने नगदी में दो तीन लाख रुपए देने की घोषणा भी कर दी..... और कथित तौर किन्हीं खनिज माफिया से यह नगदी की राशि तत्काल लेकर खनिज अधिकारी शहडोल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को उपलब्ध करवाई...., जरिए कलेक्टर...?

 दूसरा पक्ष  इसी बैगा सम्मेलन में हुआ कि  करोड़ों रुपए से भी ज्यादा के मिठाई बांटे और पानी की बोतलें, पैकिंग के खाली लिफाफे भी इन करोड़ों रुपए के बंटवारा हुआ जिसके चश्मदीद गवाह हैं.... यह बात आदिवासी विकास शहडोल के फाइलों में दर्ज है.... कि किस प्रकार से नए कलेक्टर को छुपाकर किसी मंडल संयोजक अंसारी ने आपत्ति के बावजूद प्रभारी सहायक आयुक्त बनकर भी नए कलेक्टर से 13 लाख रुपए इन्हीं बैगा को पानी पिलाने के नाम पर फर्जी बिल का भुगतान दुर्गा टेंट हाउस शहडोल के बल्लू गुप्ता को कर दिया.....
 माफिया के अलग-अलग रंग हैं, अलग-अलग रुप हैं, देश की आजादी के 70 साल बाद भी गरीबों आदिवासियों को लूटने के लिए नए नए षडयंत्र बनते हैं.. और सफल होते हैं ...।और भ्रष्ट तंत्र को हटाने की  या उन पर कार्यवाही करने की हिमाकत प्रशासन में भी नहीं होती ....., क्योंकि वे दावा करते हैं गरीबों को लूटने का पैसा इन्हीं अधिकारियों तक जाता है... "कोई पैसे पेड़ पर तो उगते नहीं...?"
 भ्रष्ट-तंत्र की परिवार का पेट शासन की तनख्वाह से नहीं भरता ......यह सिद्ध होता है...। तो एक बात और सिद्धि होती है जब मुख्यमंत्री कमलनाथ विश्व आदिवासी दिवस में साहूकारी कर्जा मुक्त करने की घोषणा कर रहे थे... तब षड्यंत्रकारी-माफिया  बैगा आदिवासी मजदूर की विरासत की करोड़ों रुपए की जमीन को यह जानते हुए भी कि शासकीय मूल्य 43 लाख रुपए पंजीकृत दस्तावेजों में दर्ज हैं, जिसका वे टैक्स भी उस से वसूला जा रहा है... शासन भी इस गरीब को लूटने के लिए अपना योगदान घोषित तौर पर करता है..... और गरीब, पिछड़ी जनजाति के हिस्से पर 3 लाख रुपए सैकड़ों टुकड़ों में करके उसे गुलाम बनाने के लिए अपने कार्यवाही को विश्व आदिवासी दिवस में अंजाम देता है......

 क्या मुख्यमंत्री कमलनाथ की यही मंशा थी.....? कम से कम शहडोल में तो यही सिद्ध होता है ....? हो सकता है अपना दामन साफ करने के लिए संबंधित प प्रशासन और पुलिस तंत्र जागृत हो.. उनका जमीर , आजादी के आज के पड़ाव में जब झंडे लहरा रहे हो कुछ शर्म खाए, और इस पूरे विषय का खुलासा, वकायदे प्रेस कॉन्फ्रेंस करके करें कि वह इस पूरे भ्रष्ट तंत्र में शामिल नहीं है और भ्रष्टाचार का बटवारा उस तक नहीं आया है....।
 यदि ऐसा नहीं होता है तो निश्चित तौर पर सब "एक ही थैली के सभी चट्टे-बट्टे हैं..., यह भी सिद्ध होगा और यह भी सिद्ध होगा कि नियम कानून और संविधान की हैसियत है क्या.....? 
 तू डाल-डाल..., तो मैं पात-पात....

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