सोमवार, 24 जून 2019

बस पर सवार प्रशासन..... जय की तलाश पर ; जैतपुर में !=( त्रिलोकीनाथ )===========

जय की तलाश पर; 
जैतपुर में.. !

जनसुनवाई









==========(  त्रिलोकीनाथ  )===========
पता नहीं अब कहानियों का क्या  दौर है..? कहानियां कुछ कहती भी हैं या नहीं..,जब हम  पढ़ते थे प्रायमरी स्कूल ,मिडिल स्कूल में, हिंदी की- अंग्रेजी की कहानियों को  बड़े चाव से पढ़ते थे।  क्योंकि कुछ ना कुछ रस रहता था.... उसको पीते थे, जमकर चखते भी थे।
 हिंदी कहानियों में एक याद आता है "चाचा छक्कन ने धोबी को कपड़े दिए" एक और कहानी जो रस भरी थी उसका शीर्षक था "जीप पर सवार इल्लियां" दरअसल यह कहानी एक गांव में चने के खेत पर किसानों की समस्या फसल की बीमारी और भ्रष्टाचार पर आधारित है। उस समय भ्रष्टाचार शुरुआती कीड़ा रहा होगा.... उसी तरह जैसे इल्लियां यानी छोटा मोटा कीड़ा जो मौसम में पैदा होता है, फसल को देखकर और फिर खत्म हो जाता है... किंतु इतने में वह सब कुछ कर जाता है। खेत में इल्लियां , लगने की  समस्या से सरकारी कृषि विभाग के लोग बुलाए गए ताकि वे इल्लियां  को देख कर समस्या का समाधान कर सके किंतु जिस प्रकार से सरकारी अमला खेत तक आया और कई चने के बूट उखाड़ कर अपने जीप में भर के ले गया उस पर व्य्ंग  करने साथ ही कथाकार किसान के हवाले से खेत मालिक से पूछा, क्या हुआ इल्लियां का.... कहानी की खात्मा इस पर होता है की सभी इल्लियां  जीप पर ले जाई गई / जा रही हैं......।
 यह व्यंग्य तत्कालिक शुरआती पारदर्शी भ्रष्टाचार का हिस्सा था, अब भ्रष्टाचार का मुकाम, वो अमरीश पुरी की फिल्म के चरित्र  "मोगैंबो" के स्तर पर जा पहुंचा है।
 हाल में ही इसे प्रदर्शित करते हुए संसद के कांग्रेस पार्टी के 52 सांसदों के दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कल ही बड़े ठोस इरादे से अपने वक्तव्य में सदन के अंदर कहा... "...कि अगर राहुल गांधी और सोनिया गांधी चोर हैं तो यहा संसद में क्या कर रहे हैं, कैसे बैठे हैं.....?  क्योंकि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री ने उन्हें चोर कहा था। इस प्रकार चोर-चोर मौसेरे भाई कि खेल को जमकर खेला गया। हालांकि श्री चौधरी ने कहते हैं माफी मांग ली थी।
 किंतु यह सच की घटना बताती है 21वीं सदी की भ्रष्ट व्यवस्था अब किसी "जीप में सवार इल्लियां" की तरह नहीं है बल्कि वह अज्ञात उच्चस्तरीय कार और हवाई जहाज में सवार होकर सदन में पहुंचती है। यह एक बड़ी बीमारी के रूप में स्थापित हो गई है। जिसका समाधान यदि समय पर नहीं किया गया तो गैंग्रीन बनकर लोकतंत्र को अंततः नष्ट कर देगी, सड़ा देगी.....।
 इसका एक उदाहरण, या यू कहना चाहिए 21वीं सदी की इस भ्रष्ट व्यवस्था का एक उदाहरण विश्व प्रसिद्ध नर्मदा नदी के उद्गम नर्मदा-उद्गम स्थल अमरकन्टक मे नर्मदा स्रोत के सूख जाने और कम हो जाने से प्रमाणित होता है ।
कि सिर्फ कतिपय अधिकारी, कर्मचारी, नेता  ही नहीं साधु संतों के नकाब में धार्मिक मठाधीश अपने थोथे अहंकार  के लिए अपनी समाज की काली कमाई को सफेद करने के लिए प्रकृति के प्रतिकूल व्यवहार करते हुए उसे लगातार विनाश कर रहे हैं। इसमें जाने अनजाने उन निष्ठा और समर्पण का भी समावेश है जो  उच्चतर शिक्षा प्राप्त आईएएस, आईपीएस आई एफ एस योग्यता वाले व्यक्ति भी शामिल हैं ....जो समझ नहीं पाए कि जब नर्मदा उद्गम क्षेत्र के शीर्ष पहाड़ियों पर धार्मिक मठ के नाम पर कंक्रीट के जंगल और आयातित गांव बसाया जाएगा..., जैसा कि जैन मंदिर के नाम पर हुआ तो इसकी प्रतिपूर्ति के लिए पानी कहां से लाएंगे............?
 नर्मदा  जी उतना पानी देती जितनी क्षमता है। 
 काली कमाई का पैसा पूरी ताकत से नर्मदा की पहाड़ियों को ड्रिल  करता हुआ हजारों फीट नीचे से पानी निकाल कर गांव की प्यास बुझाता है./भक्तों की प्यास बुझाता है... यही पानी तो था ..,जो अपने प्राकृतिक स्वभाव में नर्मदा उद्गम का कारण बनता था। ऊपर से साल के वृक्षों की सुंदर प्राकृतिक छटा और नीचे नर्मदा-मृदा में होकर यह जलधाराएं नर्मदा का प्रवाह करती थी ....। जब पूरे साल के वृक्ष काट ही डाले गए, अंदर से ड्रिल करके पानी निकाल लिया गया....?, फिर भी आप कहें कि नर्मदा प्रवाहित हो.....?,
 यह तो अंधा, बहरा  व्यक्ति भी उत्तर दे सकता है... 
ऐसा ना होगा भैईया....!
 बहराल यह मुख्यमंत्री,प्रधानमंत्री और शीर्ष धार्मिक मठाधीशो  तथा ब्लैकमनी के राष्ट्रीय स्तर के स्टॉकिस्ट के समन्वय का परिणाम है।
 अन्यथा भारत का संविधान पांचवी अनुसूची की व्यवस्था देकर, आदिवासी क्षेत्र को संरक्षित करने की घोषणा करता है। जिसे यह नहीं मानते.....?
 "शायद प्रकृति ही चाहती हो.... " : भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा को पहली बार मैंने तब देखा, जब नरेंद्रमोदी अपने आभा मंडल के साथ पहली बार प्रधानमंत्री बने थे और बीजेपी हेड क्वार्टर में दिल्ली में जा रहे थे, पूरी व्यवस्था में लाइव टेलीकास्ट में मूछों वाला मध्य प्रदेश का एक व्यक्ति प्रभात झा को प्रबंधन करते देखा था ....। तब उनकी अहमियत को पहचाना था, आर एस एस के समाज में जो धीरे से राष्ट्रीय पहचान ले रहा था। इसी शहडौल सर्किट हाउस में एक प्रश्न में मुझे बता रहे थे.. कि अगर विनाश हो रहा है किसी राम मंदिर का तो भगवान की ऐसी ही इच्छा है...?
  ऐसा मानकर हम भी संतुष्ट हो लेते हैं क्योंकि हिंदुत्व का कॉन्ट्रैक्ट इन्हीं लोगों के पास है।


 बहरहाल  यह बीती बातें है ।आज सुबह शहडोल के प्रशासन को नए रूप में देखा वह इसी सर्किट हाउस से बस में सवार होकर शहडोल के सीमांत अनुविभाग जैतपुर की ओर जनसुनवाई कार्यक्रम, जो हर मंगलवार को लगता है। मुख्यालय में ना करते जैतपुर में करना तय किया गया। प्रशासन इसी महान कार्य के लिए अपने पूरे दलबल के साथ जनता जनार्दन की समस्या के सुनवाई के लिए उनके घर पहुंच रहा था....। 
 प्रतीकात्मक रूप से यह बेहद मनोहारी तथा एक नया प्रयोग है, क्योंकि शहडोल में जनसुनवाई में कभी ऐसा नहीं हुआ था ।होने को पहले होता था.., प्रशासन, अक्सर पत्रकारों के दल के साथ दो-तीन माह में एक बार जिले के भ्रमण में निकलता था। और "लोकज्ञान" के जरिए समस्याओं का समाधान करता था। तथा लोकतंत्र के प्रति एक पारदर्शी  समन्वय का व्यवहार करता था ।
अब यह एक नया अंदाज "बस पर सवार प्रशासन" में मिलजुल कर समस्याओं का समाधान करेगा...।  निश्चय ही भस्ट  हो चुकी आदिवासी क्षेत्र की व्यवस्था के सुधार में यह मील का पत्थर साबित हो ....,हमारी यही शुभकामना है। हम कुछ कर पाएं, लोकतंत्र के लिए ,उनके हितों के सुरक्षा के लिए, जिनके लिए आजाद भारत में हमें सांसे दी हैं.., हमें शिक्षा-दीक्षा देने का रास्ता खोला है, हम योग्यता के चरम स्तर पर जिला स्तर पर अपना प्रदर्शन करने के लिए अपनी योग्यता की परीक्षा दे रहे हैं। और क्या करा जा सकता है...? शहडोल कलेक्टर का यह अभिनव प्रयोग कैसे अधिकतम सुधार ला सकता है देखने और सीखने के योग होगा, इस पर काम जारी ही रहेगा.. हमारी शुभकामनाएं।

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