(कुंभ-महापर्व का समागम. भाग-2)
___________________श्रद्धांजलिदिवस _______________________
27 फरवरी 1931 में वीरगतिप्राप्त हुए
27 फरवरी 1931 में वीरगतिप्राप्त हुए
चंद्रशेखर आजाद के बलिदान महातीर्थ स्थल
पुलवामा में 42 बलिदानी सैनिक कि बदले मारे , 350 आतंकवादी
......... मेरे पुत्र ने कहा चलिए,
चंद्रशेखर आजाद पार्क
चलते हैं. मुझे भी याद आया तीर्थराज प्रयाग के यहां हमारी आजादी का महातीर्थ चंद्रशेखर आजाद के बलिदान स्थल पर जाकर अपनी तीर्थ-यात्रा को
पूर्ण क्यों न किया जाए. और जब यहां आया पार्क के अंदर तो जैसे कुंभ के तीर्थ में जो तमाम तकलीफ है, हिंदूसत्ता-भाजपा ने दिया था जैसे सब
का समन हो गया, मन-द्रवित हो गया कि मैं उस जमीन की मिट्टी में बैठा हूं , जहां कभी ऐसे बलिदानी अपना खून बहाए थे..., मन तो
वैसे भी द्रवित था की
पुलवामा में 42 हमारे बलिदानी
सैनिक निरर्थक
मारे गए.., गंदी राजनीति के परिणाम स्वरुप.
अतः लगा आजाद पार्क में शायद कुछ राहत मिले और यकीन न करेंगे बहुत सुकून हुआ जैसे इस मिट्टी में उर्जा दी के जीवन और भी है, हिंदुत्व
के नकाब के अलावा..?
राजनीति
की कूटनीति का नकाब के अलावा और हिंदूधर्म की तथाकथित ब्रांडिंग करके सनातन-धर्म को हिंदुत्व में कन्वर्ट करके प्रचारित
करने और यह बताने का प्रोपेगंडा फैलाने के अलावा , कि सनातन-धर्म का पर्यायवाची ही हिंदुत्व है, जबकि हम
भी जानते हैं हिंदुत्व ब्रांड है., व्हाट्सएप ब्रांड, बाजारवाद
का, राजनीतिक-बाजारवाद
का, जैसे डालडा-घी, सनलाइट –साबुन, अथवा पारले-बिस्किट या फिर ऐसे ही कोई जैसे ब्लैक-लेबल, ब्लैक-डॉग अथवा कोई सैंपन, या फिर देसी शराब, हाल में
योगी बाबारामदेव के पतंजलि का शुद्ध घी बाद में देसीघी, के रूप में ज्यादा लाभ कमा कर लोग बेचते हैं. बस इसके
अलावा कुछ भी
नहीं ....?
हिंदुत्व- ब्रांड का व्यापारी तीर्थराज संगम के ऊपर ही क्षण-क्षण में, अगर बस
चलता तो वहीं से हेलीकॉप्टर से कूदकर मोक्ष प्राप्त कर लेते,डुबकी
लगाकर. लेकिन शायद अभी शर्म बाकी है....
चंद्रशेखर आजाद के बलिदान भूमि में उनकी,
आध्यात्मिक गवाह प्रयागराज -संगम का भी तीर्थयात्रियों की प्रताड़ना बनने दिया गया. आज की
कुंभ-तीर्थ यात्रा , मैं नहीं जानता की डुबकी लगाने से मुझे या मेरे पितरों को किस प्रकार की तुष्टि मिलेगी..., मेरा लोक-ज्ञान इस में डुबकी लगाता है., किंतु यह
जरूर जानता हूं पार्क में बैठकर और सांसे ले कर आजाद-देश का महातीर्थ बलिदान-दिवस आजाद पार्क हमेशा मेरे लिए तुष्टि का कारण बनेगा. और यहां
आकर एक भारतीय-आत्मा “पुष्प की अभिलाषा” अपने को समर्पित कर सकती है. हां मैं
कह सकता हूं अगर में पुष्प बना तो मेरी अभिलाषा होगी कि जहां चंद्रशेखर आजाद के खून बहा, उस पथ पर बिछा दिया जाए. मातृभूमि
को शीश
चढ़ाने वाले इस महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के प्रति हम कुछ श्रद्धा सुमन कर सकें.
बलिदानी सैनिक शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए 12 मिराज ने
350 आतंकवादियों को नेस्तनाबूद किया.
बस लोकतंत्र के नाम पर पतित राजनीति के कारण इसमें देर-सवेर हो जाती है. किंतु वह हमारे जवानों को कमजोर नहीं कर सकती. जब भी जिम्मेदारी निर्वहन की बात आती है, हमारे वीर जवान अपनी जवाबदेही को पूरी कर्तव्यनिष्ठा, सफलता के साथ अंजाम देते हैं. और 26 फरवरी 2019 की सुबह यही सब कुछ हुआ इसलिए चंद्रशेखर आजाद को समर्पित उनके वीरगति प्राप्त होने के 27 फरवरी 2031 की वीरगति को हम श्रद्धांजलि देते हुए अपने उन सभी वीर जवानों का श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं जिन्होंने आजादी के बाद और आजादी के पहले देश की रक्षा में स्वयं को शहीद कर दिया.
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