रविवार, 21 जनवरी 2024

सिर्फ 84 सेकंड का मुहूर्त में आज आएंगे तारणहार "लोकतंत्र के राम" ( त्रिलोकीनाथ )


सिर्फ 84 सेकंड के मुहूर्त निकल आने पर लिए अब तक दिखने वाला हिंदू समाज आंतरिक रूप से दो टुकड़े में हो गया है, इसकी घोषणा इस तरह से अघोषित है जिस तरह से अयोध्या का हिंदू राज्य की राजधानी होने की घोषणा लगभग हो चुकी है किंतु उसे घोषित नहीं किया गया है। क्योंकि उसे राजधानी की तरह अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय राजमार्ग से रेलवे लाइन से और करीब एक लाख करोड रुपए के विकास के नजरिए से सजाया और संवारा गया है लगभग भारत का समस्त मंत्रिमंडल अयोध्या में पड़ा हुआ है खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसका प्रचार प्रसार दक्षिण भारत की राजनीति में अपना कब्जा पालन पाने के लिए हिंदुत्व को जगाने के लिए  अपने उम्र के अंतिम पड़ाव में दक्षिण भारत में घूम-घूम कर अलग-अलग हिंदू मंदिर में प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से प्रेस रिलीज जारी कर विज्ञप्ति के जरिए प्रचार और प्रसार भी करवा रहे हैं। 

तो आई समझ लें कि किस तरह आज 22 जनवरी  2024 को अघोषित हिंदू राज्य की राजधानी अयोध्या के लिए अर्ध निर्मित राम मंदिर में “लोकतंत्र के राम” को स्थापित करने की योजना बनाई गई है।

 ................................( त्रिलोकीनाथ ) ...................................

 


  सबसे पहले जान ले काशी के उन विद्वानों की मुहूर्त को जिन्हें जनवरी में मांगे जाने पर आपातकालीन स्थिति की तरह 84 सेकंड का मुहूर्त निकाला गया है…


हम यह बात इसलिए भी कह रहे हैं कि तथाकथित हिंदू राज्य की राजधानी अयोध्या में “लोकतंत्र का राम मंदिर” निर्मित हो रहा है और जिनमें  प्रतिष्ठित रामलला विराजमान के जन्मस्थली पर जो मूर्तियां स्थापित यानी प्राण प्रतिष्ठित की जानी है उनके तौर तरीके पर सनातन हिंदू समाज के प्रवर्तक आदि शंकराचार्य की चारों पीठों के पीठाधीश इस भव्य कार्यक्रम में अनुपस्थित रहेंगे।


यानी कुछ को तो निमंत्रण दिया है तो कुछ शंकराचार्य को जो की सुप्रीम कोर्ट में विवादित राम मंदिर बाबरी मस्जिद में आवश्यक पक्ष कर रहे हैं उन्हें निमंत्रण भी नहीं दिया गया है…

 निमंत्रण देने की जिम्मेदारी लोकतंत्र के राम मंदिर का निर्माण करने वाले ट्रस्ट ने जिसके प्रमुख चेहरा चंपत राय को बनाया गया है, जो आरएसएस के विश्व हिंदू परिषद से संबंधित हैं । तो राम जन्मभूमि आंदोलन के सभी प्रमुख घटकों को किनारे करके यानी “शंकराचार्य-मुक्त राम मंदिर” पर अपना कॉपीराइट स्थापित करने का काम किया है… और इसमें भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार तथा आरएसएस ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से समर्थन भी दिया है। क्योंकि जिन रामजी को प्राण प्रतिष्ठित करने के लिए गर्भ ग्रह में रहने की जिन पांच लोगों को इजाजत है उसमें आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत भी रहेंगे।

यानी सुप्रीम कोर्ट में जिन शंकराचार्यजी की वजह से महत्वपूर्ण पक्ष शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी की ओर से रखा गया जिसने उच्चतम न्यायालय को निर्णय के इस पक्ष में पहुंचने में मदद की अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर यह विराट मंदिर बन सके उन शंकराचार्यजी को मंदिर बनाने वाले ट्रस्ट ने लगभग खारिज कर दिया।

 क्योंकि राजनीति के लिए राम का उपयोग किए जाने वाले यह ट्रस्ट जानता है की शंकराचार्य जी की प्रतिभा के और उनके आभामंडल में वह अपने मकसद पर कामयाब नहीं हो सकता। शंकराचार्य जी की ओर से इस पर काफी नाराजगी सोशल मीडिया में भी देखी गई है

खासतौर से मंदिर निर्माण के तौर तरीके और शास्त्र विधि सम्मत न होने को लेकर। वह शास्त्र विधि विरुद्ध बन रहे इस मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को संभावित तरीके से अनिष्ट का भी कारण मानते हैं । जिससे उनके अनुसार हिंदू सनातन धर्म और हिंदू समाज को काफी क्षति हो सकती है। शंकराचार्य जी ने तो इस बात पर भी नाराजगी व्यक्त की की जिस तरीके से काशी में काशी कॉरिडोर का निर्माण हुआ है उसमें हजार हजार साल पुराने मूर्तियों को मोदी सरकार ने तोड़कर कचरे में फेंकवा दिया था और पूरा मीडिया उसे पर एक बार भी चर्चा नहीं किया….

 ऐसा ही कुछ गोवर्धनमठ के शंकराचार्यजी निश्चलानंद जी का मानना है, कि मंदिर की अद्यतन लोकार्पण उद्घाटन या प्राण प्रतिष्ठा जो भी कहें वह शास्त्र सम्मत नहीं है।

 यह अलग बात है कि लोकतंत्र के राम को स्थापित करने की जिद करने वाला ट्रस्टी अपने फायदे के हिसाब से मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी आदि को भी मंदिर ना आने की सलाह देते हुए ट्रस्ट प्रमुख प्रमुख चंपत राय ने तो यहां तक कह दिया की यह मंदिर रामानंद संप्रदाय का है। यह भी अलग बात है काशी के रामानंद संप्रदाय मठ के प्रमुख श्री रामनरेशाचार्य जी ने भी इस ट्रस्ट ने निमंत्रण नहीं दिया और श्री रामनरेशाचार्य जी ने भी मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के तौर तरीके से अप्रसन्नता व्यक्त की तथा इसे राजनीतिक कार्य प्रणाली का हिस्सा बता दिया है।


 इन तमाम विवादों के बीच में कुल 84 सेकंड में यानी करीब डेढ़ मिनट में 500 वर्ष के विवादित इस राम मंदिर में हिंदू समाज के अंदर ही फूट पढ़ते हुए अब एक नए विवाद में करवट ले ली है… देखना होगा कि आगामी भारत में इस नवीन घोषित हिंदू राज्य की बनने वाली राजधानी में सनातन हिंदू समाज और अयोध्या के इस नवीन मंदिर निर्माण से जुड़े ट्रस्ट से संबंधित हिंदू समाज का नवोदित संप्रदाय भारतीय राजनीति में किस प्रकार से अपना असर डालता है‌।

 इतना तो तय है धर्म को प्रभावित करने अयोध्या राजनीति से राजनीतिक सत्ता को क्या लाभ होता दिख रहा है। फिलहाल अयोध्या में वर्षोंवर्ष से एक विवाद का पटाक्षेप पूरे भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में उनके अपने लोगों में भव्यता और आनंद के साथ मनाया जा रहा है । 

 




  लेकिन यदि सनातन हिंदू समाज के प्रवर्तकों और उनके समर्थकों की ओर देखे तो यह एक नए प्रकार के हिंदू आध्यात्मिक स्थल अयोध्या को राजनीतिक दृष्टि का माध्यम बनने पर निराशा का भी वातावरण है।तो “हुई है वही जो राम रचि राखा…..” ऐसा समझ कर फिलहाल राजनीति की अयोध्या और अयोध्या की राजनीति को तात्कालिक आनंद में डूबना अवश्य चाहिए…. भविष्य का भारत क्या होगा उसे भी राम भरोसे छोड़ देना चाहिए…क्योंकि यह करीब 1 लाख करोड रुपए का एक इवेंट भी है जो चंद मुट्ठी भर लोगों के सामने और उनके लिए आयोजित किया गया है…. इसके बाद वह आम जनता के लिए भी खोला जाएगा…

 


यह भी अलग बात है कि कांग्रेस पार्टी करीब 6 हजार किलोमीटर की राजनीतिक जागरूकता की यात्रा में मणिपुर से मुंबई की ओर चल पड़ी है और कभी उनके अपने रहे असम के नेता अब भाजपा के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वा अपनी पितृ पार्टी भाजपा की कर्तव्य निष्ठा प्रदर्शित करने के लिए अपनी मातृ पार्टी कांग्रेस की यात्रा पर हमला करवा रही है।


ऐसा आप आरोप कल कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर हमला होने के बाद असम में अपने पूर्व कार्यकर्ता को काफी खरिखोटी भी सुनाया ….यहां तक कहा कि “मेरी बिल्ली अब मेरे से ही म्याऊं करने लगी है…, लेकिन राहुल गांधी ने कहा है डरो मत इसलिए निडर होकर यह यात्रा चलती रहेगी.….

 तो देखते हैं धर्म की राजनीति और कर्म की राजनीति में भाजपा तथा कांग्रेस आने वाले समय में किस प्रकार से भारतीय मतदाताओं  को समझा पाती हैं…फिलहाल आज का दिन अयोध्या मैं 84 सेकंड में प्राण प्रतिष्ठित होने वाले लोकतंत्र के राम के नाम पर चर्चा का विषय बना हुआ है। जय सियाराम।




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